Mar 11, 2011

बंद हो शादी के लिए पढाई


शिक्षा में आ रही बाधाओं के निराकरण के लिए जिला स्तर पर समिति का गठन हो और गांव में शिक्षा व्यवस्था को दुरूस्त करने के साथ ही तकनीकी शिक्षा से लड़कियों को जोड़ा जाये...

संजीव कुमार

पहले महिलाओं के लिए शिक्षा का उद्देश्य अच्छा वर पाने की संभावना और सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए पढ़ाई करना ही था, जिसका रास्ता शादी के बाद रूक जाता था। लेकिन दशक भर से शिक्षा के प्रसार से गांव-देहात और शहरों के पिछडे -गरीब  परिवारों में स्कूल भेजने का चलन धीरे-धीरे बढ़ा है. दूसरा लोगों को भी लगने लगा है कि  महिलाओं के लिए शिक्षा का सशक्तिकरण ही समाज में बराबरी का असल तरीका है.


शिक्षित महिला : सशक्त समाज
 उन्हें घर में चौकाबर्तन और सिलाई, कढ़ाई, के कार्यों तक ही सीमित कर दिया जाता था। सन् 1946 में अविभाजित भारत के विश्वविद्यालयों में या उनके विभिन्न शाखाओं में 45000 स्त्रियां ही थी।उस समय की स्थिति के अनुसार विद्यार्थियों के प्रतिशत के हिसाब से 100पुरुष विद्यार्थियों के पीछे करीब 11 महिला विद्यार्थी ही शिक्षा ग्रहण कर रही थी। आठवें  दशक के अंत में शिक्षा ग्रहण करने वाली लड़कियों की संख्या आठ लाख तक पहुंच गयी।

देश की आजादी के बाद और पाकिस्तान के निर्माण के साथ ही यह अनुपात 11 से बढ़कर 29 तक पहुंचा। आज यहां देश में लड़कियां पारिवारिक व सामाजिक परम्पराओं को निभाती हुई कला, साहित्य, तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। वहीं महिलाएं पुरुषों के मुकाबले बौद्धिक क्षेत्र. में कहीं भी पीछे नहीं है।

प्रशासनिक सेवा राजनीतिक क्षेत्र में तमाम ऐसे महिलाओं के व्यक्तित्व है जो महिला सशक्तिकरण के लिए मिसाल बने हुए हैं,लेकिन इन सब बढ़ोत्तरी के बाद भी संसार के सभी निरीक्षरों में भारत प्रमुख  है। इसमें महिलाएं सबसे अधिक है। महिला को साक्षर और शिक्षा के अभियान में अब तक जितना आगे आ जाने चाहिए था वह इतना आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।

एसोसिएशन आफ इंडियन यूनिवर्सिटीज के आंकड़ों के अनुसार देश में 35 प्रतिशत महिलाएं जो कि 15 वर्ष से अधिक की है शिक्षा प्राप्त कर सकी है, जबकि दुनिया के अन्य देशों में यह आंकड़ा 85 और 90 प्रतिशत तक है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्यप्रदेश में महिला निरीक्षरता आज भी अत्यधिक है। जबकि इनके मुकाबले केरल, हिमाचल, कर्नाटक, तमिलनाडू, गोवा में महिलाएं शिक्षा के सहारे आत्मनिर्भर बनी हुई है।

हाल ही में जनगणना अभियान 2011 द्वितीय चरण पूरा हुआ है। इस बार इस जनगणना के द्वारा देश भर के शैक्षिक सामाजिक और आर्थिक महिलओं से जुड़े हुए आंकड़े सामने आयेंगे। जनगणना 2001 के अनुसार महिला साक्षरता का राष्ट्रीय औसत 53.7 था। राष्ट्रीय स्तर पर जुटाये गये आंकड़ों के अनुसार नगरीय क्षेत्र में महिला साक्षरता दर जहां 72.9थी,वहीं ग्रामीण अंचलों में यह 46.1 प्रतिशत थी। यही स्थिति महिला कार्य सहभागिता दर के साथ ही लिंगानुपात में भी है।

महिला सशक्तिकरण के लिए सबसे पहले समाज में लिंग अनुपात में आ रहे असंतुलन को ठीक करना होगा। इसके लिए कन्या भ्रूण हत्या के विरूद्ध समाज की मानसिकता बदलनी होगी। क्योंकि बेटियां भी अपनी आंखों में लड़कों जैसे सपने रखती है और आत्मनिर्भर बनना चाहती है।

सरकारी स्तर पर महिलाओं के कल्याण के लिए संवैधानिक और नैतिक तरीकों से महिला सशक्तिकरण व उनके शिक्षा के सशक्तिकरण के लिए काम करने की अधिक आवश्यकता है। महिलाओं को शिक्षित करने के लिए उन्हें स्नातक स्तर तक अनिवार्य मुफ्त शिक्षा दी जाये। सामाजिक और पारिवारिक कारणों से शिक्षा में आ रही बाधाओं के निराकरण के लिए जिला स्तर पर समिति का गठन हो और गांव में शिक्षा व्यवस्था को दुरूस्त करने के साथ ही तकनीकी शिक्षा से लड़कियों को जोड़ा जाये।

लिंग समानता के साथ ही बालिकाओं के पोषण पर ध्यान दिया जाये। तभी समाज में महिला और बालिकाओं की शिक्षा में प्रगति होगी और महिला सशक्तिकरण का एक नया रूप देखने को मिलेगा।


(लेखक पत्रकार हैं, उनसे    goldygeeta@gmail.com  पर संपर्क किया जा सकता है.)

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