May 15, 2011

किसानों के राष्ट्रीय नेता 'टिकैत' नहीं रहे


टिकैत राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में तब आये जब उन्होंने दिसंबर 1986में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फरनगर के शामली से एक बड़े  आंदोलन की शुरुआत की थी...

संजीव वर्मा

किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष  चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का लम्बी बीमारी के चलते आज सुबह मुजफ्फरनगर में निधन हो गया. 76 वर्षीय स्वर्गीय टिकैत पिछले कई महीनों से आंत के कैंसर से पीड़ित थे.उनका इलाज दिल्ली के अपोलो अस्पताल में चल रहा था. टिकैत का अंतिम संस्कार कल सुबह 11 बजे उनके पैतृक गांव सिसौली में होगा.

टिकैत के परिवार में उनके चार बेटे और दो बेटियां हैं.उनके पुत्र राकेश टिकैत पहले से ही उनके साथ किसान यूनियन का काम देखा करते थे.चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने हमेशा किसानों के हितों के लिए चाहे वह गन्ना मूल्य हो या फिर बिजली के लिये,आन्दोलन किये. अपनी इसी कार्यशैली के चलते वे किसानों के चहेते थे. वे लगभग तीन दशक से किसानों की समस्याओं के लिए संघर्षरत थे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के जाट किसानों में तो उनकी गहरी पैठ थी.

सिसोली   में  टिकैत : कौन संभालेगा भाकियू की विरासत  
सबसे पहले टिकैत राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में तब आये जब उन्होंने दिसंबर 1986में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन की शुरुआत की थी. इसी आंदोलन मे 1 मार्च 1987 को किसानों के एक विशाल धरना-प्रदर्शन के दौरान पुलिस गोलीबारी में दो किसानो और एक पीएसी जवान की मौत हो गयी थी.तब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह टिकैत के नेतृत्व मे चले किसान आन्दोलन को शांत करने के लिये खुद सिसौली गांव गये और वहां जाकर किसानों की पंचायत को संबोधित किया. इस आन्दोलन के बाद से टिकैत ने पूरे देश में घूमकर किसानों के लिए काम करना शुरू कर दिया था.

पचास साल की अवस्था में उन्होंने भारतीय किसान यूनियन का गठन कर राज्यों और केंद्र सरकारों तक सीधे किसान हितों की बातें पहुंचाई। वर्ष 1986 में किसान, बिजली, सिंचाई, फसलों के मूल्य आदि को लेकर जब पूरे उत्तर प्रदेश के किसान आंदोलित थे,तब एक किसान संगठन की आवश्यकता महसूस की गयी। इसके लिए 17अक्टूबर 1986 को सिसौली में एक महापंचायत आयोजित कर भारतीय किसान यूनियन का गठन किया गया। इसमें सर्वसम्मति से चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत किया गया।
 
भाकियू गठन के बाद टिकैत के नेतृत्व में 1 अप्रैल 1987 मुजफ्फरनगर के गांव खेड़ीकरमू बिजली घर का घेराव कर किसान महापंचायत का आयोजन किया गया,जिसमें तीन लाख किसानों ने ट्रेक्टर-ट्रॉली सहित हिस्सा लिया तथा सरकार को बिजली की दरें घटाने पर मजबूर किया। टिकैत के नेतृत्व में भाकियू ने कई बड़े आंदोलन किये। वर्ष 1988को भाकियू द्वारा नई दिल्ली वोट क्लब पर धरना दिया गया। इसमें देश के अलग-अलग राज्यों से कई प्रमुख किसान नेता शामिल हुए। तीन अगस्त 1989को टिकैत के नेतृत्व में भाकियू ने नईमा काण्ड को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के विरूद्ध 39 दिन तक भोपा गंगनहर पर धरना दिया, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को झुकना पड़ा तथा किसानों की पांच मांगें माननी पड़ी। लखनऊ में भाकियू ने 1990 में एक विशाल किसान पंचायत का आयोजन किया गया,जिसमें टिकैत को गिरफ्तार कर लिया गया तथा उनकी पत्नी बलजोरी देवी को पुलिस लाठीचार्ज में गंभीर चोटें आयी।

यह टिकैत के नेतृत्व का ही असर था कि 11दिसम्बर 1990को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर एवं उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भाकियू की किसौली किसान पंचायत में शामिल हुए तथा किसानों के समर्थन में कई घोषणाएं की। सितम्बर 1993 में लालकिले पर डंकल प्रस्ताव विरोधी रैली का आयोजन किया गया,जिसमें करीब दो लाख किसानों ने भाग लिया। जिस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने टिकैत को वार्ता का निमंत्रण भेजा और टिकैत एवं किसान प्रतिनिधियों की प्रधानमंत्री के साथ वार्ता सफल रही।

महेंद्र सिंह टिकैत किसान परिवार मे पैदा हुए थे.हमेशा पैरो में चप्पल,बदन प़र कुरता-धोती और हाथ में छड़ी रखने वाले बाबा टिकैत शांत स्वभाव और निर्भीक किस्म के किसान नेता थे. वे हमेशा किसानों के हक के लिए लड़ते रहे.कहा जा रहा है कि उनके निधन से किसानों के आन्दोलन और फिलहाल ग्रेटर नोयडा मे चल रहे भट्टा-पारसोल आन्दोलन प़र भी फर्क पड़ेगा. टिकैत के निधन प़र सभी राजनीतिक पार्टियों ने दुःख प्रकट किया.प्रशासन ने उनके अंतिम दर्शन के लिए सिसौली में आने वाले नेताओं की सुरक्षा के मद्देनजर गाँव में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया है.उनके पैतृक गाँव सिसोली में तो उनके निधन की खबर से  गम का माहौल है.किसानों की राजधानी कहे जाने वाले सिसौली गाँव के पंचायत भवन पर 28सालों से बाबा टिकैत द्वारा प्रज्ज्वलित अखंड ज्योत भी उनके निधन के साथ ही भुझा दी गयी है.



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