अंजनी
यह जगह क्या युद्ध स्थल है
या वध स्थल है
सिर पर निशाना साधे सेना के इतने जवान
इस स्थल पर क्यों हैं
क्या यह हमारा ही देश है
या दुश्मन देश पर कब्जा है
खून से लथपथ बच्चे महिलाएं युवा बूढ़े
सब उठाये हुए हैं पत्थर
इतना गुस्सा
मौत के खिलाफ इतनी बदसलूकी
इस कदर की बेफिक्री
क्या यह फिलीस्तीन है
या लौट आया है 1942 का मंजर
समय समाज के साथ पकता है
और समाज बड़ा होता है
इंसानी जज्बों के साथ
उस मृत बच्चे की आंख की चमक देखो
धरती की शक्ल बदल रही है
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर का समय बीत चुका है
और तुम्हारे निपटा देने के तरीके से
बन रहे हैं दलदल
बन रही हैं गुप्त कब्रें
और श्मशान घाट
आग और मिट्टी के इस खेल में
क्या दफ्न हो पायेगा एक पूरा देश
उस देश का पूरा जन
या गुप्त फाइलों में छुपा ली जाएगी
जन के देश होने की हकीकत
देश के आजाद होने की ललक
व धरती के लहूलुहान होने की सूरत
मैं किसी मक्के के खेत
या ताल की मछलियों के बारे में नहीं
कश्मीर की बात कर रहा हूं
जी हां, आजादी के आइने में देखते हुए
इस समय कश्मीर की बात कर रहा हूं
ek samyik aur jaruri kavita ke liye kavi anjani ko badhai.
ReplyDelete'आग और मिट्टी के इस खेल में
ReplyDeleteक्या दफ्न हो पायेगा एक पूरा देश
उस देश का पूरा जन' - अद्भुत पंक्तियाँ हैं. लगता है पूरा देश एक साथ बोल रहा है.
Bahut achchhi kavita..
ReplyDeleteLong live people's struggle
कश्मीर में हमारी सरकार और हमारे तथाकथित नेता जो कुछ भी कर रहे हैं, उसका हमारे बुद्धिजीवी वर्ग को कड़ा विरोध करना चाहिए। ऐसा कैसे हो सकता है कि आप देश के एक पूर के पूर हिस्से को ही सेना और पुलिस के हवाले कर दें और वे वहा~म अपना नगा नाच दिखाते रहें। हमें जागरूक होना होगा। पूरे देश को इस मुद्दे पर हिला-हिला कर जगाने की ज़रूरत है। दरअसल ये सरकार ही जनविरोधी है, जिसने बुरे देश पर मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा दी है । कहीं छत्तीसगढ़ जल रहा है तो कहीं, नागालैण्ड और मणिपुर। आंध्र में भी तेलंगाना की आग इसी सरकार की लगाई हुई है। ये सरकार भयानक ग़लतियाँ कर रही है और जनता को ये ग़लतियाँ भुगतनी पड़ रही हैं। आर्थिक विकास की तथाकथित उपलब्धियों का झुनझुना सुन-सुन कर आखिर हम कब तक बहले रहेंगे? अंजनी भाई! बेहद अच्छी कविता है आपकी । मेरी बधाई ।
ReplyDeleteसादर अनिल जनविजय, मास्को
bahut acchi kavita hai, hum aapko hamesha padhna chahenge......
ReplyDeleteyuwaon ke hath me pathar or jawab me goliyan barsati sarkar ye ghatna kahin JALIYAWALA bagh ki to nahi.aapki kavita padh ke andar kuch uthal puthal si mach gyi.hamen jagane ke liye dhanyabaad.
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