Sep 9, 2010

फिर मोदी सरकार के खिलौना बने ?

 
भाग- 2
 

6. आपको हमें ये बताना ही होगा कि अहमदाबाद के जहांपुर राहत शिविर में जहां दंगा पीड़ित हजारों मुसलमान अमानवीय परिस्थितियों में रह रहे थे, क्या हुआ था? ऐसा क्यों हुआ कि स्वामीजी के भाषण के बाद उनमें से सैकड़ों की तादात में औरतें, बड़े-बूढ़े और जवान हमारा पीछा कर रहे थे? क्या आपने कभी ये समझने की कोशिश की थी कि स्वामीजी के अमानवीय और असंवेदनशील भाषण ने उनको दुख पहुंचाया या कोई और वजह है?क्या आपको हमारे सदस्यों द्वारा विश्व हिंदू परिषद के गुंडों की तर्ज पर भगवा गमछा और बैंड बांधना याद है?क्यों दो बूढ़ी महिलाओं ने स्वामी जी को वहां से भाग जाने के लिए कहा था?आपको ये भी बताना होगा कि भागते वक्त सारे वाहनों के ले जाने से भीड़ और उत्तेजित हो गई थी.(निर्मला दीदी वहां नहीं आई थीं क्योंकि वो सरकारी अधिकारियों के साथ बातचीत में व्यस्त थीं. ...ऐसा दीदी के दो सहायकों ने बताया था) क्या आपने भागते वक्त निशांत के दूसरे साथियों के बारे में भी सोचा था. जॉन दयाल, उतिराज और दो बौद्ध साथियों के भीड़ के बीच फंस जाने के बारे में क्या आपने सोचा था? क्या आपको मालूम है कि हमारे ग्रुप का एक साथी गुस्साई भीड़ को समझाने के मकसद से सूमो के ऊपर चढ़ गया था,ताकि लोगों को ये समझा सके कि विश्व हिंदू परिषद या हत्यारे मोदी से हमारा कोई संबंध नहीं है? क्या आपने अपनी कायरता और मूर्खता के परिणाम के बारे में सोचा था?

निर्मला देश पांडे : कई छवियाँ
7. ऐसा क्यों हुआ कि पीओसी के सदस्यों द्वारा इकट्ठा किया गया राहत चंदा प्रभावितों तक नहीं पहुंचा और उसे दानदाताओं को वापस करना पड़ा?ये तथ्य है कि गोधरा के राहत शिविर की दयनीय हालात सुनकर पीओसी की एक महिला सदस्य इस कदर व्यथित हुई कि उसने प्रस्ताव रखा था हमें तुरत-फुरत पैसा इकट्ठा करना चाहिए,ताकि इसे जल्दी से जल्दी पीड़ितों तक पहुंचाया जा सके. एक घंटे के अंदर करीब 4500 रुपए इकट्ठा किए गए थे. यह प्रस्ताव भी रखा गया था कि ये चंदा उस एजेंसी को सौप देना चाहिए जिससे केड्रिक प्रकाश और तीस्ता सीतलवाड़ जुड़े हुए थे और जो सांप्रदायिक मुद्दों पर काम कर रहे थे.यहां पर भी स्वामीजी ने सलाह दी कि इसे हिंदू और मुसलमान पीड़ितों के बीच बांट देना चाहिए.इसीलिए इसे दो हिस्सों में विभाजित कर हिंदू और मुसलमान पीड़ितों में बांट दिया गया था.लेकिन थोड़ी ही देर बाद ये साफ हो गया था कि विश्व हिंदू परिषद इस पैसे को लेकर नाराज हो गया था और उसने इसे वापस कर दिया था.इस परिस्थिति में ये पैसा उन लोगों को दिया जाना चाहिए था जिनको इसकी जरूरत थी.आपको हमें ये बताना होगा कि पैसा चंदा देने वालों को वापस क्यों कर दिया गया था?

8. हमें ये जानने का हक है कि ये पीओसी किसने आयोजित की थी? हम लोग ये मान रहे थे कि इसे दिल्ली के लोगों ने आयोजित किया था और गुजरात जाने का असली मकसद नरसंहार के पीछे की ताकतों का पर्दाफाश करना था.मगर अचानक हमने आपको अटल बिहारी बाजपेयी का हस्ताक्षरित पत्र लहराते हुए देखा,जिसमें अटल बिहारी बाजपेई ने इस यात्रा को आशीर्वाद दिया था.अटल बिहारी बाजपेई का ये खत नैनीताल के उनके बेस ऑफिस से लिखा गया था.आपको किसी नेता से ये पत्र लिखवाने या हासिल करने की इजाजात किसने दी थी?

9. ज्यादातर सदस्यों को 700 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से दिए गए, लेकिन हमें शक है कि आपने दूसरे स्रोतों से भी रुपया इकट्ठा किया था. क्या आप हमें पीओसी की बैलेंस शीट दिखा सकते हैं?

10. ऐसा क्यों हुआ कि हमारी हर दिन की मांग के बावजूद किसी सदस्य के साथ कोई बातचीत नहीं की गई? हमने दो वजहों से इस मांग पर जोर दिया.नंबर एक-अभियान की दिशा के बारे में पता लगाना और मुसलिम पीड़ितों के पास विश्व हिंदू परिषद जैसे भगवा झंडे लेकर जाने जैसे मुद्दों पर राय जानना. जुरूपुरा के राहत शिविर में इस तरह के आपराधिक दिखावे पर क्या प्रतिक्रिया हुई ये हम सबको पता है.दूसरा-पीओसी के सदस्यों को सांप्रदायिकता विरोधी अभियान के बारे में समझाना था,क्योंकि उनमें से अधिकतर उग्र सांप्रदायिक थे और फासीवादी हिंदू विचारों से ओतप्रोत थे.जैसे –मध्यप्रदेश के एक युवा स्वामीजी बस में किसी को बता रहे थे कि मुसलमानों ने सदियों से हमारी औरतों की हत्या की है और उनके साथ बलात्कार किया है.अब जबकि हिंदू कुछ सप्ताह के लिए कुछ ऐसा कर रहे हैं तो हमें विरोध क्यों करना चाहिए?हमें अभियान के दौरान क्यों कहा जा रहा था कि वीएचपी-बीजेपी-मोदी-अटल-बजरंग दल का नाम नहीं लेना है?क्यों कहा जा रहा था कि विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचानी है?

पहुँच हर जगह, पकड़ हर मोर्चे पर
11 . क्या आप सांप्रदायिक-फासीवादी मोदी सरकार के हाथ का खिलौना नहीं बने?क्या आपने मोदी सरकार का अनुचर बनकर हमें जान बचाने के लिए भागने पर मजबूर नहीं कर दिया?आपको भलीभांति मालूम है कि जुरूपुरा के कैंप की शर्मनाक घटना के बाद हम लोगों ने आपके छिपे हुए मंतव्य को ताड़ते हुए आपके साथ न जाने का फैसला किया था और हम अहमदाबाद के ईश्वर भवन में ही रुक गए थे, जहां हम पिछली रात से रुके हुए थे. शाम को दो बौद्ध साथी एक ऑटो रिक्शा में भागते हुए आए और हमें बताया कि आपकी मार्फत उनको जानकारी मिली है कि पीओसी के मुसलिम सदस्यों की जान खतरे में है,क्योंकि विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों ने उन पर हमला करने की धमकी दी है.यह एक बेहद दिलचस्प वाकया था.इसके पहले विश्व हिंदू परिषद के गुंडों ने शांति के काम रहे हर संगठन पर हमला किया था, बिना किसी धार्मिक भेदभाव के. सात अप्रैल को उन्होंने साबरमती आश्रम में बिला किसी भेदभाव के इसे फिर से अंजाम दिया.वास्तव में वो हिंदू कार्यकर्ताओं पर ज्यादा गुस्सा थे.हालांकि इस बार वो पीओसी के हिंदू कार्यकर्ताओं को जाने देने के लिए तैयार थे और केवल मुसलिम कार्यकर्ताओं पर हमला करने वाले थे.

हम इस बात को पक्के तौर पर मानते हैं कि मोदी सरकार और इसकी गुप्तचर एंजेसियों के साथ सांठगांठ करके आप दोनों ने इस तरह का सीन तैयार किया कि हमें ईश्वर भवन जैसे सुरक्षित जगह को खाली करना पड़े. ये सब इसलिए किया गया क्योंकि हममें से दो सदस्य मुसलमान थे.ईश्वर भवन के एक कर्मचारी ने बताया कि वो हमें भवन से इसलिए बाहर करना चाहते थे क्योंकि स्वामीजी और मैडम हमें अपने ग्रुप के साथ रखने के लिए तैयार नहीं थे. उसने ये भी बताया कि आप और गुजरात की गुप्तचर एंजेसियां इस बात के लिए परेशान थीं कि निशांत के लोग 4अप्रैल को सांप्रदायिकता विरोधी प्रदर्शन कर सकते हैं. उस दिन प्रधानमंत्री को अहमदाबाद आना था. दीदी और स्वामीजी! बताइए कि आपने हमें इस खतरे के बारे में क्यों नहीं बताया, जबकि हममें से दो मुसलमान थे? क्या आपने इस खतरे के खिलाफ कोई एफआईआर दायर की थी?

सामाजिक काम का जलवा:  बस तू ही तू
12. आपने पीओसी के दौरान महात्मा गांधी की तस्वीर ले चलने से क्यों इंकार दिया था? हम आपको याद दिलाना चाहते हैं कि हम लोगों ने आप दोनों को महात्मा गांधी की तस्वीर ले चलने की सलाह दी थी,क्योंकि गुजराती लोग महात्मा गांधी की शांति और सांप्रदायिक सदभाव के मसीहा के रूप में पूजा करते हैं.महात्मा गांधी की तस्वीर साथ लेने से ये संदेश भी साफ हो जाता कि जिन लोगों ने महात्मा गांधी की हत्या की थी वो एक बार फिर गुजरात को नष्ट करने पर आमादा हैं.आपने ये कहते हुए इस सलाह को खारिज कर दिया कि इससे समस्या बढ़ सकती है.

कृपया इन सवालों का जवाब देने में कुछ वक्त जाया कीजिए.हम इस बहस को उन मित्रों तक तक ले जाना चाहते हैं जो फासीवाद, धार्मिक असहिष्णुता और मानवता के प्रति संवेदनशील हैं.ये बहस उन (छिपे हुए)गद्दारों के बारे में हमें और जानकारी मुहैया कराएगी जो हिंदू  फासीवादियों के काम को और आसान बनाते हैं.

स्वयंभू लोकतांत्रिक और महान धर्मनिरपेक्ष स्वामी अग्निवेश से कुछ और सवाल -

1. स्वामीजी के नेतृत्व में चलने वाले 'बंधुआ मुक्ति मोर्चा' द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेसों को वर्ष1998-2004 के दौरान आरएसएस और बीजेपी के नेताओं ने कितनी बार संबोधित किया?
2. क्या ये सच है कि आप सन 2000 में आर्य समाजियों का एक प्रतिनिधि मंडल लेकर प्रधानमंत्री बाजपेयी के निवास स्थान पर गए थे और आपने व्यक्तिगत तौर पर उन्हे केसरिया रंग की पगड़ी पहनाई थी?
3. क्या ये सच है कि आपने सन 2000 में बीजेपी के पक्ष में प्रचार किया था?
4. वर्ष 1998-2004 के दौरान जब स्वामीजी को ऑल इंडिया रेडियो में स्लॉट दिया गया तो उस वक्त मंत्री कौन था?
 
आपके जवाब के इंतजार में,

शमशुल इस्लाम, नीलिमा शर्मा, ब्रह्म यादव, जावेद अख्तर
मार्च 2002

3 comments:

  1. कुलदीप नारायणThursday, September 09, 2010

    हर मंच पर घंटो अपना यश गीत गाने वाले बाबा स्वामी अग्निवेश चुप क्यों हैं, उन्हें लगाये जा रहे आरोपों का जवाब देना चाहिए. अब तो गुजरात दंगा और शांति यात्रा दोनों के ही साथी एक साथ जवाब मांग रहे हैं. लेकिन हमें कोई इसकी उम्मीद नहीं है कि अग्निवेश जवाब देंगे क्योंकि अग्निवेश का रैकेट इतना बड़ा है कि सवालों की झड़ी लगाने पर कहीं श्रीकाकुलम से वह प्रवचन दें.

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  2. मेरे भी कुछ सवाल है तथाकथित स्वामी अग्निवेश से / कृपा करके मुझे उनका कोई डाक पता बता दीजिए / जवाब मिलाने पर मै प्रकाशित कर दूंगा / और हां साथ मे यह लेख भी उन्हें प्रेषित करूँगा /
    धन्यवाद

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  3. प्रिय अजय,

    यह त्वरित प्रतिक्रिया शम्सुल के ख़त को पढ़ कर लिख रहा हुं. भगवाधारी स्वामी अग्निवेश न तो पहले कभी धर्म निर्पेक्ष थे न अब हैं और न भविष्य में कभी होंगे. शम्सुल, नीलिमा और उनके साथियों ने बहुत माक़ूल स्वाल उठाये हैं. इन साथियों को सलाम. श्वामी अग्ब्निवेश इसका जवाब क्या देंगे ? अल्बत्ता, आत्मालोचन के लिए भी उन्हें अपना धार्मिक चोला उतारना होगा. दर असल, अरुन्धती और मेधा पाट्कर जैसे लोगों ने स्वामी अग्निवेश जैसे सन्दिग्ध स्वयंभू मध्यस्थों को फलने फूलने का मौक़ा दिया है और हम लोगों ने भी कभी न तो स्वामी से जवब तलबी की और न अरुन्धती और मेधा पाट्कर जैसे लोगों से. भूल हमारी भी है. एक सवाल तो समकालीन तीसरी दुनिया के सम्पादक श्री आनन्दस्वरूप वर्मा से भी पूछा जाना चाहिए जो स्वामी के लिए उपयुक्त ज़मीन तैयार करने वालों मे अग्रणी हैं. मेरी समझ से तो शम्सुल का ख़त परोक्ष रूप से उन्हें भी सम्बोधित है.

    नीलाभ

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