Apr 2, 2017

देश का पहला छात्रसंघ जो प्रवेश परीक्षा की कराता है तैयारी

विभिन्न शैक्षणिक पाठ्यक्रमों के लिए कराई जाने वाली तैयारियों की कक्षाएं 5 अप्रैल से शुरू होकर मई के पहले सप्ताह तक चलेंगी...


देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जेएनयू में पहला ऐसा छात्रसंघ है, जो वहां पढ़ने के इच्छुक छात्रों की प्रवेश परीक्षा को आसान बनाने के लिए निशुल्क तै​यारियांं करवाता है। 

छात्र कार्यकर्ताओं के मुताबिक वे ऐसा वंचित पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाले ऐसे छात्रों के मद्देनजर करते हैं, जो प्रवेश परीक्षाओं के लिए मोटी—मोटी फीस वसूलने वाले कोचिंग्स सेंटर में तैयारियां नहीं कर पाते हैं। हालांकि छात्रसंघ सिर्फ गरीब छात्रों को ही तैयारी नहीं करवाता, बल्कि इन कक्षाओं में कोई भी छात्र नि:शुल्क तैयारी कर सकता है।

विभिन्न शैक्षणिक पाठ्यक्रमों के लिए कराई जाने वाली तैयारियों की कक्षाएं 5 अप्रैल से शुरू होकर मई के पहले सप्ताह तक चलेंगी। इच्छुक छात्रों को कोर्स का नाम और संबंधित जानकारी जेएनयू छात्रसंघ आफिस में पहले ही दर्ज करनी होती है।  

जेएनयू छात्रसंघ से जुड़े सीनियर छात्रों ने एक पर्चा निकालकर अपील की है कि जो छात्र तैयारी के इच्छुक हैं और छात्र कार्यकर्ताओं से प्रवेश परीक्षाओं के लिए मदद लेना चाहते हैं, वो जल्द से जल्द संबंधित जानकारी दे दें। साथ ही उन्होंने प्रवेश परीक्षा करवाने वाले छात्रों के फोन नंबर भी पर्चे में दर्ज किये हैं, ताकि इच्छुक छात्रों को उनसे संपर्क करने में कोई कठिनाई न हो। 

गौरतलब है कि लंबे समय से लगातार विवादों में रहे जेएनयू में पिछले दिनों एमफिल/पीएचडी की भारी संख्या में सीटें कम कर दी गई हैं, ऐसे में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए जेएनयू में पढ़ने के ​इच्छुक छात्रों के लिए छात्रसंघ की इस पहल को सकारात्मक कहा जा सकता है, खासतौर पर वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रोंं के लिए। 

हालात यही रहे तो इंदौर जेल के कैदी होते जाएंगे टीबी मरीज

चूने से साफ करने पड़ते हैं दांत, नहीं मिलता भरपेट खाना, सभी कैदियों का गिर रहा लगातार वजन  

इंदौर जेल से लौटकर दीपक असीम की रिपोर्ट 

इंदौर के पत्रकार दीपक असीम वही शख्स हैं जिनको ओशो का लिखा अपने अखबार में छापने पर हिंदूवादियों ने जेल पहुंचवा दिया था। उन्हें 4 से 12 मार्च तक जेल में रहना पड़ा। जेल में रहने के दौरान हुए अनुभवों को उन्होंने जनज्वार से साझा किया है। उन अनुभवों को हम इसलिए भी प्रकाशित कर रहे हैं कि जेल की स्थितियों को लेकर जो काम एक खोजी पत्रकार को करना चाहिए था, उसे बहुत ही शानदार तरीके से एक कैदी रहते हुए दीपम असीम ने किया है। रिपोर्ट तीन किस्तों में प्रकाशित होगी, पेश है पहली किस्त... 


इस बार जब जेल गया तो डरा हुआ था। जो आदमी देवी-देवताओंं के अपमान के (झूठे ही सही) आरोप में जेल गया हो, उसे अंदर उन कैदियों से खतरा हो सकता है, जो रोज़ शाम को ज़मानत और रिहाई की आस में आवाज़े बाबुलंद में आरती करते हों और चोटी भी रखते हों।  जब ऐसे कैदी पूछते थे कि धारा २९५ ए का क्या मतलब होता है और मतलब सुनकर भड़कने लगते थे, तो अपनेराम यही पूछते थे कि आप खुद बताइये, क्या पुलिस जो आरोप लगाती है, वो सच्चे होते हैं? इतना सुनकर ही वे हलवा हो जाते थे। फिर उनका सवाल यह होता था - आखिर आपको पुलिस ने फंसाया क्यों? फिर वे खुद बताने लगते थे कि उन्हें क्यों फंसाया गया है। 

तो एक तो यह पुलिस वाली तरकीब काम कर गई। दूसरी राहत यह रही कि सेंट्रल जेल में इस समय कोई बड़ा दादा-पहलवान नहीं है। किसी की नक्शेबाजी अब इस जेल में नहीं चलती। जो सीओ (पुराने कैदी) पहले 'नई आमद' को मारते-कूटते थे, वो सब भी अब एकदम बंद...। पहले कैदी की हैसियत देख कर उसके घर से पैसा मंगाने का रैकेट चलता था। वो रैकेट भी अब बिल्कुल खत्म हो चुका है। 

अपन वहां 12  दिन रहे। बारह दिनों में यही देखा कि अव्वल तो शेर बचे ही नहीं हैं और जो शेर हैं, वो बकरी की खाल ओढ़ कर रह रहे हैं। जिन रोटियों को पहले जलाकर अपना खाना अलग बनाया जाता था, उन रोटियों की कीमत हो गई है। उन रोटियों को अब बचा कर रखा जाता है और कैदी नाश्ते बतौर जब भूख लग जाए खा लेते हैं। 

अव्वल तो पांच रोटियां कैदियों को कम पड़ती हैं, क्योंकि बाहर के खाने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है। पाबंदी इतनी सख्त है कि नमक तक के लिए लोग तरसते हैं। भोपाल में जब से सिमी के कैदियों का एनकाउंटर हुआ, तब से जेल के नियम बहुत सख्त हो गए हैं। चूंकि भोपाल में यह कहा गया था कि कैदियों ने टूथ ब्रश से चाबी बना ली सो यहां के सभी कैदियों से टूथब्रश धऱवा लिये गए। कहा गया था कि तौलियों से रस्सी बना ली, सो सारे तौलिये जब्त। 

हालांकि जो काम तौलिये जोड़ कर हो सकता है, वो चादर जोड़ कर भी हो सकता है। पेस्ट भी नहीं मिलता। कैदी ऐसे पाउडर से दांत साफ करते हैं, जो मुंह पर लग कर होंठ  फाड़ देता है (शायद चूना है)। सो कैदियों के मुंह बास रहे हैं। नहाएं तो बदन कैसे पोछें? तेल कंघा साबुन छीन लिया गया है और जेल में खोपरे का जो तेल मिलता है, उसमें पाम आइल मिला होता है। इसे चेहरे पर लगाओ तो चेहरा काला पड़ जाता है और चमड़ी फटने लगती है। 

कैदियों से उनका सारा सामान छीन लिया गया है। जिस थाली में खाना खाते हैं, चाय तक कैदी उसी से पी रहे हैं। शौचालय में इस्तेमाल होने वाली पानी की बोतलें तक कम पड़ने लगी हैं। मगर जेल नियमों के खिलाफ कोई चूं तक नहीं कर सकता। 

जेल नियमों के हिसाब से कैदी की खुराक पर एक दिन में लगभग 140 रुपये खर्च करने का प्रावधान है, जो वाकई अगर ईमानदारी सो हो, तो कैदी आराम से रह सकते हैं, मगर मात्र बीस-पच्चीस रुपये ही कैदी की खुराक पर खर्च हो रहे हैं। पांच रोटियां (जो गेंहू में न जाने कौन से आटे की मिलावट से बनाई जाती हैं), एक डंका पतली पानी जैसी दाल और एक पतली पानी जैसी ही सब्जी। 

एक कैदी की खुराक में दिन भर में तीस ग्राम खाने का तेल होना चाहिए, मगर तीन ग्राम भी नहीं होता। तीन मिलीग्राम शायद होता हो। अगर कोई पुराना कैदी सब्जी की तरी निकाल ले, तो उसकी पिटाई हो जाती है। कैदियों का वजन तेजी से कम हो रहा है। दस्तावेज के हिसाब से अपन जब 4 मार्च को जेल गए थे, तब वजन था सौ किलो और 14 मार्च की दोपहर को जब जेल में वजन हुआ तो वजन बैठा 92  किलो। 

मोटे आदमी के लिए यह कमाई है कि दस दिनों में वजन आठ किलो कम हो जाए। मगर जो बेचारे पहले ही दुबले हैं, उनके लिए तो यह डेढ़ आषाढ से भी बदतर है। बहुत से कैदियों ने बताया कि जब हम जेल आए थे तो हमारा वजन ज्यादा था, जो भोपाल वाली घटना के बाद तेजी से कम हुआ है और लगातार हो रहा है। 

पर जेल प्रशासन पर सख्ती की सनक सी सवार है। वो कुछ सुनने को तैयार नहीं है। कुछ पुराने कैदी कहते हैं कि अगर यही हाल रहा तो कुछ महीने में कैदी टीबी से मरने लगेंगे। बहरहाल कुछ कैदियों ने पहचान लिया कि ये साहब तो पहले भी आ चुके हैं और गुल खिला चुके हैं। मगर ये वाला किस्सा कल के लिए...। 

editorjanjwar@gmail.com

कोर्ट का सवाल, सांप्रदायिक दंगों में योगी के​​ खिलाफ क्यों नहीं शुरू हुई जांच

लखनऊ 1 अप्रैल 2017।  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के आरोपों की जांच के लिए 153 (ए) के तहत सरकार द्वारा अनुमति देने पर सवाल किया है। इस मामले में 31 मार्च को एक याचिका की सुनवाई करते हुए उच्च अदालत ने सरकार से तीन हफ्ते के भीतर जवाब मांगा कि  प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सीबीसीआईडी जांच क्यों नहीं हुई ? 

सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ सक्रिय संगठन रिहाई मंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट इस फैसले का स्वागत किया है। सामाजिक कार्यकर्ता परवेज परवाज और असद हयात ने 2007 में गोरखपुर में हुए साम्प्रदायिक हिंसा को लेकर अदालत में याचिका दायर कर मांग की थी कि इस मामले में आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच की जाए। 


याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार से जानना चाहा कि योगी और अन्य आरोपियों के खिलाफ सीबीसीआईडी जांच के लिए 153 (ए) के तहत सरकार ने अबतक अनुमति क्यों नहीं दी। 153 (ए) आईपीसी के तहत साम्प्रदायिक भड़काऊ भाषण के आरोप में न्यूनतम तीन साल की सजा का प्रावधान है। लेकिन इस मामले में कोर्ट तभी संज्ञान लेती है जब राज्य या केंद्र सरकार मुकदमें की मंजूरी देती हो।

मुकदमे की पृष्ठभूमि बताते हुए रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव कहते हैं कि 27 जनवरी 2007 की रात गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर विधायक राधामोहन दास अग्रवाल और गोरखपुर की मेयर अंजू चौधरी की मौजूदगी में हिंसा फैलाने वाला भाषण दिया। भाषण के दौरान मुख्यमंत्री योगी ने हिंदुओं को उकसाते हुए कहा कि वो मुहर्रम में ताजिया नहीं उठने देंगे और खून की होली खेलेंगे। इस भाषण के बाद भीड़ ‘कटुए काटे जाएंगे, राम राम चिल्लाएंगे’ के नारों के साथ मुसलमानों की दुकानें फूंकी गयीं।  

याचिका में कहा गया है कि इसके साथ ही गोरखपुर के दूसरे क्षेत्रों, देवरिया, पडरौना, महाराजगंज, बस्ती, संत कबीरनगर और सिद्धार्थनगर में योगी के कहे अनुसार ही मुस्लिम विरोधी हिंसा हुई। मुसलमानों की करोड़ों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ लेकिन एफआईआर तक दर्ज नहीं हुआ। 

ऐसे में सामाजिक कार्यकर्ता परवेज परवाज और असद हयात द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट पेटिशन दायर कर प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई। लेकिन अदालत ने उसे खारिज करते हुए सेक्शन 156 (3) के तहत कार्रवाई का निर्देश दिया। जिसके बाद सीजेएम गोरखपुर की कोर्ट में एफआईआर दर्ज कराने के लिए गुहार लगाई गई। जिस पर कुल 10 महीने तक सुनवाई चली और अंततः मांग को खारिज कर दिया गया। 

मामला खारिज कर दिए जाने के बाद याचिकाकर्ताओं द्वारा हाईकोर्ट में रिवीजन दाखिल हुआ। तब जाकर इस मामले में एफआईआर दर्ज हो पायी। एफआईआर के बाद योगी के साथ सहअभियुक्त अंजू चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एफआईआर और जांच पर स्टे ले लिया। पर 13 दिसम्बर 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने अंजू चौधरी की एसएलपी को खारिज कर दिया और जांच के आदेश दे दिए। लेकिन सीबीसीआईडी की इस जांच के लिए अखिलेश  यादव सरकार ने अपने जांच अधिकारी को अनुमति ही नहीं दी और मामला वहीं का वहीं पड़ा रहा।

सरकार द्वारा सीबीसीआइडी जांच की अनुमति नहीं देने पर सरकार को हाईकोर्ट ने तीन हफ्ते में जवाब देने को कहा है। अगर जांच सही पाई जाती है तो इस मामले में प्रदेश के मुख्यमंत्री को तीन साल की सजा हो सकती है। 

पर सब जानते हैं कि जब अखिलेश सरकार ने जांच के आदेश नहीं दिए फिर योगी जी अपने खिलाफ ही जांच के आदेश क्यों देंगे?