Jul 8, 2011

सांसद निधि में वृद्धि क्यों?


सांसद निधि के दुरुपयोग के कई मामले सामने आए हैं। आंध्र प्रदेश के छह जिलों में तो इस मद में जारी 64करोड़ रुपए बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट के रूप में रखकर उनसे ब्याज कमाया जा रहा था...

राजेंद्र राठौर

देश के आधे से अधिक सांसदों ने वर्ष 2010-11  में विकास निधि का 35फीसदी हिस्सा खर्च नहीं किया है। देश में 20सांसद ऐसे भी है, जिन्होंने तो अपने क्षेत्र के विकास में फूटी कौड़ी खर्च नहीं की है,जबकि कुछ सांसद विकास निधि बांटने में अव्वल है,उन्होंने कमीशनखोरी कर प्राइवेट संस्थाओं को सांसद निधि की राशि रेवड़ी की तरह बांटी है। ऐसे में सांसद निधि की राशि दो करोड़ से बढ़ाकर पांच करोड़ किए जाने का आखिर औचित्य ही क्या है?
सांसद निधि के सही उपयोग से कई क्षेत्रों की तस्वीर बदल गई है, वहीं कई क्षेत्रों में तो सांसद निधि का जमकर दुरूपयोग हुआ है। अपने प्रतिनिधियों के साथ मिलकर सांसदों ने इस निधि में करोड़ों की हेराफेरी की है, जिससे उस क्षेत्र में विकास कार्य नहीं हो सका है। कुछेक सांसदों को छोड़कर बात करें तो कई राज्यों के ज्यादातर सांसद ऐसे हैं,जिन्होंने अपनी निधि से राशि स्वीकृत करने के एवज में एक निश्चित राशि कमीशन बतौर ली है।

काम व राशि के हिसाब से सांसदों ने कमीशन भी तय कर रखा है,जिसे देकर कोई भी व्यक्ति या प्राइवेट संस्था,सांसद निधि से अनुदान प्राप्त कर सकता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण छत्तीसगढ़ राज्य में देखा जा सकता है। यहां जरूरतमंद या सरकारी संस्थाओं को लाभ भले ही न मिले,लेकिन प्राइवेट संस्थाओं को सांसद निधि की राशि आसानी से मिल रही है। भाजपा शासित राज्य होने के बावजूद यहां के ज्यादातर भाजपाई सांसदों ने अपने निधि से सरकारी संस्थाओं के बजाय प्राइवेट स्कूल,कालेज व संगठनों को लाखों रूपए अनुदान दिया है।

कई प्राइवेट संस्था तो ऐसे भी है,जिन पर सांसद भारी मेहरबान है और एक सत्र में ही उन्हें तीन-चार बार अनुदान राशि दी गई है। सांसद निधि स्वीकृत करने के पीछे का खेल बहुत लंबा-चौड़ा है। सांसदों ने अपने चहेतों को अनुदान राशि बिना किसी स्वार्थ के खैरात की तरह नहीं दी है,अनुदान राशि स्वीकृत करने के लिए सांसदों ने कुल राशि में से 20 से 30 फीसदी कमीशन लिया है। अनुदान राशि भी उन्हीं लोगों को दी गई है,जिन्होंने कमीशन पहले दिया है। यही नहीं सांसद निधि स्वीकृत कराने के लिए दलाल एक महत्वपूर्ण कड़ी बने हुए हैं,जो सांसदों को ग्राहक ढूंढ़कर देने में अहम् भूमिका निभा रहे हैं।

सांसद निधि के दुरुपयोग के कई मामले सामने आए हैं। आंध्र प्रदेश के छह जिलों में तो इस मद में जारी 64करोड़ रुपए बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट के रूप में रखकर उनसे ब्याज कमाया जा रहा था। नियमों के मुताबिक यह राशि राष्ट्रीय बैंकों के बचत खाते में ही रखी जा सकती है,ताकि जरूरत पड़ने पर उसे फौरन उपयोग में लाया जा सके। मामले की शिकायत के बाद छानबीन में पाया गया कि कई राजनेताओं ने अपने रिश्तेदारों के स्कूलों और क्लबों तक में सांसद निधि खर्च करवा दी।

चार साल पहले एक स्टिंग ऑपरेशन में कुछ सांसदों को इस योजना के ठेकों में कमिशन की बात करते पकड़ा गया था। इससे स्पष्ट होता है कि बहुत से सांसद इस निधि से व्यक्तिगत हित ही साधना चाहते हैं। अगर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं,तो वे इसके उपयोग में ही हीलाहवाली करते हैं। इस कारण सांसद निधि खर्च ही नहीं हो पाती। पिछले 16 वर्षों में सरकार द्वारा जारी की गई सांसद निधि के 1053.63 करोड़ रुपए खर्च नहीं किए गए। सांसद निधि योजना तो अच्छी है, लेकिन इस योजना के तहत् राशि स्वीकृत करने के पीछे तमाम तरह की खामियां है।

इस बात को केन्द्र सरकार भी भलीभांति जानती है,फिर भी आंख बंद किए हुए देश की बर्बादी तमाशा देख रही है। सांसद निधि के दुरूपयोग की शिकायतें छत्तीसगढ़ राज्य ही नहीं बल्कि, देश के कई राज्यों से आए दिन सामने आ रही है, लेकिन एक भी मामले में सांसद के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है, जिससे साफ जाहिर होता है कि सरकार ही नहीं चाहती कि जनता को उनका जायज हक मिले। यही वजह है कि जनता के लिए सरकार से मिलने वाली राशि का ज्यादातर हिस्सा सांसद व उनके चमचे ही हजम कर जा रहे है, फिर भी सांसदों को निधि के तहत् मिल रहा 2 करोड़ रूपए कम लग रहा था।
केन्द्र सरकार से सांसद बार-बार विकास निधि बढ़ाए जाने की मांग कर रहे थे। राशि बढ़ाने के संबंध में सांसदों का तर्क था कि महंगाई के इस दौर में 2 करोड़ रूपए विकास कार्यो के लिए पर्याप्त नहीं है। राशि कम होने की वजह से क्षेत्र में अपेक्षित विकास कार्य नहीं हो पा रहे हैं। सांसद निधि में वृद्धि को लेकर केन्द्र सरकार लंबे समय से विचार कर रही थी। आखिरकार 7 जुलाई को कैबिनेट ने सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास निधि योजना के तहत प्रत्येक सांसद को मिलने वाली दो करोड़ की राशि को बढ़ाकर पांच करोड़ करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।

इससे इस योजना के तहत विकास कार्यों के लिए सांसदों को मिलने वाली राशि प्रतिवर्ष 1580से बढ़कर 3950करोड़ रुपए हो जाएगी और सरकारी खजाने पर प्रतिवर्ष 2370करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। कैबिनेट की बैठक में यह भी बताया है कि सांसद विकास निधि योजना के शुरू होने से लेकर 31 मार्च 2011 तक 22490.57 करोड रुपए जारी किए जा चुके हैं। वहीं इस योजना के तहत 31 मार्च 2011 तक 13.87 लाख कार्यों की सिफारिश सांसदों ने की तथा जिला अधिकारियों ने 12.30 लाख कार्यों को मंजूर किया एवं 11.24लाख कार्य पूरे किए गए।

हाल ही में 15 वीं लोकसभा के 2011-11 के कामकाज पर स्वयंसेवी संस्था मास फार अवेयरनेस के वोट फार इंडिया अभियान द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट की बात करें तो देश के आधे से अधिक सांसदों ने सही तरीके से इस निधि का उपयोग नहीं किया है। रिपोर्ट ने यह साबित कर दिया है कि इस निधि का महज 35 फीसदी हिस्सा ही सांसद खर्च कर पाए हैं। देश में 20 सांसद ऐसे भी हैं, जिन्होंने वर्ष के दौरान निधि से एक पैसा भी खर्च नहीं किया है,जिनमें भारतीय जनता पाटी के सांसद शाहनवाज हुसैन तथा कांग्रेस के सीपी जोशी भी शामिल है,जबकि सांसद निधि का कम उपयोग करने वाले सांसदों में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोशी, कांग्रेस के प्रणव मुखर्जी, राहुल गांधी, सचिन पायलट, जनता दल यूनाईटेड के शरद यादव, राष्ट्रीय लोक दल के अजीत सिंह के नाम शामिल है। सांसद निधि का मिजोरम के सांसदों ने भरपूर उपयोग किया है।

बहरहाल, अगर इस धन का सही उपयोग हुआ होता, तो इतने वर्षों में ग्रामीण भारत की तस्वीर ही बदल चुकी होती, लेकिन यह निधि सार्वजनिक धन की बर्बादी का ही जरिया बनती जा रही है। ऐसे में सांसद निधि की राशि 2करोड़ से बढ़कर 5करोड़ हो जाए,या फिर 10करोड़, सांसदों के कमीशनखोरी की भूख मिटने वाली नहीं है और न ही देश के पिछले क्षेत्रों में विकास के कोई बड़े कार्य होने की उम्मीद है।

 

छत्तीसगढ़ के जांजगीर के राजेंद्र राठौर पत्रकारिता में 1999से जुड़े हैं.लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए 'जन-वाणी' ब्लॉग लिखते है.


 
 
 

जानलेवा उत्पादों से सावधान!


कहीं से किसी इन्वेर्टर के फट जाने की खबर मिलती है तो कहीं इन्वर्टर के साथ की बैटरी में धमाका हो जाता है। कहीं फ्रिज का कम्प्रेसर फट रहा है तो कहीं एयर कंडीशनर में धमाके की खबरें मिल रही हैं...

निर्मल रानी

वैज्ञानिकों ने आम लोगों की सुख-सुविधाओं के मद्देनज़र तमाम ऐसे आविष्कार किये जो निश्चित रूप से वरदान साबित हो रहे हैं। आज पूरा विश्व छोटे-से छोटे तथा बड़े से बड़े ऐसे सभी आविष्कारों के लिए वैज्ञानिकों का कृतज्ञ है और हमेशा रहेगा। मानव सुख-सुविधाओं के मद्देनज़र उन्होंने कभी टार्च का आविष्कार किया तो कभी बैटरी का, कभी इन्वर्टर तो कभी मोबाईल फोन। यहां तक की बैटरी चालित स्कूटर और कार से लेकर बड़े से बड़े विमान,पनडुब्बी तथा परमाणु हथियार व परमाणु ईंधन से चलने वाले बिजलीघर तक हमारे वैज्ञानिकों ने हमारे ही आराम व फायदे की लिए बना डाले।
ज़ाहिर है अपने प्रत्येक वैज्ञानिक आविष्कार को रचनात्मक रूप देने और इसे निर्मित कर उत्पाद का रूप देने के अपने मानदंड भी इन वैज्ञानिकों ने स्थापित किए। इन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि अमुक उत्पाद के लिए उसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्रियां किस श्रेणी की हों, कितनी हों तथा उन्हें किस प्रकार इस उत्पाद का अंग बनाकर इसे उसमें शामिल किया जाए।

लगता है कि समय बीतने के साथ-साथ वैज्ञानिकों की आशाओं और आकांक्षाओं पर पानी फिरता जा रहा है, क्योंकि उन्होंने किसी उत्पाद विशेष का आविष्कार कर उसके उत्पादन के कुछ मानदंड स्थापित किये थे। शायद कुछ उसी तरह जैसे हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान-माल की कुर्बानी देकर हमारे देश को इसलिए आज़ाद कराया था, ताकि भावी पीढ़ी स्वाधीन होकर अपने पैरों पर खड़ी हो और स्वतंत्र,शक्तिशाली एवं समृद्ध भारत का निर्माण करे। मगर देश की स्थिति इसके ठीक विपरीत है. आज देश के रक्षक ही भक्षक बनते दिखाई दे रहे हैं। कुछ ऐसा ही हाल वैज्ञानिकों और उनके आविष्कार को लेकर उनकी आकांक्षाओं तथा उनके आविष्कार को उत्पादन के स्तर तक ले जाने वाले मुनाफाखोर उत्पादकों के बीच देखा जा रहा है।
आए दिन ऐसे-ऐसे समाचार अवश्य प्राप्त होते हैं, जिनके द्वारा कभी कहीं से किसी इन्वेर्टर के फट जाने की खबर मिलती है तो कहीं इन्वर्टर के साथ की बैटरी में धमाका हो जाता है। कहीं फ्रिज का कम्प्रेसर फट रहा है तो कहीं एयर कंडीशनर में धमाके की खबरें मिल रही हैं। यहां तक कि विदेशी कम्पनियों के मोबाईल फोन और उनमें लगी बैटरी में भी धमाके कि खबरें आ चुकी हैं।

कुछ दिन पहले ऐसा ही दिल दहलाने वाला हादसा उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के ब्रहमपुरी इलाके में हुआ। यहां एक युवा दंपत्ति अपने बेटे के साथ कमरे में सो रहा था। इसी दौरान अचानक इन्वर्टर के साथ रखी बैटरी में ज़ोरदार धमाका हुआ, जिससे बैटरी और इन्वर्टर दोनों में विस्फोट हो गया। कमरे में आग लग गई तथा पूरे कमरे में धुआं भी फैल गया। इस तीन सदस्यों के बदनसीब परिवार को इतनी मोहलत भी न मिल सकी कि वे कमरे का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल खुद बचा पाते। दम घुटने से तीनों की मौत हो गई। प्रारंभिक जांच पड़ताल में यही पाया जा गया कि इन्वर्टर तथा बैटरी दोनों ही किसी स्थानीय फैक्टरी में बनवाए गए थे जो उत्पाद के मानक पर पूरी तरह खरे नहीं उतरते थे।

इस तरह के हादसे हमारे देश में कहीं न कहीं होते ही रहते हैं। कुछ समय पूर्व पंजाब में भी एसी फटने की खबर आई थी। नोएडा व दिल्ली से भी ऐसे कई समाचार आ चुके हैं। ऐसा लगता है कि चंद पैसों की बचत के लिए ऐसे उद्योगों के मालिक आम लोगों की जान-माल की कोई परवाह नहीं करते। निजी क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार अपनी गहरी जड़ें बना चुका है। उदाहरण के तौर पर यदि आप छब्बीस या सत्ताईस प्लेट की बैटरी खरीदने जाएं तो दुकानदार या बैटरी बनाने वाली स्थानीय फैक्टरी का मालिक बाईस या तेईस प्लेट कि बैटरी को ही पच्चीस या सत्ताईस प्लेट की बता देगा। ऐसी बैटरी में सिक्का तथा तांबा भी निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं पड़ता। यही हाल इनवर्टर तथा स्टेबलाईजऱ जैसी संवेदनशील विद्युत सामग्रियों का है।

एल्युमिनियम की बांईंडिग किये गए ट्रांसफार्मर को तमाम अधिक मुनाफाखोर व ठग प्रवृति के दुकानदार कॉपर का बताकर ग्राहक से मोटे पैसे ठग लेते हैं। ऐसे दुकानदारों व लघु उद्योगों के मालिकों को उपभोक्ताओं की जान-माल की परवाह कतई नहीं होती। बल्कि इनका ध्यान तो केवल इस ओर रहता है कि कम से कम लागत में ज़्यादा से ज़्यादा पैसे किस प्रकार कमाए जाएं। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि लोगों की जान-माल से खिलवाड़ करने की शर्त पर कमाई गई दौलत पर भी यह खुद को एक सफल व्यवसायी कहने से बाज़ नहीं आते।

साधारण उपभोक्ताओं के इस प्रकार के संकटों में पडऩे तथा जान-बूझकर अपनी व अपने परिवार के जान-माल पर खेल जाने का एक कारण यह भी है कि स्थानीय अथवा देसी उत्पाद आमतौर पर उपभोक्ताओं को न केवल सस्ते उपलब्ध होते हैं, बल्कि ऐसी सामग्रियां किश्तों पर भी उपलब्ध हो जाती हैं। इसी लालचवश या फिर आर्थिक तंगी के चलते मध्यमवर्गीय व निम्र मध्यमवर्गीय उपभोक्ता ऐसे घटिया उत्पाद खऱीदने को मजबूर हैं। परिणामस्वरूप घटिया उत्पाद के बाज़ार में बिकने का सिलसिला निर्बाध चलता रहता है। न तो प्रशासन इनके विरुद्ध कोई कार्रवाई करता है न ही गरीब व मध्यमवर्गीय उपभोक्ता इनसे सामान खरीदने या किश्तों पर सामान लेने से बाज़ आता है।

ऐसा भी नहीं है कि इस प्रकार के हादसे केवल देसी उत्पादों के साथ ही घटित होते हों। पिछले दिनों तो भारत में पूरे देश से दर्जनों ऐसे समाचार मिले जिनसे यह पता चला कि विश्वस्तरीय नोकिया कंपनी के मोबाईल फोन में डाली जाने वाली बैटरी में कई जगह धमाका हुआ। कई लोग इसमें घायल भी हुए। किसी की जेब में रखा मोबाईल फोन फटा तो किसी का फोन उस समय फटा जब वह किसी व्यक्ति से फोन पर बात कर रहा था।
नोकिया जैसी कंपनी जिसमें गुणवत्ता नियंत्रण पर ज़ोर दिया जाता है तथा ऐसी बड़ी कंपनियों में उत्पाद की गुणवत्ता नियंत्रण के लिए विशेष विभाग भी बनाए गए हैं, उससे इस बात की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती कि चंद पैसे बचाने की खातिर अपना घटिया माल भारतीय बाज़ारों में उतार दिया हो। यही वजह थी कि जैसे ही नोकिया को मीडिया के माध्यम से पता चला कि उनके मोबाईल फोन की बैटरियों में विस्फोट हो रहा है तथा उपभोक्ताओं की जान को खतरा पैदा हो गया है, कंपनी ने अत्यंत साहसिक कदम उटाते हुए पूरे भारतवर्ष में उन बैटरीज़ को ग्राहकों से वापस लेने तथा उनके स्थान पर दूसरी नई बैटरी देने का फैसला कर लिया।

यहां सोचने का विषय है कि नोकिया ने अपना विवादित उत्पाद वापस लेकर सैकड़ों करोड़ का घाटा आखिर क्यों उठाया गया। सिर्फ इसलिए कि नोकिया की बाज़ार में जो प्रतिष्ठा कायम थी वह बनी रहे। इस फैसले के कारण ही भारतीय बाज़ार में आज भी नोकिया की वही प्रतिष्ठा बरकरार है जो इस घटना से पूर्व थी। परंतु हमारे देश में तो तमाम देसी उत्पाद बनाने वाले उद्योगपत्ति मान-प्रतिष्ठा और इज़्ज़त नाम की चीज शायद जानते ही नहीं। उन्हें तो केवल अपने लिए अधिक से अधिक पैसा कमाने से ही वास्ता है। इसीलिए आये दिन हादसे होते रहते हैं।

ऐसे में जबकि तमाम देसी सामग्री के भारतीय उत्पादक अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हों, उपभोक्ताओं को चाहिए कि वे स्वयं अपनी जान-माल की रक्षा करें। सर्वप्रथम उपभोक्ता सस्ते सामानों के चक्कर में पडऩे व घटिया उत्पाद खरीदने से परहेज़ करें। कोशिश करें कि जहां वह देसी उत्पाद खरीदने के लिए थोड़े पैसों का प्रबंध कर रहे हैं वहीं कुछ और पैसों का इंतज़ाम कर स्टैंडर्ड की कंपनी का गारंटेड माल ही खरीदें। और यदि जेब इजाज़त नहीं दे और मजबूरीवश सस्ता व देसी माल खरीदना ही पड़े तो विक्रेता से माल के विषय में पूरा विवरण हासिल करें। लिखित रूप से उससे उत्पाद की विश्वसनीयता की पूरी गारंटी लें, ताकि ज़रूरत पडऩे पर वह अपनी बात से मुकर न सके।

प्रशासन का भी कर्तव्य है कि वह बाज़ार पर इस बात की नज़र रखे कि दुकानदार द्वारा उपभोक्ताओं को कौन सा माल क्या कहकर व क्या बताकर बेचा जा रहा है। झूठ बोलकर व गुमराह कर सामान बेचने वाले व्यापारियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की भी ज़रूरत है। अन्यथा उपभोक्ताओं के जान-माल के नुकसान को शायद रोका नहीं जा सकेगा।




लेखिका उपभोक्ता मामलों की विशेषज्ञ हैं और सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर भी लिखती हैं.