रामदेव का गुस्सा यहीं नहीं रुका। उन्होंने मसौदा समिति के सह अध्यक्ष शांति भूषण और समिति के सदस्य प्रशांत भूषण पर भी निशाना साधते हुए कहा कि मुझे समिति गठन में वंशवाद की बू आ रही है..
जंतर - मंतर डायरी - 6
भ्रष्टाचार खत्म हो, इसके लिए सरकार से लोकपाल विधेयक की मसौदा समिति बनवाने में सफल रहे अन्ना हजारे 98 घंटे के अनशन के बाद देश में हीरो के तौर पर उभरे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ इसी जागरूकता का असर है कि कल शाम पांच बजे से आयोजित आंदोलन के समाहार के लिए दिल्ली के इंडिया गेट पर आयोजित सभा में जब चर्चित टीवी पत्रकार बरखा दत्त पहुंची, तो लोगों ने उन्हें स्टूडियो समेत खदेड़ दिया। गौरतलब है कि टूजी स्पैक्ट्रम घोटाले मामले में बरखा दत्त पर मीडिया दलाल नीरा राडिया के साथ मिलकर भ्रष्टाचार करने के आरोप हैं।
लेकिन इसी के साथ खबर यह भी है कि भ्रष्टाचार के विरोध में शुरू हुई पहल को अभी बढ़ाये 12 घंटे भी नहीं बीते थे कि अन्ना के सहयोगियों में मनमुटाव और आरोपों का सिलसिला शुरू हो गया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ देश की सर्वाधिक मुखर आवाज और अन्ना हजारे आंदोलन के मुख्य सहयोगी योगगुरु रामदेव ने हरिद्वार के पतंजलि पीठ में प्रेस वार्ता कर कहा कि, ‘मेरे साथ हजारे ने छल किया है। जो अन्ना हजारे सिर्फ महाराष्ट्र में जाने जाते थे, सालभर पहले पतंजलि में लाकर उनका परिचय मैंने उत्तर भारत की जनता से कराया और उसी समय बात हुई थी कि हमलोग भ्रष्टाचार के खिलाफ मिलकर लड़ेंगे।’
रामदेव के लगाये इन आरोपों से एक बात तो जाहिर है कि देश में भ्रष्टाचार मुखालफत के एकमात्र नुमाइंदा बनकर घूम रहे बाबा रामदेव को अन्ना हजारे ने बड़ा झटका दिया है। जाहिर तौर पर अन्ना हजारे की जो छवि मीडिया ने जनता के बीच परोसी है उसके बाद रामदेव के लिए दुबारा अपना वह जलवा पाना, मुश्किल होगा। अन्ना के उसी प्रताप का नतीजा है कि निजी मैनेजमेंट कॉलेज आईआईपीएम के प्रमुख अरिंदम चौधरी ने उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए एक करोड़ रूपये देने
का ऐलान किया है.
रामदेव अन्ना के बारे में कहते भी हैं ‘चार दिन चला यह आंदोलन पूर्व नियोजित और योजनाबद्ध है, जिसकी कई संदेहास्पद परतें हैं।’ अब रामदेव उन परतों को खोलने में भले हिचकें, लेकिन अन्ना के बहाने कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से रामदेव से भ्रष्टाचार विरोध की राजनीति के शिखर पुरुष का तमगा छीन लिया है। कल तक जो लोग भ्रष्टाचार विरोध के तौर पर रामदेव को जानते थे,उन्हें अब अन्ना नजर आयेंगे। रामदेव का रिस्क कांग्रेस इसलिए भी नहीं लेना चाहती थी कि रामदेव राजनीतिज्ञ बन जायें, तब भी भाजपा के साथ ही उनका मेल बनेगा।
इसी वर्ष दिल्ली के रामलीला मैदान में रामदेव ने रैली कर अपनी मंशा की नुमाईश भी कर दी थी। 'स्वाभिमान मंच' के आयोजन में हुई रैली में कांग्रेस के कुछ नेताओं के नाम भी चर्चा में आये थे जिनकी काली कमाई स्विस बैंक में जमा है। वैसे तो रामदेव और कांग्रेस के बीच कई टकराहटें हुईं, मगर इस रैली के बाद रामदेव की ओर से कांग्रेस ने खुली चुनौती मानी। इधर, भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रशांत भूषण, रामदेव, अग्निवेश, किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल समेत कुछ और लोगों के नेतृत्व में बैठकों और रैलियों का सिलसिला जारी रहा। जाहिर तौर पर 5अप्रैल से अन्ना हजारे का धरना उन्हीं तैयारियों का परिणाम था, जिसके बाद देश सूरत बदलने की उम्मीद कर रहा है।
और यहां हालत यह है कि 12 घंटे भी नहीं बीतते हैं, उम्मीद का उभार आरोपों और छले जाने के रूप में हो रहा है। संयोग से यह संदेह जनता को पहले से था, मगर बाबा इस पर तब मुंह तब खोल रहे हैं, जब मसौदा समिति को तय करने को लेकर अन्ना ने उनसे कोई राय नहीं ली। जो मीडिया जनांदोलनों को घोड़े की पाद न समझे, वह मोमबत्ती उपलब्ध कराने से लेकर टेंट के जुगाड़ तक में लगी रही. आखिर कुछ तो वजह रही होगी। अगर यह कहा जाये कि पिछले छह महीने से एक के बाद एक घोटालों की जो परतें खुल रही थीं और जनता का गुस्सा बढ़ रहा था,कांग्रेस ने क्या उसे लपेटकर लोकपाल बिल मसौदा के बहाने कोने में नहीं रख दिया है।
कांग्रेस बखूबी जानती थी कि बढ़ते भ्रष्टाचार की राजनीतिक अभिव्यक्ति देर-सबेर होगी, तो क्यों नहीं समय रहते कुछ आसान रास्ता निकल जाये। कारण कि राजनीतिक अभिव्यक्ति मसौदे की मांग पर नहीं थमती, जहां सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों ने अपने को ठहरा लिया है। यह अन्ना के साथ मीडिया की सरकारी तैयारी का ही नतीजा था कि अन्ना के दिल्ली में अनशन की घोषणा के बाद से ही लगातार मीडिया अनशन को कवरेज दे रहा था। अन्यथा उसी जंतर-मंतर पर दो-दो लाख की रैलियां होती हैं,मगर उसका लाइव प्रसारण तो दूर, विज्ञापनों के बीच छिपी खबर को देखने के लिए कई बार पन्ने पलटने पड़ते हैं।
इसका दूसरा उदाहरण पुलिसिया रवैये का देखकर समझा जा सकता है। डंडे, बूट और बंदूक के लिए प्रसिद्ध पुलिस ने अन्ना अनशन को देखने आ रही भीड़ में से किसी को गाली भी बकी हो, डंडा लहराया हो या फिर कनॉट प्लेस जाम हो जायेगा, इस डर से रास्ता रोका हो, अब तक ऐसी कोई खबर नहीं है। अगर हमलोग भूलें न हों तो करीब तीन साल पहले चर्चित समाजकर्मी और गांधीवादी मेधा पाटकर योजना आयोग के पास धरना दे रही थीं।
उनके साथ भी बड़े बुद्धिजीवी (उनमें से बहुतेरे जो अन्ना के साथ दिख रहे थे), मध्यवर्ग के युवक-युवतियां, कलाकार, निर्देशक आदि भी समर्थन में धरने पर बैठे थे। मगर योजना आयोग में तैनात सुरक्षा बलों ने उनके साथ जो बदसलूकी की थी, उसे वह लोग तो नहीं भूले होंगे जिन्होंने अखबारों में छपी तस्वीरें देखी होंगी। लेकिन अन्ना के यहां तो बच्चों, विक्लांगों, अंधों और सेरिब्रल पैल्सी रोग से पीड़ित बच्चों से लेकर दुधमुहे बच्चों तक को लेकर लोग ऐसे आ रहे थे, मानो इंडिया गेट के नूर में झांयी आ गयी हो।
रामदेव अपना यह गुस्सा अमेरिका की एक दवा कंपनी नेचुरामिक के खरीद के अवसर पर जाहिर कर रहे थे। रामदेव के पतंजलि ट्रस्ट ने इस अमेरिकी कंपनी को खरीद लिया है और वह अब हर्बोवेद के नाम से जानी जायेगी। बहरहाल, रामदेव का गुस्सा यहीं नहीं रुका। उन्होंने मसौदा समिति के सह अध्यक्ष शांति भूषण और समिति के सदस्य प्रशांत भूषण पर भी निशाना साधते हुए कहा कि मुझे समिति गठन में वंशवाद की बू आ रही है। दरअसल, शांति भूषण और प्रशांत भूषण में बाप-बेटे का रिश्ता है। वहीं रामदेव ने किरण बेदी को समिति से बाहर रखने पर भी अफसोस जताया।
रामदेव के उठाये जा रहे सवालों के मद्देनजर लोकपाल बिल मसौदा समिति के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने इसे 'संयोग' तो अन्ना ने 'बेमतलब' का बताया है। वहीं वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा है कि ‘अलबत्ता तो मैं समिति में शामिल होने को तैयार नहीं था, फिर भी अगर लोगों की तरफ से ऐसी मांग उठी तो मैं इस्तीफा देने के लिए तैयार हूं।’
ऐसे में सामाजिक संगठनों और इनसे जुड़े नेताओं को समझना होगा की अगर आपसी अंतर्विरोधों का निपटारा सरोकार को केंद्र में रखे बगैर हुआ तो मुश्किलें गहराती जाएँगी, जिसका सीधा फायदा सरकार को होगा. वैसे भी सरकार के पास वर्ल्ड सोशल फोरम 2004, इंडिया सोशल फोरम 2006 और एनएपीएम का उदाहरण सामने है, जहाँ विवाद, वादों और बातों के सिवा कुछ भी अब शेष अब नहीं बचा है.
This is an important intervention by Janjwar on Anna Hazare's theatrical performance
ReplyDeleteagainst corrpution stunt.
All the ruling classes needed an Anna Hazare
to divert people's attention using the very issue
against which the people are turning against.
It is like Lord Sri Krishna's Bhagawat Geeta pravachan
that he will appear again and again when a ruling class
is in trouble and the exploited miserable populace
revolted against the ruling class.
Thanks. This apprehension was quite obvious.
ReplyDeleteWishing best
आना हजारे के आन्दोलन को अरिंदम चौधरी का तोहफा. एक करोड़ का अन्ना को सम्मान दिया जायेगा आइआइपीएम की और से . तब तो धीरे-धीरे बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ आन्दोलन का ही व्यापर करना शुरू कर देंगी. पापा-मम्मी बच्चों का करियर भी इसमें तलाशने लगेंगे और हेडक्वार्टर जंतर-मंतर अग्निवेश का दफ्तर होगा. कितना सबकुछ सुन्दर हो रहा है न, आओ अब आन्दोलन -आन्दोलन खेलें. बहुत अच्छा जनज्वार टीम ...बहुत अच्छा डायरी के लिए.
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