Jun 30, 2017

पहली बार हिंदी की राजनीतिक कविता सोशल मीडिया पर वायरल

इससे पहले सेक्स, प्रेम और समाज के दमित तबकों के व्यक्तिगत अनुभवों पर लिखी कविताएं सोशल मीडिया पर वायरल होती रही हैं, मगर यह पहली बार है कि राजनीतिक कविता सोशल मीडिया पर वायरल हुई है। वरिष्ठ कवि मदन कश्यप की लिखी कविता 'क्योंकि वह जुनैद था' हाल ही में दिल्ली से पलवल जाती ट्रेन में मारे गए जुनैद पर आधारित है। साम्प्रदायिक कारणों से हुई जुनैद की हत्या का मसला इतना बड़ा हो गया है कि प्रधानमंत्री तक को इस पर बयान देना पड़ा है और देशभर में लोग गौरक्षकों की गुंडागर्दी के खिलाफ लामबंद होने लगे हैं। ऐसे में इस कविता का वायरल होना बताता है कि समाज में हिंदूवादी कट्टरपंथ के खिलाफ लोग व्यापक स्तर पर खड़े हो रहे हैं।
ट्रेन में मारे गए जुनैद की मां

क्योंकि वह जुनैद था
मदन कश्यप, वरिष्ठ कवि और लेखक
चलती ट्रेन के खचाखच भरे डिब्बे में
चाकुओं से गोद-गोद कर मार दिया गया
क्योंकि वह जुनैद था
झगड़ा भले ही हुआ बैठने की जगह के लिए
लेकिन वह मारा गया
क्योंकि वह जुनैद था
न उसके पास कोई गाय थी
न ही फ़्रिज में माँस का कोई टुकड़ा
फिर भी मारा गया क्योंकि वह जुनैद था
सारे तमाशबीन डरे हुए नहीं थे
लेकिन चुप सब थे क्योंकि वह जुनैद था
डेढ़ करोड़ लोगों की रोजी छिन गयी थी
पर लोग नौकरी नहीं जुनैद को तलाश रहे थे
जितने नये नोट छापने पर खर्च हुए
उतने का भी काला धन नहीं आया था
पर लोग गुम हो गये पैसे नहीं 
जुनैद को खोज रहे थे
सबको समझा दिया गया था
बस तुम जुनैद को मारो
नौकरी नहीं मिली जुनैद को मारो
खाना नहीं खाया जुनैद को मारो
वायदा झूठा निकला जुनैद को मारो
माल्या भाग गया जुनैद को मारो
अडाणी ने शांतिग्राम बसाया जुनैद को मारो
जुनैद को मारो
जुनैद को मारो
सारी समस्याओं का रामबान समाधान था
जुनैद को मारो
ज्ञान के सारे दरवाजों को बंद करने पर भी
जब मनुष्य का विवेक नहीं मरा
तो उन्होंने उन्माद के दरवाजे को और चौड़ा किया 
जुनैद को मारो!!
ईद की ख़रीदारी कर हँसी-ख़ुशी घर लौट रहा
पंद्रह साल का एक बच्चा 
कितना आसान शिकार था
चाकुओं से गोद-गोद कर धीरे-धीरे मारा गया
शायद हत्यारों को भी गुमान न था
कि वे ही पहुँचाएंगे मिशन को अंजाम तक
कि इतनीआसानी से मारा जाएगा जुनैद
चाकू मारने के हार्डवर्क से पराजित हो गया
अंततः मनुष्यता का हावर्ड

अश्लील नहीं, खूबसूरत है ये बॉडी

इन तस्वीरों में अश्लीलता नहीं, बल्कि स्पोर्ट्स स्पिरिट झलकती है....

'बॉडी इश्यू में छपी खिलाड़ियों की नग्न तस्वीरों के जरिए एथलीटों की कड़ी मेहनत, अनुशासन और फोकस को प्रदर्शित करना हमारा मकसद है। पत्रिका के बॉडी इश्यू में अपने चाहने वाले खिलाड़ियों की खूबसूरत तस्वीरों को देखकर इनके चाहने वाले खुश होंगे। इन तस्वीरों में अश्लीलता नहीं, बल्कि स्पोर्ट्स स्पिरिट झलकती है।' ये कहना है दुनियाभर में स्पोर्टस की बेहतरीन पत्रिकाओं में शुमार ईएसपीएन का।
ईएसपीएन का इस बार का वार्षिक बॉडी अंक जुलाई में आयेगा। 2017 के बॉडी इश्यू वार्षिकांक के लिए टेनिस स्टार कैरोलीन वोज़्नियाकी ने फोटोशूट करवाया है। मिक्सड मार्शल आर्ट्रस खिलाड़ी वाटरसन भी इस अंक में अपनी विशेष अंदाज में नजर आएंगी। वह कहती भी हैं, मुझे अपने शरीर पर गर्व है, और अपने खूबसूरत शरीर को बॉडी मैगजीन के लिए फोटोशूट करवाना मुझे अच्छा लगा। इन खिलाड़ियों के अलावा विभिन्न खेलों के अनेक खिलाड़ियों ने अपने निर्वस्त्र फोटोशूट इस अंक के लिए करवाये हैं।
गौरतलब है कि ईएसपीएन की बॉडी मैगजीन के लिए अब तक दुनियाभर के मशहूर एथलीट न्यूड और सेमी न्यूड फोटोशूट करवा चुके हैं। इसकी प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें खेल जगत के हर क्षेत्र के खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। जिनमें नाथन एड्रियन, जेक अर्रिटा, एंटोनियो ब्राउन, एम्मा कोबर्न, कोर्टनी कोनॉग्यू, ऐलेना डेल डोन, रयान डन्जेगी, एडलाइन ग्रे, ग्रेग लौगनीस, कॉनर मैकग्रेगर, वॉन मिलर, क्रिस मॉसियर, नजिंगा प्रेस्कोड, क्रिस्टन प्रेस, अप्रैल रॉस, अलिसा सेली, क्लाएरा शील्ड्स, विन्स विल्फोर्क समेत न जाने कितने दिग्गज एथलीटों के नाम शामिल हैं।
स्विट्जरलैंड के टेनिस स्टार स्टानिस्लास वावरिंका और अमेरिकी महिला फुटबॉल खिलाड़ी अली क्रीगर भी स्पोर्ट्स चैनल ईएसपीएन की मैग्जीन ‘द बॉडी’ के 2015 के अंक के लिए न्यूड फोटोशूट करवा चुके हैं। पत्रिका के लिए क्रीगर ने न्यूड अवस्था में सुनहरी गेंद पैरों के नीचे दबाये हुए पोज दिया था।
2015 में अमेरिकी बास्केटबॉल खिलाड़ी केविन वीजली लव, डिआंद्रे जॉर्डन, अमेरिकी जिमनास्ट एली रेजमैन, स्विमर नताली, अमेरिकी हेप्टएथलीट कैंट मैकमिलन समेत 24 एथलीटों ने पत्रिका के लिए न्यूड फोटोशूट करवाया था। टेनिस स्टार ईएसपीएन के इस वार्षिकांक के लिए अमेरिकी स्टार वीनस विलियम्स और टॉमस बर्डिख भी न्यूड फोटोशूट करवा चुके हैं।
स्पोर्टस चैनल की मैगजीन ईएसपीएन ने आर्थिक संकट से उबरने के लिए 2009 में बॉडी मैगजीन शुरू करने की योजना बनाई थी। 2009 में टेनिस सुपरस्टार सेरेना विलियम्स की कवर फोटो वाला 'बॉडी इश्यू' जब प्रकाशित होकर आया तो इसने खेल प्रेमियों के बीच तहलका मचा दिया था।
खिलाड़ियों की जब नग्न फोटोशूट को लेकर कई बार आलोचना का सामना करना पड़ा, तो वे कहते हैं कि बॉडी मैगजीन ने न्यूड फोटोशूट को अलग पहचान दी है और इसे जिस तरीके से लोगों के सामने पेश किया जा रहा है, उससे नग्न काया के प्रति लोगों की धारणा को बदलने का काम भी किया है।
जहां तक खिलाड़ियों की निर्वस्त्र फोटोशूट का सवाल है तो टेनिस की दिग्गज खिलाड़ी गर्भवती सेरेना विलियम्स ने भी एक दूसरी पत्रिका वेनिटी फेयर के मुखपृष्ठ के लिए निर्वस्त्र फोटोशूट करवाया है। इस बारे में सेरेना विलियम्स कहती हैं, मेरी देह छवि नकारात्मक है,' मगर इस बात को दरकिनार कर उन्होंने फोटोशूट करवाया है। साथ ही वह महिलाओं को यह संदेश देना नहीं भूलतीं कि, मैं महिलाओं को यह बताना चाहती हूँ कि यह ठीक है, आपकी काया जैसी भी हो, आप आंतरिक और बाहरी रूप से खूबसूरत हो सकते हैं।

नोट कर लीजिए नोटबंदी जैसा ही बेमतलब साबित होगा जीएसटी

जीएसटी लागू करने के पीछे आम उपभोक्ता को राहत पहुँचाने की मंशा उतनी नहीं है जितना बड़े कारोबारियों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कॉर्पोरेट घरानों का दबाव.....

पीयूष पंत, वरिष्ठ पत्रकार 
आज रात बारह बजते ही प्रधानमंत्री मोदी संसद भवन के सेन्ट्रल हाल में घंटा बजवाएंगे और एक ऐप के माध्यम से देश के अब तक के सबसे बड़े कर सम्बन्धी सुधार का आगाज़ करेंगे। पूरे देश में समान कर व्यवस्था को लागू करने वाले जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर को भारतीय अर्थव्यवस्था और धंधा करने के तरीके में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले कदम के रूप में पेश किया जा रहा है।

ये कितना क्रांतिकारी होगा यह तो आगामी वर्षों (दिनों में नहीं) में ही पता चलेगा, लेकिन जितने गाजे-बाजे के साथ इसकी शुरुआत की जा रही है उसके पीछे छिपा राजनीतिक मन्तव्य साफ़ नज़र आ रहा है। नोटबंदी की ही तरह जीएसटी को भी प्रधानमंत्री मोदी का एक ऐतिहासिक और साहसी निर्णय बताया जा रहा है।
कोशिश एक बार फिर मोदी की छवि को चमकाने की ही हो रही है। नोटबंदी के समय उत्तर प्रदेश का चुनाव सामने था और अब गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश के चुनाव और 2019 का आम चुनाव सामने हैं। सच्चाई तो ये है कि जीएसटी का निर्णय अकेले मोदी का निर्णय नहीं है। जीएसटी लाने की कवायद तो 2003 से ही चालू है और विभिन्न सरकारों के कार्यकाल के दौरान इसे लाये जाने के प्रयास और घोषणाएं होती रही हैं, फिर चाहे वो वाजपेयी की एनडीए सरकार हो या मनमोहन सिंह की दोनों यूपीए सरकारें।
यह भी आम जानकारी है कि इस नई कर व्यवस्था को लागू करने के पीछे आम उपभोक्ता को राहत पहुँचाने की मंशा उतनी नहीं है जितना कि बड़े कारोबारियों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कॉर्पोरेट घरानों का दबाव।
चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा उठाये गए हर एक महत्वपूर्ण कदम को अपने प्रशस्ति गान में तब्दील करवा लेने में महारथ रखते हैं, इसीलिये मूलतः विज्ञान भवन में संपन्न होने वाले इस कार्यक्रम के स्थल को बदलवा कर उन्होंने इसे संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में स्थानांतरित करवा दिया, ताकि कार्यक्रम के साथ-साथ मोदी को भी अतिरिक्त महत्व मिल सके।
गौरतलब है कि संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में अभी तक केवल तीन कार्यक्रम हुए हैं. जब देश आजाद हुआ तब उस आजादी का उत्सव मनाया गया था। फिर 1972 में जब आजादी की सिल्वर जुबली मनाई गई थी। इसके बाद 1997 में आजादी की गोल्डन जुबली पर आधी रात को कार्यक्रम हुआ था। निसंदेह उन तीनों महान आयोजनों की तुलना कर व्यवस्था में सुधार की योजना से नहीं की जा सकती है। कांग्रेस पार्टी की भी यही आपत्ति है।
कुछ लोग इसे मोदी की नासमझी कह सकते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि यह सब सप्रयास किया जा रहा है। दरअसल मोदी खुद को भारत का सबसे सफ़ल और लोकप्रिय प्रधानमंत्री साबित करने पर तुले हैं। यही कारण है कि वे अक्सर भारत के प्रथम व लोकप्रिय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समकक्ष खड़ा होने की जद्दोजहद में दिखाई देते हैं, बल्कि उनकी नक़ल करने की असफल कोशिश करते हुए भी दिखते हैं।
कोई ताज्जुब नहीं होगा कि आज आधी रात प्रधानमंत्री मोदी संसद से सम्बोधन करते हुए पंडित नेहरू के आज़ादी के बाद दिए गए 'ट्रिस्ट विथ डेस्टनी' वाले भाषण की नक़ल उतारते नज़र आएं। आपको शायद याद हो कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी जी ने नेहरू स्टाइल में एक-दो बार अपने कोट की जेब में गुलाब का फूल लगाने का प्रयास किया था, लेकिन बाद में उन्हें कोट की जेब में कमल का फूल कढ़वा कर ही काम चलाना पड़ा।
इसी तरह अक्सर मोदी देश विदेश में बच्चों को दुलारने का विशेष ध्यान रखते हैं ताकि केवल पंडित नेहरू को ही बच्चों के चाचा के रूप में न याद किया जाय। वैसे प्रधानमंत्री मोदी की ये खूबी तो है कि वे सफल लोगों की खूबियों को आत्मसात करने में तनिक भी संकोच नहीं करते हैं।
आपको याद होगा कि 2014 के आम चुनाव के प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के जुमले 'येस वी कैन' का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते दिखाई दिए थे। याद रहे कि किसी भी प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और सफलता इतिहास खुद दर्ज़ करता है, न कि प्यादे और चाटुकार।
जहां तक जीएसटी से होने वाले फायदे की बात है तो वो तो कई वर्षों बाद ही पता चल पायेगा। फिलहाल तो स्तिथि लखनऊ की भूलभुलैय्या जैसी है। हर कोई इसके नफे- नुक़सान को समझने की कोशिश कर रहा है। खुद सरकार के वित्त मंत्री जेटली और शहरी विकास मंत्री वेंकैय्या नायडू यह कह चुके हैं कि जीएसटी के फायदे दीर्घ काल में ही पता चलेंगे, अल्पकाल में तो इससे महंगाई बढ़ने और जीडीपी कम होने की ही संभावना है।
यानी मोदी जी जब तक अति प्रचारित आपके इस कदम से अर्थव्यवस्था को फायदे मिलने शुरू होंगे तब तक छोटे और मझोले व्यापारी कुछ उसी तरह दम तोड़ चुके होंगे जैसे नोटबंदी के बाद छोटे और मझोले किसान।
खबर है कि कल मोदी जी जीएसटी को लेकर दिल्ली में एक रैली निकालेंगे। उम्मीद है अब आपको मेरी बात समझ में आ रही होगी।