Nov 25, 2010

हथियार ना उठाया तो कैसे बच पाउँगा?


मैं आज कुछ लोगों की मदद से पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा हूँ.जुलाई महीने में जैसे ही पुलिस को पता चला कि मैं पत्रकारिता कर रहा हूँ तो मेरे ऊपर नक्सली लीडर आजाद की जगह लेने और कांग्रेसी लीडर अवधेश गौतम के ऊपर हमले का मास्टरमाइंड बता दिया गया...

 

लिंगाराम कोड़ोपी

मै लिंगाराम कोड़ोपी छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा का एक आदिवासी हूँ और यहाँ अपने हालात बताने जा रहा हूँ, कि क्यों मुझे अपना दंतेवाडा छोड़कर दूसरे राज्य में रहना पड़ रहा है.जनज्वार पर हिमांशु जी का जो लेख छपा है उसे पढ़कर मुझे भी लगा क्यों न मैं अपना दुःख खुद ही कहूँ,चाहे कोई विश्वास करे या नहीं. मैं पहली बार लिख रहा हूँ और मेरी हिंदी अच्छी नहीं है, यह मैं जानता हूँ. फिर भी आपलोगों से कहता हूँ मेरी बात पढियेगा और फिर फैसला कीजियेगा सही कौन,गलत कौन. मैं समझने के लिए बता दूँ ,मैं वही हूँ जिसे नक्सली प्रवक्ता आजाद की मौत के बाद पुलिस ने आजाद की जगह लेने वाला बताया था.

तो अब सुनिए.यह एक ऐसे आदिवासी की कहानी है जो सितम्बर 2009से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के पास शरण लेकर रह रहा है। वे कार्यकर्ता सोचते हैं कि इस आदिवासी को पत्रकारिता की पढ़ाई करवायी जाये,ताकि ये अपने समुदाय की बात सरकार तक पहुंचाए। क्योंकि मीडिया अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है। वे कार्यकर्ता चाहते थे कि उस जगह पर एक पंत्रकार हो,ताकि वहां की बात सरकार तक पहुंचे और सरकार उनकी बात सुने।

कोई भी सामाजिक कार्यकर्ता आज दंतेवाडा में आदिवासियों की सेवा नहीं कर सकता। कारण यह है कि सामाजिक कार्यकर्ता अगर उस जगह पर रहेंगे तो आदिवासियों को नहीं मारा जा सकता,न ही भगाया जा सकता है और न ही कोई अभियान चल सकता है।


मैं आज कुछ लोगों की मदद से पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा हूँ. जुलाई महीने में जैसे ही पुलिस को पता चला कि मैं पत्रकारिता कर रहा हूँ तो मेरे ऊपर नक्सली लीडर आजाद की जगह लेने और कांग्रेसी लीडर अवधेश गौतम के ऊपर हमले का मास्टरमाइंड बोलकर दंतेवाडा पुलिस द्वारा प्रेस रिलीज निकला जाता है.फिर मुझे मेधा पाटकर, अरुंधती राय, नंदनी सुन्दर, हिमांशु कुमार जैसे बड़े विख्यात लेखकों-सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ जोड़ा जाता है।


जैसे ही मुझे पता चलता है कि मुझे नक्सली लीडर कहा गया है तो मैं तुरन्त उन कार्यकर्ताओं को फोन करता हूँ और बोलता हूँ कि मैं तो पिछले सितंबर महीने से दिल्ली में हूँ। आखिर मैं भला किसी को कैसे मारने जा सकता हूँ। तब वे मेरे बारे में सोचते हैं और एक प्रेस कांफ्रेंस करते हैं।

प्रेस कांफ्रेंस में मैं अपने आप को बेगुनाह बताता हूँ। रोता हूँ कि मुझे अब मार दिया जाएगा क्योंकि मुझे पहले भी सताया गया है। पुलिस द्वारा पकडकर टार्चर,बाथरूम जैसी छोटी जगह पर बंद कर प्रताड़ित किया गया है। जब मेरा भाई हाईकोर्ट में अपील करता है तो मुझे छोड़ दिया जाता है। मुझे पकड़ने के लिए मेरे घर पर कई बार दुबारा अटैक होता है। तो मैं प्रेस में यह कहता हूँ कि मैं अब आत्महत्या करूँगा।

तभी एक भला इन्सान मेरा हाथ थामता है और पुलिस को चुनौती देता है कि यह लडका मेरे पास है, अगर पुलिस के पास कोई सबूत है तो उसे मेरे यहाँ से पकड़कर ले जाये। जो भला व्यक्ति मुझे अपने साथ ले जाता है उसे आज आर्य समाज के जाने-माने व्यक्ति स्वामी अग्निवेश के नाम से जाना जाता है। जो कि नक्सल और सरकार के बीच मध्यस्थतता की कोशिश कर रहे हैं।

आज भी पुलिस नक्सलियों को मारने में नाकाम है। आदिवासियों को मारकर नक्सलियों का नाम देना पुलिस का पेशा बन गया है। पुलिस आज भी मुझे यानी लिंगा राम कोड़ोपी को मारना चाहती है। इसके लिए मेरी बुआ के साथ सौदा करने की कोशिश की गयी कि तुम अपने भतीजे को दिल्ली से वापस बुलाओ,तो तुम्हरे साथ कुछ बुरा नहीं होगा।



बुआ को मैंने फोन किया और पूछा कि पुलिस वाले आपको परेशान कर रहे हैं क्या?तो उन्होंने बताया कि हाँ और कहा कि मेरा नाम फरारी (भगेडू) लिस्ट में है. तो मैंने उनको दिल्ली में बुलाया और कोशिश की कि इनको दिल्ली से कुछ मदद मिले,लेकिन कोई मदद नहीं मिली। मैंने कोशिश की एस.एस.पी. से बात करने की, पर उसने मुझे गन्दी गालियों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि तू छुपकर कहाँ बैठा है। मैंने उनसे कहा कि सर आप मेरे पीछे पड़े क्यों हैं,मैंने आपका क्या बिगाड़ा है? तो उसने कहा तू हीरो बन गया। पहले दन्तेवाड़ा तो आ, वहां कर क्या रहा है? मैंने कहा कि मैं जर्नलिस्ट की पढ़ाई कर रहा हूँ, तो उसने कहा, तू आ के देख कैसे तेरा स्वागत करता हूँ दन्तेवाड़ा में।

मैंने कोशिश किया और कहा आपकी जो भी दुश्मनी है मेरे साथ है, मेरी बुआ को क्यों परेशान कर रहे हैं। तो उसने मुझसे कहा कि तुझे पूछने का कोई अधिकार नही है। तो मुझे क्रोध आया और मैंने उनसे बोला कि मै दन्तेवाड़ा आऊंगा जरूर और आपका स्वागत भी स्वीकार करूँगा। मैंने कहा कि बेसब्री से इन्तजार कर रहा हूँ दन्तेवाड़ा आने का। इतना बोलकर मैंने फोन काट दिया। मुझे पता है कि मेरा क्या हाल करने वाली है पुलिस। मैं ये अच्छी तरीके से जानता हूँ, लेकिन अंत तक हिंसा नहीं करूँगा,ये सोचता हूँ। लेकिन फिर सोचता हूँ शायद मैंने हथियार न उठाया तो खुद को बचा नहीं पाउँगा।

दिल्ली या शहर में रहने वाले बुद्धिजीवियों को क्या पता कि पुलिस किसके साथ क्या करती है। दन्तेवाड़ा के पूरे पत्रकारों को दबाव में रखा गया है। वहां मीडिया है ही नहीं। मैं पूरे भारत के बुद्धिजीवियों से पूछना चाहता हूँ कि नेशनल  मिनरल डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड(एनएमडीसी)52सालों से चल रहा है,पर आज तक उस क्षेत्र का विकास नहीं हुआ क्यों?

क्या कारण है कि नक्सलियों कि जगह पर आदिवासियों को जेलों में डाला जा रहा हैं?नक्सली नहीं लूटते, पर पुलिस को लूटते हुए मैंने देखा है, क्योंकि मेरी गाड़ी आज भी पुलिसवालो के कब्जे में है और एक साल से चलाई जा रही है। मैं एक गवाह हूँ। ऐसे कई लोगों कि संपत्ति को पुलिसवाले इस्तेमाल करते हैं। 

जब बात न बनी तो बुआ के खिलाफ फर्जी केस बनाकर उनके खिलाफ आज वारंट निकाल दिया है। यह मुद्दा बहस का है। इस बडे लोकतंत्र में सुधार की, इस बात को सोचने की जिम्मेदारी बुद्धिजीवियों की है। उसी विषय पर हिमांशु कुमार ने लेख लिखा था,क्योंकि वहां के आदिवासी हिमांशु को जानते है,इसलिए उनके पास फोन करते हैं। पर हिमांशु सिर्फ कोशिश कर सकते हैं,बचा नहीं सकते। क्योंकि इस लोकतंत्र में बुद्धिमान व्यक्ति चीख-चीख कर चिल्लाये उसकी कोई नहीं सुनेगा।

आज भी हथियार उठाना नहीं चाहता, पर यह पुलिस मजबूर करने की कोशिश कर रही है। सरकार तो यही चाहती है कि हर आदिवासी हथियार उठाये,ताकि मारने में आसानी हो। क्योंकि यह देश महापुरूष महात्मा गाँधी का है, हिंसा करना गुनाह है,लेकिन पुलिस आदिवासियों को मारे तो इन्साफ है। आदिवासियों को नक्सल बनाती है पुलिस और जब वही नक्सली पुलिस को मारे तो गुनाह है।

मैं अगर नक्सली बन जाता तो किसको मारता। क्योंकि पुलिस ने मुझे प्रताडि़त किया है,मैं पुलिस को ही मारता, पर मैं बना नहीं। पूरे भारत में बुद्धिजीवी सो गये हैं क्या?आखिर यह मुद्दा क्यों नहीं उठता कि आदिवासियों को क्यों मारा जा रहा है। यहाँ तक कि वर्ष 2009में जब दिल्ली से आदिवासी प्रेस कांफ्रेंस करके जा रहे थे और उन आदिवसियों की कोशिश यह थी कि रायपुर में भी प्रेस कांफ्रेंस हो,लेकिन वहां के प्रेस क्लब वालों ने कहा कि आदिवासी झूठ बोलते हैं। ऐसा बोलकर उन्होंने प्रेस क्लब देने से इन्कार कर दिया।

मैं बुद्धिजीवियों से पूछना चाहता हूँ कि मीडिया किसके लिए होती है,आज अगर मीडिया न होता तो मैं लिंगा राम कोड़ोपी मारा गया रहता। मीडिया में बहुत ताकत होती है,लेकिन मीडिया का कुछ लोग गलत इस्तेमाल करते हैं।

आज दन्तेवाड़ा में जो आदिवासी मर रहे हैं इसका मुख्य कारण शिक्षा न होने की वजह और बाहरी लोग सत्ता में रहने के कारण है। आज जिन लोगों को अवधेश गौतम के ऊपर जो हमला हुआ जिसमें नक्सलियों ने किया,पर आदिवासियों को अन्दर डाला गया। 35 लोगों को जेल में डाला गया है एक बाहरी व्यक्ति के कहने पर। वो तो एक ठाकुर है, वो कब से वहां का नेता बन गया। कांग्रेस को लोगों की नजर में गन्दा करने वाले यही लोग हैं जो सलवा जुडूम अभियान जन्म देने वाले बाहरी लोग हैं।

सलवा जुडूम में जितने बड़े लीडर हैं वे सब बाहर के थे।आज फिर से दोहराने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिह का कहना है कि आदिवासी सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें,अगर कोई चलना चाहे तो उसे कुचल दिया जाता है। राहुल गाँधी का कहना है कि अधिक से अधिक आदिवासी राजनीति में आयें,पर आयेंगे कैसे।