May 10, 2011

प्रपंच पर टिका सत्य साईं का आध्यात्म

 
अब तक राजनीति,नौकरशाही और माफियाओं के बीच एकाधिकार रखने वाले साईं के दायरे में दूसरे बाबाओं ने सेंध लगाने शुरू कर दी थी और बाबा के मुखमंडल से राजसत्ता की चमक धूमिल होने लगी थी...

सनल एडमर्क

साईं बाबा जब बड़े भगवान नहीं थे,तब से मैं उन्हें जानता हूं। उस समय केरला में इंडियन रेशनलिस्ट आंदोलन का संयोजक रहते हुए मैंने साईं बाबा को एक चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी में हम लोगों ने उनके द्वारा भक्तों को मिठाई,सोने की चेन और भभूत देने की बात को फर्जी बताया और कहा कि वे वैज्ञानिक तौर पर इसे साबित करके दिखायें। शर्त बस इतनी रखी कि साईं बाबा के पांच फिट के दायरे में कोई नहीं आयेगा और उनकी बांह ढकी नहीं रहेगी।

साईं बाबा की ओर से हमारी चुनौती का कोई जवाब नहीं आया। उसके बाद हमारी मुलाकात श्रीलंका के प्रोफेसर अब्राहम कोवूर से हुई। भारतीय मूल के कोवूर दुनिया के बड़े रेशनलिस्टों में गिने जाते थे और भारत आने पर साईं बाबा के फर्जीवाड़े पर सार्वजनिक भाषण दिया करते। कोवूर ने पहले तो श्रीलंका में ही बाबा की बखिया उधेड़ी, क्योंकि इनके भक्त उस समय तक भारत से ज्यादा श्रीलंका में थे। देखते-देखते कोवूर के भाषणों से साईं भक्तों में प्रश्न उठने लगे। इससे तंग हो साईं ने वर्ष 1972 में एक पत्र के जरिये बयान जारी किया कि जो लोग दूर रहकर मेरा विरोध कर रहे हैं,वे मेरे आश्रम में आयें फिर उन्हें साईं के सही-गलत का पता चलेगा।

कोवूर ने साईं की चुनौती को स्वीकार करते हुए एक टीम बनायी। पच्चीस लोगों की इस टीम में पत्रकार, रेशनलिस्ट आंदोलन से जुडे़ छात्र और जाने-माने रेशनलिस्ट शामिल थे। इस टीम में मैं भी शामिल था। साईं की बताई  तारीख और समय पर हमारी टीम पुट्टापर्थी पहुंच गयी, लेकिन साईं नहीं मिले। हमें पुट्टापर्थी में गेट पर ही रोक लिया गया और बताया गया कि बाबा बंगलुरू के वाइट फिल्ड आश्रम गये हैं। साईं के सचिव ने हमें वाइट फिल्ड आने को कहा।

कोवूर के नेतृत्व में टीम वाइट फिल्ड पहुंच गयी। बाबा वहां भी नहीं मिले तो कोवूर ने आश्रम के बाहर एक प्रेस वार्ता आयोजित की और लोगों को दिखाया कि बाबा हाथ में पहले से रखी स्टार्च की गोलियों को रगड़कर हाथ से भभूत कैसे गिराते रहते हैं। उसके बाद दूसरी बार साईं बाबा की करामातों पर से दुनियाभर में तब पर्दा उठा,जब चैनल फोर ने उनकी हाथ की सफाई के फरेब को सार्वजनिक किया। इसमें पलीता लगाने का काम 'गुरू बस्टर्स' नाम की फिल्म ने किया।

हालांकि उससे पहले वर्ष 1994में ही हैदराबाद दूरदर्शन के एक कैमरामैन ने बाबा के फरेब को तब कैद कर लिया था, जब साईं अपने 79वें जन्मदिन पर कल्याण मंडप बनाने वाले को उपहार में सोने की चेन दे रहे थे। लेकिन उस वीडियो को दूरदर्शन नहीं दिखा सका। पहली बार बाबा के फरेब की तस्वीरों को डेक्कर क्रॉनिकल और इलस्ट्रेटेड वीकली ने छापा था।

उस वीडियो में साईं बाबा को नीचे से सोने की चैन सरकाते हुए साफ दिखाया गया था। बाद में उसी वीडियो और कुछ अन्य वीडियो को मिलाकर 'गुरू बस्टर्स' नाम की फिल्म भी बनी। मगर भारत में साईं की ठगी के खिलाफ किसी संगठन या पार्टी की बोलने की हिम्मत खत्म होती चली गयी। कारण कि साईं की देश चलाने वाले राजनेताओं से लेकर पूंजीपतियों तक में अच्छी पैठ थी। एक समय तो देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे सभी लोग बाबा के  भक्त थे। इनमें पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, न्यायाधीश केएन भगवती और प्रधानमंत्री नरसिंहा राव जैसे बड़े नाम शामिल थे।

'गुरू बस्टर्स' फिल्म ने दुनियाभर में साईं भक्तों और दानदाताओं के बीच फैले उनके तिलिस्म पर एक जोरदार हमला किया। इस हमले के बाद साईं ने कुछ कल्याणकारी काम किये,जिन्हें आज उनकी समाज के लिए उपलब्धियों के तौर पर गिनाया जाता है। अन्यथा सवाल उठता हैं कि जिस साईं बाबा ने खुद को 14साल की उम्र में भगवान घोषित कर दिया था, उसने पहली बार जनता की सेवा का काम 79की उम्र यानी 1995 में क्यों शुरू किया?सिर्फ इसलिए कि साईं बाबा के एकाधिकार के मुकाबले दूसरे संत भी मैदान में आने लगे थे।

अब तक राजनीति, नौकरशाही और माफियाओं के बीच एकाधिकार रखने वाले साईं के दायरे में दूसरे बाबाओं ने सेंध लगाने शुरू कर दी थी और बाबा के मुखमंडल से राजसत्ता की चमक धूमिल होने लगी थी। परिणामस्वरूप  बाबा की अकूत संपत्ति पर प्रश्न उठने लगे थे। अब बाबा के पास जनता के बीच अपनी आस्था बचाये रखने के लिए जनकल्याणकारी कामों के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा था। भारत में बढ़ते बाबाओं के बाजार में दबाव और बढ़ा तो वर्ष 2001 से स्कूल, अस्पताल और कॉलेज जैसी योजनाओं में तमाम बाबा कूदे, जिसमें एक नाम साईं का भी है। मगर बाबाओं के इन कामों को कोई जनकल्याणकारी उपक्रम कहता है तो फिर उसे दस्युओं,माफियाओं और दंगाइयों का भी समर्थन करना चाहिए, क्योंकि एक स्तर पर वह भी कुछ भलाई का काम करते हैं।

देश की आजादी से पहले जन्मे साईं बाबा ने खुद को भगवान और जनता को भाग्य पर जीने का सूत्र उस समय दिया,जब जनता को वैज्ञानिक और तर्कशील ज्ञान की सबसे अधिक जरूरत थी। मेरी जानकारी में साईं पहले ऐसे संत हैं,जिन्होंने खुद को भगवान घोषित किया। यही नहीं देश की बड़ी आबादी को उन्होंने सिलसिलेवार ढंग से ढोंगी, बलात्कारी, हत्यारे, माफिया बाबाओं के चंगुल में फंसते जाने की अंधेरी गली में मोड़ दिया।



जाने माने तर्कशास्त्री और इंडियन रेसनलिस्ट सोसाइटी के प्रमुख . सत्य साईं पर इनका वृहद् शोध है.वे साईं के जादुई और अध्यात्मिक कारनामों को हाथ की सफाई और प्रपंच मानते हैं.