Feb 15, 2017

नोटबंदी के बाद 12 लाख करोड़ वापस ले गए एनआरआई

जनज्वार। मोदी जी लगातार विदेश यात्राओं पर रहे और देशवासियों से कहते रहे कि हम सूट—बूट पहनकर कांग्रेसियों की तरह मौज मारने नहीं, बल्कि विदेशों में भारत के लिए इनवेस्टमेंट का माहौल बनाने जाते हैं। पर यहां हालत उल्टी हुई और सिर्फ 50 दिन की नोटबंदी में एनआरआई 12 लाख करोड़ रुपया लेकर वापए चले गए। 

बैंकरों के आंकड़े के मुताबिक नोटबंदी के बाद से विदेशों में बसे एनआरआई ने निवेश से तो हाथ पीछे खींच ही लिए, वहीं अक्टूबर—नवम्बर में 11.43 अरब डालर यानी तकरीबन 12 लाख करोड़ रुपए का कुल डिपॉजिट भुना लिया। नोटबंदी के बाद एनआरआई का भारतीय अर्थव्यवस्था पर से भरोसा कम हुआ है। एनआरआई ने फोरेन करेंसी नान रेजिडेंट बैंक यानी एफसीएनआर—बी को भुनाया है, जो कि एक बड़ा आंकड़ा है। अब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है और रुपए की तुलना में डालर अब और मजबूत होगा। 

नोटबंदी के बाद तो आम जनता परेशानी झेल ही रही है, अब डॉलर के और ज्यादा मजबूत होने की स्थिति में देश में महंगाई बेतरतीब बढ़ेगी। 

नए साल को छोड़ दें तो प्रधानमंत्री मोदी देश से ज्यादा विदेश में रहने के कारण सुर्खियां और जगहंसाई बटोरते रहे हैं। सरकार भी कहती रही है कि मोदी जी विदेश भ्रमण पिकनिक के ​लिए नहीं, ​बल्कि देश को पिछड़े के स्टेटस से विकसित की श्रेणी में लाने के लिए जाते रहे हैं।

पिछले वर्ष सरकार द्वारा जारी जानकारी के मुताबिक विश्व के कई देशों जापान, चीन, इंग्लैंड, कोरिया, यूएई, फ्रांस और जर्मनी ने मोदी जी के भ्रमण से प्रभावित होकर अगले पांच वर्षों में अरबों के निवेश करने का आश्वासन दिया था। सरकार ने मीडिया के माध्यम से देश को बताया कि इन देशों ने 22200 करोड़ डॉलर का पांच साल में निवेश का आश्वासन दिया है। पर नोटबंदी बाद सरकार यह बताने की हालत में नहीं है कि विदेशों से अब तक कितना इंवेस्टमेंट हुआ है। 

पर आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो निवेश का आश्वासन अब पूरा होता नहीं दिखता है। दुनिया भर में निवेश को प्रात्साहित करने के मानक तय करने वाली वैश्विक आर्थिक संस्था आईएमएफ ने नोटबंदी के बाद भारत को खराब निवेश का देश करार दिया है। 

भारत में निवेश को लेकर बने खराब माहौल के मद्देनजर आईएमएफ ने गिरती रेटिंग की है और आईएमएफ का कहना है कि भारत में निवेश के माहौल सामान्य होने में कमसे कम तीन साल और लग जाएंगे। यानी 2020 से पहले भारत की विकास दर 6.6 से उपर जाने में ​मुश्किल होगी। जबकि नोटबंदी से पहले भारत की विकास दर 7.6 थी जो नोटबंदी के बाद घटकर 6.6 रह गयी है।