May 5, 2011

बोये पेड़ बबूल का तो आम कहां से होए

बिन लादेन  का मारा जाना जहां वैश्विक आतंकवाद के खातमे की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है, वहीं उसकी  पाकिस्तान में बरामदगी ने और  इसके बाद अमेरिकी सेना का पाकिस्तान को विश्वास में लिए बिना उसे मार गिराने की घटना ने कई पेचीदा सवाल खड़े कर दिए हैं...

तनवीर जाफरी

अमेरिकी सैनिकों द्वारा चलाए गए ‘आप्रेशन जेरोनियो’ नामक एक कमांडो आप्रेशन में गत् 2 मई की रात को दुनिया का सबसे बड़ा खूंखार आतंकवादी तथा अलक़ायदा संस्थापक एवं प्रमुख ओसामा बिन लाडेन पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से सटे हुए कस्बे एबटाबाद में मारा गया। हो सकता है कि अमेरिका के विरूद्ध लाडेन द्वारा स्वघोषित जेहाद के अंतर्गत हुई इस अति आधुनिक कमांडो कार्रवाई ने लाडेन को उसकी मनचाही मंजि़ल अर्थात् ‘जन्नत ‘तक संभवत: पहुंचा ही दिया हो। हालांकि लाडेन की तलाश गत् एक दशक से अफग़ानिस्तान तथा पाक-अफगान सीमावर्ती क्षेत्रों में की जा रही थी ।
ओसामा बिन लादेन की हवेली को देखते पाकिस्तानी बच्चे

परंतु इस बात का भरपूर संदेह भी जताया जा रहा था कि अपने बिगड़ते स्वास्थय के चलते, हो न हो ओसामा बिन लाडेन किसी न किसी सुरक्षित स्थान पर छुपा हुआ है जहां उसे झाडिय़ों, गुफाओं व पहाडिय़ों की तकलीफ से दूर रखकर उसके इलाज व सुख-सुविधाओं का भी प्रबंध किया गया है। और लाडेन की मौजूदगी को लेकर चलने वाली दुनिया के संदेह की सुई बार-बार सिर्फ पकिस्तान पर ही जा टिकती थी। कुछ समय पूर्व यह खबर भी आई थी कि लाडेन का क्वेटा के सैन्य अस्पताल में इलाज कराया गया है। यह खबर तो बार-बार आ ही रही थी कि वह अस्वस्थ है उसका गुर्दा खराब है तथा वह डायलिसिस पर रखे जाने के दौर से गुज़र रहा है। ज़ाहिर है ऐसे मरीज़ के लिए अंधेरी गुफाओं में जा कर रहना, छुपना तथा वहां बैठकर अपने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी मिशन को संचालित करना कतई संभव नहीं था।
और आखिरकार अमेरिकी ख़ुफ़िया  एजेंसी सीआईए को लाडेन के ठिकाने का पुख्ता पता चल ही गया। नतीजतन अमेरिका के विशेष नेवी सील कमांडो दस्ते ने पाक राजधानी इस्लामाबाद से मात्र 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित एबटाबाद कस्बे के एक आलीशान तथा अति सुरक्षित मकान से उसे ढूंढ निकाला। लाडेन की पनाहगाह बनी यह कोठी पकिस्तान सैन्य अकादमी से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इतने संवेदनशील तथा अति सुरक्षित क्षेत्र में लाडेन की मौजूदगी के बाद पाकिस्तान  सरकार, पाक सेना तथा पाकिस्तानी खुिफया एजेंसी आई एस.आई सभी संदेह के घेरे में आ गए हैं।

पाकिस्तान के पास अब अपने बचाव के लिए बग़लें झांकने के सिवा कोई चारा शेष नहीं रह गया है। अपनी झेंप मिटाने के लिए पाकिस्तान  के प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी अपने युरोपीय देशों के दौरे के दौरान यह कहते फिरे कि लाडेन की पकिस्तान में मौजूदगी का पता न चल पाना केवल पाकिस्तान ही नहीं बल्कि अमेरिका सहित पूरी दुनिया की ख़ुफ़िया  ऐजेंसियों की नाकामी है। ज़रा सोचिए पाक प्रधानमंत्री का यह बयान कितना तर्कपूर्ण है? उधर आई एस आई के एक अधिकारी ने अपनी खिसियाहट मिटाते हुए यह तर्क दिया कि ‘5 वर्ष पूर्व जब इस भवन का निर्माण हुआ था उस समय इस बात का संदेह हुआ था कि इसमें अबु फराज़-अल-लीबी नाम का एक अलकायदा नेता वहां रह रहा है। इस सूचना के आधार पर पाक सुरक्षा एजेंसियों ने इस भवन में छापेमारी भी की थी। परंतु वह सूचना निराधार निकली और उसी समय से यह भवन आईएसआई के रडार से हट गया। और इसी बड़ी चूक की शर्मिंदगी पाकिस्तान को चुकानी पड़ रही है।’

बहरहाल बिन लाडेन का मारा जाना जहां वैश्विक आतंकवाद के खातमे की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है, वहीं लाडेन की पाकिस्तान में बरामदगी ने तथा इसके पश्चात अमेरिकी सेना द्वारा पाकिस्तान को विश्वास में लिए बिना उसे मार गिराने की घटना ने कई पेचीदा सवाल खड़े कर दिए हैं। कहना गलत नहीं होगा कि लाडेन के मारे जाने से जितना बड़ा झटका अलकायदा व उसके शेष नेताओं को लगा होगा उससे भी बड़ा झटका पाकिस्तान को सिर्फ इस बात की जवाबदेही के लिए लग रहा है कि लाडेन गत् पांच वर्षों से भी अधिक समय से  पाकिस्तान में कैसे संरक्षण पा रहा था?

 जब-जब पाकिस्तान में लादेन की मौजूदगी की बात की जाती उसी समय पूरी मुस्तैदी के साथ कभी पाक प्रधानमंत्री तो कभी गृहमंत्री,कभी आईएसआई तो कभी सैन्य अधिकारी यह कहकर अपना पल्ला झाडऩे की कोशिश करते कि लाडेन पाकिस्तान में नहीं है। और पाकिस्तान द्वारा बोले जाने वाले इसी झूठ की आड़ में बिन लाडेन पाकिस्तान में राजधानी इस्लामाबाद के समीप पाक सैन्य अकादमी की नाक के नीचे बैठकर पूरी दुनिया में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देता रहा तथा दुनिया के हज़ारों बेगुनाहों को आतंकी हमलों का निशाना बनाकर मानवता तथा मानवाधिकारों की सरेआम धज्जियां उड़ाता रहा।

परंतु मानवता के इस सबसे बड़े दुश्मन का हश्र तो  एक दिन यही होना था,जो हुआ। अमेरिका द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध की घोषणा में अपने ‘खास सहयोगी’ देश पाकिस्तान को विश्वास में लिए बिना तथा पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों,सेना तथा सैन्य रडारों को भनक लगे बिना चार विशेष सैन्य हैलीकॉप्टरों ने अफगानिस्तान के एक यू एस मिलट्री बेस से उड़ान भरी तथा एबटाबाद पहुंच कर 40 मिनट के कमांडो आप्रेशन में लाडेन को मार गिराया तथा उसे अपने साथ अफगानिस्तान ले आए। यहां उसका डीएनए टेस्ट कर तथा यह सुनिश्चित कर कि यह लाश लाडेन की ही है, उसे समुद्र में किसी अज्ञात स्थान पर ले जाया गया जहां उसे कथित रूप से इस्लामी रीति-रिवाजों के साथ जल समाधि दे दी गई।

पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा इस प्रकार राजधानी इस्लामाबाद के करीब आकर इतना बड़ा आप्रेशन अकेले करना तथा उसे इसकी सूचना तक न देना बहुत नागवार गुज़रा। अब पाक सरकार यह कह रही है कि भविष्य में अमेरिका सहित किसी भी देश को इस प्रकार पाकिस्तान की सीमाओं का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यहां यह भी काबिलेगौर है कि अमेरिका ने बेशक इस्लामाबाद के निकट तक जाने का साहस पहली बार क्यों न दिखाया हो परंतु इसके पूर्व भी अमेरिका दर्जनों बार पाक-अफगान सीमावर्ती क्षेत्रों में पाकिस्तानी धरती पर अपना सैन्य आपे्रशन कर चुका है। खासतौर पर अमेरिकी चालक रहित विमान ड्रोन तो कई बार पाक सीमा के भीतर बमबारी कर चुके हैं।

उधर आप्रेशन जेरोनियो को लेकर अमेरिकी एटॉर्नी जनरल एरिक होल्डर का यही कहना है कि ओसामा बिन लाडेन पर निशाना साधना पूरी तरह वैध था क्योंकि यह आप्रेशन राष्ट्र की आत्मरक्षा के लिए किया गया था। उनके अनुसार लाडेन शीघ्र ही वहां से भी भागने की तैयारी में था। पाकिस्तान को विश्वास में न लेने के विषय पर अमेरिकी सूत्रों का कहना है कि इस कमांडो कार्रवाई की जानकारी पाकिस्तान से सांझा करने से लाडेन हाथ से निकल सकता था इसलिए सर्वोच्च स्तर पर गोपनीयता बरती गई। अमेरिका लादेन  को जि़दा या मुर्दा पकडऩे के लिए इस हद तक गंभीर व आमादा था कि उसने कमांडो कार्रवाई के दौरान संभावित पाकिस्तानी सैन्य हस्तक्षेप से निपटने के भी पूरे उपाय कर लिए थे।

इधर एबटाबाद में अमेरिकन नेवी सील कमांडों लादेन को खत्म करने के खेल में लगे थे तो दूसरी ओर वाशिंगटन स्थित व्हाईट हाऊस में राष्ट्रपति बराक ओबामा विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटन, सीआई ए प्रमुख तथा अन्य उच्चाधिकारियों के साथ इस आप्रेशन जेरेनियो का सीधा प्रसारण देख रहे थे। राष्ट्रपति भवन से इस आप्रेशन का संचालन भी किया जा रहा था। इसी कमांडों कार्रवाई की एक अहम कड़ी यह भी थी कि अमेरिका ने अपने कई लड़ाकू जेट विमान अफगानिस्तान के अपने सैन्य अड्डे पर तैयार खड़े रखे थे। उनकी तैयारी इस बात को लेकर थी कि यदि पाकिस्तानी सेना ने लादेन के विरुद्ध चलाए जाने वाले यू एस कमांडो आप्रेशन में दखलअंदाज़ी करने की कोशिश की तो अमेरिकी लड़ाकू विमान पाकिस्तान पर बमबारी करने के लिए भी तैयार हैं। परंतु पाकिस्तान ने उस स्थिति को न्यौता नहीं दिया।

बहरहाल पाकिस्तान गत् एक दशक से इसी आतंकवाद को पालने-पोसने,इसे संरक्षण देने तथा आतंकी विचारधाराओं को परवान चढ़ाने को लेकर पूरी दुनिया में बार-बार शर्मिंदा व बदनाम होता जा रहा है। पाकिस्तान से लाडेन की बरामदगी ने तो अब पाकिस्तान को कहीं का भी नहीं छोड़ा है। अब पाकिस्तान का वह तर्क दुनिया के गले से नहीं उतर पा रहा है कि ‘पाकिस्तान स्वयं दुनिया में आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार है’। अब तो यह तर्क पाकिस्तान के लिए रक्षात्मक नहीं बल्कि नकारात्मक सोच पैदा करता है।

चूंकि प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी लाडेन की हत्या के बाद एक बार फिर पेरिस में बड़ी बेबसी के साथ यह दोहरा चुके हैं कि पाकिस्तान में फैले आतंकवाद से निपटना अकेले पाकिस्तान के बस की बात नहीं है। उन्होंने इस के खातमे के लिए पूरी दुनिया से सहयोग की अपील भी की है। लिहाज़ा उनके अपने ही इसी वक्तव्य के परिपेक्ष्य में अब तो पाकिस्तान को अपनी सरहद और संप्रभुता की बात भी कम से कम तब तक किनारे रख देनी चाहिए जब तक कि भारत व अमेरिका जैसे देशों के सहयोग से वह अपनी सीमाओं के भीतर लगभग पूरे देश में फैले आतंकी ठिकानों,प्रशिक्षण शिविरों तथा इनकी पनाहगाहों को समाप्त न कर ले।


लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के भूतपूर्व सदस्य और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों के प्रखर टिप्पणीकार हैं.उनसे tanveerjafari1@gmail.कॉम पर संपर्क किया जा सकता है.





लादेन की ह्त्या और ओबामा का झूठ


पहले भी ऐसे कई मौके आए हैं जब अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए अमेरिका पर लादेन के फर्जी वीडिओ और ऑडियो जारी करने के आरोप लगे हैं.कहा तो यह भी जा रहा है कि बिन लादेन की मृत्यु दिसंबर 2001 में ही दोनों किडनी फेल होने के कारण हो गयी थी...

पीयूष पन्त

अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की मानें तो खूंखारआतंकवादी ओसामा बिन लादेन मारा गया. एक मई की रात 11:35 पर राष्ट्रपति भवन से जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने कुछ ऐसा ही कहा- "आज रात मैं अमेरिकावासिओं और पूरी दुनिया से कह सकता हूँ कि अमेरिका ने एक अभियान के तहत हजारों बेगुनाह पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के हत्यारे और अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन की ह्त्या कर दी है." 9/11 की चर्चा करते हुए ओबामा ने बहुत कुछ कहा, केवल सच को छोड़कर.
अमेरिका का कॉर्पोरेट मीडिया भी इस झूट को सच के रूप में पेश करने की मुहिम में लग गया. ऐसे में भला हमारा कॉर्पोरेटी मीडिया कैसे पीछे रहता.यहाँ भी होड़ मच गयी बिन लादेन के मारे जाने की खबर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की और इस अभियान को अमेरिका की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश करने की. यानी 'कव्वा कान ले उड़ा' वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी.

विभिन्न  खबरिया चैनलों मे चर्चा में मशगूल तथाकथित जानकार ओबामा के सच को ही अंतिम सच मानकर अपनी ऊर्जा जाया कर रहे थे.किसी को भी इतनी समझ नहीं थी कि इस तथाकथित सच के पीछे छुपे झूठ को उजागर करने का प्रयास भी करे.जबकि अमेरिका द्वारा लादेन की ह्त्या के अभियान से सम्बंधित पेश किये जा रहे अनेक तथ्य विश्वसनीयता के पैमाने पर खरे नहीं उतर रहे थे. विंस्टन चर्चिल ने सही ही कहा था-'जब तक सच को खुद को उजागर करने का मौक़ा मिलता है, झूठ आधी दुनिया की सैर कर आता है.' हो सकता है ओबामा के झूठ की भी कलई जल्दी ही खुल जाये.

अगर खोजी दृष्टि के साथ हम इस पूरे अमेरिकी अभियान की पड़ताल करें तो साफ़ होने लगेगा कि दाल में कुछ काला ज़रूर है. लग तो ऐसा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से दोस्ती करने का एक फायदा तो अवश्य हुआ है. झूठ को सच के रूप में पेश करने की कृष्ण की छल आधारित उस राजनीति का गुर उनके हाथ लग गया है, जिसके चलते कौरवों की संभावित जीत हार में तब्दील हो गयी थी. यानी 'अश्वत्थामा हतो, नरो या कुंजरो' की गर्जना.
सबसे पहला सवाल यह है कि क्या मारा गया तथाकथित व्यक्ति बिन लादेन था भी या नहीं, क्योंकि अमेरिकी प्रशासन द्वारा मृत लादेन की एक भी तस्वीर अभी तक रिलीज़ नहीं की गयी है.जबकि सद्दाम को पकडे जाने से लेकर ट्रायल और फिर उसकी फांसी की सैकड़ों तस्वीरें तुरंत जारी कर दी गयी थीं. एक तस्वीर ज़रूर नेट और भारतीय चैनलों पर दिखाई जा रही थी, जो बिलकुल फर्जी लग रही थी. बाद में स्पष्टीकरण भी आया कि वो फर्जी ही थी.
पहले भी ऐसे कई मौके आए हैं जब अपनीस्वार्थ पूर्ति के लिए अमेरिका पर लादेन के फर्जी वीडिओ और ऑडियो जारी करने के आरोप लगे हैं.कहा तो यह भी जा रहा है कि बिन लादेन की मृत्यु दिसंबर 2001 में ही दोनों किडनी फेल होने के कारण हो गयी थी. जुलाई 2001 में किडनी के इलाज के लिए वो दुबई के अमेरिकी सेना के हॉस्पिटल मे भी भरती हुआ था. जहां उससे मिलने स्थानीय सीआईए एजेंट भी आया था, क्योंकि बिन लादेन अमेरिका के लिए ऐसी धरोहर था जिसका इस्तेमाल वो अपने हिसाब से कर सकता था. ऐसा कहना है 9/11 पर गहन शोध कर कई पुस्तक लिख चुके अमेरिकी लेखक डेविड रे ग्रिफिन का अपनी पुस्तक 'ओसामा बिन लादेन : मृत या जीवित' में. शायद यही कारण रहा कि सउदी अरब ने ओबामा द्वारा मृत घोषित किये गए लादेन के शरीर को लेने से मना कर दिया.

ग्रिफिन अपनी पुस्तक में लादेन के 2001 में ही मर जाने के अन्य साक्ष्य भी पेश करते हैं जैसे-

  • 13 दिसंबर 2001 के बाद अमेरिकी प्रशासन द्वारा लादेन के संदेशों को intercept करना बंद कर दिया गया.
  • पाकिस्तान के एक प्रमुख अख़बार में छपी रिपोर्ट में कहा गया था कि एक प्रमुख तालिबानी अधिकारी ने रिपोर्टर को बताया कि वह 26 दिसंबर 2001 को लादेन की शव यात्रा में शामिल हुआ था.
  • वाकई लादेन किडनी की बीमारी के चलते बहुत परेशान था. सितम्बर 2001 में सीबीएस न्यूज़ एंकर डैन राठेर ने बताया कि 10सितम्बर 2001को बिन लादेन पाकिस्तान के शहर रावलपिंडी के अस्पताल में भरती था.
  • जुलाई 2002 में सीएनएन ने खबर दी कि उसी साल फरवरी में लादेन के सुरक्षाकर्मी पकडे गए. उसने यह भी बताया किजानकारी देने वालों का मानना है कि लादेन के सुरक्षाकर्मियों के पकडे जाने का मतलब है कि लादेन मारा जा चुका है.

अगर मान भी लिया जाए कि ओसामा ज़िंदा था तो भी क्या ओबामा 1मई की रात सच बोल रहे थे?ज़रा इस पर गौर करें कि जब ओबामा अपने भाषण में कह रहे थे कि लादेन आज रात पकिस्तान में एक पहाडी में बने अपने घर में मारा गया, उसी समय अन्य मीडिया नेटवर्क से जुड़े विभिन्न रिपोर्टर अपने स्त्रोतों का हवाला देते हुए ओबामा को ग़लत साबित करते हुए बता रहे थे कि बिन लादेन हफ्ते भर पहले ही इस्लामाबाद के पास गोलीबारी में मारा गया था और तभी डीएनए परीक्षण के लिए उसके शरीर से सेम्पल ले लिया गया था.ख़बरों का ये टकराव काफी है सरकारी व्यक्तव्य पर शंका ज़ाहिर करने के लिए.

शंका इस बात को लेकर भी पैदा हो रही है कि ओबामा को बिन लादेन कि याद अचानक कैसे आ गयी? वर्ष 2008 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान चली बहसों में ओबामा ने पहली बार लादेन का ज़िक्र करते हुए कहा था कि लादेन को पकड़ना या मार डालना हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राथमिकता होनी चाहिए.अपनी जीत के बाद दिए पहले टीवी साक्षाक्तार में भी यह बात दोहराते हुए कहा था कि लादेन को पकड़ना या मार डालना अल काएदा को मिटा देने के लिए ज़रूरी है.लेकिन इसके बाद उनके भाषणों मे से लादेन गायब हो गया.

यहाँ तक कि जनवरी 2009के अपने टीवी इंटरव्यू में उन्होंने कह डाला-'बिन लादेन को ज़िंदा पकड़ना या मार डालना अमेरिकी सुरक्षा के हमारे उद्देश्य को हासिल करने के लिए ज़रूरी नहीं है.' अब जबकि नवम्बर 2012 के अपने चुनाव का अभियान ओबामा ने शुरू कर दिया है तो वे 1 मई की रात टीवी पर यह घोषणा करते हुए दिखते हैं,'लादेन को पकड़ना या मार डालना मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता थी और मैंने सीआईए प्रमुख लियोन पनेत्ता को इसे सबसे पहले करने वाला काम बनाने के आदेश जारी किये'. वाह ओबामा महोदय, आप तो बहुत बढ़िया शीर्षासन करते हैं.

दरअसल,ओबामा को ओसामा का जिन्न इसलिए बाहर निकालना पड़ा क्योंकि अमेरिका के बिगड़ते आर्थिक हालात को सुधारने में ओबामा की असफलता के चलते देश में उनकी लोकप्रियता गिरती जा रही है. उनके राजनीतिक विरोधी 2012 के चुनाव में उन्हें शिकस्त देने कि तैयारी में जुटे हैं. उधर अरब देशों में अमेरिकी उपस्थिति और दखलंदाजी तथा आतंकवाद के खिलाफ युद्ध की रणनीति कजोर पड़ी है. खासकर जनता के विद्रोह के चलते. ऐसे में ओसामा की मौत का फरेब रचकर ही ओबामा अमेरिकी जनता के पास जाने की हिम्मत जुटा सकते हैं,ताकि उनसे कह सकें कि देखो मैंने पिछले चुनाव के दौरान किये वायदे पूरे कर दिए-अफगानिस्तान से सेना वापिस बुला ली, आतंकवाद के सरगना का खात्मा कर 9/11 का बदला ले लिया और पीड़ितों को न्याय दिला दिया

लेकिन क्या वास्तव मे अमेरिकी जनता ओबामा के इसफरेब में उलझ जाएगी या फिर एक बड़े झूठ को छिपाने के लिए बोले जा रहे अनेक झूठों (जैसे मात्र चन्द घंटों में ही डीएनए की प्रक्रिया पूरी करना, समुद्र में दफनाना, लादेन द्वारा महिलाओं को ढाल बनाना, फिर बाद में इस बात से इनकार करना इत्यादि) को उजागर होते देख अचंभित हो ओबामा से सवाल करेगी- 'क्या ओबामा? हमारे साथ इतना बड़ा फरेब?'

तो ओबामा को चिर-परिचित शैली में यही कहना पड़ेगा- 'यस, वी कैन.'


 
विदेशी मामलों के महत्वपूर्ण टिप्पणीकार और सामाजिक आन्दोलन से जुडी 'लोक संवाद' पत्रिका के संपादक.