दो महीने पहले हरियाणा में माओवादी होने के आरोप में 25 लोगों को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारों में 23 दलित और 3 महिलाएं हैं। करनाल जेल में बंद उनमें से एक दलित युवक मुकेश कुमार से पुलिस ने जबरन नाली व पखाना साफ कराया। मुकेश के विरोध करने पर उसे मारा पीटा गया, जातिगत गालियां दी गयीं। मुकेश दोबारा विरोध की हिम्मत न कर सके इसके लिए जेल पुलिस ने मुकेश का सिर और मूंछ मुड़ दिया। मुकेश ने अपने वकील बलवीर सिंह सैनी के हाथों जेल से पत्र भेजा है। चंडीगढ़ हाईकोर्ट के वरीष्ठ वकील बलवीर सिंह सैनी से प्राप्त हुए पत्र को जनज्वार बगैर संपादन के प्रकाशित कर रहा है ------------.
गजब कुत्तागिरी है बॉस। किसी को दलित होने की ऐसी सजा दी जाती है कहीं। पुलिसवालों पर से इसी कारण पूरे देश के लोगों का विश्वास उठ गया है। आये दिन इनकी मइयत होती है और लोग मुंह फेर के अपने काम में इसी वजह से लग जाते हैं, क्योंकि पुलिस के साथ लोगों का कोई रिश्ता ही नहीं रह गया है। जिन लोगों के घर के बेटे पुलिस में चले जाते हैं, उनका सीना चौड़ा हो जाता है, क्योंकि वो जानते हैं कि अब कोई पुलिसवाला उनका कुछ नहीं बिगाड़ेगा, क्योंकि शोषक खुद उनका बेटा ही बन गया है। कहने का मतलब इतना भर है कि सारे पुलिसवाले किसी प्रकार की सहानुभूति के हकदार नहीं रह गये हैं, क्योंकि इस महकमे की जड़ में ही सामंतवाद का बोलबाला हो गया है। वर्दी वाले गुंडे मुर्दाबाद...मुर्दाबाद...मुर्दाबाद। इंकलाब जिंदाबाद।
ReplyDeleteइस सच को साझा करने के लिए शुक्रिया अजय | मेरी नज़र में बिना रज़ामन्दी के किसी से कुछ भी कराना अपराध है , फिर वो चाहे भगवान की पूजा करने जैसा काम ही क्यूँ ना हो | हिदुस्तान की एक बेहद अजीब सी बात यही है | एक तरफ मीडिया यंहा सामाजिक समानता की बात करता है तो एक तरफ " जबरदस्ती पखाना साफ़ कराया" जैसी मुद्दे उछालता है | हर बार यह समझना मुश्किल हो जाता है कि मुद्दा क्या है , बिना रज़ामन्दी के कोई काम करवाना या सिर्फ " पखाना साफ़ कराना "....!!
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