Aug 13, 2010

एंडे चेची अफ्रीका


जी. एस. रोशन
                                                                                                                     
एंडे चेची अफ्रीका
तुम वो बच्ची हो जिसे उन्होंने
एक खेल का मैदान बनाने के लिए
मस्ती में चीखते-चिल्लाते और ठोकरों से उछाल-उछालकर
जिंदा दफ़ना दिया।


काफी हद तक वैसा ही सब चलता है यहां भी
यहां वे थूकते हैं हमारी जमीनों और संतानों पर
और चले जाते हैं आहिस्ता-आहिस्ता दूर, बेधड़क
और जब फसल पककर तैयार होती है
पौधों के पतले तने पुष्ट और मजबूत होते हैं
जब दानों में उतरता है दूध और मेहनतकश  आंखों में रोटी के सपने
वे आते हैं और ले जाते हैं अनाज
बेच देते हैं किसी बड़ी सी बेकरी के मालिक को
बिस्किट बनाने के लिए...

और हमारा क्या, मेरी बहन अफ्रीका,
बची-खुची झूरन-झारन के इंतजार में
हम दोनों के मुंह खुले ही रह जाते हैं।

एक मोटे ब्रश  से हमें एक ही झूठे रंग से पोत दिया जाता है
जैसे कि पूरा अफ्रीका एक जैसा हो, या पूरा भारत
जबकि हम दोनों के बीच एक जैसा सिर्फ खालीपन है
जो हमारे पेट से लेकर हमारे हाथों तक फैला है,
और हमारे खाली हाथों के आसपास खाली-खाली बजते वो पुराने गीत हैं
जो सबकुछ भरपूर होने के बारे में थे।

इसलिए मेरी बहन, अफ्रीका,
हम दोनों एक दूसरे के लिए गाते हैं शोकगीत
इस उम्मीद में कि हम मौत से भी जगायेंगे एक दिन, एक-दूसरे को।
हमारे खाली पेटों को बजाकर निकाली गयी सलामी की धुन
जो सुनायी दी पृथ्वी के किनारों तक तेज बजते नगाड़ों सी
उससे भी तेज धड़कते हुए हम चलेंगे
अपने जिंदा लोगों की जीने की अदम्य इच्छा के साथ।

तुम दाल लेकर आना एंडे चेची अफ्रीका
मैं भात लेकर आऊंगा
हम सूरज की रोशनी से दूर भगायेंगे अंधेरे को
हम मेडागास्कर में खोलेंगे अपने टिफिन तोड़ेंगे अपने खाने के निवाले
तुम फिर से सिखाना मुझे अपने पैरों पर ठीक से चलना
और मैं तुम्हें सुनाऊंगा कहानियां अपने सफर के बारे में
हम करेंगे छपछप समंदरों के पानी में... बिना डरे।

उनकी मत सुनना एंडे चेची अफ्रीका
जो हमारा नाम लेकर, हमारे भाई बनकर तुम्हारे पास पहुंचे हैं
जो अपने मुनाफाखोर वादों को जिस धागे में पिरोकर लाते हैं
उसे वो तुम्हें ही बेच देते हैं अपने बालों का जूड़ा बांधने के लिए।

अगर तुम मां से पूछोगी तो वो तुम्हें बतायेंगी चेची
कि तुम्हारी जमीन पर दौड़ रहे इनके पीतल के रथ के पहिये
उन इंसानों की जिंदगी से सने हैं
जो यहां हिंदुस्तान के बीचोंबीच से लेकर हर कोने तक
खेतों, जंगलों, खदानों और कारखानों में फैले हैं
और जिनका नाम कभी उड़ीसा है, कभी दंतेवाड़ा, या
    अफ्रीका, अफ्रीका, अफ्रीका...


  • मलयालम में एंडे चेची का अर्थ होता है-मेरी बहन


अंग्रेजी से अनुवाद-विनीत तिवारी

(रोशन मलयालम और अंग्रेजी में कविता लिखते हैं. अफ्रीका सहित कई महाद्वीपों में रह चुके हैं. इन दिनों इंदौर में रिसर्चर हैं. )
दैनिक भास्कर से साभार

3 comments:

  1. आज के समय में जरूरी है इस तरह की कहानी और कविताओं की। कहानी और कविता ऐसी होनी चाहिए जिसे रोज ब रोज हम अपनी जिंदगी में देख और भोग रहे हैं। आज की यह व्यवस्था ठीक इसी तरह हमारे साथ कर रही है। चाहे वह कश्मीर हो या फिर आदिवासी इलाके। हम उम्मीद करते हैं कि लोग ऐसी कविताओं और कहानियों को पसंद करेंगे।

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  2. in kavitaon ko padhkar apna desh yad aata hai. roshan aur vineet dono ko hamara salam.

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  3. जनज्वार पर बहुत काम की चीज़ें पढ़ने को मिल रही हैं...शुक्रिया भी...बधाई भी...वाकई..अच्छा और गंभीर ब्लॉग है।

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