May 27, 2016

आपने किसानों को बचाने वाली पोस्ट शेयर होते देखी है...

मैं अक्सर देखता हूं किसी सैनिक के मारे जाने पर पोस्ट घूमने लगती है। पोस्ट शेयर करने वाले लोग अपील करते हैं इसे ज्यादा से ज्यादा लाइक करें, यह देश का सपूत है, इसने देश की रक्षा में अपनी जान गंवाई है। इस पोस्ट को देखते हुए मुझे किसानों की अक्सर याद आती है। 

सोचता हूं आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या अब तीन लाख से उपर हो चुकी है पर इनकी सुरक्षा, समृद्धि और सबलता को बनाए रखने की कोई अपील करती पोस्ट क्यों नहीं दिखती ? जो किसान सैनिकों के पेट पालते हैं, सीमा पर उन्हें खड़े होने लायक बनाते हैं, वह क्या इतने भी महान और कद्र के काबिल नहीं कि उनके जीवन बचाने की गारंटी की भी राष्ट्रीय अपील हो, स्वत:स्फूर्त ढंग से लोग हजारों की संख्या में शेयर करें और सरकार से गारंटी लें कि अगर अगला किसान मरा तो अच्छा नहीं होगा। सरकार को चेताएं कि आत्महत्या रूकी नहीं तो हम सोशल मीडिया से सड़कों पर उतर आएंगे। 

आप खुद देखिए कि सीमा पर तैनात सैनिक के मरने पर 30 लाख से 1 करोड़ तक मिलते हैं पर जो किसान देश को खड़ा होने लायक बनाता है, जिसका अन्न खाकर देश डकार लेता है, उसकी आत्महत्या के बाद कैसी छिछालेदर मचती है। उसने कर्ज और खेती में नुकसान के कारण आत्महत्या की है, यही साबित करने के लिए उसे अधिकारियों को घूस देना पड़ता है। किसान के मरने के बाद उसके बचे परिवार को मुआवजे के लिए बीडीओ, लेखपाल, एसडीएम, क्लर्क, चपरासी समेत नेताओं की इस कदर जी हजूूरी करनी पड़ती है कि भिखमंगे भी शर्मिंदा हो जाएं। 

क्या हम अपने देश के लोगों के त्याग को बांटकर देखेंगे। एक ही घर, गांव और परिवार से निकले सैनिकों और किसानों की संयुक्त भूमिका देश की सीमा से लेकर देश के शरीर को सबल बनाने में एक सी नहीं है। अगर है तो नजरिया बदलिए, एकजुट होइए और किसानों को बचाने के लिए आगे आइए। ​क्योंकि आप भी जानते हेैं और ह भी, सीमा तभी बचेगी जब सैनिक बचेगा,  और सैनिक तभी बचेगा जब किसान बचेगा। किसान नहीं बचा तो न सीमा बचेगी, न सैनिक बचेंगे और न ही देश।