Apr 16, 2010

माओवादियों का गांधीवादी प्रयोग


अजय प्रकाश

यह अदभुत तो नहीं, आश्चर्यजनक जरूर है। साथ ही चिंतलनार में छह दर्जन से अधिक सुरक्षाबलों की हत्या के बाद यह खबर सुकून देने वाली है। सुनने में थोड़ा अटपटा लग सकता है कि माओवादियों ने गांधीवादी प्रयोग शुरू कर दिये हैं, पर यह सच है। यह उतना बड़ा सच है जितना कि चिंतलनार हमले से पहले माओवादियों ने आसपास के दस गांवों का सर्वे किया था और पाया कि महीने दिन के भीतर वहां 70 से अधिक महिलाओं का सुरक्षाबलों ने बलात्कार किया और गांव के गांव फूंक डाले।
ऑपरेशन ग्रीन हंट :  पहले यहाँ आदिवासी घर था

माओवादियों के नेता गुड्सा उसेंडी के इस बयान को लिखने के साथ ही हो सकता है कि मैं ‘खूनी दरिंदों’ का हमसफर मान लिया जाऊं। हो सकता है उन 70 महिलाओं के साथ हुई हिंसा को माओवादी दुष्प्रचार मान लिया जाये। ठीक उसी तरह जिस तरह से पिछले नवंबर से लेकर अब तक 107 हत्याओं की लिस्ट लेकर घूम रहे आदिवासियों की दिल्ली से लेकर दंतेवाड़ा तक कोई सुनने वाला नहीं है। वे अभी-अभी दिल्ली स्थित कांस्टिच्यूशन क्लब में ‘इंडिपेंडेंट पीपुल्स ट्रिब्यूनल’ की तीनदिनी बैठक में दंतेवाड़ा का हालात बताने आये भी थे। मगर उनको चिंता यह सताये जा रही थी कि यहां से जाने के बाद दंतेवाड़ा से अपने गांव सकुशल पहुंच पायेंगे कि नहीं।

अब मूल मुद्दे पर आयें तो सुरक्षा बलों के मुकाबले में भारी जान-माल गंवा रहे माओवादी और उनकी समर्थक जनता ने झारखंड में संघर्ष का एक नया प्रयोग किया है। सरकार कि घोषणा के मुताबिक झारखंड के 22 में से अठारह जिले माओवाद प्रभावित हैं। प्रभावित जिलों में से एक खूंटी है। बाकी जिलों की तरह वहां भी केंद्र सरकार की मदद से राज्य सरकार आपरेशन ग्रीनहंट चला रही है। रांची से लगभग पचास किलोमीटर दूर जिले के अड़की थाना क्षेत्र में जब लोगों ने आपरेशन का हल्ला सुना तो, सुरक्षा बलों के अत्याचारों से बचने के लिए तरह-तरह के उपाय में जुट गये। उन्हीं में से चार गांवों के लोगों ने तय किया कि क्यों न जब तक आपरेशन हो तब तक हम थाने ही में रहें और जब सुरक्षा बल आपरेशन कर लौट आयें तो हम वापस गांव जायें।

फिर क्या था, इन गांवों के लोग इकठ्ठा होकर अपनी ढोर-डंगर, सामान और मुर्गे-मुर्गियां लेकर भोर में ही अड़की थाना परिसर पहुंच गये और वहां डेरा डाल लिया। पुलिस के लिए यह अचंभित करने वाला था। पुलिस अधिकारियों के पूछने पर लोगों ने बताया कि आज हमारे गांवों में आपरेशन ग्रीन हंट होना है इसलिए पहले ही हम लोग थाने आ गये। जो जांच-पड़ताल करनी है, जिन माओवादियों को पकड़ने हमारे गांव जाना है, यहीं पहचान कर लीजिए।

माओवादी इलाकों में चल रहे आपरेशन से त्रस्त जनता के बीच का यह सामान्य अनुभव है कि ग्रामीणों पर सुरक्षा बल माओवादी या समर्थक होने का आरोप लगाकर तरह-तरह के अत्याचार करते हैं। जिससे बचने के लिए लोग भागकर जंगलों में जाते हैं। वैसे में सुरक्षा बलों की निगाह किसी पर पड़ गयी तो गोली मार देते हैं, नहीं तो माओवादी बताकर प्रताड़ित करते हैं। कुछ नहीं मिलने पर गांव के गांव फंकने में भी वह नहीं हिचकते। जाहिर है यह अनुभव अड़की थाना क्षेत्र के उन ग्रामीणों का भी रहा होगा जो डेरा डाल चुके थे।

ग्रामीणों ने पुलिस वालों  को यह भी सुझाव दिया कि अगर आप लोगों को हम लोगों की बात में कोई फरेब नजर आता है तो, हमारे गांवों   में जांच कर आइये। जब तक आप लोग वापस नहीं आते, तब तक हम लोग यहीं थाने में ही रहेंगे। बस गांव वालों ने यह मांग रखी कि हमारे खाने-पीने का इंतजाम कर दिया जाये, जिससे सुरक्षा बल आराम से दो-चार दिन तक अभियान चला सके।

कल तक जो लोग सुरक्षा बलों के डर से भागे फिरते थे वे आज थाने में बेहद संतुष्ट होकर इत्मीनान से बैठे हुए थे, जबकि पुलिस की घिग्घी बंधी हुई थी कि कैसे वह लोगों को वापस गांवों में भेजे। आखिरकार बहुत समझाने-बुझाने और इस आश्वासन पर कि ‘आपके गांवों में कोई आपरेशन नहीं चलाया जायेगा’ ग्रामीण वापस अपने गांव लौटे। उस दिन ग्रामीणों के पास सुरक्षा बलों से मुकाबले के लिए हथियार तो नहीं थे, मगर उन्होंने जो संघर्ष का तरीका अख्तियार किया था, वह हमेशा ही हथियार की हर राजनीति पर भारी रहा है और रहेगा। अब देखना है कि सरकार  माओवादियों के इस  गांधीवादी   प्रयोग पर क्या प्रतिक्रिया करती है.