Jan 4, 2011

जनता के लिए सीपीएम अभी 'शेर' है तो ममता बनर्जी 'भालू' - गणपति


भाग- 3

असंभव है दमन दबाव और वार्ता एक साथ,  नया संविधान निर्माण,जनता का लोकतान्त्रिक अधिकार, के बाद अब साक्षात्कार का यह तीसरा भाग भी माओवादी पार्टी के महासचिव गणपति के उन जवाबों की प्रस्तुति है जो पत्रकारों के एक समूह ने सवाल भेजकर उनसे पूछा था.भाग-1,भाग-2और अब भाग तीन,ये सभी साक्षात्कार हिंदी में पहली बार सिर्फ जनज्वार पर प्रकाशित हो  रहे हैं,जिसका अनुवाद जनज्वार टीम ने किया है

वर्तमान में ऐसा दिखता है कि आपका आंदोलन सुदूर जंगली और आदिवासी क्षेत्रों में सिमटा हुआ है। शहरी क्षेत्रों के युवाओं की भी भर्ती नहीं हो रही है, जैसा कि अतीत में हुआ है। कुछ लोग सोचते हैं कि आप कभी भी शहरी क्षेत्रों जैसे गुड़गांव में वैसे विस्तार नहीं कर पायेंगे जैसे गिरीडिह(झारखंड) में किया है?

विलय के बाद कुछ क्षेत्रों में हम मजबूत हुए हैं,जबकि कुछ क्षेत्रों में कमजोर। जिन क्षेत्रों में हम कमजोर हुए हैं उनमें कुछ मैदानी क्षेत्र हैं और कुछ शहरी। जिन क्षेत्रों में हम मजबूत हुए हैं उनमें कुछ सुदूरवर्ती क्षेत्र हैं और कुछ मैदानी। दीर्घकालिक युद्ध में ऐसे उतार-चढ़ाव अपरिहार्य हैं। यह सच नहीं है कि हम शहरी क्षेत्रों और मैदानी क्षेत्रों से पूरी तरह खत्म हो चुके हैं जैसा कि कुछ लोग प्रचार कर रहे हैं या कुछ दूसरे इस पर भरोसा कर रहे हैं। जैसा कि मैंने पहले कहा है विश्व में भारत उन कुछ देशों में से है जहां माओवादी आंदोलन जारी है। साम्राज्यवादी और हमारे देश के शासक वर्ग मिलकर हमारे आंदोलन का दमन करने के लिए हमला तेज कर रहे हैं। जब वे इतना केंद्रित होकर हम पर हमले करते हैं तो हमें नुकसान उठाना पड़ता है और हमने नुकसान उठाया।

यह समस्या का महज एक पहलू है। शहरी क्षेत्रों में हमें कई अनुभव हासिल हुए। शहरी कामकाज के बारे में हमने अपनी नीति को समृद्ध किया। हमने अपने देश और दुनिया में होने वाले आर्थिक-राजनीतिक बदलाओं का अध्ययन किया और उसके अनुसार कार्यक्रम सूत्रबद्ध किया। कम्युनिस्ट कभी भी अपनी आत्मगत इच्छा से काम नहीं करते। समाज में वस्तुगत परिस्थितियों का अध्ययन करते हुए वे काम करते हैं। हमें जो भी सकारात्मक और नकारात्मक सबक हासिल हुए हैं, उस पर निर्भर होकर हम क्षति से उबरने का प्रयास कर रहे हैं।

इस समस्या का दूसरा पहलू यह है कि दुश्मन के हमलों में हमें जरूर कुछ नुकसान उठाना पड़ता है, लेकिन दूसरी तरफ उनके दमन अभियानों, उनकी साम्राज्यवादपरस्त नीतियों और उनकी जनविरोधी कार्रवाइयों के कारण वे जनता से ज्यादा अलगाव में पड़ते जा रहे हैं। इसका मतलब ये है कि वे खुद ऐसी परिस्थितियां तैयार कर रहे हैं कि जनता उनके खिलाफ हो जाये। यह सही है कि वर्तमान में हम 1970-19के दशक की भांति मजदूरों,छात्रों, बुद्धिजीवियों को लामबंद करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। उन परिस्थितियों में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव हो चुके हैं। उन क्षेत्रों में जहां दुश्मन मजबूत है,काम करना बेहद जटिल हो चुका है और ट्रेड यूनियन आंदोलन में जहां संशोधनवादियों ने अपनी जड़ें गहरायी से जमायी हुई हैं, में भी काम करना बेहद जटिल है।

यह सिर्फ भारत की बात नहीं है,यह परिस्थिति समूचे विश्व में है। लेकिन क्रांतिकारी इससे जरूर उबरेंगे। इस देश को मुक्त करने के लिए हमें किसानों को संगठित करने पर ध्यान देना चाहिए। वर्तमान में हम किसानों के बीच अपने आंदोलन को मजबूत करेंगे और निश्चित तौर पर शहरी क्षेत्रों में विस्तारित होंगे। दूसरी तरफ यह किसान आंदोलन शहरी जनता को प्रेरित करेगा और उन पर अत्यधिक प्रभाव डालेगा। अतः जब हम मैदानी क्षेत्र की व्यापक किसान आबादी को संगठित कर लेंगे तब कस्बे और शहर की जनता इससे अछूती नहीं रहेगी।

आज हमारे देश के मजदूर फिर से उन्हीं परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं जो उन्नीसवीं सदी के मजदूरों ने यूरोप में झेली थीं। ज्यादातर मजदूर ठेका मजदूर और अस्थायी मजदूर में तब्दील हो रहे हैं। उन्हें 12से 16घंटे तक भयानक परिस्थितियों में काम करने पर बाध्य किया जा रहा है। सरकार साम्राज्यवादी शोषण को तेज करने के लिए सभी मजदूर कानूनों को बदल रही है। मजदूरों के परिवार उनके लिए बैरकों में गुलामों की तरह रहने को बाध्य हैं। सारी चीजों का पुनर्गठन किया जा रहा है। दुश्मन इस बात से खुश है हो सकता है कि उसने हमें काफी नुकसान पहुंचाया, लेकिन तकलीफ झेल रही जनता उसके खिलाफ विभिन्न रूपों में लड़ रही है। हमारी पार्टी निश्चित ही इन संघषों का बहादुरी और दृढ़ता के साथ नेतृत्व करेगी। सर्वहारा और शहरी जनता के तूफान की तरह उठ खड़े होने और इस शोषणकारी व्यवस्था को नष्ट कर देने के लिए सभी जरूरी परिस्थितियां धीरे-धीरे परिपक्व हो रही हैं।

भारत सरकार दूसरी पीढ़ी के एलपीजी(लिबरलाइजेशन प्राइवेटाइजेशन ग्लोबलाइजेशन)सुधारों को लागू कर चुकी है और अब तीसरी पीढ़ी के सुधारों को लागू करने जा रही है। इसके तहत यह साम्राज्यवादी पूंजी की जरूरतों के अनुसार शिक्षा नीति में बहुत से परिवर्तन करने जा रही है। शिक्षा नीति में शासक वर्ग द्वारा साम्राज्यवाद निर्देशित परिवर्तनों को लागू करने की पृष्ठभूमि में, शिक्षा के अवसर मजदूर वर्ग, किसान, आदिवासी, दलित और धार्मिक अल्पसंख्यक परिवारों से आने वाले गरीब बच्चों और महिलाओं के लिए कम होते जा रहे हैं।

वर्तमान में शिक्षा का मतलब मुख्यतः कारपोरेट आधिपत्य वाली शिक्षा है। यह शिक्षा व्यवस्था मुख्यतः घरेलू और विदेशी कारपोरेशनों के हितों की सेवा करती है। इससे एक तरफ छात्र, अध्यापक,अभिभावक और दूसरी तरफ शासक वर्ग के बीच गहरी खायी बनने लगी है। बहुत जल्द यह विस्फोटक रूप ले लेगा। हमारी पार्टी इसके अध्ययन और इसका नेतृत्व करने की आवश्यकता महसूस करती है। हम इस मामले में जो भी संभव होगा करेंगे।

खुदरा बाजार में साम्राज्यवादी पूंजी को अनुमति देने के कारण और आर्थिक संकट से उबरने के लिए साम्राज्यवादियों और कारपोरेट कंपनियों की हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर बढ़ती पकड़ के कारण शहरी क्षेत्रों में बहुत से छोटे व्यापारी और छोटे तथा मध्यम पूंजीपति दीवालिया हो चुके हैं। शहरों के सौंदर्यीकरण के नाम पर स्लम को खाली कराया जा रहा है और मध्यवर्गीय जनता को उपनगरीय क्षेत्रों में खदेड़ा जा रहा है। मजदूर वर्ग और स्लम में रहने वाली जनता की स्थिति बदहाल है। इन लोगों के बीच बहुत से ऐसे लोग हैं जो हमारे आंदोलन वाले क्षेत्रों से इन शहरों में चले गये हैं। हम इन सभी परिघटनाओं का अध्ययन कर रहे हैं और उचित कार्यनीति के साथ इनके बीच काम करने का प्रयास कर रहे हैं।

गांव और बड़े शहरों के बीच सभी तरह की धन संपदा गरीब ग्रामीण इलाके के लोग पैदा करते हैं। गरीब दलित और आदिवासी मजदूर अपना खून-पसीना जलाकर भारतीय और विदेशी कारपोरेट प्रभुओं के लिए बड़े महल और बुनियादी ढांचे का निर्माण करते हैं। शॉपिंग माल और कंपनियों में काम करने वाले मजदूरों और कर्मचारियों का बहुमत ग्रामीण क्षेत्रों से ही आता है। चाहे सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक संबंधों के अर्थ में बात करें या आंदोलन के संबंधों के अर्थ में,गांव और शहर एक दूसरे से अलग-अलग दो द्वीप नहीं हैं। दोनों परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। यह हमारे विस्तार के लिए एक मजबूर आधार का निर्माण कर रहा है। अतः यह कहना हास्यास्पद और अवास्तविक बात होगी कि हम शहरी क्षेत्रों तक कभी भी विस्तार नहीं कर सकेंगे। यदि पहले ग्रामीण क्षेत्र अपने आपको मुक्त कर लेते हैं तब इसकी मजबूती पर निर्भर होकर और शहरी क्षेत्रों में मजदूर वर्ग के संघर्षों द्वारा, बाद में शहर भी अपने आपको मुक्त कर लेंगे। शहरों की मुक्ति के साथ ही हमारे देश से दलाल बुर्जुआ शासन और साम्राज्यवादी नियंत्रण भी खत्म हो जायेगा।


सीपीआईएम पार्टी बार-बार यह आरोप लगाती रही है कि तृणमूल कांग्रेस और माओवादियों के बीच सांठ-गांठ हैं। ममता बनर्जी ने आजाद की हत्या पर न्यायिक जांच की भी मांग की थी?


हम इस बात से कतई आश्चर्यचकित नहीं हैं कि ममता बनर्जी ने आजाद की हत्या के बारे में न्यायिक जांच की मांग की है। बंगाल के राजनीतिक हालात से जो भी परिचित है उसे आश्चर्य नहीं होगा। जनवादी संगठन, जाने-माने लोग तथा कई जनसंगठन न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं और कह रहे हैं,आजाद के हत्यारों पर मुकदमा चलना चाहिए और उन्हें सजा दी जानी चाहिए। यह मांग जनता की आकांक्षा का परिचायक है। इसे ध्यान में रखते हुए ही ममता ने न्यायिक जांच की मांग की है। जाहिर है आजाद के लिए ममता के दिल में कोई सम्मान या सहानुभूति क्यों होगी?


वे कौन लोग हैं जो यह महसूस करते हैं कि आजाद को बहुत ही अन्यायपूर्ण तरीके से मार डाला गया। केवल जनता है जो यह सोचती है कि आजाद जिस राजनीतिक उद्देश्य के लिए लड़ रहे थे वे न्यायपूर्ण हैं। जो सच्चे जनवाद के लिए प्रतिबद्ध हैं तथा उसका समर्थन करते हैं सिर्फ वही उनकी हत्या की गंभीरतापूर्वक निंदा करते हैं। दूसरे लोग,इसकी निंदा विभिन्न कारणों से कर सकते हैं। ममता भी उनमें से एक है। वे अपने हित में ऐसा करते हैं। हालांकि ममता ने यह मांग सीपीएम के साथ चल रहे उनके संघर्षों और आने वाले चुनाव को ध्यान में रखकर किया है, फिर भी यह मांग स्वागत योग्य है। उनकी यह मांग कुछ हद तक जनता के संघर्षों में मददगार होगी।


इसके अलावा पिछले पंद्रह या उससे अधिक वर्षों से तृणमूल और सीपीएम के बीच गंभीर संघर्ष चल रहा है। कभी-कभी कुछ जगहों पर यह सशस्त्र संघर्ष का एक रूप भी ले लेता है। सीपीआईएम ने हरमदवाहिनी जैसे सशस्त्र सामाजिक फासीवादी गैंग का निर्माण किया है और तृणमूल, माओवादियों, जनवादियों तथा जनता को दबाने के लिए उन पर हमले कर रही है। तृणमूल ने सीपीआईएम से लड़ने के लिए हथियार उठा लिये हैं। अतः इन हमलों का मुकाबला करने के लिए और अगले चुनाव में सत्ता में आने के लिए यह स्वाभाविक है कि ममता जनता को आकर्षित करने के लिए कुछ बातें बोलें । हमारे देश में पिछले 30-35 सालों में एक चारित्रिक विशेषता है जो बंगाल की राजनीति में जारी है। वह यह है कि शासक वर्ग एक दूसरे से सशस्त्र संघर्षों में उलझते रहे हैं। ज्यादातर दूसरे राज्यों में ऐसा नहीं है।


शासक वर्गों के बीच यह अंतरविरोध दूसरे राज्यों में दूसरे रूपों में बहुत तीखा है,लेकिन यह सशस्त्र संघर्ष के स्तर पर नहीं है। यह अंतरविरोध नंदीग्राम में प्रकट हुआ और जनता के लिए उपयोगी था। बाद में हुए संसदीय और नगर निगम के चुनाव में तृणमूल ने कहीं ज्यादा सीटें जीतीं। अब आने वाले विधानसभा चुनाव में यह प्रतिस्पर्धा और कठिन होगी;यदि उसे सत्ता में आना है तो उसे इस तरह से बात करने पर बाध्य होना होगा ताकि लगे कि वह जनता की तरफ खड़ी है। जनता जो सीपीआईएम से घृणा करती है, निश्चित रूप से उसे सबक सिखायेगी।


आज बंगाल की समस्त जनता और जनवादी लोग सामने खड़े शेर से बचना चाहते हैं। आज उनके लिए सामने खड़ा वह शेर कहीं ज्यादा खतरनाक है बनिस्पत उनके पीछे खड़े भालू से। लेकिन शेर को भगाने के लिए वे भालू के खतरे से नहीं बच सकते। हमारी पार्टी इस खतरे के बारे में लगातार लोगों को सचेत कर रही है। हम उनसे कहते हैं कि भविष्य में इस भालू को भी भगाना पड़ेगा। उन्हें इस भालू के खिलाफ भी लड़ाई लड़नी होगी। जब तक जनता इन दोनों खतरों से छुटकारा नहीं पा लेती, इनमें से कोई एक जनता के पीठ पर सवारी गांठती रहेगी।


कल यदि ममता बनर्जी सत्ता में आती हैं तो वह सामंतों से जमीन जब्त करके उसे गरीबों में नहीं बांटेंगी और न ही साम्राज्यवादियों और बड़े पूंजीपतियों के उद्योगों को ही जब्त करेंगी। जनता को भी चुनाव में स्वतंत्र तरीके से भागीदारी करने का अवसर नहीं मिलेगा। इसका मतलब यह है कि यदि वह सत्ता में आती हैं तब भी कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं होगा। हालांकि सामाजिक फासीवादियों को एक लंबे शासनकाल के बाद यदि तृणमूल सत्ता में आती है तो वह निश्चित तौर पर प्रशासन पर अपनी पकड़ बनाने का पुरजोर प्रयास करेगी। इस समयावधि में चुनाव में किये गये वादों को ध्यान में रखते हुए वह कुछ समय के लिए जनता पर हमले बंद कर सकती है। लेकिन यह अस्थायी ही होगा। बाद में जनता को उनकी सरकार के खिलाफ भी लड़ना पड़ेगा।


हमारी पार्टी का तृणमूल के साथ किसी भी तरह का कोई खुला या गुप्त संबंध नहीं है,लेकिन कुछ मौकों पर शासक वर्ग भी जनता के हित में बात कर सकता है। वे कुछ संघर्ष भी चलाते हैं। हालांकि इन संघर्षों का दायरा बहुत सीमित होता है। ऐसे लोग जब जनता के हित में बात करते हैं तो हमें ठोस तरीके से उनका विश्लेषण करना चाहिए। दुश्मन के बीच अंतरविरोध सर्वहारा के फायदे में होता है। ठोस परिस्थितियों पर निर्भर होते हुए हमारी पार्टी इन चीजों पर अपनी अवस्थिति साफ करती रहती है।


हमारी पार्टी आंख मूंदकर न तो समर्थन करती है,न ही विरोध। लेकिन जनता को उनकी वर्ग प्रकृति तथा उनकी राजनीतिक-आर्थिक नीतियों को गंभीरतापूर्वक समझने का प्रयास करना चाहिए और उनके बारे में कोई भी भ्रम नहीं पालना चाहिए। यदि ऐसा भ्रम है तो यह हमारी पार्टी का एक कार्यभार होगा कि हम उन्हें इससे बाहर निकालें। जब हमारी अवस्थिति इतनी साफ है तो यह कहना उचित नहीं है कि हमारा ममता की पार्टी से कोई संबंध है और हम उसे औचित्य प्रदान कर रहे हैं।



कश्मीर में हाल में आये जनउभार और सरकारी सशस्त्र बलों द्वारा उनसे निपटने के तरीकों पर आपकी पार्टी की क्या प्रतिक्रिया है, कश्मीर समस्या का आपके पास क्या समाधान है?


कश्मीर की जनता पिछले साठ वर्षों से अपनी स्वाधीनता और आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए लड़ रही है। इस संघर्ष को दबाने के लिए भारत सरकार उन पर लगातार अत्याचार,नरसंहार और हिंसा चला रही है। अस्सी हजार से ज्यादा कश्मीरी मारे जा चुके हैं। हालांकि भारतीय शासक वर्ग यह दावा कर रहा है कि उसने मिलिटेन्सी को समाप्त कर दिया है, कश्मीरी जनता अनेक अवसरों पर लहरों की तरह उठ खड़ी हो रही है।


हाल ही में 11 जून से शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों में सौ से ज्यादा कश्मीरी युवक पुलिस, अर्धसैनिक बलों और सेना की गोलियों से मारे गये हैं। सात लाख सेना और अर्धसैनिक बलों की तैनाती से कश्मीर पूरे विश्व में सबसे अधिक सैन्यीकृत क्षेत्र में तब्दील हो चुका है। हमारी पार्टी मजबूती के साथ कश्मीरी जनता के न्यायपूर्ण आंदोलन का समर्थन करती है। आजादी और आत्मनिर्णय के अधिकार की उनकी मांग पूरी तरह न्यायोचित है। कश्मीर कश्मीरियों का है। यह कभी भी भारत का अविभाज्य अंग नहीं रहा है। भारत और पाकिस्तान का इस पर कोई अधिकार नहीं है। हमारी पार्टी गंभीरतापूर्वक कश्मीरी जनता पर हो रहे भयानक दमन की भत्र्सना करती है। भारतीय जनता को कश्मीर में जारी सरकारी नरसंहार की एक स्वर से निंदा करनी चाहिए। हमारी पार्टी का यह साफ कहना है कि बिना यह किये भारत की संघर्षरत जनता पर शासक वर्गों के क्रूर हमलों का प्रभावी तरीके से मुकाबला करना या उसे परास्त करना संभव नहीं है। हमारी पार्टी कश्मीर मुद्दे को हल करने के लिए ठोस तरीके से निम्न मांगें रखती है-


  •  कश्मीर में भारत सरकार की सशस्त्र सेनाओं द्वारा किये जा रहे नरसंहार को तत्काल बंद किया जाये।
  • अर्धसैनिक बलों और सेना को कश्मीर से तुरंत वापस बुलाया जाये।
  • सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को तत्काल समाप्त किया जाये जिसके कारण सेना को जनता की अंधाधुंध हत्यायें करने का अधिकार मिला है।
  • कश्मीर में जनमत संग्रह कराया जाये और कश्मीरियों को उनका भविष्य खुद चुनने दिया जाये।
  • समस्त राजनीतिक कैदियों को बिना शर्त रिहा किया जाये।
कॉमनवेल्थ खेल के प्रति पूरे देश में गुस्सा रहा है, आपकी पार्टी की इस पर क्या सोच है?

कामनवेल्थ खेल के नाम पर सत्तर हजार करोड़ रुपये शासक वर्ग खर्च कर चुका है। दूसरी ओर बहुसंख्यक जनता द्वारा झेली जा रही गरीबी, भूख, अशिक्षा, बेरोजगारी, विस्थापन, बाढ़, बीमारियों, आश्रयहीनता आदि समस्याओं के प्रति इसका कोई ध्यान नहीं है। यह एक हास्यास्पद स्थिति है कि 77 फीसदी जनता प्रतिदिन 20 रुपये से कम पर गुजारा कर रही है वहीं खेल के बहाने करोड़ों रुपये इकट्ठा किये गये। ये करोड़ों रुपये स्टेडियम,सड़क और खेलों के लिए बनने वाले भवनों पर खर्च किये गये तथा विभिन्न तरह के उपकरणों की खरीद में भ्रष्ट अधिकारियों,मंत्रियों और ठेकेदारों की झोलियों मं चले गये।

निर्माण कार्यों में काम करने वाले इन मजदूरों को मामूली वेतन देकर उनका शोषण किया गया। दूसरी तरफ इन खेलों के कारण मजदूर वर्ग और मध्यवर्गीय लोगों का जीवन बदहाल हो गया। दिल्ली के सौंदर्यीकरण के नाम पर हजारों हजार स्लम आबादी,सड़क के किनारे खोमचा लगाने वालों तथा भिखारियों को शहर से बाहर खदेड़ा गया। सुरक्षा के नाम पर जनता की रोजाना की आवाजाही पर पाबंदियां लगायी गयीं। यह सबकुछ कॉरपोरेट घरानों के मुनाफे और मंत्री-अधिकारियों के कमीशन के लिए किया गया।
विशेष तौर पर नौजवानों का उनकी बुनियादी समस्याओं से ध्यान हटाने, उनमें बढ़ रहे असंतोष को ‘शांत करने और उनके सामने एक खूबसूरत दुनिया का भ्रम गढ़ने के लिए यह खेल कराये गये। जनता इन खेलों से सिवाय करों के बोझ के और कुछ प्राप्त नहीं कर पायी। इसके अलावा कॉमनवेल्थ खेल गुलामी के प्रतीक औपनिवेशिक अतीत के अवशेष हैं। ब्रिटेन के पुराने उपनिवेश इसमें शामिल हैं। दलाल शासक जो नव उपनिवेशवादियों (साम्राज्यवादियों)की सेवा करते हैं, के अलावा कोई भी नागरिक भारत की स्वाधीनता चाहता है और कोई भी देशभक्त इस बात को पचा नहीं सकता कि हमारा देश इसका सदस्य है। आत्मसम्मान वाले किसी भी देश को ऐसे संगठन से अपने आप को हटा लेना चाहिए। हम इसमें भाग लेने वाले विभिन्न देशों के खिलाड़ियों की प्रशंसा करते हैं,लेकिन इसका समर्थन तभी किया जा सकता है जब इसका आयोजन समानता के आधार पर हो, कोई दिखावा न हो और संबंधित देशों की संप्रभुता के साथ कोई समझौता न हो।


बाबरी मस्जिद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने विवादित क्षेत्र को तीन भागों में बांटने का फैसला दिया है, इस विवाद के लिए आपके पास क्या समाधान है?

हमारी पार्टी ने पिछले 18वर्षों में कई बार बाबरी मस्जिद ढहाने जाने के ऊपर अपनी राय स्पष्ट की है। पार्टी के केंद्रीय समिति सदस्य (सीसी)के प्रवक्ता कामरेड अभय ने एक वक्तव्य में साफ तौर से हमारी पार्टी राय रखी है। निश्चय ही यह बहुत दुखद है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लनखऊ बैंच ने विवादित क्षेत्र को तीन भागों में बांट दिया है। ऐसा करने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इसके समर्थन में कोई ऐतिहासिक साक्ष्य भी नहीं है। हमारा शुरू से ही यह कहना है कि बाबरी मस्जिद को दुबारा उसी जगह पर बनाया जाना चाहिए। इसका ढहाया जाना एक जघन्य अपराध है। हमारी पार्टी की अवस्थिति है कि पूरी जमीन मुस्लिम समुदाय का है। इस फैसले के जरिये मुस्लिम समुदाय के प्रति अन्याय हुआ है।


हिंदुवादी नेताओं का मानना है कि जहां पहले बाबरी मस्जिद खड़ी थी वहीं राम का जन्म हुआ था। इस सवाल के बरख्स फिर हम भारत के इतिहास को देखें तो एक समय ऐसा भी था जब वहां कोई मस्जिद भी नहीं थी। जैसे नेपाल और भारत से पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और कुछ पूर्वी एशियाई देशों में हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ। उसी तरह इस्लाम सहित सभी धर्म अपने जन्म स्थान से विश्व के दूसरे हिस्सों में फैले। अतः यह कारण दिखाकर और इस तरह के फैसले को मॉडल बनाकर सभी मस्जिद को विवादित क्षेत्र बताया जा सकता है और झगड़ा पैदा किया जा सकता है।


फैसले के इस आधार पर अल्पसंख्यक समुदाय के सारे प्रार्थना स्थलों को ढहाया जा सकता है। फैसले के बाद अल्पसंख्यक लोगों में असुरक्षा बढ़ने की पूरी संभावना है। जैसा कि हमारी पार्टी के प्रवक्ता अभय ने कहा कि जनता को कट्टरपंथियों,विशेषकर हिंदू कट्टरपंथियों से सावधान रहना चाहिए। भिवण्डी, मुंबई, कर्नाटक, हैदराबाद, गुजरात और उड़ीसा के धार्मिक दंगों के नाम पर हुई सभी घटनायें शासक वर्गों विशेषकर हिंदू अंध राष्ट्रवादियों द्वारा अंजाम दी गयी हैं। इस फैसले से बाबरी मस्जिद के विध्वंस को वैधानिकता प्राप्त हो गयी है। कोर्ट के इस फैसले ने वह आधार तैयार कर दिया है, जहां हिंदू अंध राष्ट्रवादी धार्मिक अल्पसंख्यकों के ऊपर विभिन्न रूपों में अधिक आक्रामक हो जायेंगे।



हमारी पार्टी का विचार है कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों सहित सभी धार्मिक अल्पसंख्यक लोग,धर्मनिरपेक्ष ताकतें, जनवादी ताकतें और हमारे देश की शोषित जनता एकजुट होकर लड़ेंगी और कट्टरपंथी ताकतें विशेषकर हिंदू अंधराष्ट्रवादी ताकतों को अलगाव में डालेंगी तभी इस समस्या या इस जैसी अन्य समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है।


(जारी...)