Dec 4, 2010

तैंतालिस हजार में बेच दी बीबी


तो अब 43हजार रुपये दो और दुल्हन ले जाओ. कुछ इसी तरह से एक पति से दूसरे पति तक दुल्हन भेजने की नाता प्रथा आज भी राजस्थान में प्रचलित है। राजीमंदी से यह प्रथा समाज को मान्य भी है। इसके लिए बकायदा पंचायत भी बैठती है।

 ऐसा ही एक ताजा मामला राज्य के झालावाड़ जिले के भवानीमंडी में शुक्रवार को सामने आया। पहले किसी और के संग ब्याही गई को दूसरे की दुल्हन बनाना तब मंजूर किया गया,जब उसके पिता ने  43 हजार रुपया देना मंजूर किया।

शुक्रवार को क्षेत्र के मैला मैदान में नायक समाज करीब ढाई-तीन सौ लोगों की पंचायत हुई। कारण कि एक महिला अपने पहले पति को छोड़ दूसरे पति के साथ रहना चाहती थी। इसको लेकर हो रहे झगड़े की गुत्थी को सुलझाने के लिए पंचायत ने मंथन किया। रास्ता नाता प्रथा से निकला। समस्या सुलझी। कहीं कोई विवाद नहीं हुआ।

पंचायत में उपस्थित पहले पति के पिता भानपुरा थाना के खेरखेड़ी गांव के निवासी प्रभुलाल ने बताया कि उसके पुत्र राजू की शादी उसके ही थानाक्षेत्र के रामनगर निवासी नंदा के बेटी पिंकी के साथ करीब 12-13वर्ष पूर्व बचपन में हुई थी। विवाह के बाद उसकी बहु दो चार बार उसके घर भी आई थी। आखिरी बार उसकी बहु एक साल पूर्व घर आई थी। उसके बाद लड़की के पिता ने  लड़की को मेरे यहाँ नहीं भेजा और  पिंकी की शादी  हड़मतियां गांव के मुकेश पुत्र पर्वत नायक से कर दी.


नायक समाज की पंचायत के बीच लाल घेरे में पड़ा लकड़ी का बंधन

गाँव के सरपंच भवानीराम नायक मुताबिक, 'जब पिंकी की शादी राजू से हुई थी,तब राजू के पिता ने जो रकम चढ़ाई थी,वह रकम पिंकी की शादी में  पिता के दिये दहेज के बदले आटे साटे यानी बराबर हो गई। अब पिंकी जहां दूसरी जगह शादी कर गई है, वह पक्ष पहले पति यानी कि राजू को 43हजार रुपये हर्जाने के रूप में चुकाएगा। इसके लिए दोनों पक्षों की लिखित में समझौता हुआ। दूसरे पति ने १३ हजार रुपये मौके पर दिये तथा ३० हजार रुपये बैशाख महीने में देने का वायदा किया है।

पंचायत  में परंपरा है कि दोनों पक्षों की ओर निशानी के तौर पर दो लकड़ियां बाँध कर बीच में रख दी जाती  हैं.  लकड़ियों को आपस में बांध कर उसे एक शाल में लपेट कर रखा जाता है.समाज के लोगों ने बताया कि इन  दो लकड़ियों में एक लकड़ी  लड़का पक्ष तथा दूसरी लड़की पक्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं. साथ ही पंचायत की कार्रवाई के दौरान दोनों पक्षों को  कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं होता है और । इसी परम्परा कोमानते हुए दोनों ही पक्षों ने पंचायत के निर्णय पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई। पंचों के फैसले को दोनों पक्षों को राजीमर्जी से स्वीकारा।

क्यों होता है झगड़ा

स्थानीय लोगों का कहना है कि आज भी कई समाज में आज भी बाल विवाह हो रहे हैं। नन्ही उम्र में मासूमों को वैवाहिक बंधन में बांध दिया जाता है। नन्हीं उम्र के विवाहित जोड़े जब बड़े होते हैं, तब उनके विचार आपस में मेल नहीं खाते हैं। इससे बचपन के बंधे रिश्ते में खटाश आ जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए समाज में रास्ता भी निकाला है। जब जोड़े एक दूसरे को पसंद नहीं करते हैं तो लड़की का पिता लड़की की सहमती से लड़की को दूसरी जगह यानी कि किसी दूसरे व्यक्ति के घर भेज देता है। इस प्रथा को नाता प्रथा कहते हैं। इसके बाद पहले पति दूसरे पति पर जो हर्जानापूर्ति का दावा करता है, उसे स्थानीय भाषा में झगड़ा कहा जाता है।

समझौते का रास्ता है यह झगड़ा

इस प्रथा का नाम जरूर झगड़ा है। यदि इस पर समाज की मौजूदगी में पंच पटेलों ने अपनी सहमती दे दी तो झगड़ा समझौते में बदल जाता है। एक तरह से दोनों पक्षों में सुलह हो जाती है। इसके बाद पहले पति व उसके ससुराल पक्ष तथा नये पति के परिवार में आपस में इस बात को लेकर झगड़ा फसाद नहीं करने के लिए भी पाबंद किया जाता है। लोगों का कहना है कि इस समझौते को थाना-कचहरी भी मान्य करता है।

लड़की खरीदने में बदली प्रथा

कई स्थानीय लोगों का कहना है कि एक तरह से दूसरी विवाह के रूप में प्रचालित यह प्रथा अब नई बीवी खरीदने का रूप ले चुकी है। कई बार लोग लड़की का विवाह जल्दी कर देते हैं। कुछ वर्ष गौना रखते है। इस बीच यदि कोई मालदार आदमी मोटी रकम देकर पत्नी बनाने के लिए राजी है, तो लड़की पक्ष विवाहित बेटी को नाते पर भेज देता है। इसे समाज की बैठक में पिछले लड़के को हर्जाना देकर मान्यता ले ली जाती है। जिनके पास पैसा है वे खूबसूरत लड़की को नाते में खरीद कर लाते हैं।

 प्रस्तुति- संजय