Feb 9, 2007


साथी
वह किसान का लडका था
लडा, आजाद कौम के लिये
तुम भी मेहनतकश के बेटे हो
लड रहे हो एक बेहतर कल के लिये

वह कल जो तुम्‍हारी रगों में दौड रहा है
वह सपना बस्तियों में गूंज रहा है
जेल की कालकोठरी में बैठे
जो आंच तुम्‍हें मिल रही है साथी
वह बेकार नहीं जायेगी
वह बेकार नहीं जायेगी

तख्‍त नहीं डिगा सकते सपनों को
क्‍योंकि वे रातों को नहीं रोक सकते

वह सफदर को घूंघरू बांधने से नहीं रोक सकते
नहीं रोक सकते पाश को गलियों में गाने से
वह नाजिम के हाथों को एक होने से नहीं रोक सकते
नहीं रोक सकते पाब्‍लो की समुद्री लहरों को
तो कैसे रोक लेंगे तुम्‍हारे सपनों को

साथी
इल्‍म करा दो ताजदारों को
हरावली सेना मौत से नहीं डरती
और लोग, बख्‍तरबंद सैनिकों से

अजय प्रकाश

1 comment:

  1. BAHUT ACHCHI RACHNAYEN HAIN!
    APNI AOUR RACHNAON SAHIT APNE UN VICHARON KO JO SAMAJ KA BAHUT KUCH SACH BAYAN KARTE HAIN, LEKIN ADHIKANSH USSE SWEEKARTE NAHI AOUR BAHUT LOG SAMAJ HI NAHI PATE ...
    JO HAM JAISE BAHUT LOG SAMAJH NAHI PATE UNHE BILKUL HI NA SAMAJH SAMAJHNE KI BAJAY SARAL TAREEKE SE BATO TO SAHI.....

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