Nov 16, 2007
धोखा है
अजय प्रकाश
धोखा है उस मजदूर के साथ
जो हल के पीछे चल रहा है वर्षों से
कि नयी फसल के साथ जिंदगी बेहतर होगी
षड्यंत्र है उस आधी आबादी के साथ
जो सदियों बाद मुक्ति द्वार पर दस्तक दे रही है
निष्क्रियता है तुम्हारे कामों की
जो हरावली होने का दंभ भरते हैं
तुम्हारे कागजी कामों का ही सार है
कि उसके आठ, बारह घंटे हो गये
तुम कमरे में करते रहे विश्लेषण
और वे बाहर टूटते-बिखरते, पीछे हटते रहे
यह कायरता है तुम्हारे बुद्धिजीविता की
जिसने दशकों में भी खून से लथपथ साथी नहीं देखे
और घोषित कर दिया कि
कम्युनिस्ट शिविर विघटित हो चुके हैं
मुनादी करा दी कि तुम अकेले पार्टी हो
और परिवार केंद्रीय कमेटी
मार्क्स की दाढी, एंगेल्स का भौं, लेनिन का नैपकिन
और स्टालिन का बटोरकर
ख्रुश्चेव से लेकर गोर्बोचेव तक पर जब तुम बोल रहे थे
तभी से तुम्हारे पुनर्जागरण्-प्रबोचन का केंद्रीय कर्यभार
धन उगाही रहा
गरियाना मार्क्सवादी रणनीति
पलिहार खेतों के खलिहर चरवाहा बन
बहका रहे हो नयी नस्लों को
अयोध्या ही नहीं गुजरात को भी
सीलबंद कर चुके हो
खैरंलाजी को सोचना ही अवसरवाद है
और विदर्भ की बात करना 'नरोदवाद'
आदिवासियों के लिये लडना
शब्दकोष में शामिल ही नहीं किया
'बोल्शेविज्म' तो तुम्हारे यहां चुप्पी के नाम से ख्यात है
मानो कि याज्ञवल्य के नये संस्करण तुम्ही है
चूं और पों के रूपावतार भी तुम्ही हो
नहीं तो ऐसा क्यों होता कि
तुम शोमैन होती और पार्टी दर्शक
तुम्हीं हो सिक्के गिनने वाले क्रांपा लिमिटेड
मैं कैसे भूल सकता हूं पिछली सदी का वह अंतिम जेठ
थपथपायी थी तुमने पीठ
और सब से पहले मेरी आंखों में देखा था
मगर तुम भूल गये
मार्क्सवाद उबने का नहीं डूबने का दर्शन है
तुम्हें याद है वह दिन
तुमने ब्लैकबोर्ड पर बंकर बनाया था
इस डर से कि कतारें कहीं ज़मीन पर
बारूदी सुरंगें न बिछा दें
और दुश्मन से पहले तुम्हारा वह
रनिवास न ढह जाये
जो तुम्हारी पत्नी के नाम पर है
जिसे कभी पार्टी फंड से बनाया गया था
यह शातिरी है तुम्हारे विचारों की
जो अब विचार ही नहीं रहे
दुकान होकर रह गये हैं
जहां तुम बेच रहे हो
अपनी महत्वाकांक्षायें, कुंठायें और युवा
और युवा कुछ भी कर सकता है
इतना इतिहास तो तुमने पढा ही है
तो आओ
एक प्रकाशन परिकल्पित किया जाये
और प्रकाशनों में क्रांतिकारी, क्रांतिकारियों में प्रकाशन
होनें का निर्विवाद दर्जा लिया जाये
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