Jul 11, 2016

तुम मेरी वाली लिखो

दो—तीन दिन पहले मेरे बेटे ने पूछा, 'क्या कर रहे हो पापा?
मैंने कहा, कुछ लिख रहा हूं।
'क्या लिख रहे हो'
एक स्टोरी।
'कौन सी'
है एक, उसे ही।
'तो तुम मेरी वाली लिखो। मेरी वाली तुम लिखते ही नहीं।'
अपनी कहानी खुद लिखनी होती है मेरे बच्चे।
'पर मैं अभी छोटा हूं और केजी में हूं। कैसे लिखुंगा। तुम्हें मालुम तो है?'
तो तुम जाओ पेंटिंग करो।
'मुझे नहीं करनी। मेरी कहानी लिखो। मम्मा भी नहीं लिखती।'
तुमने मम्मा को बताया?
'हां, पर वह सुनती ही नहीं। बस हंस देती है।'
अच्छा मुझे सुनाओ अपनी कहानी।
'शेर—चूहे वाली है'
ओह! वही वाली जिसमें चूहा जाल काट कर शेर को बचाता है। उसे क्या लिखना, सब जानते हैं। तुम्हारी किताब में भी है।
'अरे नहीं। दूसरी है। इसमें चूहा शेर को मार देता है।'
चूहा, शेर को मार देता है। गज्जब! वह कैसे?
'शेर, चूहे को खाता है इसलिए मर जाता है'
शेर, चूहा खाता है। हा...हा। ऐसा क्यों, मेरे बच्चे!!!
'क्योंकि शेर को चूहे पर बहुत तेज गुुस्सा आता है।'
ओह! पर शेर को चूहे पर गुस्सा क्यों आता है? वो भी इतना कि वह चूहे को खा ही जाए।
'शेर को चूहे पर गुस्सा इसलिए आता है कि जब भी शेर शिकार करने जाता है, उससे पहले ही चूहा वहां पहुंचकर सब जानवरों को बता देता है कि शेर तुम्हें खाने के लिए आ रहा है और जानवर भाग जाते हैं।'
हा...हा। अबे, ऐसी कहानी तुमने कब बनायी। मैंने तो सुनी नहीं ये वाली।
'यही तो है मेरी वाली।'
अच्छा ये बताओ, शेर मर क्यों जाता है चूहा खाकर?
'इसलिए मर जाता है क्योंकि चूहा तो कुछ भी काट सकता है न। शेर जैसे ही चूहे को खाता है, चूहा शेर का गला काटकर बाहर निकल आता है और शेर मर जाता है। सुन ली न कहानी...चलो अब लिखो।'