Apr 24, 2010

ठगी का सामाजिक अभियान


अजय प्रकाश

बुनियादी सुविधाओं से महरूम जनता की समस्याओं को किस तरह बेचा जा रहा है, इसे देखने और झेलने का मौका मुझे हाल ही में मिला. यह मौका इंफोसिस के पूर्व सह अध्यक्ष और अब यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया के मुखिया नंदन नीलेकणी की पत्नी रोहिणी नीलेकणी के एनजीओ आरघ्यम की दिल्ली स्थित उपशाखा इंडिया वाटर पोर्टल की ओर से पंजाब के भटिण्डा में दो दिवसीय कार्यशाला में मिला.


इंडिया वाटर पोर्टल मुख्य रूप से पानी पर सूचनाओं के प्रसारण का काम करती है.साथ ही वह पानी पर काम करने वाले एनजीओ की दानदाता एजेंसी भी है.पोर्टल की हिंदी वेबसाइट की संचालक मीनाक्षी अरोड़ा और सिराज केसर की तरफ से 26 मार्च को पत्रकारों के लिए एक लिखित निमंत्रण आया. निमंत्रण पंजाब के मालवा क्षेत्र से संबंधित था, जिसमें बताया गया था कि पानी में यूरेनियम की अधिकता से सेरीब्रल पैल्सी रोग हो रहा है. अंत में बताया गया था कि 29 मार्च को दिल्ली से एक गाड़ी जायेगी जिसमें इच्छुक पत्रकार सवार हो सकते हैं.

29 तारीख को मैं भी उस गाड़ी में सवार हो गया. गाड़ी में किसी और पत्रकार को न देख मुझे आश्चर्य हुआ. पूछने पर मेजबानों ने बाजारू पत्रकारिता का हवाला देकर मुझे सामाजिक पत्रकारिता का वीर पुरुष करार दिया. अफसोस भी जताया कि हमने तो मेल कई हजार लोगों को भेजे थे, उनमें आपके अलावा सिर्फ एक और पत्रकार मणिमाला साथ जा रही हैं.मणिमाला से परिचय के बाद जब हमलोग चाय के लिए रूके तो उन्होंने एनजीओ के अनुभवों को साझा किया कि,एक नहीं सभी अपने बजट का 85 फीसदी हिस्सा बड़े पदाधिकारियों के खर्चे और तामझाम में लगा देते हैं.

भटिंडा का सर्किट हाउस : ठगा सा महसूस करते लोग
भटिंडा में पहले दिन का सत्र शुरु होने के बाद भी दूसरे किसी भागीदार पत्रकार को न देख हमें संदेह हुआ. पूछने पर कि हमलोग इलाके में कब चलेंगे, सिराज केसर ने बताया कि पहली पारी की बैठक खत्म हो जाये तो हम सभी क्षेत्र में चलेंगे. एक घंटा फूलों के लेन-देन और स्वागत में लगाने के बाद गुरुनानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर से आये भौतिकी के प्रोफेसर डॉक्टर सुरिंदर सिंह ने यूरेनियम पर 20 साल पहले का एक अध्ययन पेश किया. डेढ़ घंटे के भाषण में वे एक दफा भी नहीं बता पाये कि यूरेनियम की वजह से कोई रोग हो रहा है.

इस पर सवाल उठा तो दिल्ली और भटिंडा के आयोजक हमें यह समझानें में लग गये कि यह जबाव भौतिकी के प्रोफेसर का बनता ही नहीं है. तो जवाब कौन देगा, इस पर आयोजकों ने चुप्पी साध ली. हमारा सवाल था कि तथ्यों की सही जानकारी के बगैर गुमराही का यह काम ‘खेती विरासत’ के इशारे पर ‘आरघ्यम’ और ‘पोर्टल’ ने संयुक्त रूप से कैसे कर लिया?
हमने प्रोफेसर सुरिंदर सिंह से पूछना उचित समझा कि बीस साल पहले किये गये अध्ययन को आज पेश कर आप क्या बताना चाहते हैं.जिन प्रोफेसर सुरिंदर सिंह ने यूरेनियम में पानी पर डेढ़ का लंबा भाषण दिया था, उन बेचारे ने डेढ़ मिनट में जो कुछ बताया वह इस प्रकार से है- मालवा क्षेत्र के कुछ इलाकों में पानी में यूरेनियम ज्यादा है जिसका 90 प्रतिशत स्रोत प्राकृतिक है. रही बात बीस साल पहले के अध्ययन को पेश करने की तो यहां इन्होंने बुलाया था, इसलिए हमने पेश किया. इसकी वजह से कोई बीमारी होती है या किन रोगों की संभावना होती है,ऐसा कोई अध्ययन मैंने क्या, किसी ने नहीं किया है.

दिल्ली से गये दानदाताओं ने बताया कि इस फर्जी जानकारी के सूत्रधार तो स्थानीय संयोजक एनजीओ ‘खेती विरासत’ के सुरिंदर सिंह और उनके सहयोगी शिक्षक चंद्रप्रकाश हैं. हिंदी वाटर पोर्टल के सिराज के मुताबिक,"खेती विरासत ने ही पानी में अधिक यूरेनियम होने की वजह से क्षेत्र में सेरीब्रल पैल्सी रोग हो रहा है, की जानकारी मुहैया करायी थी." लेकिन हमारा सवाल था कि तथ्यों की सही जानकारी के बगैर गुमराही का यह काम ‘खेती विरासत’ के इशारे पर ‘आरघ्यम’ और ‘पोर्टल’ ने संयुक्त रूप से कैसे कर लिया?
प्रो. राजकुमार : सब कहा, बस इतना नहीं बता पाए कि आर्सेनिक से दक्षिण- पश्चिम पंजाब में केंसर  है.

इसमसले पर बहस में जाने केबजाय अब हम फिर क्षेत्र में जाने के कार्यक्रम पर आगये. लेकिन ‘खेतीविरासत’ के संयोजक सुरिंर सिंह पीड़ितोंसे मिलाने ले जाने को अनसुना करते रहे.काफी जद्दोजहद के बाद वह दूसरे दिन सुबह आठ बजे हमें पीड़ितों से मिलाने को तैयार हुए.

दूसरे दिन वे पहुंचे तो सही, मगर नये बहानों के साथ. बहाना था कि साथ जाने वाला कोई नहीं है और आपलोग पंजाबी जानते नहीं हैं, इसलिए वहां बात कैसे कर पायेंगे. यह सब होते-हवाते दिन के ग्यारह बज गये, जबकि हमें वहां लौटकर तीन बजे दिल्ली के लिए रवाना भी होना था. मौके की नजाकत और आयोजकों का टालू रवैया देख पत्रकार मणिमाला ने क्षेत्र में जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया और कहा कि मुझे यहां किताबों का वितरण करना है, सो मैं नहीं जा पाउंगी.

अब मैं जाने वालों में अकेला बचा था. इनकी ठगी पर जितना कोफ्त हो रहा था, उससे कहीं ज्यादा अपनी समझदारी पर कि गर मैंने दिल्ली में मित्रों से राय ले ली होती तो एनजीओ के भरोसे रिपोर्टिंग के मुगालते से बच गये रहते. इस अफसोस के साथ थोड़ी खुशी भी थी. खुशी इसलिए कि पहली दफा की ही मुफ्तखोरी ने अहसास करा दिया था कि देशी-विदेशी दानदाताओं की पेटियों से झरझराते सिक्के हमारे जैसे पत्रकारों के लिए नहीं हैं. तभी ‘खेती विरासत’ के सुरिंदर सिंह ने कहा कि भटिंडा जिले की तलवंडी साबो तहसील में कई ऐसे गांव हैं, जहां पानी में आर्सेनिक की अधिकता की वजह से केंसर और अन्य घातक रोग हो रहे हैं.

यानी अब मामला यूरेनियम से खिसकर आर्सेनिक पर आ गया था. बात को जायज ठहराने के लिए खेती विरासत से जुड़े चंद्र प्रकाश ने कुछ नामचीन अखबारों, रेडियो और टीवी चैनलों का हवाला भी दिया कि वह इस मसले पर कई बड़ी खबरें कर चुके हैं.अपनी तीन दिन की छुट्टी और उर्जा को किसी तरह बचा लेने की अंतिम कोशिश करते हुए मैंने उनके आर्सेनिक वाले प्रस्ताव को स्वीकार लिया. मैंने आयोजकों से कहा कि कुछ गांवो के नाम और दो-चार संपर्क बता दें, जिससे सुविधा हो.

बड़ी मुश्किल से सुरिंदर ने मलकाना गांव के एक सज्जन का नंबर दिया, जिनका भूरा सिंह नाम था. इस गांव के बारे में स्थानीय आयोजकों ने मुझे बताया गया कि यहां न सिर्फ सेरीब्रल पैल्सी बल्कि केंसर, नपुंसकता, दस पंद्रह की उम्र के बाद एकाएक न्यूरो तंत्र का शरीर से नियंत्रण खत्म हो जाने वाला रोग और गर्भपात के रोगियों की एक बड़ी संख्या है.भटिंडा से लगभग पैंतीस किलोमीटर दूर जब इस गांव में पहुंचे तो भूरा सिंह गुरूद्वारे के पास हमारा इंतजार कर रहे थे.
उनके साथ चार-पांच और लोग खड़े थे.भूरा सिंह ने बताया कि यह सभी लोग किसी की तेरही में खाने आये हैं. बातचीत में पता चला कि गांव में सात हजार आबादी और बत्तीस सौ वोट हैं. पीने के पानी की समस्या पर लोगों ने बताया कि अब गांव में सरकार की मदद से पंचायत ने आरओ (पानी शुद्ध करने का यंत्र) लगा दिया है.

पानी में आर्सेनिक की अधिकता की वजह से केंसर के बारे में गांव वालों ने इनकार किया. इनकार तो उस कार्यक्रम में आये गुरूनानक देव विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजकुमार ने भी किया था. श्रोताओं ने जब यह पूछा कि क्या कोई ऐसा अध्ययन है जो बताता है कि पानी में आर्सेनिक की बढ़ी मात्रा की वजह से केंसर हो रहा है तो प्रोफेसर राजकुमार ने हाथ खड़े कर लिये. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पानी में आर्सेनिक के मुख्यतः स्रोत प्राकृतिक हैं.’ तब वहां सवाल भी उठा था कि फिर इस आयोजन का मकसद क्या है और प्रोफेसर साहब चुप हो गये थे.दरअसल प्रोफेसर लगातार यह समझा रहे थे कि जहां पानी में आर्सेनिक अधिक है, वहां केंसर रोगी ज्यादा हैं. मगर जो नक्शा दिखाकर जानकारियां दे रहे थे, वह उनके रिसर्च का हिस्सा नहीं बल्कि पंजाब के एक अंग्रेजी दैनिक का उतरन था.

बहरहाल हम यह सब झेलकर उस जगह पर आ गये थे,जिस गांव के एक डॉक्टर ने बताया कि "चंडीगढ़ पीजीआई की टीम आई थी जिसने कहा कि पानी में आर्सेनिक नहीं बल्कि क्लोरोमिअम ज्यादा है, जिसका कारण भारी मात्रा में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक हैं." बताते चलें कि मालवा क्षेत्र का भटिंडा जिला पंजाब में इस्तेमाल किये जाने वाले कुल कीटनाशकों का एक बड़ा उपभोक्ता है.

फिर पानी में आर्सेनिक की वजह से मलकाना गांव में लोग केंसर पीड़ित हैं,को लेकर हंगामा क्यों है.गांव के नौजवान और क्लब सदस्य रणधीर सिंह ने बताया कि ‘क्षेत्र के किसी गांव में चले जाइये, आमतौर पर 40 से 50 प्रतिशत लोग नशाखोरी की जद से त्रस्त मिल जायेंगे. वहीं कीटनाशकों के इस्तेमाल से पानी की गड़बड़ी की शिकायत आम है.वैसे में एनजीओ वाले आर्सेनिक पर जोर ज्यादा इसलिए देते हैं कि इसमें खतरे कम हैं.अगर नशाखोरी के खिलाफ लड़ना है तो पहली लड़ाई माफियाओं से है. पेस्टीसाइड के खिलाफ लड़ेंगे तो सरकार, कंपनी और माफिया तीनों से भिड़ना है. इन सबसे से उपर यह है कि इन लड़ाईयों और जागरूकता के संसाधन जनता से जुटाने हैं, जबकि एनजीओ उन्हीं पूंजीपति घरानों के दान से चलते हैं जो पहले हमारे पानी को जहरीला करते हैं, फिर हमें आरओ सिस्टम बेच जाते हैं.’

मलकाना गाँव : केंसर रोगी हैं पर आर्सेनिक के नहीं
ग्रामीण गुरूतेज सिंह एक दूसरा मामला भी उजागर करते हैं- ‘मलकाना समेत कई गांवों के बारे में मीडिया और एनजीओ ने मिलकर केंसर का एक ऐसा हौवा खड़ा किया कि अब हमारे गांवों में कोई शादी नहीं करना चाहता.’

ग्राम सदस्य ज्ञानी जगदेव सिंह गांव के उन युवाओं में से एक हैं जिनकी शादी इसी हौवे की वजह से नहीं हो रही है. जगदेव सिंह ने धार्मिक पढ़ाई की है और वे धर्म का वास्ता देते हुए कहते हैं कि "नशाखोरी का चलन इतना ज्यादा है कि आमतौर पर चालीस की उम्र पार करते कोई न कोई रोग नशेड़ियों को हो ही जाता है.ईलाज की कोई व्यवस्था न होने के कारण रोग जब अपने चरम पर होता है और रोगी अंतिम समय में. कुछ अस्पताल आते-जाते मरते हैं तो कुछ पहुंचने से पहले ही. वैसे में जो मरा वही केंसर रोगी हो गया.अभी तो बकायदा भटिंडा से बीकानेर जाने वाली एक ट्रेन का नाम ही मीडिया ने ‘केंसर ट्रेन’ रख दिया है."

अब हम गांव से लौट रहे थे, जहां किसी एक ने भी नहीं कहा था कि आर्सेनिक की वजह से कैंसर हो रहा है.लेकिन इंडिया वाटर पोर्टल और आरघ्यम को 'खेती विरासत'की आंखों से पानी में आर्सेनिक और यूरेनियम की वजह से केंसर और सेरीब्रल पैल्सी रोग होता क्यों दिख रहा था,यह समझना मुश्किल था. इस सवाल पर दिल्ली रवाना होने से पहले आयोजकों के ही एक सहयोगी ने बताया कि पैसे आने के माध्यम से एनजीओ में समस्याएं और सामाजिक संकट तय होते हैं.
 http://www.raviwar.com/ से साभार


1 comment:

  1. ajayji NGO ka gadbadjhala samne lane ke liye dhanywad. Jannta ke naam par NGO har gagh khilwad kar rahe hain. sirf or sirf apni jeben bhar rahe hain ye log. aapne bilkul sahi likha hai ki buniyadi suvidhaon se mahroom janta ki samsyaon ko becha ja raha hai.

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