सब कुछ वैसे ही था
जैसा दिसंबर महीने के अंतिम हफ्तों में होता है
बर्फीली हवा, कोहरे का धुंध, थोड़ी सी धूप...
आज की सुबह भी ऐसी ही थी,
बाहर पार्क में योगासन के कई झुंड
प्राणायाम और सूर्यासन में मगन थे,
कुछ हंसी योग में होड़ लगा हंस रहे थे...
सबकुछ वैसे ही था
जैसा रोज ही रहता है मुहल्ला, शहर, देश...
जैसे रोज ही रहता है बालकनी में अखबार
सुबह सुबह की चाय
और उसके बाद नाश्ता व टिफिन में बंद लंच।।
सब कुछ वैसे ही था
सब कुछ वैसे ही चल रहा था
लोग भुगत रहे थे कीमतें
लोग पढ़ रहे थे भ्रष्टाचार की खबरें
लोग चिंतित थे, अचंभित थे, और कद्रदान थे नीरा राडिया के
लोग बेखबर थे बनानादेश के जुमलों से
यहां सबकुछ चलता है- लोग यही जानते थे
और दिनचर्या में व्यस्त थे, अभ्यस्त थे।।
सब कुछ वैसे ही था
प्रधानमंत्री का भाषण, विपक्ष का बयान, तीसरे मोर्चे का चिंतन
सबकुछ वैसे ही चल रहा था, बढ़ रहा था-
मुद्रास्फीत की दर, जेल, मुकद्मा, सजा...
करोड़ों अनाम बेनाम लोगों का जीवन ऐसे ही चल रहा था
ऐसे ही लोगों के हिस्सा हैं विनायक सेन
आजीवन सजायाफ्ता...
और मैं हूँ कि भागा जा रहा था बड़े नाम के पीछे,
देश के एक नागरिक के पीछे
देश के संप्रभु-लोकतंत्र के पीछे....यह जानते हुए भी
कि यह देश ऐसे ही चल रहा है
सबकुछ वैसे ही चल रहा है....।।
- लेखक राजनितिक-सामाजिक कार्यकर्त्ता और स्वतंत्र पत्रकार हैं.उनसे anjani.dost@yahoo.co.in पर संपर्क किया जा सकता है.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebohot achi kavita hai,bohot dino baad aisi kavita padhkar acha lga
ReplyDelete