Jun 12, 2011

मीडिया और टीवी चैनलों की सच्चाइयों से रूबरू कराने वाली पुस्तक ढिबरी चैनल



जनज्वारमीडिया और टेलीविजन चैनलों की की अंदुरूनी सच्चाइयों को अधार बना कर लिखी गयी व्यंग्य रचनायें और कहानियां अब ‘ढिबरी चैनल’ के नाम से पुस्तक रूप में उपलब्ध होने वाली है। इस पुस्तक में प्रकाशित कई रचनायें इंटरनेट एवं समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों के सामने आ चुकी है। इनमें से कई अत्यंत विवादास्पद एवं अत्यंत चर्चित हुयी। इंडियाईबुक्स ने इस पुस्तक का डिजिटल संस्करण प्रकाशित किया है जिसे इसकी वेबसाइट से डाउनलोड किया जा सकता है। शीघ्र ही इसका प्रिट संस्करण बाजार में उपलब्ध होने वाला है। इस पुस्तक में 22 रचनायें हैं जिनमें ज्यादातर मीडिया एवं टेलीविजन चैनलों पर आधारित है। 

इस पुस्तक के लेखक विनोद विप्लव ने इस बारे में बताते हैं, ‘आम तौर पर आम लोग मीडिया एवं टेलीविजन चैनलों की अंदुरूनी सच्चाइयों एवं उनमें काम करने वाले लोगों की समस्याओं से कम लोग वाकिफ होते हैं। टेलीविजन चैनलों में काम-काज के माहौल, भीषण प्रतिस्पर्धा, व्यवसाय और बाजार और टीआरपी के दवाब, चैनलों में काम करने वालों में अपनी नौकरी को लेकर असुरक्षा एवं अनिश्चितता की स्थिति, महिला कर्मियों के साथ रोज-ब-रोज होने वाले सलूक आदि ऐसे कई मुद्दे हैं जो आम दर्शकों की आंखों से ओझल रहते हैं या आम लोग इनके बारे में ज्यादा नहीं सोचते। यहां तक कि सरकार, राजनीतिक दल एवं सामाजिक संगठनों का भी ध्यान इस तरफ कम जाता है, जबकि ये ऐसे मुद्दे हैं जिनके कारण टेलीविजन चैनलों से प्रसारित होने वाली समाग्रियों की गुणवत्ता प्रभावित होती है और इसलिये इन मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।’

इस पुस्तक में जो रचनायें शामिल है उनमें कुछ प्रमुख है - भूत चैनल, ढिबरी चैनल का घोषणापत्रए ढिबरी चैनल में भर्ती अभियान, ढिबरी चैनल प्रमुख के लिये अर्जी, मीडिया मंदी कथायें,  सत्यवादी क्रांति, खबरिया पार्टी आदि। 

संवाद समिति यूनीवार्ता में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर काम कर रहे विनोद विप्लव ने कहा कि आज के समय में मीडिया खास तौर पर टेलीविजन चैनल सामाजिक विकास के अत्यंत सशक्त माध्यम बना है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि ज्यादातर अखबार और टेलीविजन चैनल आमदनी, प्रसार संख्या और टीआरपी बढ़ाने की अंधी दौड़ में शामिल होकर अपनी भूमिका से भटक गये हैं और ढिबरी चैनल में शामिल रचनायें उसी भटकाव को उजागर करती है।

विनोद कहते हैं कि ढिबरी चैनल में शामिल कुछ व्यंग्य रचनायें एवं कहानियां इंटरनेट के जरिये लोगों के सामने आ चुकी हैं और इन्हें पढ़ने वालों से जो प्रतिक्रियायें मिलीं, वे अभूतपूर्व हैं। इन प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि चैनलों में काम करने वाले लोग बाजारवाद के किस भयानक दवाब में काम करते हैं और उनके मन में इसे लेकर किस तरह का आक्रोश है। यही नहीं खुद टेलीविजन चैनलों में काम करने वाले लोग इस स्थिति से काफी असंतुष्ट हैं और वे चाहते हैं कि स्थिति बदले और टेलीविजन चैनल मुनाफा कमाने का माध्यम बनने के बजाय समाजिक बदलाव का माध्यम बने।