Mar 31, 2017

आज देश सेलीब्रेट कर रहा #fenkudivas और #pappudivas



आज 1 अप्रैल पुरी दुनिया में 'मुर्ख दिवस' के रूप में मनाया जाता है। तमाम लोग एक—दूसरे को किस्से, कहानियां या उटपटांग बातें या वायदे कर उल्लू या बकलोल बनाते हैं और यह कह कर खुश होते हैं, 'अप्रैल फूल बनाया, बहुत मजा आया।' 

पर भारत में आज का यह दिन पप्पू और फेंकू दिवस के ​रूप में मनाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर यह दोनों ही ट्रेंड कर रहे हैं। ट्वीटर पर फेंकू दिवस पहले स्थान पर ट्रेंड कर रहा है तो पप्पू दिवस चौथे पर है। 

व्यंग्यात्मक लहजे में समझें तो यह पूप्पू और फेंकू दोनों नाम देश की दो राष्ट्रीय पार्टियों के सुरमाओं के नाम हैं। पहले हैं राहुल गाँधी और दूसरे हैं प्रधानमंत्री मोदी। 

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लोग पप्पू और प्रधानमंत्री मोदी को फेंकू कह कर मजाक बनाते हैं। इन नेताओं के बारे में जनता का आम ख्याल ये है कि राहुल गाँधी राजनीति के बबुआ हैं तो मोदी बड़बोले हैं, जो वायदों और भाषणों से आगे कुछ नहीं करते। 

इन दोनों नेताओं के उपनाम का इतिहास यह है कि मोदी और भक्तों ने राहुल गांधी के उटपटांग बयानों के चलते पप्पू कहना शुरू किया तो राहुल गांधी और उनके लोगों ने मोदी के बड़े—बड़े वायदों के मद्देनजर फेंकू। पर देश के आमलोगों के ये दोनों उपनाम बहुत प्रिय है. आज मुर्ख दिवस १ अप्रैल पर इन नामों का ट्विटर पर ट्रेंड करना इसका प्रमाण भी है। 

13 मजदूरों के उम्रकैद के खिलाफ जंतर मंतर पर प्रतिवाद सभा

जनज्वार। मारुति मजदूरों को उम्रकैद की सजा के विरोध में मज़दूर संघर्ष अभियान (MASA) की तरफ़ से जंतर मंतर, नई दिल्ली में आज 31 मार्च को एक प्रतिवाद सभा आयोजित की गयी। इसमें मासा के विभिन्न घटक मज़दूर सहयोग केंद्र गुड़गांव, रूद्रपुर, इंकलाबी मज़दूर केंद्र, जन संघर्ष मंच हरियाणा, इंकलाबी केंद्र पंजाब, कर्नाटका श्रमिक शक्ति, हिंदुस्तान मोटर SSKU, AIWC, ICTU, IFTU, IFTU (सर्वहारा), TUCI, मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन मानेसर, होंंडा, डाइकिन, मारुति प्रोविजनल कमिटी के प्रतिनिधि और सहयोगी शामिल रहे।


सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि 13 मारुति मजदूरों को सरकार और पूंजीपतियों के इशारे पर न्यायपालिका ने उम्रकैद की सजा सुनाई है, उसके माध्यम से मज़दूर वर्ग को धमकी दी गयी कि अगर मज़दूर ट्रेड यूनियन बनाने के लिए, ठेका प्रथा खत्म करने के लिए, प्रबंधन की मनमानी के खिलाफ आवाज उठाएंगे तो उनका इस तरह से दमन किया जाएगा। सारे तथ्य, सबूत, न्याय, क़ानून, व्यवस्था पूंजीपतियों के हित में मज़दूरों के ख़िलाफ़ हैं। 

मारुति मजदूरों का संघर्ष स्थायी ठेका मज़दूर की एकता के साथ मालिकाना दमन के ख़िलाफ़ मज़दूर वर्ग के संघर्ष का नेतृत्व कर रहा था। इसलिए इस वर्ग संघर्ष में यूनियन नेतृत्व को निशाना बनाया गया, ताकि मज़दूरों में से कोई नेतृत्व करने के लिए आगे ना आये। मगर सत्ता द्वारा मारुति के आंदोलन को कुचलने के प्रयास के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया के मज़दूर भी अपनी वर्गीय एकजुटता के साथ खड़े दिखाई दिए।

मासा ने सभी संघर्षशील मजदूरों और संगठनों से अपील की कि इस संघर्ष को उसी जुझारू तरीके से बरकरार रखें, जिसकी मिसाल मारुति के मज़दूरों ने कायम की है। मालिकों द्वारा बनाये गए ठेका, स्थायी, अप्रैंटिस के विभाजन से आगे बढ़कर इस हमले का विरोध करना होगा, क्योंकि क्योंकि ये विभाजन मालिक के मुनाफे को बढ़ाने के लिए शोषण करने का आधार हैं। 

सभा के दौरान  4—5 अप्रैल के अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय विरोध कार्यक्रम  को सफ़ल बनाने की भी अपील की गयी जिसमें सभी मौजूद संगठनों ने 4—5 अप्रैल को अपने सम्बंधित शहरों में अपने स्तर पर प्रतिवाद करने की घोषणा की। कार्यक्रम के दौरान मासा की तरफ़ से श्रम मंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा गया।

इसमें 13 मारुति मज़दूरों को रिहा करने, सभी झूठे मुक़दमे वापस लेने, 117 बरी मजदूरों सहित सभी बर्खास्त मज़दूरों को काम पर वापस लेने की मांग की गई। मारुति मज़दूरों को न्याय दिलाने हेतु जंतर मंतर दिल्ली में आयोजित प्रतिवाद सभा में रुद्रपुर, उत्तराखंड से महिंद्रा सीआईए श्रमिक संगठन के साथी भी शामिल थे।

छात्राओं को नंगा करने वाली वॉर्डन बर्खास्त

आरोपी वार्डन ने रखा अपना पक्ष, कहा यह उन शिक्षकों की साजिश जो पढ़ाना नहीं चाहते 
 

मुजफ्फरनगर से संजीव चौधरी की रिपोर्ट 

उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के कस्तूरबा गाँधी आवासीय विद्यालय में 30 मार्च को हॉस्टल वार्डन सुरेखा तोमर द्वारा विद्यालय की छात्राओं को निर्वस्त्र कर कक्षा में बैठाने का एक बेहद शर्मनाक मामला सामने आया है। हॉस्टल वार्डन की इस घिनौनी करतूत का पीड़ित छात्राओं ने विरोध किया है। आरोपी वॉर्डन को सरकार ने फिलहाल बर्खास्त कर दिया है। घटना के बाद कई छात्राओं के अभिभावक अपनी बच्चियों को स्कूल से घर ले गए हैं। 

गौरतलब है कि मुज़फ्फरनगर के खतौली थाना क्षेत्र के तिगरी गांव स्थित सरकारी कस्तूरबा गाँधी आवासीय विद्यालय का है। विद्यालय में आमतौर पर गरीब परिवार की बच्चियां पढ़ती हैं। इनमें से कुछ बच्चियां महज आठ वर्ष की हैं, जिन्हें अभी ना खाने का पता है और ना ही पीने का। विद्यालय में आठ साल से लेकर 12 वर्ष की बच्चियां अपने परिवार से दूर शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। 

खतौली के कस्तूरबा गाँधी बालिका आवासीय विद्यालय में वार्डन ने रविवार 26 मार्च को विद्यालय में अध्यनरत 65 छात्राओं को संयुक्त रूप से कक्षा में ले जाकर नग्न अवस्था में खड़ा किया। वार्डन सुरेखा ने कई घंटों तक कई छात्राओं को पूर्ण रूप से निर्वस्त्र रखा। छात्रायें खुद को अपमानित महसूस करती रहीं, लेकिन वार्डन ने छात्राओं की एक न सुनी। 

महिला वॉर्डन ने छात्राओं के साथ यह सनकी सलूक क्यों किया, यह तथ्य और चौंकाने वाला है। दरअसल वॉर्डन को विद्यालय के टॉयलेट में ब्लड के धब्बे मिले थे जिसे देख विद्यालय की वार्डन आग बबूला हो गईं। जिसके बाद उसने सभी छात्राओं को क्लास रूम में ले गयीं और कुछ छात्राओं को निर्वस्त्र होने के​ लिए कहा और एक—एक कर छात्राओं के मासिक धर्म होने की जांच करने लगीं। 

इस बीच छात्राएं रोती—बिलखती रहीं, लेकिन हिटलर बनी हॉस्टल की वार्डन न तो शर्मिंदा हुई और न छात्राओं की हालत पर उसे तरस आया। वार्डन टॉयलेट में ब्लड को देख समझ चुकीं थीं कि विद्यालय की किसी छात्रा को मासिक धर्म हुआ है, जिसने ये टॉयलेट गंदा किया है। बस वार्डन ने उस छात्रा को ढूंढने के लिए इस घिनौनी करतूत को अंजाम दिया। 

वार्डन की इस हरकत के बाद छात्राओं ने विद्यालय में जमकर नारेबाजी कर विरोध शुरू कर दिया। बवाल मचने पर पहुंचे बेसिक शिक्षा अधिकारी चंद्रकेश यादव ने आनन—फानन में सात सदस्यों की टीम बनाकर इस पूरे मामले की जाँच कर वार्डन सुरेखा पर आरोप सिद्ध होने तक निलंबित कर दिया था। पर अब सरकार ने आरोपी वॉर्डन को बर्खास्त कर दिया है।  

आठवीं पढ़ने वाली छात्रा ने बताया, 'बाथरूम की कुण्डी में खून लग गया था। बड़ी मैम 'वार्डन मैम' ने उसका कुछ उल्टा मतलब निकाला। फिर बड़ी मैम ने हम सभी लड़कियों के कपड़े उतरवाए और दो लड़कियों के गुप्तांग दबाकर चेक करने को कहा। इस बीच मैम लगातार धमकाती रहीं कि जल्दी बताओ कि किसका डेट आया है, नहीं तो सबको पीटूंगी। 

छठवीं कक्षा की छात्रा के मुताबिक, 'मैम ने हमें नीचे बुलाया और कहा कि जिसके—जिसके मासिक धर्म हो रहे हैं वह खड़े हो जाओ। फिर नंगा होने का कहा। हमने बीएसए से इनकी शिकायत कर दी है। अगर यह रहेंगी तो हम लड़कियां यहां नहीं रहेंगी।' 

बवाल मचने के बाद मौके पर पहुंचे परिजन संजीव त्यागी कहते हैं, 'मेरी बेटी कक्षा 6 में है। उसने मुझे पर बताया कि मैडम बच्चियों से कपड़े उतारने को बोल रही हैं। बेटी ने फोन पर बताया कि किसी बच्ची के मासिक धर्म आने पर बाथरूम में कहीं खून का धब्बा लग गया था, जिसके कारण वार्डन ने ऐसा किया। 

आरोपी वार्डन सुनिता का कहना है, 'मैंने ऐसा कुछ नहीं किया, यह सब यहां के स्टाफ की साजिश है। वह नहीं चाहता कि मैं स्कूल में रहूं। उन्हें मेरे होने से ड्यूटी करनी पड़ती है। नंगा कराने वाली बात झूठ है। बाथरूम की दीवार पर खून लगा था इसलिए मैंने जानने के लिए बच्चियों को बुलाया कि किसी के साथ कोई समस्या तो नहीं। कई बार 10—12 साल की लड़कियों का ​मासिक धर्म होता है पर उन्हें कुछ पता नहीं रहता। दूसरा लड़कियां पैड ट्वायलेट के कमोड में डाल देती हैं फिर सैनीटेशन की भारी समस्या हो जाती है। मैंने इस बारे में भी बात की।'

अब ओशो का लिखा छापने पर पत्रकार को हुई जेल

पत्रकार दीपक असीम को 12 दिन तक सिर्फ इसलिए जेल की सींखचों के पीछे रहना पड़ा क्योंकि उन्होंने बतौर विज्ञापन अपने अखबार में ओशो की ​चर्चित पुस्तक 'बिन बाती बिन तेल' का एक हिस्सा प्रकाशित कर दिया था.....

प्रेमा नेगी

अभिव्यक्ति की आजादी पर हो रहे हमलों के बीच प्रसिद्ध भारतीय विचारक—दार्शनिक ओशो का लिखा भी अब पुनर्प्रकाशित करने पर जेल हो जा रही है। मध्य प्रदेश के इंदौर से निकलने वाले अखबार खजराना लाइव के संपादक दीपक असीम को 12 दिन तक हिंदूवादियों की शिकायत पर सिर्फ इसलिए जेल की सींखचों के पीछे रहना पड़ा क्योंकि उन्होंने बतौर विज्ञापन के रूप में ओशो की ​चर्चित पुस्तक 'बिन बाती बिन तेल' का एक हिस्सा प्रकाशित कर दिया था।

ओशो के लेख का वह हिस्सा जिसके लिए दीपक असीम को जाना पड़ा जेल 
15 मार्च को दीपक असीम की जमानत हुई। उसके बाद उन्होंने सीनियर एडवोकेट आनंदमोहन माथुर के माध्यम से हाईकोर्ट में एक रिट दायर कर पूछा कि किसी पत्रकार के लिखने से शांति भंग कैसे हो सकती है। गौरतलब है कि एसडीएम ने धारा 107—16 में शांति भंग करने का हवाला देते हुए दीपक असीम को नोटिस थमाया था कि क्यों न आपसे 10 हजार रुपए का मुचलका और इतनी ही राशि की जमानत ली जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि आप अगले 6 महीने तक शांति भंग करने वाला कोई काम नहीं करेंगे।  

इंदौर के स्थानीय अखबार खजराना लाइव के 27 फरवरी के अंक में ओशो द्वारा लिखित एक लेख प्रकाशित हुआ। जिसके लिए दीपक असीम के खिलाफ धारा 295—ए के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया गया। प्रकाशित लेख में शिवपुराण के हवाले से ओशो ने शिव—पार्वती के बीच संभोग का वर्णन किया है। वर्णन में खास बात यह है कि शिव और पार्वती संभोग में इस कदर लिप्त होते हैं कि उनसे मिलने आए ब्रह्मा और विष्णु का वह गौर ही नहीं कर पाते। ओशो ने इस कथा में संभोग और समाधि के बीच एक तारतम्य बैठाने की कोशिश की है।

दीपक असीम कहते हैं, ''अखबार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए हम विज्ञापन के रूप में ओशो के प्रवचन छापते हैं। प्रवचन जिस स्पेस में छपता है उसका भुगतान जयदेव भट्ट अपने दादा स्वर्गीय भालचंद जी भट्ट की याद में करते हैं। इस बात का डिस्कलेमर भी हम अखबार के हर अंक में छापते हैं। 

दीपक असीम ने कहा, ''ओशो की किताब 'बिना बाती बिन तेल' का अंश अपने अखबार में प्रकाशित करने के बाद जब हिंदुवादियों ने विरोध किया तो मैंने माफी मांग ली। न सिर्फ माफी मांगी बल्कि लिखित तौर पर पूरी सफाई अखबार में भी प्रकाशित की। बावजूद मुझे 3 से 16 मार्च तक जेल में रहना पड़ा। इसका कारण मैं अपनी शादी एक ​मुस्लिम लड़की से होना मानता हूं। हिंदू संगठनों के लोग मानकर चलते हैं कि मैंने मुस्लिम धर्म ज्वाइन कर लिया है, जबकि यह सच नहीं है। जिस तरह यह सच नहीं है कि मैंने हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए कोई लेख प्रकाशित किया है। मुझे बताया गया है कि ओशो ने अपनी पुस्तक 'बिना बाती बिन तेल' में उस किस्से का जिक्र प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक ग्रंथ 'शिवपुराण' से साभार किया है। ऐसे में मेरा मुस्लिम लड़की से शादी करना न होता तो ऐसा क्यों होता कि पहले से प्रकाशित, फिर पुनर्प्रकाशित को छापने के जुर्म में मुझे जेल क्यों जाना पड़ता।''

लेख पर माफ़ी मांगने के बावजूद नहीं मिली राहत 
मीडिया की भूमिका

दीपक असीम की गिरफ्तारी को लेकर ज्यादातर हिंंदी के बड़े अखबारों ने अभियोजन पक्ष, पुलिस और हिंदूवादियों का बयान छापा।  प्रभात किरण नाम के अखबार को छोड़ बाकी किसी भी अखबार ने दीपक असीम की गलत गिरफ्तारी का विरोध नहीं किया। न ही यह सवाल उठाया किएक पौराणिक कहानी जो कि शताब्दियों पहले से शिवपुराण में प्रकाशित है, उसके सैकड़ों भाष्य हैं और उनका पुनर्भाष्य है फिर भी असीम दीपक को क्यों गिरफ्तार किया गया।

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने दीपक असीम का पक्ष रखा, वहीं दैनिक भास्कर के प्रसिद्ध और चर्चित स्तंभकार जयप्रकाश चौकसे ने भी दीपक असीम का अपने कॉलम में जिक्र करते हुए बचाव किया।

मीडिया की भूमिका पर दीपक असीम कहते हैं, ''अधिकांश पत्रकार इस मामले में खामोश रहे, लेकिन कुछ लोग थे जो साथ खड़े रहे। आनंदमोहन माथुर और सारिका जैसे लोगों के सहयोग के बिना जमानत तक मुश्किल थी। इनके साथ ही अभय नेमा, संजय वर्मा, अवधेश प्रताप सिंह, विनीत तिवारी और कुछ अन्य लोग भी 12 दिनों तक मेरी रिहाई की अनवरत कोशिश में लगे रहे। कुछ प्रगतिशील संगठन भी साथ रहे।'' 

आप में कुमार विश्वास की हालत क्या हो गयी भगवान!

कभी अरविंद की आत्मा हुआ करते थे विश्वास, लेकिन अब वह आहत मन से बस एक ही धुन गुनगुना रहे हैं....कौन सुनेगा किसको सुनाएं इसलिए चुप रहते हैं...

जनज्वार। लंबे समय से आम आदमी पार्टी में हाशिए पर पड़े कुमार विश्वास का ट्वीट ही इन दिनों उनका भरोसेमंद साथी साबित हो रहा है। पार्टी में उनकी कोई पूछ नहीं दिख रही। पंजाब चुनाव इसका सबसे माकूल उदाहरण है जहां उनको पार्टी द्वारा पूछा ही नहीं गया। और दिल्ली के एमसीडी चुनाव में उनकी राजनीतिक हैसियत इस कदर प्रभावहीन हो गयी है कि टिकट चाहने वाले भी उनके दरवाजे की ओर रुख नहीं कर रहे। 

ऐसे में विश्वास कभी खुद की, कभी उधार की तो कभी किसी और की गजलें—नज्में ट्वीट कर अपना दुख जगसाया कर रहे हैं। पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तवज्जो पाने की हर कोशिश को कुछ यों इनकार कर रहे हैं मानो उनका विश्वास को लेकर स्थायी भाव बन गया हो कि तुम रहो या जाओ हमें क्या, तुम सुनो और सुनाओ हमें क्या?  

27 मार्च को कुमार विश्वास ने एक ट्वीट किया, 

'वो जिनके पास हुकुमत भी है, हुजूम भी है,
वो इस फकीर से क्यों पूछें रास्ता क्या है।' 



कुमार विश्वास के इस ट्वीट पर हमेशा की तरह पाठकों की प्रतिकियाएं आईं। कुछ ने समझा, कुछ समझकर आप के राजनीतिक गलियारों में संदेश लेकर पहुंचे और कुछ ने सीधे विश्वास से मोर्चा लिया।

दिलचस्प यह था कि इस बार मोर्चा किसी और ने नहीं अरविंद केजरीवाल के बहुत नजदीकी और पीएस वैभव ने लिया। बिना किसी लाग—लपेट और छिपाव के वैभव ने सीधे अपने ​ट्वीट में लिखा, 

पिछले चार चुनावों ने सिखाया: 
जब—जब जीते वो पहले फ्रेम में दिखे 'क्रेडिट लेते' 
हारते ही फकीर बन गए, शायद बड़े कलाकार ऐसे ही होते हैं।

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बहुत खास माने जाने वाले वैभव के इस ट्वीट के बाद पार्टी के बहुत से कार्यकर्ता कुमार विश्वास के खिलाफ पिल पड़े। 'आम आदमी सेना' के सोशल मीडिया पेज पर विश्वास के खिलाफ तेजी से लिखा जाने लगा। 

देखते ही देखते गालियों, फब्तियों और कुमार विश्वास की आत्मा 'भाजपाई' होने के दावे आम आदमी सेना के पेज पर होने लगे। लोग कहने लगे इतने रोते क्यों हो, जहां आंसू पोछे जाएँ वहां चले जाओ।

वहीं कुमार विश्वास के भी ट्ववीट पर पाठकों ने खूब कहा—सुना। कुछ ने दुख में दुख जताया तो कुछ ने चुटकियां लीं। कई पाठकों ने कुछ इस भाव में कहा कि अरविंद केजरीवाल नहीं पूछ रहे तो यहां कविता लिखने से कुछ न होगा। कुछ ने सुझाव दिया गलत रास्ता चुनोगे तो यही होगा। 

खैर, बात बढ़े और मीडिया की खबर बने उससे पहले ही समझदारी दिखाते हुए अरविंद केजरीवाल के खास और उनके पीएस की भूमिका निभाने वाले विभव ने अपना ट्वीट हटा दिया। अब उनका ट्वीटर अकाउंट 'ट्वीट्स आर प्रोटेक्टेड' श्रेणी में डाल दिया गया है। जो कुछ इस तरह दिख रहा है,




पर कुमार विश्वास को अरविंद केजरीवाल और पार्टी का यह रवैया लगातार दुखित किए हुए है। राज्यसभा की कुल तीन सीटें दिल्ली से आम आदमी पार्टी के हिस्से हैं। एक समय में विश्वास को एक सीट का प्रबल दावेदार माना जा रहा था, पर ऐसा अब हो पाएगा इस पर खुद विश्वास भी विश्वास नहीं करते।

ऐसे में देखना यह है कि विश्वास का ट्ववीटर आंदोलन कितना साथ दे पाता है, खासकर तब जबकि कार्यकर्ताओं और स​​मर्थकों में उनकी छवि कभी खुद के कारण तो कभी साजिशों के कारण लगातार क्षरित हुई है। 

बहरहाल, विश्वास का एक नया ट्वीट -