नर्मदा आंदोलन के पचीस वर्ष पूरे होने पर संघर्ष को समर्पित एक गीत...
प्रशांत दुबे
देखो देखो देखो देखो, उजड़ गए गाँव रे ।
पेडों के साथ गई, पेडों की छाँव रे॥
हम माझी बन खेते रहे, समय की धार को ।
जाने काये डुबो दई, हमरी ही नाव रे॥
खेत हमरा जीवन है, धरती हमरी माता है।
इनसे हमारा सात जन्मों का नाता है॥
बांध तुम बनाते हो, हमें क्यूँ डुबाते हो।
हमारे खेतों में क्यूँ, बारूदें बिछाते हो॥
अपने स्वार्थ को विकास कह के तुमने।
हमरा तो लगा दिया, जीवन ही दाँव रे॥
पेडों के साथ गई........................................।
पुरखों से जीव और, हम साथ रह रहे।
पत्थरों को चीर कर, प्रेम झरने बह रहे॥
हम जंगल में जीते हैं, हमें क्यूँ भगाते हो।
पर्यावरण के झूठे आंसू क्यों बहाते हो॥
हमरी रोजी,हमरी बस्ती छीन कर सरकार ने ।
अपनों से दूर कर, कैसा दिया घाव रे॥
पेडों के साथ गई........................................।
http://www.cgnetswara.org/ से साभार