Sep 7, 2007

लोग बीमार हैं,चलो डाक्टर को छुड़ा लायें



अजय प्रकाश<
डॉक्टर विनायक मेन, शिशुरोग विशेषज्ञ आजकल अपने अस्पताल बगरूमवाला में नहीं रायपुर केंद्रीय कारागार में मिलते हैं। जहां मरीज नहीं बल्कि डॉक्टर सेन को जेल से मुक्त कराने में प्रयासरत वकील बुद्धिजीवी, सामाजिक कायर्कतार् और दो बेटियां एवं पत्नी इलीना सेन पहुंचती हैं. छत्तीसगढ़ सरकार की निगाह में विनायक सेन राजद्रोही हैं। क्योंकि उन्होंने डॉक्टरी के साथ-साथ एक जागरूक नागरिक के बतौर सामाजिक कायर्कतार् की भी भूमिका निभायी है। विनायक सेन को राजद्रोह, छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा कानून 2005 और गैरकानूनी गतिविधि (निवारक) कानून जैसी संगीन धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया है। डॉक्टर विनायक पीयूसीएल के छत्तीसगढ़ इकाई के महासचिव से वहां नक्सलियों के मास्टरमाण्ड उस समय हो गये जब रायपुर रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार पीयूष गुहा ने यह बताया कि उससे जब्त तीनों चिट्ठियां (जो अंग्रेजी एक बंग्ला) नक्सली कमाण्डर को सुपुदर् करने के लिये थीं मगर उसमें यह तथ्य नहीं है चिट्ठियां विनायक सेन से प्राप्त हुयीं। दूसरी बात जिसे कईबार कोटर् में पीयूष गुहाने कहा भी है कि उसे एक मई को गिरफ्तार किया गया जबकि एफआईआऱ छह मई को दजर् हुयी। मतलब साफ है कि पुलिस ने पीयूष को छह दिन अवैध हिरासत में रखा है।
पुलिस को पीयूष गुहा के बयान के अलावा और कोई भी पुख्ता सुबूत विनायक सेन के खिलाफ नहीं मिल सका है। बुजुगर् नक्सली नेता नारायण सन्याल से तैंतीस बार मिलने को तथा उन चिट्ठियों को भी पुलिस ने आधार बनाया है जो नारायण ने जेल में मुलाकात के दौरान विनायक को सौंपी थी। विनायक सेन के घर से प्राप्त हुयी सभी चिट्ठियों पर जेल की मुहरहै और जेलरने पत्र को अग्रसारित किया है। विनायकसेन के पदार्फास की कुछ उम्मीद पुलिसको उनके घर से जब्त सीडीसे बंधी लेकिन वह भी मददगार साबित न हो सकी। यही नहीं सनसनीखेज सुबूत का दावा तब किया गया जब सेन के कम्प्यूटर को पुलिस उठा लायी। इसके अलावा नक्सली सहयोगी होने के जो प्रमाण उनके घर से जब्त हुए हैं उस आधार पर देश के लाखों बुद्धिजीवियों और करोंड़ों नागरिकों को सरकार गिरफ्तार कर सकती है। हालात जब इस तरह के हो तो सरकार के लिए बेहतर यही होगा कि वह सरकारी नीतियों को बदले।
विनायक सेन की गिरफ्तारी को जायज ठहराने में लगा बल सुबूतों को जुटाने के मामलों मुखर्ताओं की हदें पार कर गया है। पीयूष माचर् पत्रिका, के एक प्रति और एक वामपंथी पत्रिका, अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ अंग्रेजी में लिखा गया हस्तलिखित पचार्, लेनिन की पत्नी कुस्पकाया द्वारा लिखित पुस्तक लेनिन रायपुर जेन में सजायाफ्ता माओवादी मदनलाल का पत्र जिसमें उसने जेल को अराजकताओं-अनियमितताओं उजागर किया हैं तथा कल्पना कन्नावीरम का इपीडब्ल्यू (इकॉनोमिकल एण्ड पोलिटिकल वीकलीः में छपे लेख को भी उसने जब्त किया है। विनायक सेन के खिलाफ ढीले पड़ते सुबूतों के मद्देनजरपुलिस ने कुछ नये तथ्य भी कोटर् को बताये हैं जिसमें राजनादगांव और दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षकोंने नक्सलियों से ऐसे साहित्य बरामद हुए हैं जिनमें विनायक सेन की चचार् है। यान कल को माओवादियों के साहित्य या राजनीतिक पुस्तकों में किसी साहित्यकार, इतिहासकार या समाजिक आन्दोलनों से जुड़े लोंगों की चचार् हो तो वे आतंकवाद निरोधक कानूनों के तहत गिरफ्तार किये जा सकते हैं।
विनायक देश के पहले नागरिक हैं जिन्होंने छत्तीगढ़ राज्य द्वारा चलाये जा रहे दमनकारी अभियान सलवा जुहूम का विरोध किया। इतना ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर फैक्ट फाइडिंग टीम गठित कर दुनियाभरको इतना किया कि यह नक्सलवादियों के खिलाफआदवासियों का स्वतः स्फूतर् आंदोलन नहीं बल्कि टाटा, एस्सार, टेक्सास आद के लिये उन जल, जंगल, जमीनों को खाली कराना है जिसपर कि माओंवादी के चलते साम्राज्यवादियों का कब्जा नहीं हो सका है। माओवादी हथियारबंद हो जनता को गोलबंद किये हुये हैं इसलिये पुंजीपरस्त सरकार के लिये संभव ही नहीं है कि उनके आधार इलाकों मे कत्लेआम मचाये बिना कब्जा कर ले। खासकर, तब जब जनता भी अपने संसाधनो को देने से पहले अंतिम दम तक लड़ने के लिये तैयार है। दमनकारी हुजूम यानी सलवा जुडूम की नंगी सच्चाई के सामने आने से राज्य सरकार तिलमिला गयी। जिसके ठीक बाद बस्तर क्षेत्र के तत्कालीन डीजीपी स्वगीर्य राठौड़ ने कहा था कि मैं विनायक सेन और पीयीसीएल दोनों को देख लूंगा। यहां तक कि इलिना विनायक सेन की पत्नी पर भी पुलिस ने आरोप लगाया कि उन्होंने अनिता श्रीवास्तव नामक फरार नक्सली महिला की मदद की। यह सब चल ही रहा था कि इसी बीच विनायक सेन पर धमर्सेना ने धमार्न्तरण का आरोप मढ़ना शुरू कर दिया। धमर्सेना के इस कुत्साप्रचार का दजर्नों गांवों के हजारों नागरिकों ने विरोध किया।
शंकर गुहानियोगी के अनुभवों और अपनी वगीर्य दुष्टि की ऊजार् को झोंककर जो संस्थाये विनायक सेन ने खड़ी की हैं वह उदाहरणीय है। कहना गलत न होगा कि विनायक सेन नेता नहीं हैं मगर जनता के आदमी हैं । छत्तीसगढ़ राजधानी रायपुर से लगभग 150किलोमीटर दूर धमतरी जिले के गांवों के उन गरीब आदिवासियों के बीच पहुंचा अपना विनायक बेकारी की मार झेलते हुये वहां नहीं गया। वह देश के दूसरे नम्बरके बड़े आयुविर्ज्ञान संस्थान सीएमसी वेल्लुरसे एमडी, डीसीएच है। विनायक चिकित्सा के क्षेत्र में दिये जाने वाले विश्व स्तर के पुरस्कार पॉल हैरिसन प्राइज से वह नवाजे जा चुके हैं। 1992 से धमतरी जिले के बागरूमवाला गांव में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र संचालित करने वाले विनायक सेन ने सामान्तर सामुदायिक शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की। डॉक्टर को यह साहस और अनुभव छत्तीसगढ़ मुक्ति मोचार् के संस्थापक स्वगीर्य शंकर गुहानियोगी से मिला।
परन्तु क्या यह सब करते हुये विनायक सेन अपने डॉक्टरी कतर्व्य को भी बखूबी निभा पाये। पिछले बारह वषोर् से स्वास्थ्य केंद्र की देखरेख कर रहीं शांतिबाई ने बताया कि डॉक्टर साहब शायद ही कोई मंगलवार होता जबकि नहीं आते। बगरूमनाला स्वास्थ केन्द्र शान्तिबाई ने सवाल किया कि आतकंवादी तो वह होता है जो दंगा-फसाद करे, देश को तोड़े या फिर गरीबों को सताये लेकिन हम डॉक्टर साहब को चौदह साल से जानती हूं। जब मैं जवान थी तबसे आज तक कभी हमारे साथ गलत नहीं किया। हम अकेली नहीं हूं जो डॉक्टर साहब के बारे में ऐसा मानती हूं। यहां से तीन दिन पैदल चलकर जिन गांव-घरों में आप पहुंच सकते हैं उनसे पूछिये डॉक्टर साहब कैसा आदमी है, बगरूमनाला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कैसा इलाज होता है क्योंकि हम नहीं जानती कि यहां इलाज कराने लोग कितने किलोमीटर से आते हैं। लेकिन लोग बताते हैं कि वह तीन दिन पैदल चलकर आये हैं।
1992 में इस गांव में डॉक्टर ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खोला। डॉक्टर साहब की गिरफ्तारी की तीन महीने पूरे होने को हैं। न जाने कितने सौ मरीज लौटकर चले गये। इसी गांव में एक नौजवान लड़का अण्डकोष की बीमारी से दवा के अभाव में मर गया। जबकि गांव से लेकर शहर तक सबकुछ पहले जैसा है सिफर् एक डॉक्टर नहीं हैं। रोते हुए बोली मेरा दिल कहता है अगर हम लोग डॉक्टर को नहीं बचा सके तो अपने बच्चों को भी नहीं बचा पायेंगे।

4 comments:

  1. बहुत अच्छा और संवेदनशील लेखन, हमारी भी इच्छा है कि डॉ विनायक सेन जल्द लौटें और मरीजों की सेवा करें.

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  2. यह भी एक बिडंबना ही है कि बहुतों बार सिर्फ शक या छिछले सबूतों के आधार पर कई बेगुनाह पिस जाते हैं, डॉ. सेन के साथ जो हुआ या जो हो रहा है, उसकी जांच कम से कम उन पुलिसबलों द्वारा नहीं होनी चाहिए जो पहले से ही उन्हें आतंकवादी सिद्ध करने पर तुले हुए हैं.

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  3. यह भी एक बिडंबना ही है कि बहुतों बार सिर्फ शक या छिछले सबूतों के आधार पर कई बेगुनाह पिस जाते हैं, डॉ. सेन के साथ जो हुआ या जो हो रहा है, उसकी जांच कम से कम उन पुलिसबलों द्वारा नहीं होनी चाहिए जो पहले से ही उन्हें आतंकवादी सिद्ध करने पर तुले हुए हैं.

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  4. bandhu, chhatisgarh me Dr. Vinayak sen sahit tamam logon ka dard is se bhee adhik hai, jo sabdon men bayan nahee ho sakta.

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