May 16, 2011

सीपीएम के 'मर्दाना' वामपंथी

पश्चिम बंगाल में सीपीएम के नेता  बीनॉय कोनार के अपने पुरुष कैडर को निर्देश दिया था कि  जब मेधा पाटकर नंदीग्राम आये तो उनके सामने अपनी पैंट खोल दे. उस समय चुनाव नजदीक नहीं थे इसलिए सीपीएम ने ना इस बयान की निंदा की और ना ही इसके लिए माफ़ी मांगी...

 कविता कृष्णन

पश्चिम बंगाल की सत्ता में 34 वर्षों तक रही पार्टी सीपीएम के नेता अनिल बासु ने हाल ही में बीते विधानसभा चुनाव की एक  रैली को संबोधित करते हुए, कोलकाता के  रेड-लाइट एरिया- सोनागाछी का जिक्र किया और कहा-  'ममता के पास पैसा कहाँ से आ रहा है? किस भतार  (बंगाली भाषा का शब्द जो उस पुरुष के लिए इस्तेमाल किया जाता है,जिसका किसी औरत के साथ नाजायज सम्बन्ध हो) ने उसे चुनाव खर्च के लिए 24 करोड़ दिए?'

ममता बनर्जी : गलियां रहीं बेअसर

उन्होंने आगे कहा कि सोनागाछी  की वेश्या 'छोटे ग्राहकों की तरफ तब देखती भी नहीं जब  उन्हें कोई बड़ा ग्राहक मिल जाता है'.बासु ने कहा कि तृणमूल को अमेरिका जैसे बड़े ग्राहक चुनाव के लिए धन दे रहे हैं, इसलिए अब उसे चेन्नई, आंध्र प्रदेश  और दूसरी जगह के अपने छोटे ग्राहकों में कोई दिलचस्पी नहीं है.इससे पहले  सिंगुर प्रतिरोध के समय बासु ने , कहा था कि "यदि उनका बस चलता तो वे ममता के बाल पकड़ कर उसे कालीघाट के उसके मकान में पटक देते ना कि उसे टाटा फैक्ट्री के सामने प्रदर्शन करने देते".गौरतलब है कि घोर स्त्री विरोधी  राजनीति में डूबे सीपीएम नेता  अनिल बासु  आरामबाग से सात बार सांसद रह चुके है.इसी तरह पश्चिमी मिदनापुर के गरबेटा विधानसभा से सीपीएम प्रत्याशी और पूर्व मंत्री सुशांत घोष ने ममता बनर्जी के शादीशुदा न होने पर कहा कि  'जिस औरत की मांग में लाल सिंदूर नहीं हैं,वह स्वाभाविक तौर पर  लाल  रंग देखकर क्रोधित होगी .'  

जरूरी नहीं कि हम ममता बनर्जी या सीपीएम की राजनीति के समर्थक हों तभी इस बात को समझें कि सीपीएम के  अनिल बासु की स्त्री विरोधी गाली उस पितृसत्तात्मक अपमान का सबूत है जिसे सार्वजानिक जीवन में एक महिला को बार-बार झेलना पड़ता है. भले ही बासु ने  प्रकाश करात के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी से सात बार चुनाव जीता हो, लेकिन उन्होंने यह साबित कर दिया कि जब महिलाएं राजनीति में प्रवेश करती हैं तो वे राजनीति को राजनीति की तरह नहीं ले पाते. जब भी उन्हें महिला प्रतिद्वंदी का सामना करना पड़ता है तो वे तुरत राजनीतिक मुद्दों को एक और पटक देते है और आसान पितृसतात्मक गालियों का सहारा लेने लगते है -उनकी स्त्रीत्व पर हमला करते है,उन्हें वेश्या कहते हैं. साफ़ पता चलता है सीपीएम के यह नेता एक महिला प्रतिद्वंदी के प्रतिरोध का सामना मिथकीय दुशासन के तरीके से जो पितृसत्तात्मकता का प्रतीक भी है,के अलावा किसी अन्य तरीके से नहीं कर सकते.

हालांकि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे बुद्धदेव भट्टाचार्य  ने कहा था  कि जिस भाषा का प्रयोग बासु ने किया है वह 'अक्षम्य'है और उन्होंने सीपीएम को बासु के खिलाफ चेतावनी जारी करने कोभी कहा था. संभवतः बासु ने भी अपनी 'लापरवाह' टिप्पणी के लिए पछतावे का बयान जारी भी कर दिया था. लेकिन सवाल यह है कि यदि इस तरह की मौखिक हिंसा,जो महिला को सार्वजानिक जीवन में अपमानित करती है, सीपीएम के लिए 'अक्षम्य' है तो कैसे चेतावनी या माफ़ी इसके लिए पर्याप्त है. उन्हें सीपीएम से अभी तक निष्कासित क्यों नहीं किया गया? क्या अनिल बासु को स्त्री-विरोधी द्वेष पूर्ण टिपण्णी  के लिए सजा नहीं मिलनी  चाहिए ?

पहले भी कई अवसरों पर  सीपीएम नेताओं ने इस तरह की पितृसत्तात्मक तानों  और गलियों का इस्तेमाल किया है.दिवंगत सुहास चक्रबर्ती ने तृणमूल  कांग्रेस  की नेता ममता बनर्जी  के नारे माँ-माटी-मानुष का यह कह कर मजाक बनाया था और कहा था कि 'जो औरत खुद बांझ  है वह माँ का मतलब क्या समझेगी?'सीपीआइएम के ही बीनॉय कोनार के अपने पुरुष कैडर को निर्देश दिया था की जब मेधा पाटकर नंदीग्राम आये तो उनके सामने अपनी पैंट खोल दें.उस समय चुनाव नजदीक नहीं थे इसलिए सी पीआई एम ने ना इस बयान की निंदा की और ना ही इसके लिए माफ़ी मांगी.

सीपीएम को सोनागाछी  की उन गरीब स्त्रियों से भी माफ़ी मांगनी चाहिए जिन्हें  इस व्यवस्था ने मरने के लिए हाशिए पर धकेल दिया है और जिनका कुसूर सिर्फ इतना है की वे जीना चाहतीहै. क्यों उन्हें एक गाली समझा जाये? इसमें उनका क्या कुसूर है? बासु को इसका कोई हक़ नहीं है के वह उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुचाये जबकि वे और उनकी पार्टी को इस बात का जवाब देने चाहिए कि क्यों सीपीएम के तीन दशको के शासन के बाद भी सोनागाछी  की औरतें बेबस जिन्दगी जीने को मजबूर है.
अनुवाद-  विष्णु शर्मा


जेएनयु छात्र संघ की पूर्व संयुक्त सचिव और सीपीआइएमएल (लिबरेशन) की केंद्रीय समिति सदस्य. फिलहाल लिबरेशन के महिला संगठन एपवा की  राष्ट्रीय  सचिव .


9 comments:

  1. कविता जी जेएनयू छ्त्रसंघ की अध्यक्ष कब थीं? बल्कि आपको जब भी मैंने वोट दिया आप हमेशा हारीं |

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  2. कविता कृष्णन के परिचय में गलती से जेएनयु छात्र संघ की पूर्व संयुक्त सचिव की जगह अध्यक्ष लिखा गया था. हमें खेद है.

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  3. जैराम सिंह नेगी, सहारनपुरTuesday, May 17, 2011

    यही बताने की कोशिश हुई है वह अध्यक्ष नहीं थीं. अब अजय प्रकाश ने सफाई भी दे दी. लेकिन क्या कोई वामपंथी उस पर भी कुछ कहेगा जिसका जवाब एक महिला वामपंथी कविता कृष्णन मांग रही है. क्या अनिल बासु या दूसरों ने ऐसा नहीं कहा, सीपीएम जवाब दे.

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  4. पुरुष बर्चस्व वाले समाज में सभी बिषेशाधिकार पुरुष अपने पास रखना चाहता है जो इसके भयानक दुर्गुण हैं और तुलसी दास जी ('जिमी स्वतंत्र होई बिगरहिं नारी ') का मौन समर्थक है /जब उससे नारी से पराजित होने का आभास हो जाता है तो नारी पर निर्ल्लाजों की तरह भड़ास निकालता है /jagdish Lohra,Ranchi

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  5. javahar sachdeva, bhilai, chattisgarhTuesday, May 17, 2011

    samayantar se agar udhar lekar kahun to asahamati ka sahas aur sahmati ka vivek se janjwar.com bhara hua hai. mera anuman hai yah bahut aage jayega.

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  6. kavita 'Vaampanthi' kab thi ? wo to ABVP ke sath hamesh alliance mein rahi, SFI aur AISF ko harane ke liye,unke rahte huye JNU ke students community ne kabhi right wing ko jitne nahi diya.Aapne jo likha hai, wo satya hai, lekin aap Feminist ya humanist nahi hain, Anti-leftist jarur hain,jo hamesha se rahi hain aap, anjaane mein.

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  8. JNU me main AISA ki neta thi. AISA ko dakshinpanthi aur ABVP ka mitra batane vale log batayen ki CPIM ke mahila virodhi tippaniyan vampanthi vichardhara ka sanket karti hain ya phir dakshinpanth ka?
    Dhyan rakha jaye ki JNU ke vampanthi campus ne SFI aur YFE/ABVP ko harakar 2008 me AISA ko JNUSU ke saare seaton par vijayi banaya. Kya AISA ko vijayi banane ke liye aap JNU ke chatron ko bhi dakshinpanthi kahenge?

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  9. इसमें कोई शक नहीं है की kavita krishnan ने बहुत अच्छा लेख लिखा है.हैरानी की बात यह है की comments मे कोई और debate चल रहा है. किसी की identity को लेकर. इससे फर्ख क्या पड़ता है की kavita krishnan किसी AISA/SFI अथवा ABVP/NSUI से ताल्लुक रखती है.बात महिलाओ की बेइज्जती का है ,जो दोषी है उसे सजा होनी चाहिये .चाहे वह कोई मार्क्स के वाक्यों को रटने वाला communist (leftist) हो या फिर कोई दक्षिणपंथी हो .वैसे भी west bengal मे 34 साल तक communist party की सरकार थी तो फिर सोनागाछी जैसी जगह पैदा कैसे हो गई.

    जगह भी आप ही पैदा करते है और गाली भी आप ही देते है. वाह रे comrade

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