छत्तीसगढ़ के चिंतलनार क्षेत्र में माओवादियों और पुलिस के बीच संघर्ष में 6अप्रैल को अर्धसैनिक बलों के 76 जवान मारे गये थे। माओवादियों के हाथों सरकार के सबसे काबिल और सुसज्जित सुरक्षा बलों का इतनी बड़ी संख्या में मारा जाना जहां राज्य मशीनरी के लिए एक नयी चुनौती बना,वहीं ऐसी स्थिति न चाहने वालों के लिए सरोकार का गंभीर प्रश्न। सरोकार की इसी चाहत से शांति चाहने वालों ने एक समूह बनाकर चिंतलनार वारदात के ठीक एक महीने बाद 5से 8मई के बीच रायपुर से दंतेवाड़ा तक एक शांतियात्रा की। यात्रा का असर रहा और सरकार एवं माओवादियों से बातचीत की एक सुगबुगाहट भी शुरू हुई,लेकिन सुगबुगाहट से उपजी उम्मीदें आंध्र पुलिस द्वारा माओवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आजाद और उनके साथ पत्रकार हेमचन्द्र पाण्डेय की हत्या किये जाने के बाद हाशिये पर चली गयीं।
आजाद की हत्या उस समय हुई थी जब शांति यात्रा करने वालों के समूह के सदस्य स्वामी अग्निवेश सरकार और माओवादियों के बीच वार्ता के मंच को अंतिम रूप देने का दावा कर रहे थे। उसी बीच हुई आजाद ही हत्या ने न सिर्फ शांति को लेकर सरकार की चाहत पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये,बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश का भी तमाम तीखे सवालों से साबका हुआ। स्वामी अग्निवेश की पहलकदमी पर सवाल तो बहुतेरे उठे, लेकिन शांति यात्रा के सदस्यों ने जो सवाल एक पत्र के माध्यम से खड़े किये हैं वह कुछ नये भटकावों,मौकापरस्ती और नेतृत्व करने की आतुरता को पाठकों के सामने सरेआम कर देते हैं। पत्र इस मायने में महत्वपूर्ण है कि सवाल करने वाले उनके अपने साथी हैं जिसका जवाब स्वामी अग्निवेश को अब उन्हीं सार्वजनिक मंचों पर आकर देना चाहिए जहां वह शांतिवार्ता के नायक के तौर पर अब तक स्थापित होते रहे हैं।
शांति और न्याय के लिए एक अभियान में शामिल पदयात्रियों का अग्निवेश के नाम पत्र...
प्रिय अग्निवेश जी,
हमलोग यह पत्र मई 2010में छत्तीसगढ़ शांति और न्याय यात्रा के उन सदस्यों की ओर से लिख रहे हैं जो इस अभियान में शामिल थे। हमलोग इस मसले पर अपना मत सार्वजनिक नहीं करना चाह रहे थे,लेकिन शांतिवार्ता में शामिल सदस्यों का दबाव था कि सच्चाई सामने आनी चाहिए। इसलिए हमें लगता है कि यह सही वक्त है जब बात कह दी जानी चाहिए। अब हम सीधे मुद्दे पर आते हैं और साफ-साफ कहना चाहते हैं कि आपने पूरे मामले को हथियाने की कोशिश की। विभिन्न क्षेत्रों में महारत प्राप्त वैज्ञानिक,शिक्षाविद,गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा शुरू की गयी इस पहल को आपने न सिर्फ रास्ते से भटकाया (आजाद और हेमचंद्र पांडे के संदर्भ में)बल्कि अंततः ममता बनर्जी जैसे नेताओं की राजनीतिक झोली में डाल दिया।
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना : राजनीति में यही उसूल |
इतना ही नहीं आपने खुद को शांति और न्याय यात्रा का स्वघोषित नेता मान लिया और गृहमंत्री पी.चिदंबरम से सांठगांठ में लगे रहे। हम सभी जानते हैं कि शांति और न्याय यात्रा के बाद 11मई को गृहमंत्री ने आपको संबोधित एक पत्र में लिखा था कि ‘मुझे पता चला है रायपुर से दंतेवाड़ा तक सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक समूह का शांति यात्रा में नेतृत्व करते हुए आप रायपुर से दंतेवाड़ा गये...’
आप नेता कैसे बन सकते हैं जबकि आप शांति यात्रा के ऐसे पहले सदस्य थे जिन्होंने जगदलपुर के एक लॉन में बैठकर 6मई को बीजेपी और कांग्रेस के गुंडों के प्रदर्शन के बाद कहा था कि 'हम लोग यहां शहीद होने के लिए नहीं आए हैं. विरोध–प्रदर्शन बंद कर देना चाहिए और कल ही यहां से वापस चले जाना चाहिए.'
अभियान के प्रमुख लोग: उभरे अग्निवेश |
हमने तब जोर देकर कहा कि जब तक सरकार माओवादियों की कुछ मांगों को स्वीकार करके गंभीरता का परिचय नहीं देती,तब तक माओवादियों से राउंड टेबल बातचीत का कोई मतलब नहीं.डॉ शर्मा के साथ लंबी बातचीत के दौरान आपने उन्हें विश्वास दिलाने की कोशिश की कि सबकुछ ठीक है, लेकिन ये साफ हो चुका है कि कुछ भी ठीक नहीं था.आपने खुद स्वीकार किया था कि चीजें ठीक दिशा में नहीं जा रही और आप इस प्रक्रिया से बाहर होना चाहते हैं.(हालांकि किसी ने आपसे इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिए कहा भी नहीं था).चिदंबरम और कुछ दोस्त जिनके साथ आप माओवादियों के प्रतिनिधि के तौर पर व्यवहार कर रहे थे,से झटका खाने के बाद आपने उनसे 25 जून को फोन पर हुई बातचीत के दौरान ये बात कही थी.
शांतिवार्ता की प्रक्रिया में यह लोग क्यों नहीं रहे? |
आपने शांति प्रकिया का बहुत नुकसान किया है.बावजूद इसके,शांति और न्याय के लिए हमारी मुहिम जारी है.हमारा प्रयास है कि देश में हिंसा की समाप्ति और हिंसा के लिए जिम्मेदार मूलभूत कारणों को समाप्त करने के लिए जनमत बनाया जा सके.
भवदीय
अगस्त 19, 2010
अगस्त 19, 2010
थॉमस कोचरी अमरनाथ भाई,राधा भट्ट, डॉ वी एन शर्मा, गौतम बंदोपाध्याय, जनक लाल ठाकुर, राजीव लोचन शाह, नीरच जैन, विवेकानंद माथने, डॉ बनवारी लाल शर्मा, मनोज त्यागी, डॉ मिथिलेश डांगी की ओर से जारी पत्र...
अनुवाद : विडी
आख़िरकार पोल खुल गयी. अग्निवेश को इसका जवाब देना चाहिए क्योंकि यह न सिर्फ अपने साथियों के साथ किया गया दोखा है बल्कि इससे आजाद की हत्या को लेकर भी संशय है.
ReplyDeletedo dashak se rajniti ke hasiye par ji rahe swami agnivesh ko maovadiyon ne jaroor ek mauka diya tha lekin agnivesh ni chalbajiyon se use bhi gavan diya aur unke apnon ne ungali uthakar ise sabit bhi kar diya.
ReplyDeleteनमस्कार अजय जी
ReplyDeleteइस तथाकथित शांतिप्रक्रिया की हकीकत उजागर करने के लिए धन्यवाद !
janjwar ko bahut mahtvpooran mudda samne lane ke liye badhai. agnivesh ji jaise logon ka doglapan samne aana jaroori tha.
ReplyDeleteriyaprakash84@yaoo.in
जिन लोगों ने अग्निवेश को कठघरे में खड़ा किया है वह सब अबतक चुप क्यों थे. क्या हेमचन्द्र पाण्डेय और आजाद के मारे जाने का इंतजार करते रहे और अब सवाल उठा रहे हैं. दूसरा वामपंथियों के आँखों में धूल क्यों पड़ा था, यह सवाल भी होना चाहिए. जनज्वार पर ही मैंने पढ़ा था कि अग्निवेश को जब आलोक मेहता ने आजाद को मरवाने के लिए जिम्मेदार कहा तो सभी वामपंथी अगिया बैताल नई दुनिया के संपादक को दौड़ा लिए थे. इसलिए यह तो होना ही था.
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