May 20, 2011

किसान आंदोलन के राष्ट्रीय नेता थे टिकैत

बोट क्लब के ऐतिहासिक धरने में प्रसिद्ध समाजवादी नेता किशन पटनायक और हरियाणा के घासीराम मैन समेत सैकड़ों किसान नेता शामिल हुए थे। इस धरने में टिकैत ने कहा था, 'इंडिया वालों संभल जाओ, अब दिल्ली में भारत आ गया है' ...

अजय प्रकाश 

महेंद्र सिंह टिकैत : बहुत याद आयेगी  
किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की 15मई की सुबह हुई मौत देश के उन सभी लोगों और संगठनों के लिए गहरा सद्मा है जो किसानों की समस्या और आंदोलनों से जुड़े हैं। नीजिकरण-उदारीकरण के मौजूदा दौर में किसानों के बीच टिकैत की उपस्थिति एक ढाल थी,जिसके कारण केंद्र हो या राज्य सरकारें किसान हितों को रौंदने वाले कदम उठाने से पहले सौ बार सोचती थीं।

पिछली यूपीए सरकार द्वारा किसान कर्ज माफी योजना हो या कम ब्याज पर कृशि ऋण या फिर बीज विधेयक का लंबित होना,इन सबमें महेंद्र सिंह टिकैत की अध्यक्षता वाली भारतीय किसान यूनियन की केंद्रीय भूमिका रही है। टिकैत के बड़े बेटे राकेश टिकैत ने बताया कि ‘पिताजी लंबे समय से आंत के केंसर से पीड़ित थे,जो उनकी मौत का कारण बना।’

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली कस्बा में 1935 में जन्में टिकैत ने अपने सामाजिक जीवन की शुरूआत सर्वखाप पंचायतों के सुधारवादी पहलकदमियों से की। पश्चिमी  उत्तर प्रदेश और हरियाणा के इलाके में अदालतों के समानांतर चलने वाली खाप पंचायतों में से बालियान खाप के मुखिया बनने के बाद टिकैत ने दहेज,भ्रुण हत्या,दिखावा और मृत्यु भोज जैसी कई प्रवृत्तियों के खिलाफ जनहित में फैसले लिये, तो वहीं सर्वखाप पंचायतों में उनके लिये कई फैसलों को स्त्री विरोधी और दलित विरोधी भी करार दिया जाता रहा।

मात्र सातवीं तक पढ़े टिकैत के राजनीतिक चुनौतियों की शुरूआत 1986 में भारतीय किसान यूनियन के बनने के साथ हुई जब उन्हें यूनियन का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। यूनियन का गठन सिसौली में 17 अक्टूबर 1986 में कई राज्यों के किसान और सर्वखाप नेताओं की उपस्थिति में हुआ। युवा महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में किसानों ने पहला आंदोलन उनके गृह जनपद खेड़ीकरमू बिजली घर के घेराव से किया और उत्तर प्रदेश  सरकार को बिजली दरें कम करनी पड़ी थीं। उसके बाद महेंद्र सिंह टिकैत ने 22 सफल आंदोलन किये और 23 बार गिरफ्तार हुए। वर्ष 2001 से 2010 के बीच दिल्ली के जंतर-मंतर पर विश्व व्यापार संगठन, बीज विधेयक 2004, जैव परिवर्तित बीज, कर्ज माफी, उचित लाभकारी मूल्य जैसे मसलों पर वह आजीवन संघर्ष  करते रहे।

दिल्ली के इंडिया गेट के पास 1988 में पांच दिन तक चले ‘बोट क्लब’ ऐतिहासिक धरने का असर इतना व्यापक रहा कि एक साल बाद ही धरने की जगह बोट क्लब से बदलकर जंतर-मंतर करना पड़ा था। इस धरने में प्रसिद्ध किसान नेता किशन पटनायक और हरियाणा से घासीराम मैन समेत सैकड़ों किसान नेता शामिल हुए थे। इस प्रसिद्ध धरने में टिकैत ने कहा था,‘इंडिया वालों संभल जाओ, अब दिल्ली में भारत आ गया है।’ टिकैत के नेतृत्व में चले इन्हीं ऐतिहासिक धरनों की कड़ी में 3 अगस्त 1989 को नईमा काण्ड में उत्तर प्रदेश सरकार के विरूद्ध 39 दिन तक भोपा गंगनहर पर धरना भी है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को झूकना पड़ा तथा किसानों की पांच मांगे माननी पड़ी थीं।

अब टिकैत की मौत के बाद अगर कोई यह पूछे कि किसान आंदोलन का राष्ट्रीय  नेता कौन,तो शायद कोई दूसरा नाम बता पाना संभव न हो। क्योंकि दिल्ली से लेकर मुंबई और हैदराबाद से लेकर उड़ीसा तक में किसान नेता के तौर पर अगर किसी की स्वीकार्यता थी तो वह टिकैत ही थे। वैसे टिकैत के दौर में कई किसान नेता उभरे और डूबे मगर किसी का कद टिकैत के करीब संभवतया इसलिए नहीं पहुंच सका कि कभी टिकैत किसी राजनीतिक दल के प्यादे कभी नहीं बने।

टिकैत के मिलने वालों में शामिल मुतफ्फरनगर के पत्रकार संजीव वर्मा कहते हैं कि ‘टिकैत बड़े ठेठ आदमी थे। कहा करते थे- अन्न अगर हम उपजाते हैं, देश हम चलाते हैं तो हमतक चलकर वो आयें जो हमारे भरोसे पलते हैं।’ किसान नेता बलवीर सिंह उनको याद करते हुए कहते हैं, ‘टिकैत घोड़ों के बड़े शौकीन थे और मिलने वालों को बैल के कोल्हू का गन्ने का रस जरूर पिलाते थे।’अब जबकि करोड़ों किसानों के चहेते टिकैत हमारे बीच नहीं रहे,उम्मीद की जानी चाहिए कि उनका व्यक्तित्व और कृतित्व पीढ़ियों के लिए उदाहरण बनेगा।
द  पब्लिक एजेंडा से साभार

और उसका इंतज़ार भी म़र गया !

पुलिस वालों और एसपीओ ने पहले जम कर शराब पी और फिर  इनके  घरों में घुस कर इन्हें बाहर निकाला  ! इनकी पत्नियों ने जब  बचाने की कोशिश की तो उन्हें भी बन्दूक के बट से मार-मार कर लहूलुहान कर दिया गया...

हिमांशु कुमार

आज दंतेवाडा से एक फ़ोन आया कि   सोमड़ू म़र गया ! मैंने पूछा कैसे ? तो मुझे बताया गया कि  तेंदू पत्ता तोड़ते समय कल उसे सांप ने काट लिया और कुछ ही देर में वो म़र गया!  तभी  मुझे  ध्यान  आया कि अरे यह तो वही सोमड़ू है ,जिसे एक मामले में न्याय का  इंतजार  था.आइये जाने  कौन था ये सोमड़ू ?

तीन साल पहले की ये घटना है ! भैरमगढ़ से बीजापुर जाने के रास्ते में माटवाडा नाम का एक सलवा जुडूम कैंप है ! 18 मार्च 2008 को स्थानीय  अखबार में खबर छपी कि माटवाडा सलवा जुडूम कैंप में रहने वाले तीन आदिवासियों की नक्सलियों ने कैंप में घुस कर हत्या कर दी है! खबर पर विश्वास नहीं हुआ ! क्योंकि  ये एक छोटा सा कैंप है! सड़क के किनारे सारे आदिवासी अपनी झोपडी में रहते हैं !  बीच में एक पतली सी सड़क और सड़क के इस तरफ पुलिस चौकी ! आदिवासीयों की झोपड़ियों के पीछे की तरफ सीआरपीएफ़ का कैंप ! लेकिन सच्चाई कैसे पता चले ? उस क्षेत्र का जानकार  कोपा भी अचानक  गायब हो गया था ! कोपा के बिना बताये गायब होने पर मैं आश्रम  में चिंतित हो रहा था. लेकिन  दो दिन के बाद कोपा मुस्कुराते हुए  सामने आ गया !

कोपा के  साथ एक नौजवान और भी था ! मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से पूछा, -  ये कौन है? कोपा ने कहा, आप ही पूछ लीजिये ! उस लड़के ने दिल दहला देने वाली कहानी सुनायी ! उसने बताया कि  तीन आदिवासियों के नक्सलियों  के हाथों मारे जाने का जो समाचार छपा है, उनमें से एक  मेरा भाई है और इन तीनों को नक्सलियों ने नहीं पुलिस ने मारा है !

लेकिन हम लोग कभी भी बिना पूरी तहकीकात के किसी मामले में कार्यवाही नहीं करते थे ! इसलिए मैंने उस नौजवान से कहा की मारे गए तीनो लोगो की पत्नियाँ कहाँ हैं ? उसने कहा की सलवा जुडूम कैंप में ! मैंने कहा उन्हें लाना होगा ! कोपा बोला ये ज़िम्मेदारी मैं  लेता हूँ ! और अगले दिन सुबह मारे गए उन तीनों आदिवासियों की पत्नियां हमारे आश्रम में आ गयीं. साथ में कोपा उनके गाँव के सरपंच और पटेल को भी लेता आया था ! उन लोगों को मैंने अलग- अलग बैठा कर पूरी घटना का विवरण देने को कहा ! अन्य गवाहों से भी पूछा ! अब संदेह की कोई भी गुंजाइश नहीं बची थी ! सब का विवरण एक ही जैसा था ! अब सिद्ध हो गया था की ये सलवा जुडूम राहत  शिविर नहीं यातना शिविर हैं !

घटना इस प्रकार से  थी ! इस गाँव के लोगों को जबरन तीन साल पहले गाँव के आठ लोगों की हत्या करने के बाद, घरों को जला कर इस कैंप में लाया गया था ! ये लोग तब से इन कैम्पों में रह रहे थे ! सरकार ने शुरू में तो कैंप बसते समय  कहा था कि  कैंप में खाना पीना सब मिलेगा लेकिन वो सब तो जुडूम के नेता बीच में ही गटक जाते थे ! इस पर गांव वालों ने पेट भरने के लिए आस पास सरकारी सड़क बनाने के नरेगा के काम में जाना शुरू किया पर उसमे भी आधी मजदूरी नेता और पुलिस वाले मार देते थे ! तब लोगों ने गावों में जाकर महुआ बीनना और धान उगाना शुरू कर दिया !

लेकिन सब को रात होने से पहले कैंप में वापिस आकर पुलिस के सामने हाजिरी लगानी पड़ती थी! ज्यादा रात हो जाने वाले की पिटाई की जाती थी कि तुम लोग गाँव जाने के बहाने ज़रूर नक्सलियों की बैठक में गए होंगे ! एक रात  मारे  गए ये  तीनों  आदिवासी ज्यादा रात हो जाने पर पिटाई के डर से गांव में ही रुक गए ! इन्होंने  सोचा कि कल दिन में चुपचाप अपने घर में घुस जायेंगे और बोल देंगे की हम तो कल शाम को ही आ गए थे ! और इन्होंने ऐसा ही किया ! लेकिन इसकी जानकारी वहां के एसपीओ  को चल गयी ! उन्होंने वहां पुलिस चौकी के इंचार्ज एएसआई पटेल के साथ मिल कर इन चारों को अनुशासन तोड़ने की सजा देने का निर्णय किया ! सजा देने के लिए पुलिस वालों और एसपीओ ने पहले जम कर शराब पी और उसके बाद इन चारों को घरों में घुस कर खींच कर बाहर लाया गया ! इनकी पत्नियों ने जब इन्हें बचाने की कोशिश की तो उन्हें भी बन्दूक के बट से मार-मार कर लहूलुहान कर दिया गया दिया गया !

फिर इन चारों आदिवासियों के हाथ उन्ही की लुंगियां को खोल कर पीछे बांध दिए गए ! और इन्हें सड़क पर लाया गया और डंडों से चारों की पिटाई शुरू की गयी ! थोड़ी देर में चारों बेहोश हो गए! बाल्टी भर पानी मंगाया गया और उन चारों पर डाला गया ! उन्हें थोडा होश आया ! उन चारों में सोमड़ू भी एक था ! अँधेरा हो गया था ! सोमड़ू मौके का फायदा  उठाकर सरकते हुए एक झाड़ी में चला गया और हाथों में बंधी लूंगी खोल कर गिरता पड़ता कुछ दूर पहुंचा ! वहाँ गाँव वालों ने उसे पानी पिलाया ! किसी ने उसे अपने घर में बकरियों के साथ छिपा दिया ! इधर इन तीनो की पिटाई शाम से रात के आठ बजे तक चलती रही ! अंत में लगभग सब शांत हो गए थे ! फिर उनकी सज़ा पूरी करने का वक़्त आया ! चाकू से तीनो की आँखे निकाली गयीं ! और फिर माथे पर चाकू खड़ा कर के पत्थर से उसे सर में ठोक दिया गया ! इसके बाद तीनो की लाशों को पास में नदी के किनारे रेत में दबा दिया गया !

हमने इन तीनों आदिवासियों की पत्नियों को मीडिया के सामने बैठा दिया और कहा कि आप भी सच्चाई निकालने की कोशिश करिए ! इसके बाद ये मामला छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट में दायर किया गया ! इन तीनों महिलाओं को मैं अपने प्रदेश के सह्रदय साहित्यकार डीजीपी श्री विश्वरंजन  के पास ले गया ! वो बोले ठीक है मुझे अब कुछ नहीं पूछना है, लेकिन बाद में उन्होंने पत्रकारों से कहा की इन महिलाओं के पतियों को नक्सलियों ने ही मारा है, पर ये नक्सलियों के कहने से पुलिस पर झूठा इल्ज़ाम लगा रही हैं ! इस विषय में मेधा पाटकर ने भी डीजीपी साहब को एक पत्र लिखा जिसके जवाब में उन्होंने कहा की हिमांशु तो झूठ बोलता है! बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच में भी इस मामले में पुलिस की भूमिका पर संदेह व्यक्त किया गया !

अभी इस मामले में आरोपी एएसआइ  पटेल और दो एसपीओ जेल में हैं ! तीनो महिलाओं को अंतरिम राहत  के रूप में एक एक लाख रुपया अदालत के आदेश से मिला है ! सोमड़ू का एक हाथ और तीन पसलियाँ मार से टूट गयीं थीं ! और वह उसके और उसके साथियों के साथ हुए ज़ुल्म के खिलाफ फैसले के इंतज़ार में था ! लेकिन आज खबर आयी की सोमड़ू मर गया! और उसी के साथ उसका इंतज़ार भी म़र गया !

दंतेवाडा स्थित वनवासी चेतना आश्रम के प्रमुख और सामाजिक कार्यकर्त्ता हिमांशु कुमार का संघर्ष बदलाव और सुधार की गुंजाइश चाहने वालों के लिए एक मिसाल है.