Apr 11, 2011

जो लहू बह रहा है उसे रोक पाओगे अन्ना


कामायनी बाली महाबल  


आज मेरा रोम रोम चीख रहा है                  

एरोम तुम्हारे लिए

चीख पुकार तो कब से दबी थी

गुस्सा भी चीख- चीख के निकला था

vt स्टेशन पे तुम्हारी रिहाई की गुहार लगाकर

मानों तन और मन ऐसा थरका था

लोगों को तुम्हारे बारे में बताना

लोगों को अफ्प्सा काले कानून के बारे में बता कर

मानो मन कुछ तो हल्का हुआ था


लेकिन कुछ दिन से इस देश की गुहार देखकर

अन्ना हजारे पर प्यार देख कर

देश के कोने कोने से भ्रष्टाचार  के यह एक आवाज़ सुनकर

खुश तो हूँ,

पर मेरा दिल चीख चीख के रो रहा है

मेरा दिमाग, मेरा तन.... इस क्रांति पे खुश है

पर मेरा दिल मेरे  साथ नहीं है

मेरा दिल तम्हारे पास है इरोम

वोह तुम्हारे लिए रो रहा है

वोह इस देश को समझ नहीं पा रहा है

आखिर एक दिल है......


तुम दस साल से भी ज्यादा से भूख हड़ताल पे हो

तुम्हारे साथ एक भी भारतवासी नहीं आया

तुम AFSPA के काले कानून के खिलाफ हो

तुम्हें किसी ने नहीं अपनाया


किसी को मत बताना इरोम

यह एक ऐसी पहेली है

जिसका जवाब इंसानों के साथ बदलता है

हम अन्ना हजारे के साथ हैं

यह हमारी देश भक्ति है

हम अन्ना हजारे के साथ हैं

हम आम जनता के साथ हैं


जब हम तुम्हारे साथ है

हम देशद्रोही है

जब तुम्हारे साथ हैं

हम फ़ौज और जवानों के खिलाफ है

हम इस देश की सुरक्षा के खिलाफ है


भ्रष्टाचार तो बचपन से हमें

हमारी किताबों में भी एक गलत चीज़ है बताया गया है

पर इरोम, देश भक्ति हमें

केवल अपने देश को बचाना ही सिखाएगी


देश, फ़ौज, पुलिस ---देश भक्ति का अटूट अंग बन गए हैं

वह मेरी तुम्हारी  लड़ाई में हमारे दुश्मन बन गए हैं

भ्रष्टाचार में लाखों करोड़ों के घपले हैं

पर आफ्सपा , जैसे काले कानून के कारण

इस देश भक्ति के कारण

लाखों करोड़ों देशवासी मौत की नींद  सो गए गए हैं

उनके मरने से उनके परिवार भी मर गए हैं

और हम सब उनको आतंकवादी का  नाम देकर....

देशभक्ति का प्रमाण देकर कहीं सो गए


इरोम, हम सरकार की इस बर्बरता को

देशभक्ति के परदे में देख नहीं पाते

कब हमारे देश वासी जागेंगे

और हम देश वासी बाद में , पहले इंसान हैं

इस एहसास को जान पायेंगे


कब इरोम कब

कब हजारों लाखों तुम्हारे साथ भी

भूख हड़ताल पे जायेंगे

कब इरोम कब

हमारे देशवासी

इस देशभक्ति का

मुखौटा  हटाएँगे


अन्ना हजारे तुम्हारी जीत हो गयी है

तुम्हारे 85 घंटों के अनशन से

लोकपाल बिल आएगा.......

इरोम शर्मीला के दशक के अनशन पे

AFPSA हटा नहीं है

अन्ना क्या आप इरोम के साथ बैठोगे ?

क्या आप कानून के नाम पर जो लहू बह रहा है ?

उसको रोक पाओगे ?
 
 
 
 
 
वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता. विनायक सेन की रिहाई में लगे अग्रणी लोगों में एक. बतौर पत्रकार पांच साल तक युएनाई और इंडियन एक्सप्रेस में स्वास्थ्य,महिला और मानवाधिकार मसलों पर लेखन. उन्होंने   यह कविता 8 अप्रैल को तब लिखी थी जब अन्ना ने आमरण अनशन अगले दिन खत्म करने की घोषणा की.




ईमानदारी के इकलौते चाँद अन्ना

अन्ना के पास जैसे मोदी की पसंदगी का जवाब है,ऐसा ही कोई जवाब पेप्सी के लिए हो. वैसे भी विकास के दौर में गाँधी के आदर्श दूसरे गाँधी यानि अन्ना ढो भी नहीं सकते. यह दौर तो भ्रष्टाचार के खिलाफ राहुल बजाज जैसों से समर्थन लेने का है...

जंतर मंतर डायरी - अंतिम किस्त

बात अब अनशन से आगे बढ़ चुकी है और अन्ना हजारे के पवित्र आन्दोलन का लगातार विस्तार जारी है.कल के हुए विस्तार के मुताबिक उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के विकास पुरुष नीतीश कुमार भातें हैं.

लेकिन अन्ना के इस मत पर सवाल उठने लगे हैं.सवाल उठाने वालों में उनके अपने और पराये दोनों हैं.तो अन्ना भी इन सवालों से विचलित नहीं हो रहे.बड़े ही अहिंसक तरीके से बारीक विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं.जैसे अन्ना को नरेन्द्र मोदी पसंद हैं, मगर गुजरात 2002 में नरसंहार कराने वाले मोदी नहीं, विकास वाले मोदी.

पेप्सी कम्पनी की सौगात दिखाता एक अनशनकारी  

वैसे भी अन्ना और उनके सहयोगी बारीकी का बड़ा ध्यान रखते हैं. जन लोकपाल विधेयक के लिए 5 अप्रैल से अनशन पर बैठे अन्ना ने 9 अप्रैल को जब अनशन खत्म किया तब भी उनके सहयोगियों ने 'देश में कौन ईमानदार है जो अन्ना को जूस पिलाएगा'को लेकर बारीकी का निर्वाह किया था.जिसके बाद बाबूराव ऊर्फ अण्णा हजारे ने शनिवार को एक बच्ची के हाथ से नींबू पानी पीकर अपना अनशन खत्म कर दिया.उनके सहयोगियों का मत था की ईमानदारी के इकलौते चाँद अन्ना ही हैं, बाकि तो....

लेकिन अनशन पर बैठे अन्य 400 लोगों को पेप्सी कम्पनी का निंबुजा(बोतल बंद नींबू-पानी)  पिलाया गया, वह भी काफी अपमानजनक तरीके से. इस पर भ्रष्टाचार विरोधियों को कोई तकलीफ न हुई.  जाहिर है फिर सवाल उठा होगा की भारत समेत दुनिया के किसानों-मजदूरों का खून चूस, पर्यावरण के सवालों को ताक पर रख जल दोहन करने वाली पेप्सी कंपनी के उत्पाद से अनशन तोड़ने में अन्ना को भ्रष्टाचार की बू क्यों नहीं आई. अन्ना के गृह जनपद महाराष्ट्र के अहमद नगर से अनशन पर बैठे दत्तात्रय गोपीनाथ चाह्वान कहते हैं, 'मैं हतप्रभ था नींबू-पानी की बोतल पकड़ कर. कौन नहीं नहीं जनता की पेप्सी क्या करती है.'   

सवाल है की क्या नींबू पानी या जूस का इंतजाम इतना मुश्किल था. जो चैनल और एनजीओ  वाले  लोगों के लिए थाली बजाने से लेकर मोमबत्ती तक का इंतजाम करा रहे थे, उनसे ही कह दिया होता तो वह ख़ुशी-ख़ुशी  इंतजाम कर देते.अनशन तोड़ा जा रहा है, नींबू- चीनी मिलाया जा रहा है, का विजुअल  भी   तो अच्छा  बनता. 

बहरहाल, अन्ना के पास जैसे मोदी की पसंदगी का जवाब है,ऐसा ही कोई जवाब पेप्सी के लिए हो. वैसे भी विकास के दौर में गाँधी के आदर्श दूसरे गाँधी यानि अन्ना ढो भी नहीं सकते. क्योंकि यह दौर तो भ्रष्टाचार के खिलाफ राहुल बजाज जैसों से समर्थन लेने का है.

हुआ यूं कि मंच पर विराजमान स्वामी अग्निवेश अनशनकारियों से कह रहे थे कि आप लाइन लगाकर आ जाइए, मैं आपको जूस दूंगा. वह भी पेप्सी का. हालांकि अग्निवेश खुद अनशन पर नहीं बैठे थे और दोनों टाइम सात्विक खाना खा रहे थे.

इस अभियान का नेतृत्व अधिकतर वही लोग कर रहे थे जिन्होंने पेप्सी और कोका कोला के खिलाफ केरल से लेकर बनारस तक झंडा बुलंद किया हुआ है.अनशन खत्म होने पर यही लोग पेप्सी का निंबुजा बांट रहे थे. धन्य हैं आप लोग और आपकी माया.  चलिए! कोई बात नहीं, अण्णा का अनशन तो टूटा. वरना सैकड़ों लोग एक जन लोकपाल के लिए खाना-पीना छोड़कर अनशन पर बैठे थे. जिद थी कि लोकपाल नहीं मिला तो जान दे देंगे.

अण्णा ने जब अनशन शुरू किया तो मांग की थी कि सरकार उनके जन लोकपाल विधेयक को स्वीकार करे. इसके बाद कहा कि अगर नया कानून बनाने के लिए कोई समिति बनती है तो उसका अध्यक्ष उनकी ओर से होगा. उन्होंने कुछ नाम भी उछाले, इनमें कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह का नाम प्रमुख था.

ऐसे में सवाल अब यह उठता है कि जिस जन लोकपाल विधेयक का 33पेज का मसौदा अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण और संतोष हेगड़े ने मिलकर तैयार किया था, अण्णा उससे पीछे क्यों हटे और नया मसौदा तैयार करने पर राजी क्यों हुए?

दूसरी बात यह कि क्या प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल, संतोष हेगड़े और अण्णा हजारे को क्या इतना पता नहीं था कि किसी भी विधेयक को संसद में पेश करने का अधिकार उसके अध्यक्ष को होता है. संसद में विधेयक वही पेश कर सकता है, जो उसका सदस्य हो. अगर पता था तो उन्होंने प्रारूप बनाने वाली समिति के अध्यक्ष पद के लिए जिद क्यों की?

जंतर-मंतर पर कई लोग इन सवालों का उत्तर ढूंढ़ते नजर आए, तो कई लोगों को लग रहा था कि अण्णा बैकफुट पर आ गए हैं.हुजूर! अगर बैठफुट पर ही आना था तो,इतना बड़ा अभियान क्यों चलाया?

नेताओं के प्रति नफ़रत का यह आलम है                                            
जंतर-मंतर पर शनिवार को कालेज के दो छात्र भी अण्णा को समथर्न देने आए थे. दोनों अण्णा के समर्थन में जमकर नारे लगा रहे थे. 'भारत माता की जय.' उनमें एक ने दूसरे से अचानक पूछा, 'यार ये शांति भूषण कौन हैं?' दूसरे ने कहा 'अबे! नहीं जानता शांतिभूषण जी, प्रशांत भूषण जी के डैडी हैं.' पहले छात्र ने अचानक एक दूसरा सवाल फिर आसमान में फेंका, 'अबे! ये शांतिभूषण तो अब तक कहीं नजर नहीं आ रहे थे, अचानक कहाँ से टपक पड़े.' इसके जवाब में दूसरे ने कहा 'भाई! इतने भोले भी मत बनो. अरे यार, जब राजनीति में वंशवाद चल सकता है तो अभियानों में क्यों नहीं.'

मुझे लगा कि शायद पहला वाला लड़का यह नहीं जानता है कि शांतिभूषण कितने बड़े वकील हैं, क्या-क्या रह चुके हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ कब से लड़ रहे हैं.

दिन बीतते-बीतते यानी शाम को आश्चर्य तब हुआ,जब देश के सबसे नए औद्योगिक घराने के स्वामी और इस अभियान को तन,मन और धन से समर्थन देने वाले बाबा रामदेव (रामदेव ने शनिवार को अमेरिका के साउथ कैलिफोर्निया स्थित नेचुरामिक एलएलसी नाक की कंपनी का अधिग्रहण किया है.)  ने भी यही सवाल उठा दिया.

उन्होंने कहा कि लोग उनसे कह रहे हैं 'लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने के लिए जो समिति बनाई गई है उन्हें उसमें से वंशवाद की बू आ रही है.' बाबा को जंतर-मंतर अभियान के पीछे एक लंबी कहानी भी नजर आई, जिसके एक पात्र वे खुद हैं. लेकिन रामदेव जी ने कहानी का पर्दाफाश नहीं किया, क्योंकि कहानी स्वांत: सुखाय की है. आप लोग रामदेव जी के नए उपक्रम के लिए उन्हें शुभकामनाएँ दें और उसके बेहतर भविष्य की कामना करें!

रामदेव का कहना है कि उनके साथ अण्णा एंड कंपनी ने छल किया है.वे किरण बेदी के साथ गठबंधन के प्रयास में हैं.

चलते-चलते एक बात और.बात शायद 20वीं सदी के अंतिम दिनों की है,जब देशभर के मंदिरों में गणेश की प्रतिमाओं ने लड्डू खाना छोड़कर दूध पीना शुरू कर दिया था.असर यह हुआ कि लोग बिना कुछ सोचे-समझे दूध लेकर चल दिए थे, गणेश जी को दूध पिलाने. आस्था का सवाल था. उस समय भी मीडिया ने इसे खूब दिखाया था, बिल्कुल अण्णा की तरह. बाद में क्या पता चला, यह तो आप जानते ही हैं. अण्णा के अभियान को दिखाने वाला यह मीडिया उस समय अभी पैदा ही हुआ था, लेकिन पूत के पांव पालने में ही नजर आने लगते हैं.