Sep 16, 2010

कहां जायेंगे राष्ट्रमंडल के निर्माता

राष्ट्रमंडल खेल अथ भ्रष्टमंडल  कथा भाग- 1

 

राहुल लल्ला आये भी,बोले भी पर हम उनसे मिल न सके कि उनकी पार्टी के लोगों ने कहा था कपड़ा पहन कर आओ और हम गमछी में थे। सोचा था अपना दुख कहेंगे,गांव की भूख कहेंगे पर कमर में अटकी गमछी ने सब चौपट  कर दिया।

अजय प्रकाश

रामकुमार अहिरवार जब बांदा रेलवे स्टेशन पर छह महीने पहले उत्तर प्रदेश संपर्क क्रांति एक्सप्रेस में दिल्ली आने के लिए बैठे थे  तो राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी के लिए हो रहे निर्माण में काम मिलना जिंदगी को साकार करने जैसा लगा था। दिल्ली में कई साल निर्माण मजदूर का काम कर गांव लौटे मजदूर ने काम की जिन बुरी स्थितियों का जिक्र किया,उसे रामकुमार ने मजाक में उड़ा दिया था। गांव के मजदूर ने यह भी बताया था कि कई मजदूरों की जवान बीबियां या बेटियां वहां से वापस नहीं लौट रहीं,तो रामकुमार ने मर्दानगी का वास्ता दे कसे बाजुओं की मछलियों को लहराया था कि ‘कौन बुरी निगाह मेरी बेटी-बीबी पर डाल सकता है।’


खेल ख़त्म होने के बाद कहाँ जायेंगे मजदूर                फोटो-आरबी यादव

दिल्ली के निजामुद्दिन रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद की कहानी अब रामकुमार की जुबानी सुनिये,-‘तीन बेटियां,एक बेटा,मैं और मेरी बीबी,बुंदेलखंड के उस गांव से चले थे जहां भूख से हुई मौतों के बाद कांग्रेस पार्टी के राहुल लल्ला एक बार गये थे। लल्ला आ रहे हैं,इसके लिए मैदान से घास छिली गयी, मिट्टी बराबर हुई और स्टेज सजा। लल्ला आये भी,बोले भी पर हम उनसे मिल न सके कि उनकी पार्टी के लोगों ने कहा था कपड़ा पहन कर आओ और हम गमछी में थे। सोचा था अपना दुख कहेंगे,गांव की भूख कहेंगे पर कमर में अटकी गमछी ने सब चैपट कर दिया। निराश हो हम फिर एक बार कुदाल लेकर उन सूखे खेतों में अनाज उगाने में लगे रहे, जहां इतना नहीं उपजा कि हम छोटे बेटे को बचा सकें और बाकी परिवार कुपोषित न हो।’

इतना बताने के साथ रामकुमार ने दिल्ली में काम की साइट और गांव का नाम न छापने का आग्रह किया। उनकी राय में गांव का नाम छपेगा तो बदनामी होगी और साइट का पता चलेगा तो रोटी जायेगी। अब रामकुमार गमछी में नहीं हैं। राष्ट्रमंडल खेलों ने उन्हें पैंट-बूशर्ट दे दी है और वे गमछी से पसीना पोंछते हैं,कभी जमीन पर बिछा रोटी रख खा लेते हैं।

रामकुमार गमछी से आंसू पोंछते हुए कहते हैं,‘गांव में हम एक भूखे परिवार थे और शहर में हम खाने पर काम करने वाले बंधुआ हो गये हैं। 12 घंटे काम के बदले मुझे 110, बीबी को 90 और दो बेटियों को अस्सी-अस्सी रूपये मिलते हैं जो कुल मिलाकर 360रूपये होते हैं। हालांकि ठेकेदार ने कहा था रोज आठ घंटे काम के बदले 600 दिलवायेगा, मजदूरी रोजाना शाम को मिलेगी और रहने के लिए आवास होगा।

राष्ट्रमंडल खेलों में काम करने वाले दूसरे मजदूरों के क्या हालात हैं के बारे में रामकुमार कहते हैं,‘कभी मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म देखी है। जिस तरह उसकी फिल्मों में एक मजदूर का दर्द दिखाकर जिंदगी बयां होती है वैसे ही जिन बातों के बारे में मैंने बताया है, यहां सबकी वही गति है।’

खेल गांव से मात्र किलोमीटर की दूरी पर सराय काले खां सड़क के किनारे फुटपाथ पर टाइल्स चिपका रहे मजूदर से बात करने पर पता चलता है कि उसकी बीबी, किसी लड़के साथ चली गयी है। उसे जब यह आभास हो जाता है कि पूछने वाला पत्रकार है तो वह कह पड़ता है, -‘अब आप पूछेंगे कि काहे तो सुन लीजिए, - मेरी बीबी को यहां काम करना और सात फुट उंचे टीन में रहना,वह बिना पंखा के रास नहीं आ रहा था। वह मुझसे कई बार बोली की कमरा ले लो,तो हमने कह दिया था कि फिर बचत नहीं हो पायेगी। उसके बाद दो-तीन दिन रूठी रही और एक दिन आगरा पहुंच कर फोन करती है कि वह किसी मैकेनिक के साथ रह रही है। बस इतनी कहानी है, अब आपका काम हो गया, मुझे अपना काम करने दीजिए।’

यह कुछ नजीरें और चंद मामले उन लोगों के हैं जिनकी बदौलत 3अक्टूबर से होने जा रहे राष्ट्रमंडल खेल का बेहतर आयोजन दुनियाभर में देश की शान -ओ शौकत  में इजाफा करेगा। दिल्ली और केंद्र की कांग्रेस सरकार खेल के सफल आयोजन में इतने मतांध हो गये हैं कि लाखों की संख्या में काम पर लगे मजदूरों की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने के हर इकरारनामें पर सवाल पूछने से उन्हें देशद्रोह की बू आने लगती है।

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल राइट्स नाम के मानवाधिकार संगठन ने हाल में जारी एक रिपार्ट में कहा है कि निर्माण स्थलों पर श्रम कानूनों के लगातार उल्लंघन हो रहे हैं लेकिन सरकारी एजेंसियां इन मामलों पर बिल्कुल भी गौर करना नहीं चाह रही हैं। तय न्यूनतम मजदूरी न देना, ओवरटाइम के बदले कोई अतिरिक्त भुगतान नहीं, कोई साप्ताहिक छुट्टी नहीं, मजदूरी अनियमित दिया जाना, प्रमाण के तौर पर मजदूरी की रसीद या प्रमाण पत्र तक न देना, कानून के अंतर्गत अनिवार्य माने जाने वाले ‘मस्टर रोल’ या दूसरे रिकॉर्ड न रखना,सुरक्षा के सामान मुफ्त में न देना,प्रवासी मजदूरों को यात्रा भत्ता न देना, महिला मजदूरों का कम वेतन और आवासिय सुविधाओं का अभाव जैसे मामले साबित करने के लिए काफी हैं कि बेगारी कराकर राष्ट्रमंडल खेलों के नींव में कितना खून-पसीना राष्ट्रमंडल खेलों में मजदूरों का जज्ब हुआ है। पीयूडीआर के सचिव और पत्रकार आशीष गुप्ता ने कहा कि सिर्फ सरकार ने जिन 40 हजार मजदूरों के राष्ट्रमंडल खेलों में काम करने की बात स्वीकारी है,अगर उसी में हो रही लूट को जोड लिया जाये तो ठेकेदार हर महीने मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी और ओवरटाइम न देकर 30 करोड़ और सलाना 360 करोड़ रूपये हड़प रहे हैं।’

कुछ स्वंय सेवी संगठनों का दावा है कि दिल्ली में खेलों के हो रहे काम में करीब चार लाख मजदूर लगे हैं। मजदूर चूंकि परिवार समेत रह रहे हैं इसलिए उनके बच्चों की संख्या भी अस्सी हजार के करीब है। जब जबकि राष्ट्रमंडल खेलों में पखवाड़े भर का समय बचा हुआ है वैसे में यह सवाल सबसे प्रमुखता से उभर कर आ रहा है कि लाखों की संख्या में काम पर लगे मजदूर और उनके परिवार निर्माण काम खत्म होने के बाद कहां जायेंगे। जेपी गु्रप के कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने वाले कारीगर दीनानाथ गौड़ कहते हैं कि, ‘मैं वहां पिछले छह वर्षों से काम कर रहा हूं लेकिन यहां ज्यादा पैसा मिलने की वजह से चला आया हूं, अब कहां काम मिलेगा।’

दीनानाथ तो फिर भी कुशल मजदूर हैं लेकिन सवाल है कि जो अकुशल मजदूर फैक्ट्रियों और दूसरी जगहों से काम छोड़ लौटे हैं आखिर उनकी भरपायी कहां होगी। ऐसे में प्रश्न यह राष्ट्रमंडल निर्माण काम पूरा होने के बाद एकाएक इतनी बड़ी संख्या में जो मजदूर और उनके परिवार बेरोजगगार होंगे उनको काम कहां मिलेगा और काम से बड़ी समस्या क्या आवास की उभरकर सामने नहीं आयेगी। पीयूडीआर की शशि  सक्सेना कहती हैं कि ,‘इस मामले में सरकार की कोई योजना नहीं है। सरकार को कामगारों की बेकारी पर कोई ठोस योजना बनानी चाहिए जिससे वह दूसरे काम की जगहों पर शिफ्ट किये जा सकें।’



6 comments:

  1. 'राष्ट्रमंडल खेल अथ भ्रष्टमंडल कथा'
    bilkul sach likha hai. par is par to parda dala ja raha hai.

    riyaprakash84@yahoo.in

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  2. क्या बात है भ्रस्टमंडल खेल. बहुत अच्छा नाम दिया है, this real feeling of aam aadmi.I want to say about cwg with the word EX ministrer and congress leader Manishankar aiyer, 'this is a whore game.' thanks to all of you

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  3. गैरजिम्मेदारी की हद कर दी है सरकार ने...

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  4. REPORT DAMDAAR HAI . LAGE RAHO.
    VAISE IS TARAH KE MASLON PAR HAMAARE PRABUDDHJAN SOCH NAHIN PAATE KYONKI DIMAG KAM HI NAHI KARTA.
    JIS TARAH SE TUMNE MAZDOORON KI MANVEEY PARESHANIYON , PARIVARIK VIGHATAN AUR UNKE LOKTANTRIK ADHIKARON KE HANAN KO SAHAJ DHANG SE RAKHA HAI VAH PRABHAV SHALEE HAI.

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  5. TUMHARAS SARA BLOG PADH CHUKA HOON . KHULEAAM TIPPANI KARTA HOON KI JWALANT MASLON PAR TUMNE BADHIYA KAM KIYA HAI. MERA BHI LIKHNE KA MAN KAR RAHA HAI LEKIN TIME SE LACHAAr hoon . chauthi tippani bhi meri hai pata nahi kyo benaami ho gayee . maine tumhari zyada tareef to ki nashin thi.

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  6. कभी आप दिल्ली यूनिवर्सिटी के आस पास भी तशरीफ़ लाएँ और देखें की क्या हो रहा है? बंगाल के मिदनापुर से चल कर आए इन कई सौ मज़दूरों की क्या हालत है, एक बार ज़रूर देखें. उन की इस अवस्था पर यह भी लिखा हुआ है:
    http://diarysanswords.blogspot.com/2010/09/games-that-nations-play.html

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