Dec 4, 2016

न नौ न छह सिर्फ तीन महीने

भारतीय डॉक्टर ने टीबी रोगियों के लिए ढूंढ़ा नया इलाज

यक्ष्मा, तपेदिक, क्षयरोग, एमटीबी या टीबी एक संक्रामक बीमारी है, जो माइक्रोबैक्टीरिया से होती है। दुनिया की आबादी का एक तिहाई तपेदिक से संक्रमित है। नये संक्रमण प्रति सेकंड एक व्यक्ति की दर से बढ़ रहे हैं...

प्रदीप श्रीवास्तव

भारत से पढ़ाई करने वाली डॉक्टर अस्वीन मारको अमेरिका में टीबी के मरीजों के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने जीआईएस तकनीकी का विकास किया है, जो अमेरिका में बेघर लोगों में टीबी की बीमारी को ट्रैस करता है। साथ ही इस तकनीक से वे मरीजों का पूरा रिकार्ड रखती हैं, जिससे टीबी के मरीजों को दवा व इलाज मुहैया कराया जा सके। उनके काम को न सिर्फ अमेरिकी सरकार सराह रही है, बल्कि भारत में भी उनके काम की तारीफ हो रही है।

अस्वीन ने हिमाचल प्रदेश से बीडीएस की डिग्री लेने के बाद कुछ समय तक दिल्ली में काम किया। बाद में अमेरिका के बोस्टन यूनिवसर्सिटी से पब्लिक हेल्थ का कोर्स किया। इसके बाद उन्होंने अमेरिका के बेघर लोगों की भलाई के लिए स्वास्थ्य सेवाओं पर काम करना शुरू किया। इस दौरान उन्हें बेघर लोगों के बीच व्याप्त टीबी की बीमारी का पता चला। इस बीमारी से हर साल हजारों लोगों की मौत हो जाती है। यह तेजी से फैलने के कारण अमेरिका में भी टीबी के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। ऐसे में उन्होंने टीबी को जड़ से समाप्त करने के लिए कुछ नए प्रयोग किए हैं, जो काफी कारगर है।

टीबी रोकने के नए प्रयोग
डॉ. अस्वीन ने टीबी रोगियों के लिए कुछ अनोखे प्रयोग किए हैं। उन्होंने टीबी के दवा-इलाज समय को कम कर दिया है। अभी तक पूरी दुनिया में टीबी के सबसे कारगर इलाज को डाट्स प्रणाली माना जाता है। इसके तहत छह से नौ माह तक मरीज को दवा दी जाती है। इस प्रणाली में एक सबसे बड़ी खामी यह है कि अगर मरीज बीच में इलाज छोड़ देता है तो उसे टीबी की सबसे जटिलतम बीमारी से जूझना पड़ता है। उसे एमडीआर टीबी हो जाती है, जिसका इलाज न सिर्फ बहुत महंगा है, बल्कि उसे दो साल से ज्यादा समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ सकता है। ऐसे में डॉ. अस्वीन ने नौ माह के कोर्स को छोटा करके तीन माह का कर दिया। इससे बेघर मरीजों का इलाज जल्दी होने लगा है। 

इसके अलावा डॉ. अस्वीन ने जीनएक्सपर्ट टेक्नोलाॅजी का प्रयोग भी शुरू किया है, जो क्षय रोग का पता लगाने की कारगर प्रणाली है। डॉ. अस्वीन ने सबसे महत्वपूर्ण कार्य जियोग्राॅफिकल इंफारमेशन सिस्टम को तैयार कर किया है। इसके तहत बेघर मरीजों का पूरा ब्यौरा कंप्यूटर में रियल टाइम में एकत्रित किया जाता है, जिससे वह अमेरिका में कहीं भी हो तो उसे ट्रैस किया जा सके। पूर्व में अमेरिका में यह व्यवस्था नहीं होने के कारण इन बेघरों की पहचान बहुत मुश्किल होती थी, जिस कारण से अगर इलाज बीच में छूट जाता था तो वह उन्हें पुनः इलाज की सुविधा नहीं मिल पाता थी। और इन्हें एमडीआर टीबी का इलाज कराना पड़ता था।
  
अमेरिका में टीबी रोग की स्थिति 
अमेरिका में करीब 5 लाख टीबी के मरीज हैं। इनमें भी अधिकतर मरीज बेघर हैं, जो पूरे देश में घूमते रहते हैं। इलाज नहीं मिलने की दशा में बीस प्रतिशत से ज्यादा प्रतिवर्ष अकाल मौत के शिकार हो जाते हैं। यक्ष्मा, तपेदिक, क्षयरोग, एमटीबी या टीबी एक संक्रामक बीमारी है, जो माइक्रोबैक्टीरिया से होती है। क्षय रोग आम तौर पर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। यह हवा के माध्यम से फैलता है। दुनिया की आबादी का एक तिहाई तपेदिक से संक्रमित है। नये संक्रमण प्रति सेकंड एक व्यक्ति की दर से बढ़ रहे हैं।