Jul 22, 2011

सर्वत्र अपराध की सर्वजन सरकार


उत्तर प्रदेश को अपराध, भ्रष्टाचार और माफियाराज के आधार पर बांटें तो मोटे तौर पर प्रदेश के तीन हिस्से होते हैं,जिसके मुख्य खिलाड़ी इस वक्त शराब माफिया पोंटी चड्ढा हैं। पोंटी चड्ढा वह शख्सियत हैं जो सीधे मायावती तक पहुंच रखते हैं और शराब की हर बोतल पर बीस रूपया अधिक वसूलते हैं और प्यार से दुकानदार इस वसूली को मायावती टैक्स नाम देते हैं...

अजय प्रकाश 

अलीगढ़ में आयोजित किसान महापंचायत से एक दिन पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश  के बारे में कहा कि राज्य को दलाल चला रहे हैं। उनके इस तल्ख बयान पर लाजिमी प्रतिक्रिया राज्य की सत्ताधारी पार्टी बसपा की ओर से हुई और बाकी राजनीतिक दायरे में सन्नाटा रहा। सन्नाटा कुछ यूं रहा मानो इस स्थापित सच का विकल्प जनता को किसी राजनीतिक दल में नहीं दिखता हो और सियासी जरूरतों के लिए पार्टियां दोहराव भर करती हों।

विपक्षी  पार्टियों के बेअसर दोहराव की ही वजह से प्रदेश  में लगातार आपराधिक वारदातें हो रहीं हैं, सत्ताधारी पार्टी के मंत्री से लेकर विधायक तक आकंठ भ्रष्टाचार  में डुबे हैं और मुख्य विपक्षी पार्टी सपा बलात्कार प्रदेश का तमगा थमा कर जनता में अपने जिम्मेदारी की इतीश्री कर ले रही है। वहीं कांग्रेसी नेता मीडिया में बयानों से अधिक अपने कार्यभार ही नहीं मान रहे हैं। और बची भाजपा तो वह अभी अपने नेता उमा भारती को महान बनाने में जुटी है।
नसीमुद्दीन और बाबू सिंह : कौन किससे बड़ा माफिया 
अगर बीते जून महीने की बात की जाये तो प्रदेश में करीब दर्जन भर मामले महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों के सामने आ चुके हैं,जिनमें सर्वाधिक मामले दलित और पिछड़ी जातियों के परिवारों से हैं। लखनउ में डिप्टी सीएमओ की जेल में संदिग्ध हत्या में प्रदेश सरकार के दो मंत्रियों अनंत मिश्र और बाबूसिंह कुषवाहा पर गहरी साजिश की बात सामने आयी है तो मुख्यमंत्री के चहेते और सर्वाधिक मंत्रालय संभालने वाले नसीमुद्दीन सिद्दकी के संरक्षण में बुंदेलखंड  की खानों और बालू ठेकों से करायी जा रही अवैध वसूली किसी से छीपी नहीं है। इन खानों में बड़ी हिस्सेदारी बाबूसिंह कुशवाहा की भी है। तथ्यगत तौर पर यह बात साबित न हो जाये इसके लिए ठेके-पट्टों का जिम्मा इनके रिश्तेदारों और चहेतों के पास सुरक्षित है।

हालत यह है कि अवैध कमाई के लिए सरकार ने परिवार कल्याण मंत्रालय को तोड़कर दो मंत्रालय बनाये और उसमें से कमाई वाले मंत्रालय का जिम्मा बाबूसिंह कुशवाहा को सौंपा,जो अब दो सीएमओ बीपी सिंह व बीपी आर्य और एक डिप्टी सीएमओ की हत्या के बाद उनसे छिन चुका है। लखनउ के पुलिस विभाग में तैनात विजिलेंस के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं,‘जिस सरकार में भ्रष्टाचार  को बनाये रखने के लिए मंत्रालय बनाये जाते हों,उस सरकार के पुलिस अधिकारियों की क्या औकात जो सरकार में शामिल अपराधियों का गिरेबान धर दबोचें।’जानकार बताते हैं कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने अपनी काली करतूतों को छुपाने के लिए बांदा से यूपी टाइम्स जदीद नाम के दैनिक अखबार का प्रकाशन शुरू कर दिया है तो उनके साले मुमताज अली बुंदेलखंड  उजाला निकाल रहे हैं। इतना ही नहीं चर्चा तो यह भी है कि हाल ही में लखनउ से शुरू हुए एक हिंदी दैनिक अखबार पर बरदहस्त सीधे मुख्यमंत्री का है।

गौरतलब है कि बांदा क्षेत्र में सरकारी निर्माण ठेकों पर कब्जा नसीमुद्दीन के साले की कंपनी मुमताज एंड कंस्ट्रक्सन  कंपनी का है,जो एक ही सड़क को साल में तीन बार उखाड़ती-बीछाती है। इसके अलावा मुमताज बुंदेलखंड  हथकरघा उद्योग नाम का एनजीओ भी चलाते हैं। बुंदेलखंड में एक प्रमुख हिंदी दैनिक के पत्रकार बताते हैं कि बालू और पत्थर ले जाने वाले ट्राली-ट्रक से हर बैरियर पर 2हजार रूपये वसूले जाते हैं,जिसे लोग बाबूसिंह टैक्स कहते हैं। कहा जाता है कि शीलू  बलात्कार कांड में नरैनी के विधायक पुरूशोत्तम नरेश द्विवेदी भी खनन के झगड़े में ही नपे। गौरतलब है कि पुरुषोत्तम   भी खनन में दखल रखते हैं और उन्होंने बाबूसिंह को पटखनी देने के लिए अपने किसी चहेते के जरिये उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर करवा दी थी।

उत्तर प्रदेश को अपराध, भ्रष्टाचार और माफियाराज के आधार पर बांटें तो मोटे तौर पर प्रदेश के तीन हिस्से होते हैं,जिसके मुख्य खिलाड़ी इस वक्त शराब माफिया पोंटी चड्ढा हैं। पोंटी चड्ढा वह शख्सियत हैं जो सीधे मायावती तक पहुंच रखते हैं और शराब की हर बोतल पर बीस रूपया अधिक वसूलते हैं और प्यार से दुकानदार इस वसूली को मायावती टैक्स नाम देते हैं। लूट के क्षेत्र का पहला संगठित हिस्सा बुंदेलखंड है, जहां बाबूसिंह कुशवाहा, नसीमुद्दीन का बालू और खनन पर राज है,दूसरा हिस्सा सोनभद्र और मिर्जापुर का है,जहां बनारस जेल में बंद माफिया बृजेष सिंह का दबदबा है और तीसरा हिस्सा पूर्वांचल का है जहां हरिशंकर  तिवारी के समानांतर गोरख जायसवाल और रामप्रकाश जायसवाल की भागीदारी है। इसके बाद छुटभैये माफिया हर क्षेत्र में हैं जिनकी गिनती नहीं है।

गोरख, रामप्रकाश के पिता हैं और वे देवरिया से बसपा सांसद हैं, जबकि रामप्रकाश सत्ताधारी पार्टी के बरहज से विधायक हैं। लखनउ जेल में मृत पाये गये डिप्टी सीएमओ सचान के परिजनों ने रामप्रकाश जायसवाल पर भी हत्याकांड में संदेह जाहिर किया है। संदेह इस आधार पर जाहिर किया है कि परिवार कल्याण मंत्रालय के सामानों की आपूर्ति रामप्रकाश की कंपनी ही करती थी और इन तीहरी हत्याओं का कारण कमीषनखोरी को लेकर उपजा विवाद है। गोरखपुर के प्रमुख पत्रकार मनोज सिंह कहते हैं,‘माफियाओं ने बसपा का नीजिकरण कर दिया है और नौकरशाही इनका चम्मच बनने को बेताब है।’

अब अपराधों पर अंकुश लगाने वाले पुलिसकर्मियों की बात करें तो हाल ही में थानों में बलात्कार के जो मामले सामने आये हैं, उससे साफ है कि सब धान बाइस पसेरी हो गया है। ऐसा इसलिए है कि जो पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी साफ सुथरी छवि वाले थे,उन्हें मुख्यमंत्री ने पहले ही किनारे कर दिया है, जहां वे फाइलों से धूल उड़ा रहे हैं। मायावती के आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच में सीबीआई टीम के हिस्सा रहे डीएसपी धीरेंद्र राय को तो मायावती ने आते ही बर्खास्त कर दिया था। ईमानदारी के लिए ख्यात धीरेंद्र राय को बर्खास्त करने की संस्तुति सीधे मायावती ने अपने कलम से की थी,जो किसी निचले अधिकारी के मामले में अपवाद है। वैसे में यह सर्वजन सरकार सर्वत्र भ्रष्टाचार   के सिवा गरीबी, भुखमरी, अपराध और माफियाराज पर अंकुश लगाने में कैसे सक्षम हो सकती है।


अनिल सिन्हा स्मृति कार्यक्रम

अनिल सिन्हा मेमोरियल फाउंडेशन आपको अपने पहले कार्यक्रम के लिए सादर आमंत्रित करता है
कार्यक्रम
  • वीरेन डंगवाल द्वारा अनिल सिन्हा के ताजा कहानी संग्रह  ‘एक पीली दोपहर का किस्सा’  का लोकार्पण
  • आलोक धन्वा, मंगलेश डबराल और  आनंद स्वरूप वर्मा द्वारा अनिल सिन्हा की याद 
  •  इरफान द्वारा अनिल सिन्हा की एक कहानी का पाठ    
  • चित्त प्रसाद की कला और  इतिहास दृष्टि पर अशोक भौमिक की खास पेशकश
कार्यक्रम की अध्यक्षता मैनेजर पाण्डेय करेंगे
इस शाम के आयोजन  में शरीक होकर फाउंडेशन को मजबूत बनाएँ
समय:  शाम 5 बजे शनिवार 23 जुलाई , 2011जगह:   कौस्तुभ सभागार, ललित कला अकादमी, रवीन्द्र भवन, कोपरनिकस मार्ग, मंडी हाउस ,  नई दिल्ली - 110001

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अनिल सिन्हा(11 जनवरी 1942 - 25 फरवरी 2011)

अनिल सिन्हा, एक दोस्ताना शख्सियत, जिसे हम सब अच्छी  तरह जानते थे फिर भी जिस के कुछ पहलू हम से छूट जाया करते थे। जनवादी  पत्रकार,  प्रतिबद्ध  साहित्यिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक कार्यकर्ता। दृष्टिनिर्माता कला-आलोचक। संवेदनशील कथाकार । हर  एक मोर्चे पर  उत्पीडि़त अवाम की तरफदारी में तैनात। जमीन की जंग में, दलित-दमित वर्गों, समुदायों और राष्ट्रीयताओं के संघर्ष में, उर्दू-हिंदी इलाके के क्रांतिकारी वाम- आन्दोलन के समर्पित सिपाही के बतौर. मंच की तीखी रौशनी से बच कर, जमीनी कार्यकर्ता की अपनी चुनी हुयी  भूमिका से  नायकत्व की अवधारणा को पुनर्परिभाषित करते हुए।
  अनिल सिन्हा ने पत्रकारिता की शुरुआत दिनमान से की फिर वे अमृत प्रभात, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा और दैनिक जागरण से भी जुड़े। वे हिंदी अखबारों की बदलती कार्यशैली से तालमेल न बिठा सके और अपने सरोकारों के लिए उन्होंने फ्रीलांस पत्रकारिता, शोध कार्य और स्वतंत्र लेखन का रास्ता चुना। अनिल सिन्हा जन संस्कृति मंच के संस्थापक सदस्य थे और आजीवन वाम राजनीति में संस्कृति कर्म की सही भूमिका तलाशते रहे।

अनिल सिन्हा मेमोरियल फाउंडेशन

     अनिल सिन्हा मेमोरियल फाउंडेशन का मकसद है अनिल सिन्हा की विरासत को आगे बढ़ाना। उन जीवन-मूल्यों और सिद्धांतों के लिए काम करना, जिन के लिए उन्होंने अपनी जिन्दगी की लड़ाई लड़ी। खास तौर पर-
  
 - लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और अन्य समानधर्माओं के लिए संवाद और सहयोग की एक ऐसी जगह निकालने की कोशिश, जहां वाम-जनवादी विचारों को पनपने का अवसर मिले।
   
- संभावनाशील लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं की दुखती हुई पीठ थपथपाने की कोशिश, एक सालाना सम्मान की शक्ल में।
   
- अनिल सिन्हा के जहां-तहां बिखरे हुए कामकाज को इकट्ठा करना, संग्रहित करना, प्रकाशित करना और निकट भविष्य में एक लाइब्रेरी की स्थापना करना।



राहुल की ‘नौटंकी’ माया को भारी न पड़ जाए

राहुल की पदयात्रा,किसान महापंचायत  और समय-समय पर दलितों के घर जाने, खाना खाने और रात बिताने को मायावती ‘नौटंकी’बताती हैं, जबकि अंदरूनी बात यह है कि माया इस समय राहुल फैक्टर से परेशान हैं...

आशीष वशिष्ठ

ये तो लगभग तय हो ही चुका है कि यूपी में विधानसभा चुनाव समय से पूर्व होंगे। राजनीतिक गलियारों और आफिसों में गहमागहमी और चहल-पहल का माहौल बनने लगा है। सभी दलों ने अपने सिपाहसिलारों और सिपाहियों को चुनावी रण की तैयारी के अंतरिम आर्डर जारी कर दिये हैं। जहां बाकी दल चुनाव की तैयारियों में दिन रात एक कर रहे हैं वहीं सूबे की सीएम मायावती अपनी सरकार के दामन लगे दागों को छुड़ाने और डैमेज कंट्रोल की कार्यवाही में लगी हैं।

डा0सचान हत्याकांड की जांच सीबीआई को सौंपकर सरकार पहले ही बैकफुट पर थी,अब राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले की जांच कैग से कराने की सिफारिश कर एक बार फिर सरकार कटघरे में खड़ी दिखाई दे रही है। दिनों-दिन बिगड़ती कानून व्यवस्था,सिर उठाते किसान आंदोलन, जमीन अधिग्रहण से जुड़े मामलों पर कोर्ट की सख्ती और जमीन वापिसी के आदेश,भ्रष्टाचार और घोटालों में डूबी, दागी मंत्रियों और विधायकों का बोझ ढोती माया सरकार को निर्धारित समय से पूर्व चुनाव करवाने में ही जीत और दुबारा सरकार बनाने की उम्मीद दिखाई दे रही है। लेकिन जिस तरह कांग्रेस के युवराज लगभग हर मोर्च पर माया सरकार को खुली चुनौती दे रहे हैं उससे ये उम्मीद लगाई जा रही है कि कही राहुल की ‘नौटंकी’मायावती पर भारी न पड़ जाए।

गौरतलब है कि बसपा ने राहुल की पदयात्रा, किसान महापंचायत,और समय-समय पर दलितों के घर जाने, खाना खाने और रात बिताने को ‘नौटंकी’ बताती है। जबकि अंदरूनी बात यह है कि माया इस समय सूबे में दिनों-दिन बढ़ते और लोकप्रिया होते राहुल फैक्टर से परेशन और डरी हुई है। राहुल मिशन 2012 की कड़ी में इन दिनों पूर्वी यूपी के दौरे पर हैं। सिर से पैर तक भ्रष्टाचार में सनी हुई माया सरकार पर राहुल रूक-रूककर घातक और कठोर प्रहार कर रहे हैं उससे सरकार की बड़ी फजीहत हो रही है।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में घोटाले के मुद्दों को राहुल ने ही उठाया था और आरटीआई के तहत सरकार से जानकारी मांगी थी। खुद के दामन पर कीचड़ उछलते देख माया ने एनआरएचएम की जांच और आडिट कैग से करवाने का आदेश आनन-फानन जारी कर दिया। असल में माया और लगभग सभी दूसरों दलों ने राहुल को कभी सीरियस तरीके से लिया ही नही। राहुल को बच्चा, मुन्ना और चाकलेट बेबी कहकर सभी उन्हें पालिटिक्स का ट्रैनी समझते रहे। लेकिन मिशन 2012की सफलता के लिए माया सरकार को हर मौके पर घेरने और सरकार को कटघरे में खड़ा करने से चूके नहीं।

भट्ठा पारसौल की घटना ने राहुल के हाथ में एक बड़ा मुद्दा थमा दिया। पुलिस चैकसी और पहरे को धता बताकर जिस तरह राहुल भट्ठा पारसौल किसानों के बीच जा पहुंचे  उसने पूरे देश को चैंका दिया। पदयात्रा और अलीगढ़ के नुमाइश मैदान में किसान महापंचायत कर राहुल ने बसपा, रालोद के साथ लगभग सभी विपक्षी दलों को हिला दिया। 2009 के आम चुनावों में राहुल फैक्टर ने ही कांगे्रस को 21 सीटे दिलाई थी बताते चले कि 2004 के चुनावों में कांग्रेस ने 4 सीटें जीती थीं। वहीं राहुल के मिशन 2012की टीम जिसमें दिग्विजय सिंह,रीता बहुगुणा जोशी,प्रमोद तिवारी, जगदंबिका पाल, बेनी प्रसाद वर्मा,जतिन प्रसाद,आरपीएन सिंह,पीएल पुनिया और श्रीप्रकाश जायसवाल शमिल हैं,माया सरकार को सत्ता से बेदखल करने में दिन रात एक किये हुए हैं। हो सकता है कल तक सियासी गलियारों में राहुल यूपी में बिग फैक्टर न रहे हो लेकिन आज राहुल फैक्टर माया और अन्य दलों की टेंशन की वजह है।

किसी जमाने में ब्राहाण, दलित और मुस्लिम कांगे्रस का वोट बैंक समझा जाता था, लेकिन प्रदेश में सपा,बसपा और अन्य दलों के उभरने से कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक उसकी बपौती न रहा। ब्राहाण, दलित और मुस्लिम वोट बैंक को टारगेट करके राहुल मिश 2012 को सफल बनाने में जुटे हैं और माया राहुल के हर कदम और चाल को नौटंकी करार देकर अपना भय,चिंता और घबराहट छुपाने का असफल प्रयास कर रही है।आम चुनावों में कांग्रेस को बढ़त दिलाकर राहुल ने जहां वाहवाही बटोरी तो वहीं बिहार विधानसभा चुनावों में उनका कोई असर दिखाई नहीं दिया।

समूचे विपक्ष और खासकर बसपा खुद को फ्रंटफुट रखने की चाहे जितनी कोशिश  करे लेकिन सच्चाई से मुंह नहीं फेरा जा सकता है। विपक्ष के हमलों,बयानबाजी और आलोचना से बेपरवाह राहुल मिशन 2012की पगडंडी पर सधे कदमों से चले जा रहे हैं। माया को यह भूलना नहीं चाहिए कि पिछले विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी को भी  पूर्ण बहुमत मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं था। आज माया सरकार के खिलाफ जो माहौल बन रहा है,उसमें राहुल की नौटंकी माया पर भारी भी पड़ सकती है।


स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक- सामाजिक मसलों के टिप्पणीकार.