अजय प्रकाश
महिला लेखिकाओं पर की गयी अपमानजनक टिप्पणी के बाद जब महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय को कहीं राहत न मिली तो उन्होंने भोजपुरी का सहारा लिया और शब्द का नया अर्थ गढ़ डाला।
बीबीसी संवाददाता दिव्या शर्मा से हुई बातचीत में विभूति नारायण राय ने कहा कि ‘मुझे अपने शब्दों का चयन गलत नहीं लगता, बल्कि महिला विमर्श में वृहत्तर संदर्भ जुड़े हुए हैं, तो सिर्फ शरीर की बात करना सही नहीं।' उसके बाद वो बताते हैं कि ‘उनकी भाषा भोजपुरी में ‘छिनाल’ का मतलब ऐसी महिला से होता है जिसका विश्वास न किया जा सके, न कि वो वेश्यावृति करती हो। उनके मुताबिक यह अर्थ निकालना गलत है।’
एक दूसरे मीडिया माध्यम में विभूति राय ने इस शब्द का एक अलग अर्थ बताया कि ‘छिनाल शब्द छिन्नाल से बना है। छिन्नाल का मतलब हुआ कि जिसका अपनी मिट्टी से कोई लगाव न हो।’
महिला लेखिकाओं को ‘छिनाल’ कहने के बाद विभूति राय ने अर्थ गढ़ने की जो प्रक्रिया शुरू की है, उस बारे में गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी में भाषा विज्ञान की पढ़ाई कर रहे छात्रों से चर्चा हुई तो उनमें से एक ने कहा- ‘कहि दो चचा विभूति को, अपने को अकिला फुआ न समझें।’
भोजपुरी क्षेत्र में बगैर सही जानकारी के, आसपास का सहारा लेकर मानद वक्तव्य की तरह फोटलचरी देने वालों को अक्सर लोग 'अकिला फुआ' कहा करते हैं.
अकिला फुआ का किस्सा कुछ यूं है कि एक धनवान युवक को गरीब घर की एक लड़की भा गयी। इस मुतल्लिक लड़के ने बात की तो मां-बाप और गांववाले सहज तैयार हो गये। लड़की गरीब थी इसलिए गहना और पहनने-ओढ़ने के साजो-सामान शादी के दिन लड़के के घर से आये, लेकिन वह पूरा गांव ही इतना दरिद्र था कि आये सामानों का क्या उपयोग होगा, कौन सा जेवर कहां पहनाया जायेगा, किसी को पता नहीं। बड़ी मशक्कत के बाद लोगों को 'अकिला फुआ' याद आयीं जो हर बात पर अपनी राय मानक की तरह रखा करती थीं और पहल दावे की तरह।
उन्होंने यहां भी दुल्हन सजाने की समस्या को दावे के साथ दूर करने की बात कही और लड़की को सजाने के लिए बुलवा भेजा। फिर क्या था, नाक का कान में, गले का पैर में, पैर का गले में, जूतिया हाथ में और पता नहीं कहां क्या-क्या पहना दिया।
अकिला फुआ की सजाई दुल्हन जब बारातियों के सामने पहुंची तो पूरे गांव की जगहंसाई हुयी और अकिला फुआ की अक्ल का अंदाजा लोगों को हुआ। इसलिए अब विभूति राय को बचने-बचाने का कोई और उपाय सोचना चाहिए।
अकिला फुआ के इकलौते ज्ञान का दौर खत्म हो चुका है और छिनाल का नया अर्थ समझाने से भोजपुरी उन्हें बचा लेगी, यह मुगालता छोड़ देना चाहिए।
गोरखपुर विश्वविद्यालय में भाषा विज्ञान के प्राध्यापक और पत्रकारिता विभाग के निदेशक रामदरश राय ने बताया कि ‘छिनाल उन स्त्रियों को कहा जाता है जिन्हें सामंती समाज कुल्टा, स्त्रियोचित मर्यादा भंग कर विद्रोह करने वाली या पथभ्रष्टा कहता है। और ठीक से कहें तो वह स्त्री जो किसी की अंकशायिनी बनने के लिए तत्पर होती है उसे ‘छिनाल’ कहा जाता है। इस शब्द का दूसरा कोई अर्थ नहीं है। सामाजिक स्तर पर कभी इस शब्द का प्रयोग नहीं होता।’
देवरिया जिले के भाटपार रानी तहसील में शादियों में नाच पार्टी ले जाने वाले हैदर मियां ‘मेसर्स हैदर एंड कंपनी नाच पार्टी’ के नाम नाच कंपनी चलाते हैं। भोजपुरी क्षेत्र की शादियों में नाच का बड़ा प्रकोप रहा है जो कि अब कम हो गया है। नहीं तो जिसके पास जितना पैसा होता है उसके यहां उतनी महंगी नाच पार्टी आती है और ठुमकों पर गोलियां दगती हैं। हैदर मियां बताते हैं कि बबुआनों (राजपूतों) के एक गांव में शादी के बाद विदाई मांगने गये लवंडे (नाचने वाला) ने जब किसी बात पर विदाई देने वाले की बहन को हंसी-हंसी में ‘छिनार’ कह दिया तो उसने बंदूक की नाल लवंडे की सीने पर तान दिया। तो बस इसका का मतलब होता है, आप समझ जाइये।’
हैदर मियां ने जो उच्चारण किया है ‘छिनार’, वही शब्द भोजपुरी का है, छिनाल तो हिंदी का परिष्कृत है। छिनार उन बहुत कम गालियों में से एक है जिसका प्रयोग सिर्फ महिलाएं ही करती हैं। पुतकाटी, भतरकाटी, साढ़ीन, बाघिन आदि गालियों का तो स्त्रियां प्रयोग आमतौर पर करती हैं, मगर विभूती राय के शब्द का प्रयोग बहुत कम होता है।
छिनार शब्द का परंपरागत शादी-ब्याह के आयोजनों में प्रयोग होता है, लेकिन सिर्फ स्त्रियों के बीच। शादी से ठीक पहले मटकोर के आयोजन में भाभियां अपने पति की बहनों को ये गाली देती हैं या बहनें भाभियों को। इसी तरह शादी में जब लड़के वाले खाने जाते हैं तो एक ‘गाली गीत’ होता है, ‘तोहार माई छिनार, तोहरे बहिना छिनार, दुल्हा के फुआ छिनार.....।’ यही गीत उस वक्त भी होता है जब लड़के का बड़ा भाई उसकी होने वाली पत्नी को साड़ी का चढ़ावा देने जाता है।
इसके अलावा नाच वाले जब लड़की के दरवाजे शादी की विदाई लेने जाते हैं तो लड़की के बाप को सुनाकर कुछ इस तरह से गाते हैं, ‘समधी के बीबी छिनरिया हो रामा, घुमती बदरिया। ओही बदरिया में हमरे भईया का डेरा, मारे ली तिरछी नजरिया हो रामा।’
जाहिर है छिनार या छिनाल का वही मतलब है जो संवेदनशील समाज समझ रहा है और उसी को आधार बनाकर महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय पर कार्रवाई की मांग कर रहा है।
ajay prakash jee bilkul sahi. sirf vibhuti jee hi bhojpuri nhi jante.
ReplyDeletekitna sharmnak hai ki apni galti ko ek lekhak mana jane wala prani lipapoti me laga hai jabki use mafi mang lena chahiye.
halaki mafi mangne se bhi kya, we apni mansikta ka sabut to de hi chuke.
भाषा/व्यवहार बताता है कि सामंती संस्कारों से मुक्त नहीं हुए हैं- वी.सी.
ReplyDeleteajay ji aapne bilkul sahi sawal uthaye hain. aakhir vibhuti jaise chakar hamari bhasha ke arth tod marod kar kaise pash kar sakte hain. wo bhi khud ko pak saph karne ke liye. iska virodh kiya jana jaroori hai.
ReplyDeleteajay ji aapne bilkul sahi sawal uthaye hain. aakhir vibhuti jaise chakar hamari bhasha ke arth tod marod kar kaise pash kar sakte hain. wo bhi khud ko pak saph karne ke liye. iska virodh kiya jana jaroori hai.
ReplyDeletevibhuti narayan ko dho dala.bujhta hai jamana abhi bhi akila fua vala hai.
ReplyDeleteAjayji aapne bilkul sateek tippani ki hai. vibhuti bhojpuri ko bhi shayad apni bapauti samajh baitha tha, par use shayad ye ahsas nahi tha ki yahan uska puliciya rob nahi chalega. aakhir bhojpuri ham bhi jante hain bhai.
ReplyDeletewaise ab usne mafi mang li hai par usse kya hota hai. uska lizlizapan to jhalak hi chuka hai na.
Riya prakash