दशकों से रेल यात्री ट्रेनों में सरेआम यूं ही तरह-तरह के हथकंडों के द्वारा लुटते आ रहे हैं। कभी इन्हें सशस्त्र लुटेरे लूटते हैं तो कभी यात्रियों के रक्षक के रूप में दिखाई देने वाले सशस्त्र एवं बावर्दी लुटेरे...
निर्मल रानी
राष्ट्रीय स्तर की होनहार एवं उदीयमान वॉलीबाल एवं फुटबाल खिलाड़ी 24वर्षीया अरुणिमा उर्फ़ सोनू सिन्हा पर रेल यात्रा के दौरान लुटेरों द्वारा किए गए हमले के बाद एक बार पुन: रेल यात्रियों की सुरक्षा को लेकर राष्ट्रव्यापी बहस छिड़ गई है। पिछले 11अप्रैल को सोनू सिन्हा को तीन लुटेरों ने पदमावती एक्सप्रेस में चलती ट्रेन में लूटने की कोशिश की। एक खिलाड़ी एवं निडर महिला होने के नाते उसने लूटपाट का विरोध किया तथा लुटेरों का मुकाबला करने की कोशिश की। आख़िरकार बदमाशों ने उसे बरेली तथा चेनहटी स्टेशनों के मध्य चलती ट्रेन से बाहर धकेल दिया।
ठीक उसी समय दूसरे रेल ट्रैक पर दूसरी ओर से एक अन्य ट्रेन तेज़ी से आ रही थी जिसके नीचे सोनू का पैर आ गया और उसके सिर तथा दाहिने पैर में भी काफी चोटें आईं । डॉक्टरों को उसका जीवन बचाने में बायां पैर काटना पड़ा। यह होनहार महिला खिलाड़ी एक परीक्षा देने के लिए दिल्ली जा रही थी। ज़ाहिर है इस हादसे के बाद इस उदीयमान महिला खिलाड़ी का कम से कम खेल संबंधी भविष्य तो अब चौपट हो ही गया।
वॉलीबाल खिलाडी सोनू : रेल सुरक्षा का हाल |
सोनू सिन्हा जैसे हादसे भविष्य में न हों, इस पर चिंतन-मंथन करने के बजाए चिर-परिचित भारतीय राजनीति की परंपरा के अनुसार राजनीतिज्ञों में सोनू के प्रति सहानुभूति का प्रदर्शन करने की होड़ लगी दिखाई दे रही है। उत्तर प्रदेश के खेल मंत्री अयोध्या प्रसाद पाल ने अस्पताल जाकर सोनू से मुलाकात की तथा उसे उत्तर प्रदेश के खेल मंत्रालय में नौकरी का प्रस्ताव दिया। केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन भी सोनू को देखने बरेली मेडिकल कॉलेज पहुंचे तथा उनकी संस्तुति पर सोनू को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती करा दिया गया।
केन्द्रीय मंत्री अजय माकन ने भी सोनू को रेलवे में नौकरी दिए जाने तथा दुर्घटना के बदले उचित मुआवज़ा दिए जाने के लिए रेलमंत्री ममता बैनर्जी को पत्र लिखा है। ज़ाहिर है नेताओं की यह दरियादिली एक ऐसे हादसे के बाद दिखाई दे रही है, जबकि सोनू अपना खेल कैरियर गंवा चुकी है तथा इस प्रकार के अर्थपूर्ण प्रस्ताव न तो उसके खेल कैरियर को पुन: वापस ला सकेंगे न ही उस पर गुज़रने वाली मानसिक पीड़ा की भरपाई कर सकेंगे। सोनू की पीड़ा को महसूस करते हुए भारतीय क्रिकेट टीम के युवराज तथा हरभजन सिंह जैसे खिलाडिय़ों ने भी उसे एक-एक लाख रूपये की आर्थिक सहायता दी है तथा सोनू के प्रति अपनी गहरी सहानुभूति भी व्यक्त की है।
गौरतलब है कि ममता बनर्जी ने जबसे रेल मंत्रालय का कार्यभार संभाला है तबसे यह आम चर्चा है कि वे अपना सारा समय और ध्यान रेल मंत्रालय संबंधी काम देखने के बजाए पश्चिम बंगाल की राजनीति पर ही केंद्रित रखती हैं । हो सकता है पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव परिणाम उन्हें प्रदेश की सत्ता तक पहुंचा भी दें और वे रेल मंत्रालय छोड़कर राइटर्स बिल्डिंग की शोभा बढ़ाने लग जाएं। परंतु अपने रेलमंत्री रहते उन्होंने रेल यात्रियों की सुरक्षा संबंधी कोई उपाय नहीं किए, इस बात का शिकवा पश्चिम बंगाल राज्य के रेलयात्रियों सहित पूरे देश के उन सभी रेल यात्रियों को रहेगा जो अपनी यात्रा शुरु होने से लेकर यात्रा की समाप्ति तक स्वयं को घोर असुरक्षित महसूस करते हैं।
ममता ने रेल विकास के लिए निश्चित रूप से कई नई योजनाएं शुरु की हैं। नई दूरगामी तथा तीव्र गति से चलने वाली कई नई रेलगाडिय़ों से भी देश का परिचय कराया है। रेलवे के आधुनिकीकरण के भी काम हुए हैं तथा दुरंतो और महिला विशेष ट्रेन जैसे नए प्रयोग भी सफल हो रहे हैं। परंतु रेल यात्रियों की सुरक्षा संबंधी बुनियादी प्रश्र आज भी वैसा ही नज़र आ रहा है। यानी आज़ाद भारत के आज़ाद रेल यात्री और उन्हें लूटने वाले आज़ाद लुटेरे ट्रेनों में यात्रियों को बेखौफ लूट रहे हैं।
ऐसा भी नहीं है कि रेल यात्रा में असुरक्षा का वातावरण कोई ममता बनर्जी या लालू यादव के ही कार्यकाल की बातें हो। दशकों से रेल यात्री ट्रेनों में सरेआम यूं ही तरह-तरह के हथकंडों के द्वारा लुटते आ रहे हैं। कभी इन्हें सशस्त्र लुटेरे लूटते हैं तो कभी यात्रियों के रक्षक के रूप में दिखाई देने वाले सशस्त्र एवं बावर्दी लुटेरे। कभी रेलगाडिय़ों में खाने-पीने का सामान बेचने वाले हॉकर यात्रियों को नकली, सड़ा-गला, मिलावटी, महंगा तथा अधिक कीमत लेकर कम सामान देकर पूरे देश में विभिन्न स्थानों पर लूटते दिखाई देते हैं, तो कभी हिजड़ों का भेष बनाए बदमाश भीख मांगने के नाम पर यात्रियों से जबरन पैसे वसूलते हैं। यदि इन्हें कोई यात्री पैसे देने से मना करता है तो यह हिजड़े उसके मुंह पर थप्पड़ मारने तक से नहीं हिचकिचाते।
रेलगाडिय़ों में नकली पेय पदार्थ ठंडा और पानी की बोतल सबकुछ धड़ल्ले से यात्रियों के हाथों बेचा जाता है। लूट का आलम तो यहां तक है कि कई स्टेशन पर प्लेटफार्म पर ट्रेन आने के समय बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से गर्मी के दिनों में पीने के पानी की प्लेटफार्म पर होने वाली सप्लाई बंद कर दी जाती है। ऐसा केवल इसलिए किया जाता है ताकि गर्मी की शिद्दत और प्यास से परेशानहाल यात्री पानी न मिलने पर पानी की बोतलें या कोल्ड ड्रिंक्स खरीदने पर मजबूर हों। और जब यात्रियों को लूटने की योजनाएं इस स्तर तक बनने लगें, फिर आप स्वयं समझ लीजिए कि ऐसे स्टेशन पर आपको असली, ब्रांडेड या शुद्ध पानी की बोतल अथवा कोल्ड ड्रिंक्स आखिर कैसे मिल सकता है?
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रहा सवाल रेलयात्रियों को नशीली वस्तुएं खिला-पिलाकर उनके सामान लूटने का, तो यात्रियों की लूट का यह फार्मूला तो बहुत पुराना और चिर-परिचित हो चुका है। इसके बावजूद ज़हरखुरानी नामक लूट का यह तरीका भी नियंत्रित होने का नाम ही नहीं ले रहा है। कई ट्रेनों में जुआरी के भेष में ठगों का गिरोह सक्रिय रहता है। यह गिरोह पहले आपस में जुआ खेलता है, फिर आम यात्रियों को जुआ खेलने के लिए आकर्षित करता है तथा मिलीभगत कर उन्हें ठग लेता है।
सवाल यह है कि क्या भारतीय रेल विभाग के अधिकारियों तथा सुरक्षा संबंधी विभागों ने इस विषय पर नकेल कसने की कभी कोई गंभीर कोशिश की है? ऐसे में सोनू सिन्हा जैसी खिलाड़ी के साथ होने वाली घटना निश्चित रूप से भारतीय रेल में व्याप्त असुरक्षा और चोरी-डकैती के वातावरण को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उजागर करती है। ऐसे में निश्चित रूप से देश की प्रतिष्ठा तथा साख का भी सवाल खड़ा होता है। लिहाज़ा रेल यात्रियों को उनके हाल पर भगवान भरोसे छोडऩे के बजाए उनकी सुरक्षा के उपाय किए जाने की तत्काल ज़रूरत है।
इन उपायों में सर्वप्रथम तो पूरे देश में रेलवे स्टेशन सहित सभी रेलगाडिय़ों में भी सीसी टीवी कैमरा प्रत्येक डिब्बे में लगा होना तथा लगाने के बाद उसका चलते रहना अत्यंत ज़रूरी है। उसके पश्चात जीआरपी तथा आरपीएफ की संयुक्त कमान में रेल यात्रियों की सुरक्षा के लिए प्रत्येक डिब्बे में कम से कम दो सशस्त्र पुलिसकर्मी तैनात किए जाने चाहिए। या फिर केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल(सीआईएसएफ) को भारतीय रेल यात्रियों की सुरक्षा की भी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। रेलवे में लूटपाट करने वाले तथा मिलावटी और नकली सामान बेचने वाले अपराधियों के विरुद्ध नए और सख्त कानून बनाने की सख्त जरुरत है.
लेखिका राजनीतिक-सामाजिक मसलों पर लिखती हैं और उपभोक्ता मामलों की विशेषज्ञ हैं.
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