Mar 25, 2011

लूट के खिलाफ धरना

आदिवासी का दर्जा पायी जातियों के लिए पंचायत चुनाव में सीटें आरक्षित न करने के कारण कई गांव में पंचायतों का गठन नहीं हो पाया,जिससे संवैधानिक संकट पैदा हो गया है...


राजेश सचान 

जन संघर्ष मोर्चा की तरफ से 20जनवरी से सोनभद्र जिला कचहरी में राष्ट्रीय सम्पत्ति की लूट के खिलाफ पर्यावरण और आम आदमी की जीवन रक्षा के लिए अनिश्चितकालीन धरना दिया जा रहा है।

इस इलाके की हालत यह है कि जिला प्रशासन के हेडक्वार्टर से चंद किलोमीटर ही दूर सोन नदी के बीच में ढेर सारे पुल बनाए गए है। प्रशासन यह भी नहीं बताता कि किस अधिकार के तहत पुल बने है और कौन इनको संचालित कर रहा है। पर्यावरण संकट के साथ किसानों की सिचांई के लिए बनी सोन लिफ्ट परियोजना पर भी संकट आ गया है, इसके पम्प में पानी की कमी से सिल्ट जमा हो रहा है परिणामतः किसानी बरबाद हो रही है।

इसी तरह वन क्षेत्र में जो कानून बने है उनकी अवहेलना करके क्रशर चल रहे है। सेचुंरी एरिया व वाइल्ड जोन में जहां ट्रांजिस्टर भी बजाना मना है, वहां खुलेआम ब्लास्टिंग करायी जा रही है। यहां की पहाडियों को खत्म कर लखनऊ और अन्य जगहों का सुदंरीकरण किया जा रहा है। पानी का कितना गहरा संकट है अभी से लोग इसे महसूस कर रहे है। पानी के इस संकट के चलते रिहन्द बांध का प्रदूषित पानी पीने को लोग मजबूर होते है।

इस प्रदूषित पानी को पीने से पहले भी कमरी ड़ाड, लभरी, गाढ़ा जैसी जगहों पर लोग मर चुके है और अभी भी बेलहत्थी गांव के रजनी टोला में पंद्रह बच्चे मर चुके है। बावजूद इसके जल संकट के हल की और न ही प्रदूषित पानी से लोगों को बचाने की कोई व्यवस्था है। उलटा जेपी समूह पानी के संकट को और बढ़ाने में लगा हुआ है इस समूह द्वारा बिजली बनाने के लिए जमीन से जल को निकाला जा रहा है।

अनपरा,ओबरा तापीय परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर सरकारी सम्पत्ति की लूट हो रही है। इस लूट के कारण यह पूरी क्षमता से नहीं चल पा रही है। यहां 20 -25 वर्षो से एक ही स्थान पर नियमित रूप से मजदूर काम करते है,इन मजदूरों का प्रबंधन इन परियोजनाओं का प्रबंधतंत्र ही करता है लेकिन मात्र कमीशनखोरी लिए इन परियोजनाओं में ठेकादारों के जरिए मजदूरों से काम करवाया जा रहा है। स्थिति इतनी बुरी है कि जिलाधिकारी के निर्देशन में हुए समझौतों का भी अनुपालन औद्योगिक इकाईयां नही करती है।

 खुलेआम श्रम कानूनों का उल्लंघन  किया जा रहा है। वनाधिकार कानून को जनपद में विफल कर दिया गया है। आदिवासियों तक के दावों को उपजिलाधिकारी स्तर पर खारिज कर दिया गया है और जिन्हें  दिया भी गया है उन्हे चार बीधा की काबिज जमीन पर दस बिस्वा का पट्टा थमा दिया गया है,कोलों को आदिवासी का दर्जा ही नहीं मिला परिणामस्वरूप वह आदिवासी होने के बावजूद इस कानून के लाभ से वंचित हो गए है, रिहन्द विस्थापितों और अन्य वनाश्रित जातियों के दावों को तो रद्दी की टोकरी के ही हवाले कर दिया गया है।

 जनपद में आदिवासी का दर्जा पायी जातियों के लिए पंचायत चुनाव में सीटें आरक्षित न करने के कारण कई गांव में पंचायतों का गठन नहीं हो पाया, जिससे संवैधानिक संकट पैदा हो गया है। जिला प्रशासन ने कई गांवों में प्रशासनिक समिति के गठन की अवैधानिक कार्यवाही करते हुए चुने हुए प्रधानों के अधिकार तक छीन लिए है।

में यहां चैतरफा लूट हुई है, इस बात को विभिन्न जांच टीमों तक ने स्वीकार किया है। इस योजना में करोड़ों रूपया मजदूरों की मजदूरी बकाया है। जनपद का आदिवासी भुखमरी की स्थिति में जी रहा है और गेठी कंदा जैसे जहरीली जड़ को खाने को मजबूर है। किसानों के सिचांई हेतु बनी परियोजनाएं लम्बित पड़ी है और जो चल भी रही है उनकी दशा दयनीय है। ऐसी स्थिति में जनपद को पर्यावरणीय क्षति और प्राकृतिक व सरकारी सम्पदा की हो रही लूट से बचाने और जनपद के किसानों, मजदूरों व आम आदमी की जिन्दगी से जुड़े विभिन्न मुद्दों को लेकर यह अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया गया है।

इस धरने का समर्थन समाजवादी जनता पार्टी,सोशलिस्ट पार्टी (लोहियावादी)जैसे तमाम दलों ने किया,अधिवक्ताओं ने भी बडे पैमाने पर इस आंदोलन का समर्थन किया है। इस धरने में औद्योगिक इकाईयों में काम करने वाले मजदूर,किसान और आदिवासी पहली बार एक मंच पर आकर अपनी लड़ाई को लड़ रहे है।

धरने के इतने दिन बीत जाने के बाद भी जिला प्रशासन का रवैया गैरजबाबदेह और संवेदनहीन बना हुआ है। पूरा प्रशासन लोकतांत्रिक आंदोलन को विफल करने में लगा है। बहरहाल आंदोलन जारी है प्रशासन की अवहेलना के खिलाफ पूरे जिलें में पुतले जलाए जा रहे है। आने वाले समय में क्रमिक अनशन, आमरण अनशन और जेल भरों की तैयारी की जा रही है।          



             

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