Mar 26, 2011

खदानों की लूट में बसपा- सपा दोनों शामिल



जनज्वार. उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में फिर एक बार खदानों की खुली लूट का मामला सामने आया है.सुचना के अधिकार के तहत प्राप्त हुई जानकारी में उजागर हुआ है कि ज्यादातर  खनन  करने  वालों  में वे जनप्रतिनिधि ही शामिल हैं जिनके कंधे पर उन खदानों को बचाने की जिम्म्मेदारी थी. 

खनन कर्ताओं की सूची जारी करते हुए जन संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता दिनकर कपूर ने बताया कि सूचना अधिकार कानून के तहत जिले के खान अधिकारी से प्राप्त वैध खनन कर्ताओं की सूची के अनुसार जनपद में गिट्टी बोल्डर के मात्र 155,सैण्ड़ स्टोन के मात्र 107, लाल मोरम के मात्र 4 और बालू मोरम के मात्र 25खनन कर्ता  ही वैध पट्टाधारक है। लेकिन इस जिले में हजारों की संख्या में अवैध खनन हो रहा है।

उदाहरण देते हुए उन्होनें बताया कि राकेश गुप्ता का सलखन गांव में क्रशर चल रहा है और पटवध गांव में कैमूर सेंचुरी एरिया में मुरैया पहाड़ी में पत्थर का खनन कार्य हो रहा है। जबकि इन दोनों ही कार्यो की उन्हे अनुमति प्राप्त नहीं है। पर्यावरण विभाग ने उन्हे क्रशर चलाने की अनुमति नहीं दी है और खनन विभाग ने उन्हे खनन हेतु पट्टा नही दिया बावजूद इसके उनका यह गैरकानूनी कार्य खुलेआम चल रहा है।

इसी प्रकार दुद्धी तहसील में कनहर नदी पर बालू खनन हेतु मात्र एक जगह कोरगी में ही खनन की लीज मिली हुई है पर वहां पोलवां और पिपरडीह समेत तमाम गांवों में खुलेआम कनहर नदी से बालू का खनन कराया जाता है। राष्ट्रीय सम्पत्ति की इस लूट पर रोक के सम्बंध में जन संघर्ष मोर्चा द्वारा बार-बार उत्तर प्रदेश शासन व जिला प्रशासन को पत्रक देने और दो माह से जिला मुख्यालय पर जारी अनिश्चितकालीन धरने अनशन के बाद भी प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की।

दरअसल राष्ट्रीय सम्पत्ति की इस लूट में सत्ताधारी दल के बड़े पदाधिकारी और नेता सीधे तौर पर शामिल है इसलिए स्थानीय प्रशासन भी इन पर हाथ डालने से कतरा रहा है। खान विभाग से प्राप्त सूची को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस लूट की मलाई खाने में सभी शामिल रहे है चाहे वह वर्तमान विधायकगण हो या सत्ता के विरूद्ध लाठी खाने की बात करने वाले प्रमुख विपक्षी दल के नेतागण।

सूची पर गौर करें तो आप देखेगें कि बसपा के राबर्ट्सगंज विधानसभा से विधायक सत्यनारायण जैसल ने अपनी पत्नी मीरा जैसल के नाम वर्ष 2010 में  2020 तक के लिए सैण्ड स्टोन की 4 एकड़ में लीज करायी है. बसपा के ही राजगढ़ विधानसभा से विधायक अनिल मौर्या ने बिल्ली मारकुण्ड़ी में वर्ष 2003 में दस साल के लिए लीज करायी है। इन्ही अनिल मौर्या द्वारा मिर्जापुर के अहरौरा के सोनपुर गांव में लगाये गये क्रशर प्लान्ट में तो बस्ती के निकट ही ब्लास्टिंग करायी जा रही है।

उससे उड़ रही घूल ने ग्रामवासियों को टी0बी0 का बड़े पैमाने पर शिकार बना लिया है, हमारी टीम ने वहां जाकर देखा कि दलित जाति के एक ही परिवार के दो भाई छैवर व जय सिंह की टी0बी0से मौत हो गयी और बालकिशुन, राधेश्याम, मल्लां, रामधनी, शारदा, जसवन्त, बल्ली जैसे दर्जनों दलित परिवार टी0बी0 के मरीज बन जिन्दगी और मौत से जूझ रहे है, जबकि इस क्रशर प्लान्ट का नाम भी वैध क्रशरों में नहीं है।

बसपा के पूर्व सांसद रहे नरेन्द्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी मालती देवी के नाम पटवध गांव में 2003 में दस साल की पत्थर खनन की लीज करायी हुई है। बसपा के जिला महासचिव दाराशिकोह की तो दो खनन लीज है और कुलडोमरी क्षेत्र से जिला पंचायत का चुनाव लड़ चुके मनोज पाण्डेय, सुभाष पाल, सड़क निर्माण क्षेत्र में पूरे जनपद में एकाधिकार कायम कर रहे उमाशंकर सिंह की दो लीजे है तो लखनऊ के गोमती नगर की आई0वी0आर0सी0एल0 इन्फ्रास्ट्रक्चर एण्ड प्रोजेक्ट लिमिटेड ने बालू खनन के सात पट्टे हासिल किए है।

इस पट्टों के बारे में लोगों का कहना है कि यह सीधे बसपा के नेताओं द्वारा संचालित किया जा रहा है। राष्ट्रीय सम्पत्ति की इस लूट में बसपा के साथ-साथ उसकी विपक्ष बनने का दावा करने वाली सपा के बडे़ नेतागण भी बराबर के साझेदार है। मुलायम सरकार के रहते इटावा निवासी सपा के नेता धर्मवीर सिंह यादव ने राबर्ट्सगंज के बिल्ली मारकुड़ी में 2007 जनवरी में दस साल के लिए पत्थर खनन की लीज प्राप्त कर ली। सपा के जिला महासचिव रमेश वैश्य की तीन लीज है तो बसपा छोड़ सपा में शामिल हुए रमेश दूबे भी खनन पट्टे के मालिक है।

इस जनपद में ऐसा लगता है कि नेताओं को राजनीति के तोहफे के रूप में इस क्षेत्र को कानूनी और गैर कानूनी दोनों तरीके से चैतरफा लूटने की अनुमति मिली हुई है। यहां की सोन नदी को बंधक बना लिया गया है और सर्वोच्च  न्यायालय के आदेशों के बाद भी नदी की धार को बांधकर बालू का खनन किया जा रहा है। सेंचुरी  एरिया और वाइल्ड जोन में जहां ताली बजाना भी मना है वहां ब्लास्टिंग की जा रही है।

इसके खिलाफ जन संघर्ष मोर्चा द्वारा विगत 20जनवरी से जिला मुख्यालय पर धरना दिया जा रहा है परन्तु आजतक प्रशासन ने यहां की जनता के जीवन से जुड़े इन महत्वपूर्ण सवालों को हल नही किया। प्रशासन की लोकतांत्रिक आंदोलनों की अवहेलना का यह रूख यहां बडे़ आक्रोश को जन्म दे रहा है। ग्रामीणों ने फैसला लिया है कि यदि प्रशासन राष्ट्रीय सम्पत्ति की इस लूट को नही रोकता तो इसकी रक्षा के लिए ग्रामीण खुद मार्च करेगें और अवैध खनन बंद करायेगें।



 

प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव का निधन



प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव रहे  कमला प्रसाद ने पूरे देश के प्रगतिशील और जनपक्षधरता वाले रचनाकारों को उस वक्त देश में इकट्ठा करने का बीड़ा उठाया जब प्रतिक्रियावादी, अवसरवादी और दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता, यश और पुरस्कारों का चारा डालकर लेखकों को बरगलाने का काम कर रहीं हैं।

उनके इस काम को देश की विभिन्न भाषाओं और विभिन्न संगठनों के तरक्कीपसंद रचनाकारों का मुक्त सहयोग मिला और एक संगठन के तौर पर प्रगतिशील लेखक संघ देश में लेखकों का सबसे बड़ा संगठन बना।

इसके पीछे दोस्तों, साथियो और वरिष्ठों द्वारा भी कमांडर कहे जाने वाले कमलाप्रसादजी के सांगठनिक प्रयास प्रमुख रहे। उन्होंने जम्मू-कश्मीर से लेकर, पंजाब, असम, मेघालय, प. बंगाल और केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में संगठन की इकाइयों का पुनर्गठन किया, नये लेखकों को उत्प्रेरित किया और पुराने लेखकों को पुनः सक्रिय किया।

उनकी कोशिशें अनथक थीं और उनकी चिंताएँ भी यही कि सांस्कृतिक रूप से किस तरह साम्राज्यवाद, साम्प्रदायिकता और संकीर्णतावाद को चुनौती और शिकस्त दी जा सकती है और किस तरह एक समाजवादी समाज का स्वप्न साकार किया जा सकता है। ‘वसुधा’ के संपादन के जरिये उन्होंने रचनाकारों के बीच पुल बनाया और उसे लोकतांत्रिक सम्पादन की भी एक मिसाल बनाया।

कमलाप्रसादजी रीवा विश्वविद्यालय  में हिन्दी के विभागाध्यक्षरहे,मध्य प्रदेश कला परिषद के सचिव रहे, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के अध्यक्ष रहे और तमाम अकादमिक-सांस्कृतिक समितियों के अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे, अनेक किताबें लिखीं, हिन्दी के प्रमुख आलोचकों में उनका स्थान है, लेकिन हर जगह उनकी सबसे पहली प्राथमिकता प्रगतिशील चेतना के निर्माण की रही।

उनके न रहने से न केवल प्रगतिशील लेखक संघ को,बल्कि वंचितों के पक्ष में खड़े होने और सत्ता को चुनौती देने वाले लेखकों के पूरे आंदोलन को आघात पहुँचा है। मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संगठन तो खासतौर पर उन जैसे शुरुआती कुछ साथियों की मेहनत का नतीजा है। उनके निधन से पूरे देश के लेखक, रचनाकार, पाठक, साहित्य व कलाओं का वृहद समुदाय स्तब्ध और शोक में है।

कमलाप्रसादजी ने जिन मूल्यों को जिया, जिन वामपंथी प्रतिबद्धताओं को निभाया और जो सांगठनिक ढाँचा देश में खड़ा किया,वो उनके दिखाये रास्ते पर आगे बढ़ने वाले लोग सामने लाएगा। और प्रेमचंद, सज्जाद जहीर, फैज, भीष्म साहनी, कैफी आजमी, परसाई जैसे लेखकों के जिन कामों को कमलाप्रसादजी ने आगे बढ़ाया था, उन्हें और आगे बढ़ाया जाएगा। मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की राज्य कार्यकारिणी उन्हें अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करती है।

मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ का शोक प्रस्ताव