Jul 9, 2010

हत्यारों की गवाहियां अभी बाकी हैं राजेंद्र बाबू?

अजय प्रकाश

देश के मध्य हिस्से में माओवादियों और सरकार के बीच चल रहे संघर्ष का शीर्षक रखने में, राजेंद्र बाबू उतना भी साहस नहीं दिखा पाये जितना कि शरीर के मध्य हिस्से के छिद्रान्वेषण पर वे लगातार दिखाते रहे हैं।


इसे सनसनी माने या सच, मगर कार्यक्रम तय है कि इस बार साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ के सालाना जलसे में लेखिका अरुंधति राय और सलवा जुडूम अभियान के मुखिया छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन आमने-सामने होंगे। यह जानकारी सबसे पहले हिंदी समाज के जनपक्षधर लोगों में पढ़ी जाने वाली मासिक पत्रिका ‘समयांतर’ के माध्यम से जनज्वार तक पहुंची, जिसकी पुष्टि अब ‘हंस‘ भी कर चुका है। ‘हंस’ से मिली जानकारी के मुताबिक इन दो मुख्य वक्ताओं के अलावा अन्य वक्ता भी होंगे।

तमाशे की फ़िराक में राजेंद्र बाबू
हर वर्ष 31जुलाई को होने वाले इस कार्यक्रम का महत्व इस बार इसलिए भी अधिक है कि ‘हंस’ अपने प्रकाशन के पच्चीसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। ऐसे में पत्रिका के संपादक राजेंद्र यादव की कोशिश होगी कि धमाकेदार ढंग से पत्रिका की सिल्वर-जुबली का मजा लिया जाये। मजा लेने के शगल में पक्के अपने राजेंद्र बाबू ने माओवाद के मसले पर बहस का विषय रखा है, ‘वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति।’

‘हंस’ ऐसे किसी ज्वलंत मसले को लेकर ऐसा संस्कृतनिष्ठ और घुमावदार शीर्षक रखेगा, हतप्रभ करने वाला है। खासकर तब जबकि पत्रिका के तौर पर ‘हंस’ और संपादक के बतौर राजेंद्र यादव खुल्लमखुल्ला, खुलेआमी के हमेशा अंधपक्षधर रहे हों। वैसे में देश के मध्य हिस्से में चल रहे माओवादियों और सरकार के बीच संघर्ष का शीर्षक रखने में राजेंद्र बाबू उतना भी साहस नहीं दिखा पाये हैं,जितना कि शरीर के मध्य हिस्से के छिद्रान्वेषण पर वे लगातार दिखाते रहे हैं।

हिंदी में प्रतिष्ठित कही जाने वाली इस पत्रिका के संपादक का यह शीर्षक चिंता का विषय है और अनुभव का भी। अनुभव का इसलिए कि एक कार्यक्रम के दौरान एक दूसरे राजनीतिक मसले पर श्रोता उनके इस रूप से रू-ब-रू हुए थे। संसद हमले मामले पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दोषी करार दिये जाने के बाद फांसी की सजा पाये अफजल गुरु को लेकर ‘जनहस्तक्षेप’दिल्ली के  गांधी शांति प्रतिष्ठान में एक कार्यक्रम किया था जिसमें अन्य वक्ताओं के साथ राजेंद्र यादव भी आमंत्रित थे।

बोलने की बारी आने पर संचालक ने जब इनका नाम उदघोषित  किया तो अपने राजेंद्र बाबू ने मामले को कानूनी बताते हुए वकील कमलेश जैन को बोलने के लिए कहा। कमलेश जैन ने अफजल गुरु को लेकर वही बातें कहीं जो कि सरकार का पक्ष है। कमलेश सरकारी पक्ष को इस तरह पेश करने लगीं कि मजबूरन श्रोताओं ने हूटिंग की और आयोजकों को शर्मशार होना पड़ा। जबकि हम सब जानते हैं कि अफजल का केस लड़ रहे वकील,सामाजिक कार्यकर्ता और जन पक्षधर बुद्धिजीवी इस मामले में फेयर ट्रायल की मांग करते रहे हैं। कारण कि सर्वोच्च न्यायालय ने अफजल को फांसी की सजा ‘कंसेंट आफ नेशन’ के आधार पर मुकर्रर की थी।

अफजल से ही जुड़ा एक दूसरा मसला ‘हंस’ में लेख प्रकाशित करने को लेकर हुआ। जाने माने पत्रकार और कश्मीर मामलों के जानकार एवं ‘हंस’ के सहयोगी गौतम नौलखा ने कहा कि, ‘अफजल मामले की सच्चाई हिंदी के प्रबुद्ध पाठकों तक पहुंचे इसके लिए जरूरी है कि ‘हंस’ में इस मसले पर लेख छपे।’ गौतम के इस सुझाव पर राजेंद्र यादव ने लेख आमंत्रित किया। लेख उन तक पहुंचा। उन्होंने तत्काल पढ़ा और लेख के बहुत अच्छा होने का वास्ता देकर अगले अंक में छापने की बात कही। मगर बात आयी-गयी और वह लेख नहीं छपा।

अब सवाल यह है कि पिछले छह वर्षों से सलवा जुडूम अभियान के तमाशबीन बने रहे राजेंद्र यादव कहीं इस तमाशायी उपक्रम के जरिये अपने होने का प्रमाण देने की तो कोशिश में नहीं लगे हैं। तमाशायी कार्यक्रम इसलिए कि लेखिका अरुंधति राय सलवा जुडूम अभियान, माओवादियों और सरकार के रवैये पर क्या सोचती हैं, उनके लेखन के जरिये हम सभी जान चुके हैं। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के प्रिय डीजीपी विश्वरंजन ‘सलवा जुडूम’को एक जन अभियान मानते हैं,यह छुपी हुई बात नहीं है। याद होगा कि पिछले वर्ष दर्जनों जनपक्षधर बुद्धिजीवियों ने रायपुर में विश्वरंजन के इंतजाम से हो रहे ‘प्रमोद वर्मा स्मृति’कार्यक्रम में इसी आधार पर जाने से मना कर दिया था। इस बाबत विरोध में पहला पत्र विश्वरंजन के नाम कवि पंकज चतुर्वेदी ने लिखा था। विरोध का मजमून हिंदी पाक्षिक पत्रिका ‘द पब्लिक एजेंडा’में छपे विश्वरंजन के एक साक्षात्कार के आधार पर कवि ने लिखा था जिसमें डीजीपी ने सलवा जुडूम को जनता का अभियान बताया था।

ऐसे में फिर बाकी क्या है जिसके लिए राजेंद्र बाबू अरुंधति-विश्वरंजन मिलाप कराने को लेकर इतने उत्साहित हैं। क्या हजारों आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन से उजाड़े जाने, माओवादियों के सफाये के बहाने आदिवासियों को विस्थापित किये जाने की साजिशों से राजेंद्र बाबू वाकिफ नहीं हैं। राजेंद्र बाबू क्या आप माओवाद प्रभावित इलाकों में सैकड़ों हत्याएं,बलात्कार आदि मामलों से अनभिज्ञ हैं जो आपने विश्वरंजन को आत्मस्विकारोक्ति के लिए दिल्ली आने का बुलावा भेज दिया है। रही बात उन भले मानुषों की सोच का जो यह मानते हैं कि इस बहाने माओवाद के मसले पर बहस होगी और राष्ट्रीय मसला बनेगा फिर तो राजेंद्र बाबू आप ऐसे सेमीनारों की झड़ी लगा सकते हैं।

जैसे अभी विश्वरंजन को बुलाने की बजाय भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी एंडरसन को बुलाइये जिससे राष्ट्र के सामने वह अपना पक्ष रख सके कि उसने त्रासदी बुलायी थी या आयी थी। इसी तरह सिख दंगों के मुख्य आरोपियों और गुजरात मसले पर गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी को भी दंगे,हत्याओं और बलात्कारों की मजबूरियां गिनाने के लिए एक चांस आप ‘ऐवाने गालिब सभागार’में जरूर दीजिए। समय बचे तो निठारी हत्याकांड के सरगना पंधेर और कोली को बुलावा भिजवा दीजिए जिससे कि उसके साथ अन्याय न हो,कोई गलत राय न बनाये। राजेंद्र बाबू आप ऐसा नहीं करेंगे और मुझे अहमक कहेंगे क्योंकि इन सभी पर राज्य ने अपराधी होने या संदेह का ठप्पा लगा दिया है। तब हम पूछते हैं राजेंद्र बाबू आपसे कि जिसको जनता ने अपराधी मुकर्रर किया है,उसकी गवाहियों में मुंसिफ बनने की अनैतिकता आप कैसे कर सकते हैं?

राजेंद्र बाबू अगर आप कुछ बहस की मंशा रखते ही हैं तो गृहमंत्री पी.चिदंबरम को बुलवाने का जुगाड़ लगाइये। मगर शर्त यह रहेगी कि 5 मई को जेएनयू में जिस तरह की डेमोक्रेसी वहां के छात्रों को झेलनी पड़ी, जिसे वहां के छात्रों ने चिदंबरी डेमोक्रेसी कहा, इस बार उनके आगमन पर माहौल वैसा न हो। गर यह संभव नहीं है तो विश्वरंजन से क्या बहस करेंगे, वह कोई कानून बनाते हैं?

राजेंद्र बाबू आप बड़े साहित्यकार हैं। सुना है आपने दलितों-स्त्रियों को साहित्य में जगह दी है। इस भले काम के लिए मैं तहेदिल से आपको बधाई देता हूं। साथ ही सुझाव देता हूं कि साहित्य में पूरा जीवन लगा देने के बावजूद गर आप दण्डकारण्य को एक आदिवासी साहित्यकार नहीं दे सके तो,आदिवासियों के हत्यारों की जमात से आये प्रतिनिधियों को साहित्यकार बनाने का तो पाप मत ही कीजिए।

राजेंद्र बाबू आप भी जानते हैं कि साहित्यकारों की संवेदनशीलता और संघर्ष से इतिहास भरा पड़ा है। आज बाजार का रोगन चढ़ा है, मगर ऐसा भी नहीं है सब अपना पिछवाड़ा उघाड़े खडे़ हैं और फिर हमारे युवा मन का तो ख्याल कीजिए। हो सकता है उम्र के इस पड़ाव पर आप डीजीपी कवि की कविताओं को सुनने में ही सक्षम हों,मगर हमारी निगाहें तो उन खून से सने लथपथ हाथों को देखते ही ताड़ जायेंगी। एक बात कहें राजेंद्र बाबू, एक दिन आप अपने नाती-पोतों को वह हाथ दिखाइये, अच्छा ठीक है किस्सों में अहसास ही कराइये। यकीन मानिये आप बुद्धना, मंगरू, शुकू, सोमू, बुद्धिया को अपने घरों में पायेंगे जो पिछले छह वर्षों से दण्डकारण्य क्षेत्र में तबाह-बर्बाद हो रहे हैं। इन जैसे हजारों लोग जो आज मध्य भारत में युद्ध की चपेट में हैं, आपको एक झटके में पड़ोसी लगने लगेंगे और आप साहित्य के वितण्डावादी आयोजन की जगह एक सार्थक पहल को लेकर आगे बढ़ेंगे।

महोदय कवि हैं?
उम्मीद है कि अर्जी पर आप गौर करेंगे। गौर नहीं करने की स्थिति में हमें मजबूरन अरुंधति राय से अपील करनी पड़ेगी। फिर वही बात होगी कि देखो हिंदी से बड़ी अंग्रेजी है और न चाहते हुए भी सारा क्रेडिट अरुंधति के हिस्से जायेगा। हिंदीवालों की पोल खुलेगी सो अलग। इसलिए राजेंद्र बाबू घर की इज्जत घर में ही रखते हैं। कोशिश करते हैं कि हमारी भाषा में जनपक्षधरता को गहराई मिले। कम-से-कम अपने किये पर समाज के सबसे कमजोर तबके (आदिवासियों)के सामने तो शर्मसार न होना पड़े। खासकर तब जबकि उस तबके ने हमारे समाज और सरकार से सिवाय अपनी आजादी के किसी और चीज की उम्मीद ही न की हो।

14 comments:

  1. यह हिन्दी के 'क्रांतिकारी' लेखकों का असली चरित्र है मेरे भाई…

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  2. बहुत खूब अजय...राजेन्द्र बाबू को शायद खुद की असलियत पता चल हो गई...उनके आगे पीछे पिछवाड़ा खोलने वालों से उम्मीद तो बेईमानी है....

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  3. यानी इस बार भी हंस का सालाना जलसा हंगामाखेज होगा। राजेन्द्र जी को शायद यही चाहिए था। जबकि इसके बिना भी उनका कार्यक्रम सफल ही रहता।

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  4. ख़ूब परदाफ़ाश किया है भाई आपने अपने इस लेख में |
    --अनिल जनविजय

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  5. ख़ूब परदाफ़ाश किया है भाई आपने अपने इस लेख में |
    --अनिल जनविजय

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  6. यह सुविचारित लेख है. यह सही है कि सफाई देने के लिये सबके पास अपने तर्क होते हैं. पर हमें उसके काम से उसका पक्ष तय करना होगा. यह हिन्दी का सामान्य नियम बनता जा रहा है कि काम करने के बाद/अपने विचार रखने के बाद दुबारा अपना पक्ष रखने का मौका माँगा जा रहा है. अपने शब्दो या कार्यों पर लोगो को भरोसा नहीं रहा है यह गलत है. और आश्चर्य की हम सबका पक्ष सुनने को तैयार बैठे रहते हैं.. दुबारा ..तिबारा..

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  7. Wonderfully truthful and straight. Ethics and morality should be restored back in the left and civilian resistance.

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  8. Bahut badhiya Ajay ji. sahi nas pakdi aapne...

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  9. विश्वरंजन को हंस का मंच दिया गया तो मैं इस कार्यक्रम का बहिष्कार करूंगा। इससे कितना फर्क पड़ेगा,मुझे नहीं मालूम। लेकिन यह गलत है, इस बारे में मुझे कोई संदेह नहीं है।

    विश्वरंजन एक पुलिस अधिकारी के तौर पर कुछ भी कहें, मुझे शिकायत नहीं हैं। इस काम के उन्हें पैसे मिलते हैं। उन्हें पूरी ईमानदारी के ग्रीन हंट का समर्थन करना चाहिए। मैं टीवी पर उनके तर्क सुन लूंगा कि आदिवासियों को मारना क्यों जरूरी है। लेकिन उनकी यही बात मैं हंस के मंच पर सुनने के लिए तैयार नहीं हूं।

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  10. Arundhati kyon iske liye raji ho gayin ? kya ve bhi Rajendra Yadav ki yojna ka hissa hain ?

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  11. इस देश को सिर्फ अशोक कुमार पांडेय, अनिल जनविजय, दिलीप मंडल जैसे लोग ही बचा सकते हैं, माओवादियों चाहें तो ऐसे लोगों को भविष्य में अपने शासन काल में सूचना संचार और जनसंपर्क का मंत्रालय सौप सकते हैं । हूँह

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  12. मूर्खों, हम आदिवासियों के साथ न तो राजेंद्र यादव है न अरुंधती राय न ही और कोई । माओवादियों ने हमारा जीवन दूभर कर दिया है । पहले बहलाया और अब हमें हथियार पकड़ाकर हमारी लाश पर चलकर क्रांति का सपना देख रहे हैं । और आप अरुंधति और विश्वरंजन के पक्ष-विपक्ष में बौद्दिक प्रलाप कर रहे हैं । मारे जाओगे तुम लोग भी हमारी तरह एक दिन.. । पहले भी तुम लोगों ने हमारे प्रतिरोध को सरकार समर्थित कह कर बदनाम कर दिया । पागलो...मनीष सोड़ी, बस्तर

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  13. अशोक जी किस क्रांति की बात कर रहे हैं । यह सारी क्रांति सिर्फ़ पद, पैसा और रुतबे के लिए है । मंगल प्रसाद, भोपाल

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  14. rajendra ji budhape me bhi sencesession chahte hian to khuleaam hatya ko vaidiki hinsa kis aadhar par kah rahe haie?kya aadivasiyon ke katle aam ko chaturvarnya se prerit maan rahe hain ? agar aisa hai to unhone hans ke pannon ka istemaal kyon nahi kiya ? us manch ko unhonne chamchon ka nabdaan kyon bana diya hai?is mudde par unhone koi sampadkiya kyon nahin likha abtak ? aise dogle rajendra yadav murdabad ! aisa hans murdabad!!aisa lekhan aur sahitya murdabad!!!

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