तीन दिन पहले एक सर्वे में भारत के लोगों ने कहा कि देश की पुलिस दुनिया की सबसे भ्रष्ट पुलिस है। 7 मार्च का जारी हुई एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में 70 प्रतिशत भारतीयों ने बहुत खुलकर बताया कि बिन पैसे लिए पुलिस कैसे एक नहीं सुनती। पैसे लेकर मुकदमे दर्ज करती है, कार्यवाही करती है, फंसाती है या छोड़ती है......
अजय प्रकाश
याद कीजिए यह सर्वे अखबारों में छपा भी। देश के लोगों कहा भी कि 10 में से 7 लोग घूस देते हैं तभी पुलिस काम करती है। लोगों ने यह भी बताया है कि पुलिस पैसा लेकर फर्जी मामलों में फंसाती है। पुलिस की खुबियों को कुछ टीवी वालों ने भी दिखाया।
फिर भ्रष्ट पुलिस में तीन दिन में ऐसा कौन सा रासायनिक परिवर्तन हुआ जिसके कारण वह आपको पवित्र लगने लगी। किस बिना पर मान लिया कि जो पुलिस बिन पैसे एक नहीं सुनती, वह सैफुल्ला को मारे जाने के बाद जो दावा कर रही वह सही ही है। खासकर उत्तर प्रदेश पुलिस, वह तो शिकायत दर्ज करने पर एक फोटोकॉपी तक नहीं देती।
सवाल यह भी है कि क्या आपने तीन दिन पहले झूठ कहा था? आपने पुलिस को भारत का सबसे भ्रष्ट महकमा किसी से पैसे लेकर कहा? किसी टीवी चैनल और अखबार के बहकावे में कहा? किसी मीडिया ने आप पर मानसिक दबाव बनाया कि आप भारतीय पुलिस को देश ही नहीं दुनिया की सबसे भ्रष्ट सुरक्षादाता की उपाधि से नवाजें।
अगर नहीं तो उसी पुलिस द्वारा आतंक के मामले में गढ़ी गयी इनकाउंटर की कहानी आपको शत प्रतिशत सच कैसे लगी। सिर्फ इसलिए कि मारा जाने वाला मुसलमान है, एक कमजोर और बेबस घराने की औलाद है।
अन्यथा कैसे आपने मान लिया कि पुलिस और पिता की भावना एक है। कैसे आपने मान लिया कि न्याय और सत्ता की भावना एक है। किस बिना पर आप आंखों से खून रो रहे एक पिता को बहादुरी का तमगा देने पर आमादा हैं जबकि पांच वक्त के उस नमाजी बाप के हाथ में कब्र की मिट्टी तक नहीं लग पाई है। आपको क्या उसके भाई यह बात बेजा लगती है कि 'मरने वाला मर गया कौन झंझट मोल ले। नेता आएंगे, जिंदाबाद मुर्दाबाद होगा।'
बहरहाल, आपको नहीं लगता कि हिंदू— मुमलमान के चक्कर में सत्ता के सामने आप इतने कमजोर हो जाते हैं कि हर पांच साल बाद मदारी वोट लेने आ जाते हैं और आप उनके 'वादों' की मुंहदिखाई करते रह जाते हैं। आज सच्चाई का पुतला लग रही यही पुलिस जब गुंडों, नेताओं, पूंजीपतियों और माफियाओं की शागिर्द बनी घूमती है और चौतरफा बिसुरते फिरते हैं, फिर कोई हिंदू भावना या सांप्रदायिक चाहत आपका भला कर पाती है क्या?
क्या आपकी इसी कमजोरी के चलते सत्ता की बेशर्मी और आपकी मानसिक गुलामी नहीं बढ़ती जा रही। क्या इसी कारण देश की पुलिस, नेता और अधिकारी दिन—ब—दिन और भ्रष्ट, तानाशाह और जनविरोधी नहीं होते जा रहे। जबकि देश की जनता बतौर नागरिक रोज—ब—रोज कमजोर होती जा रही है।
आपको याद है हमारे गृहमंत्री राजनाथ सिंह 67 लोगों की हत्या के आरोपी असीमानंद के बारे में कहा था, असीमानंद आतंकी नहीं हो सकता। विपक्ष में रहते हुए राजनाथ सिंह बकायदा आतंक के आरोपियों से बकायदा मिले थे, उनको छुड़वाने का आश्वासन दिया था और वादा किया था कि हमारी सत्ता आई तो उन्हें छोड़ देंगे।
असीमानंद का बरी होना, माया कोडनानी का गुजरात दंगों में सौ लोगों की हत्या के आरोप में दोषी करार दिए जाने के बाद 28 साल की सजायाफ्ता होने के बावजूद घर पर महीनों से आराम करना और साध्वी प्रज्ञा का धमाकों के सभी मामलों से बरी होते जाना क्या उसी योजना का हिस्सा नहीं है।
ऐसे में पुलिस की किसी कार्यवाही पर आंख मूंद लेना और मुसलमान होने के कारण पुलिस की दावेदारी को सच मान लेना न्याय के पक्ष में होने की बजाय पुलिसिया भ्रष्टाचार और सत्ता की तानाशाही के पक्ष में है। साथ ही किसी सरकार की सांप्रदाकिता किसी भी कीमत पर देश और जनता के हित में नहीं हो सकती, पार्टी हित में भले हो जाए।
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