Jun 26, 2011

मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन पर पुलिसिया हमला


जनज्वार.छिंदवाड़ा जिले के अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट द्वारा की गयी मनमानी के खिलाफ आज 26 जून को आयोजित किसान महापंचायत पर पुलिस दमन का कहर बरपा हुआ है। पुलिस ने आंदोलनकारियों पर बर्बर लाठी चार्ज किये और आंसू गैर के गोले छोड़े। पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति के बगैर हुए अवैध निर्माण कार्यो को ध्वस्त करने और जमीनें वापस लौटाने की मांग को लेकर किसान संघर्ष समिति की ओर से आज किसानों ने महापंचायत का आयोजन किया था।

किसान महापंचायत में भाग लेने जा रहे किसानों को पुलिस ने धमकाया तथा अलग अलग गांव से गिरफ्तार किया। विरोध में भाग लेने पहुंचे पूर्व विधायक और किसान नेता सुलीलम् को तड़के छिन्दवाडा पुलिस ने रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर शाम को नागपुर रेलवे स्टेशन पर रिहा किया। वहीं किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे आराधना भार्गव को पुलिस ने भूलामोहगांव से जबरदस्ती घसीटकर गिरफ्तार किया। उनके साथ मौके पर पूर्व विधायक महेशदत्त मिश्रा भी मौजूद थे।

प्रशासन पर दबाव न बने इसके लिए पुलिस ने 12किसानों को अमरवाडा उपजेल भेज दिया है तो 44 किसान छिन्दवाड़ा जेल में बंद हैं। सुनीलम ने  राज्य सरकार की दमनकारी भूमिका पर आक्रोश  व्यक्त करते हुए कहा है कि 22मई के जानलेवा हमले के बाद किसान संघर्ष  समिति की और से शांतिपूर्ण तरीके से पदयात्रा की गई थी तथा 10हजार किसानों ने छिन्दवाडा पहुंचकर अपनी मांगों को शांतिपूर्ण तरीके से मुख्यमंत्री तक पहुंचाने के लिए जिलाधीश महोदय को ज्ञापन सौंपा था। किसानों का कहना है कि स्थानीय पुलिस प्रशासन अदानी कम्पनी के एजेन्ट के तौर पर कार्य कर रहा है। जिन लोगों ने किसानों की जमीनों पर अवैधानिक निर्माण कार्य किया है उनकी गिरफ्तारी करने की बजाय किसानों को गिरफ्तार किया जा रहा है।

डॉ0सुनीलम् ने राज्य सरकार द्वारा की गई कार्यवाही को लोकतंत्र की हत्या बताते हुए कहा कि हर नागरीक को संविधान में स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार दिया,लेकिन सरकार संविधान पर कुठाराघात करने पर आमदा है। डॉ0सुनीलम् ने कहा कि जानलेवा हमले,पुलिस की लाठी और गिरफ्तार ने किसानों को आक्रोषित करने का काम किया है। जिसके गंभीर परिणाम सरकार को भुगतने पड सकते हैं, जिसकी पूरी जिम्मेदारी स्थानिय पुलिस प्रशासन की होगी।

आंदोलनकारियों की अगली रणनीति के मुताबिक 27जून को जनसंगठनों का प्रतिनिधि मण्डल राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से मुलाकात करेगा और वे 30जून को भोपाल में मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष से मुलाकात कर किसानों के मानव अधिकार बहाल कराने की मांग करेंगे।



सरकारी नीतियों के विरोधी हू जिया रिहा


चीन में सरकार की नीतियों के एक प्रमुख विरोधी हू जिया को जेल से रिहा कर दिया गया है.उनकी पत्नी ज़ेंग जिंज्ञान ने इस ख़बर की पुष्टि की है और कहा है कि वे बीजिंग में अपने परिवार के साथ हैं...

ग़ौरतलब है कि पिछले बुधवार को चीन के जाने माने कलाकार और कार्यकर्ता आई वेईवेई को दो महीने की पुलिस हिरासत के बाद रिहा कर दिया गया था. हू जिया की रिहाई उस समय हुई है जब चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ यूरोप की यात्रा पर हैं और शनिवार रात को ब्रिटेन में बरमिंघम पहुँचे हैं.वे ब्रिटेन की तीन दिवसीय यात्रा के दौरान ब्रिटेन में चीनी पूँजी निवेश को बढ़ाने के प्रयासों पर चर्चा करेंगे.

हू जिया पर चीन की सरकार ने विद्रोही गतिविधियों को उकसाने के आरोप लगाए थे. वर्ष 2008 में 37 वर्षीय हू जिया को दोषी पाया गया था और उन्हें साढ़े तीन साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी.

मेरे पति घर लौट आए हैं और अपने माता-पिता और मेरे साथ हैं.मैं इस समय इंटरव्यू नहीं देने चाहती क्योंकि इससे मुश्किलें पैदा हो सकती हैं हू जिया पर पांच लेख लिखने से संबंधित आरोप लगाए गए थे. साथ ही उन पर आरोप थे कि पत्रकारों को इंटरव्यू देते समय उन्होंने चीनी सरकार की आलोचना की थी.

उस समय चीन की सरकार समाचार एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हू ने 'अफ़वाहें फैलाईं और लोगों को उकसाया था.' हू जिया नागरिक अधिकारों के मुद्दों पर, पर्यावरण और एड्स से संबंधित मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं. वर्ष 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान उन्होंने चीन की सरकार के नाम एक 'ओपन लेटर' लिखी थी जिसका शीर्षक था - द रियल चाइना एंड द ओलंपिक्स यानी 'चीन का असली चेहरा और ओलंपिक खेल.'

इस पत्र में चीन में मानवाधिकारों के हनन के ख़त्म करने का आहवान किया गया था. वर्ष 2007 में हू जिया और उनकी पत्नी ने लगातार पुलिस की निगरानी में रहने के अपने अनुभवों का एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी जिसके बाद उन्हें घर पर नज़रबंद कर दिया गया था.उन्हें यूरोपीय संघ ने अपने सर्वोच्च मानवाधिकार पुरस्कार साखारोव अवार्ड से सम्मानित किया था.

हू जिया की पत्नी ज़िंग जिंज्ञान ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया,"मेरे पति घर लौट आए हैं और अपने माता-पिता और मेरे साथ हैं. मैं इस समय इंटरव्यू नहीं देना चाहती क्योंकि इससे मुश्किलें पैदा हो सकती हैं."मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने लगातार चिंता ज़ाहिर की है कि हू जिया की रिहाई के बाद चीन की सरकार उन पर कड़े प्रतिबंध लगा सकती है. चीन की सरकार ने फ़िलहाल इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है.

बीबीसी से साभार

झारखण्ड में कलाकार को फांसी


जनज्वार.झारखण्ड के गिरिडीह जिले की अदालत ने चिलखारी हत्याकांड मामले में 23जून को चार माओवादियों को फांसी की सजा सुनाई है.झारखण्ड के इतिहास में यह पहली बार है कि माओवादियों को किसी मामले में फांसी की सजा हुई है. सजायाफ्ता लोगों में मनोज रजवार, छत्रपति मंडल, अनिल राम और जीतन मरांडी हैं, जिनमें जीतन मरांडी झारखंड के प्रसिद्ध प्रगतिशील लोक कलाकार हैं.

चिलखारी में 26अक्टूबर 2007 को हुई गोलीबारी में 19 लोगों की जान गई थी. मृतकों में झारखण्ड के  पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का बेटा अनूप भी था.माओवादियों ने यह हमला तब किया था जब वहां एक रंगारंग  कार्यक्रम चल रहा था.इस मामले को रेयरेस्ट ऑफ़ द  रेयर मानते हुए  जिला और सत्र न्यायधीश इन्द्रदेव मिश्र ने सजा सुनाई है.  हालाँकि अदालत के इस फैसले का झारखंड में व्यापक विरोध हो रहा है.फांसी की सजा के विरोध में झारखण्ड के कई जेलों में बंद कैदी भी हैं और वे  आमरण अनशन कर रहे हैं.

बायीं  ओर जीतन और उनकी पत्नी : एक नए विनायक  
 जीतन मरांडी के खिलाफ हुए फैसले के बारे में झारखण्ड बचाओ आन्दोलन और पीयूसीएल का कहना है कि जीतन को फर्जी तरीके से फंसाया गया है.  संगठन के मुताबिक संदिग्धों में एक जीतन मरांडी था, जो फरार होने में सफल रहा. पुलिस उसे पकड़ने में अब तक नाकाम रही है और हमारे संगठन के मानवअधिकार कार्यकर्ता जीतन मरांडी को इस मामले में अभियुक्त बना दिया,जबकि हत्याकांड के वक्त वह गांव में नहीं थे.संगठन का दावा है कि पुलिस मानवाधिकार कार्यकर्ता जीतन मरांडी के खिलाफ फर्जी गवाह पेश कर उन्हें मौत की सजा दिलाने में सफल रही है. 

संगठन की जारी विज्ञप्ति के मुताबिक  जीतन मरांडी नक्सलवादी नहीं है,वे एक सांस्कृतिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. जीतन मरांडी एक प्रतिभाशाली कलाकार है, वे संगीत बनाते है, गीत लिखते है,और नुक्कड़ नाटक करते है.वे अपनी कला का इस्तेमाल गिरिडीह जिले के गावों में लोगो का मनोरंजन करने और उनकी जीवन की समस्यों के बारे में उन्हें जागरूक करने में करते है.ऐसे में जाहिर है कि वहां के प्रशासन और पुलिस के लिए वे एक खतरनाक व्यक्ति थे और वे उन्हें सबक सिखाने का मौका तलाश रहे थे.

झारखण्ड बचाओ आन्दोलन से जुड़े लोगों का आरोप है कि 'पुलिस ने हत्याकांड में शामिल असली जीतन मरांडी को पकड़ने का किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं किया.उनके लिए हमारे साथी को पकडना और उसे आरोपी बताना बहुत आसान था.पुलिस के लिए तथा कथित ‘गवाह को पेश करना कोई बड़ी बात नहीं थी जो अदालत में कबूल करते कि उन्होंने मरांडी को हत्याकांड की जगह देखा था और कोर्ट के लिए ये तथा कथित  गवाह सजा मुकर्रर  करने के लिए काफी थे.

वो सुबह कभी तो आएगी

जैसे ही कोर्ट ने सजा दी मरांडी ने कोर्ट परिसर में जोर जोर से ‘वो सुबह कभी तो आएगी’गीत गाना शरू कर दिया.जीतन की पत्नी अपर्णा ने भी 2साल के अपने बच्चे को गोद में उठाये हुए उनकी आवाज़ के साथ अपनी आवाज़ मिला दी.इस सजा के पीछे की कहानी एक राजनीतिक षड़यंत्र है जो पूर्व मुख्य मंत्री की पार्टी के नेताओं और पुलिस की मिलीभगत में रचा गया है ताकि जनता को डरा कर चुपचाप दमन सहते रहने को मजबूर किया जा सके.

 कोर्ट में जतीन ने घोषणा की कि वे इस सजा के खिलाफ अपील करेंगे. कोर्ट से बाहर  उनकी बीबी अपर्णा ने भी इस बात की पुष्टि की.अपर्णा के कहा कि वह न केवल उच्च न्यायालय  में बल्कि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में भी सजा के खिलाफ अपील करेंगी.