Aug 15, 2010

जेपी की हुईं मायावती, किसानों पर दागी गोलियां


अलीगढ़ में जारी किसानों के आंदोलन को लेकर जनज्वार ने करीब दो सप्ताह पहले ‘सरकार ही अत्याचार करै,तो कौन रखावै’रिपोर्ट प्रकाशित  की थी। रिपोर्ट के साथ जनपक्षधर पत्रकारों और मीडिया समूहों से अपील भी की गयी थी कि वह इस खबर को तवज्जो दें मगर ऐसा देखने को नहीं मिला। हमारा मानना है कि अगर समय रहते हस्तक्षेप हुआ होता तो किसान पहले सरकार को,फिर अदालत को और अंत में मीडिया को   बिका हुआ नहीं मानते और न ही किसानों और सुरक्षाबलों के घरों में मातमी माहौल होता जो आज है। अलीगढ़ के टप्पल थाना क्षेत्र से उचित मुआवजे की मांग के साथ शुरू हुआ किसानों का शांतिपूर्ण  धरना अब उग्र आंदोलन में तब्दील हो चुका है और धीरे-धीरे पूरे पश्चिमी  उत्तर प्रदेश में फैल रहा है।


उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जमीन अधिग्रहण के बदले उचित मुआवजे के लिए संघर्षरत  किसानों पर कल शाम पुलिस ने गोलियां दागीं और आंसू गैस के गोल छोड़े। पुलिस की इस गोलीबारी में दो आंदोलनकारी किसानों और एक पीएसी के सब इंस्पेक्टर की मौत हो गयी। मरने वालों में जीरकपुर गांव के चंद्रपाल  का 12 वर्षीय  बेटा भोला और श्यारोल गांव का 24वर्षीय  युवक धर्मेंद्र मारा गया। खबर लिखे जाने तक ग्रामीणों  से पता चला कि आज भी पुलिस और सुरक्षा बलों के बीच जगह-जगह खूनी झड़प हुई है, जिसमें तीन  किसान   और सुरक्षा बल का एक जवान  मारा गया है. आन्दोलनरत  किसानों की मांग है कि उनके जमीनों का अधिग्रहण कर रही  सरकार वही दर दे जो ग्रेटर नोएडा में अधिग्रहण के दौरान किसानों को दिया जा रहा है.
जमीन अधिग्रहण की सरकारी चालबाजी और जेपी ग्रुप की ज्यादती के खिलाफ पिछले 15दिनों से धरने पर बैठे टप्पल थाना क्षेत्र के छह गांवों के किसान 14 अगस्त को उस समय उग्र हो गये, जब स्थानीय थानाध्यक्ष मल्लिक ने आंदोलन के प्रमुख नेता बाबूराम कठेरिया को शाम  करीब पांच बजे गाली-गलौज कर गिरफ्तार कर लिया। टप्पल, उदयपुर,जहानगढ़, कृपालपुर, जीरकपुर और कंसेरा गांव से शुरू  हुआ यह आंदोलन सरकारी असंवेदनषीलता की वजह से तीन जिलों मथुरा,अलीगढ़ और आगरा के पूरे क्षेत्र में फैल गया है। हर जगह किसान घेराबंदी,पथराव और आगजनी कर रहे हैं।


किसानों का आक्रोश : कैसे समझेगी सरकार
                                                                                                                                  

ग्रामीणों ने बताया कि थानाध्यक्ष मल्लिक ने धरने पर बैठे लोगों के साथ जबर्दस्ती की और लोगों ने जब नेता बाबूराम गठेरिया की गिरफ्तारी का विरोध किया तो थानाध्यक्ष ने गोलियां चला दीं जिसमें जीरकपुर गांव के दो लोग घायल हो गये। इसके बाद किसानों और पुलिस बल के बीच हुई झड़प में जीरकपुर गांव के चंद्रपाल का 12 वर्षीय बेटा भोला और ष्यारोल गांव का 24 वर्षीय  युवक धर्मेंद्र मारा गया। पुलिस की तरफ से धड़ाधड़ चली गोलियों से एक पीएसी सब इंस्पेक्टर भी मारा गया। इस गोलीबारी में कई आंदोलनकारियों को गोलियां लगी हैं जिनका अलीगढ़,मुथरा और फरीदाबाद के अस्पतालों में इलाज चल रहा है। ग्रामीणों के अनुसार 14अगस्त को हुई झड़प में पचीस किसान गंभीर रूप से घायल हैं।

पुलिस की इस ज्यादती की जानकारी गांवों में फैलने में घंटे भर भी नहीं लगी। मात्र चालीस-पचास की संख्या में धरना दे रहे किसानों की संख्या बढ़ते ही आक्रोशित  भीड़े ने दो पुलिस पोस्ट समेत कई गाड़ियां और जेपी ग्रुम का निर्माण को स्वाहा कर डाला। मौके पर मौजूद पूर्व मंत्री ठाकुर दलबीर सिंह की भी गाड़ी को आंदोलनकारियों ने आग के हवाले कर दिया। संयोग से उस वक्त क्षेत्र के विधायक सतपाल चौधरी और पूर्व मंत्री ठाकुर दलबीर सिंह भी मौजूद थे।

संयोग इतना ही नहीं था,बल्कि संयोग यह भी था कि आजादी के तिरसठ साल पूरे होने की पूर्व संध्या पर जब प्रधानमंत्री एक विकसित राष्ट्र  के गुनगुनाते सपनों के साथ सोये होंगे तो राजधानी से मात्र 90किलोमीटर दूर अलीगढ़ जिला में में मारे गये किसानों के परिजन शमसान घाट पर जिंदगी की सबसे कड़वी हकीकत से रू-ब-रू हो रहे होंगे। मशहूर शायर फैज अहमद फैज के ‘दाग-दाग उजाला’की हकीकत से पीछा छुड़ाते हुए प्रधानमंत्री जब लाल किला की प्राचीर से किताब में झांककर देष की हकीकत ढुंढ रहे होंगे तो यकीनन पुलिस के हाथों मारे गये किसानों के लाश की गंध लिये धुआं उन तक जरूर पहुंचा होगा। कारण कि कश्मीर  हो या, अलीगढ़, या फिर हो लालगढ़ हर जगह सरकार अमन और शांति की चाहत में धुआं उठाने में ही सफलता देख रही है और विरोध में उठी आवाजों का लाश बनाने में विकास।

बताया जाता है कि ग्रामीणों के उग्र होने का कारण रैपिड एक्शन  फोर्स,पीएसी और स्थानीय पुलिस का जीरकपुर गांव के पास संघर्श के चिन्ह के तौर पर लगाये गये झंडे का पुल से उखाड़ना रहा। आंदोलनकारी राजू शर्मा ने बताया कि जीरकपुर गांव के नीचे बन रहे पुल पर ग्रामीणों ने हरे रंग का झंडा लगा रहा था जिसे सुरक्षा बलों ने उखाड़ दिया। सुरक्षा बलों के नेता बाबूराम कठेरिया की गिरफ्तारी के बाद सुरक्षा बलों का झंडा उखाड़ना आक्रोशित  ग्रामीणों के लिए आग में घी का काम किया।

किसानों के जारी आंदोलन और पुलिस की दग रही गोलियों के बीच अब देखना यह है कि किसानों की मांग के आगे सरकार झुकती है या मायावती सरकार अपने  प्रिय रियल स्टेट समूह जेपी ग्रुप की जय बोलती है।



सरकार अत्याचार करै, तो रखावै कौन


जिस जमीन पर फसलें उगाते हुए किसानों की पीढ़ियां गुजर चुकी हों,जिन खेतों में उगी फसलों का नाता इन परिवारों की समृद्धि से रहा हो, उन खेतों का मालिकाना हक, कागज की एक चिट्ठी छीन ले तो किसान क्या करें?

अजय प्रकाश की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश  के अलीगढ़ जिले के टप्पल थाना क्षेत्र के छह गांवों में जेपी ग्रुप के मॉल और मकान बनाने के लिए सरकार ने जो जमीन निर्धारित की है,वह किसानों की खेती योग्य जमीन है। मगर उत्तर प्रदेश सरकार जेपी ग्रुप  के मकान-दूकान बनाने को देश  का विकास ठहराने पर आमादा है और हर कीमत पर जमीन कब्जाने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। 510 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इन सभी गांवों में पुलिस,प्रशासन और जेपी ग्रुप के लठैत भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं,जिसके खिलाफ किसान  भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं और हर रोज जोरदार प्रदर्शन  कर रहे हैं.
पश्चिमी  उत्तर प्रदेश में सरकार और जनता के बीच पिछले कई वर्षों  से सबसे बड़ी टकराहट मुआवजे और कब्जे को लेकर ही है। सरकार के पास बहाना विकास का है और किसान ज्यादा से ज्यादा मुआवजा पाने के संघर्ष  पर उतारू है। ग्रामीण हुकुम सिंह कहते हैं,हम पर जुल्म होता है तो न्याय की उम्मीद में प्रशासन,प्रतिनिधि या अदालत में जाते हैं। मगर हम लोगों के सामने यही संकट है कि सरकार ही अत्याचार करै, तो रखावै कौन।’

सरकारी-निजी मिलीभगत  सेइन छह गांवों में खेती के जमीनों पर कब्जेदारी की कानूनी प्रक्रिया जेपी ग्रुप ने 2001 में ताज एक्सप्रेस-वे के बनने के दौरान ही पूरी कर ली थी। मगर यह जानकारी किसानों के बीच सरकार की ओर से पिछले वर्ष सार्वजनिक की गयी। गौरतलब है कि उस समय सरकार बसपा की ही थी और मौजूदा मुख्यमंत्री मायावती ही सत्ता पर काबिज थीं। सन् 2001 में किसानों ने बड़ी आसानी से ताज एक्सप्रेस वे के लिए जमीन दे दी कि इससे राज्य का विकास होगा। उस समय किसानों ने जमीन सवा तीन लाख रूपये बीघे के हिसाब से दी थी। लेकिन पिछले वर्श जब विकास प्राधिकरण ने किसानों को नोटिस भेजा कि अलीगढ़ जिले के छह गांवों टप्पल, उदयपुर, जहानगढ़, कृपालपुर, जीकरपुर और कंसेरा गांव के जमीन मालिक कोई नया निर्माण न करें, तो किसान हतप्रभ रह गये।

इसकी शुरुआअत उस समय हो गयी थी जब कॉमनवेल्थ खेलों के लिए दिल्ली से आगरा के बीच चौड़ी,सुंदर और चकमदार सड़क बनाने की योजना की मंजूरी ताज एक्सप्रेस-वे हाइवे प्राधिकरण को सरकार ने दी थी। जिसका नाम बाद में यमुना एक्सप्रेस-वे विकास प्राधिकरण हो गया। इसके लिए नोएडा,अलीगढ़ और आगरा के किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया और ठेका देने के लिए कई कंपनियां आमंत्रित की गयीं।

जेपी ग्रुप ने सरकार से कहा कि वह नोएडा से आगरा तक अपने खर्चे से सड़क बना देगा। शर्त  बस इतनी है कि सरकार कंपनी को अच्छे बाजार की संभावना वाली जगहों पर प्रदेश  में पांच जगह करीब 50 हजार हेक्टेयर जमीन उसे दे, जिसका भुगतान कंपनी कर देगी। मगर कंपनी ने दूसरी शर्त  यह रखी कि सड़कों के बनने के बाद, तीस वर्षों तक टोल टैक्स जेपी ग्रुप वसूल करेगा। जनता की सरकार मायावती ने इसे जनहित में मानते हुए जेपी ग्रुप  की सारी शर्तें स्वीकार कर लीं।

गौरतलब है कि यह सारी जानकारी किसानों से छिपायी गयी। जहानगढ़ गाँव के हुकुम सिंह इसे एक साजिश मानते हैं। हुकुम सिंह ने बताया कि ‘जिलाधिकारी ने सरकारी कर्मचारियों पर दबाव डालकर,तबादले की धमकी देकर कुछ ग्रामीणों से जमीन कब्जा वाले कागजों पर तो दस्तखत करा लिया है, मगर ज्यादातर लोगों को सरकार की यह षर्त मंजूर नहीं है।’यानी प्रशासन घोषित  कब्जेदारी के तरीकों के मुकाबले अभी तक अघोषित  ढंग ही बात मनवाने में सफल रहा है। ऐसा सरकार इसलिए कर रही है कि 2001में नोएडा एक्सप्रेस वे के लिए जिस कीमत (सवा तीन लाख रूपया बीघा) पर अधिग्रहण हुआ था, नौ साल बाद भी किसान उसी दर को स्वीकार कर लें।


किसानों के आंदोलन में शामिल राजू शर्मा  बताते हैं कि ‘सरकार की शर्त हमें मंजूर नहीं थी। इसलिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। किसानों ने अदालत के समक्ष अपनी मांगों को रखा। जैसे,किसानों की जमीन को सरकार साढे़ सैंतालीस सौ वर्गमीटर के हिसाब से बेच रही है तो उन्हें इन जमीनों का भुगतानबेची जारही कीमत से बीस प्रतिशत  कम करके अदा करे। दूसरी मांग यह है कि कुल जमीन का दस प्रतिषत हिस्सा विकसित कर सरकार किसानों को दे जिससे कि वे देश  के विकास में अपनी भागीदारी कर सकें। मिले हुए मुआवजे से गर किसान प्रदेश में कहीं जमीन खरीदता है तो उसे स्टांप शुल्क न देना पड़े और हर प्रभावित परिवार के सदस्य को रोजगार मिले।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इन सभी मामलों के पक्ष-विपक्ष पर साल भर सुनवाई चली। किसानों को उम्मीद थी कि अदालत उनके पक्ष में फैसला देगी। मगर अदालत ने 2जुलाई को जो फैसला दिया, उससे बीस हजार आबादी वाले इन छह गांवों के लोग सकते में आ गये। राजू शर्मा बताते हैं कि ‘सरकार और जेपीग्रुप  की तरफ से पेश हो रहे वकीलों ने उच्च न्यायालय में जो बातें रखीं वे सभी हवाई साबित हुईं। जैसे किसानों की खेती योग्य जमीनों को जेपी के वकील ने बंजर बताया तो किसान उसे उपजाउ साबित करने में सफल हुए। इतना ही नहीं किसानों अदालत में धारा -5ए का हवाला देते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया कि ग्रामीणों की सहमति की सरकार ने कोई जरूरत ही नहीं समझी।

सारी सुनवाइयों के बाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश  सुनील अंबानी और धीरेंद्र सिंह ने तीन जिलों आगरा, नोएडा और अलीगढ़ में किसानों के विरोध के औसत के आधार पर टप्पल क्षेत्र के प्रभावितों का मुकदमा खारिज कर दिया। किसानों के वकील आषीश पांडेय ने बताया कि ‘एक ही प्रोजेक्ट के उपयोग के लिए कब्जाई गयी जमीन को आधार बनाकर अदालत ने कहा कि जब अस्सी फीसदी किसानों को कोई ऐतराज नहीं है तो बीस प्रतिशत  का क्या मतलब?’दरअसल जजों ने इन तीनों जिलों में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ हो रहे विरोध और जमीन का औसत निकाला तो पाया कि टप्पल के किसानों की भागीदारी 20 प्रतिशत  है। इसी आधार पर दोनों जजों ने संयुक्त रूप से सुनवाई के दौरान मुकदमे को खारिज कर जेपी ग्रुप के पक्ष में फैसला दे दिया।


सरकार,प्रशासन औरअंत में अदालती आदेश से हताश ग्रामीणों ने जीरकपुर गांव में किसान सभा के बैनर भूख हड़ताल शुरू कर दी है। मगर पुलिस लोकतान्त्रिक  विरोध के इस तरीके को लगातार असफल करने में लगी हुई है। कब्जेदारी से प्रभावित होने वाले सभी गांवों में धारा 144लगा दी गयी है जिससे कि किसान इकट्ठे होकर आंदोलन को मजबूत न बना सकें। किसान सभा के धरने में सक्रिय भूमिका निभा रहे किशन  बघेल ने बताया कि ‘इन सभी गांवों के सर्वाधिक सक्रिय और जुझारू लोगों का पुलिस ने पहले से ही मुचलका कर रखा है ताकि संगठित आवाज उठाने वालों पर कानूनी कार्रवाई कर,कानून-व्यवस्था बनाये रखने के बहाने जेलों में डाला जा सके।’किसान सभा नेता कल्लू बघेल को पुलिस ने 29 जुलाई को देर रात में घर से उठाकर जेल में डाल दिया था।

सरकार और जेपी के मिलीभगत में फंसे ग्रामीणों ने फिर एक बार अदालत का दरवाजा खटखटाया है। सर्वोच्च न्यायालय के वकील रामनिवास ने किसानों की ओर से उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अर्जी डाली है। मगर अब प्रष्न यह है कि देष की आर्थिकी में बड़ी भूमिका निभाने वाले किसानों के खिलाफ सरकार मुकदमा लड़ रही है,पूंजी बटोरने में लगी कंपनियों के लिए सुविधा मुहैया कराना ही जिम्मेदारी मान चुकी है।


(द पब्लिक एजेंडा में छपी रिपोर्ट का संपादित अंश)

टिप्पणी- ग्रेटर नोएडा  से छह किलोमीटर दूर  अलीगढ  जिला  के खैर रेलवे स्टेशन की ओर पड़ने वाले इन गांवों  में  तीखा आन्दोलन चल रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि मीडिया को पुलिस ओर जेपी कंपनी  के लोग जाने नहीं दे रहे हैं. जनपक्षधर पत्रकार और मीडिया संस्थान इस मसले को जानने के लिए इन नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं.


सिनामाई पर्दे पर नया मुहावरा है 'पीपली लाइव'


फिल्म में मीडिया की भूमिका झपट्टा मारने पर उतारू बाज़ जैसी है जो 'आत्महत्या'की जाल में फंसने जा रहे किसान नत्था के पेशाब और टट्टी करने तक को सनसनीख़ेज़ 'ख़बर'बनाता है।

वर्धा से अनिल मिश्र

पीपली लाइव लोकजीवन के मार्मिक चरित्रों की विडंबना को व्यंग्य की सुतली डोर से बांधती है। यह वोट लूटने की ज़हरीली राजनीति,जानलेवा 'विकास'और सौदागर मीडिया के भ्रष्ट लेकिन मज़बूत गठजोड़ की सिनेमाई दास्तान है। नत्था, बुधिया, होरी और अम्मानुमा पात्र, अपने देश भारत (इंडिया नहीं)की फटी तक़दीर पर चस्पा ऐतिहासिक नज़ीर हैं कि कैसे एक देश की कई पीढ़ियां निराशा,अवसाद और अपने ही लोगों की गु़लामी के जूतों तले दबकर धीमी मौत की सांस गिन रही हैं। हमारे 'इंडिया' को इसका भान बस यूं है कि वह इन पात्रों की ज़िंदगियों को हरेक क्षण किसी मस्त बौराये हाथी की तरह पल-प्रतिपल कुचलता चला जा रहा है।


लोक की सहज जीवन-शैली के धागों से बुनी फ़िल्म छिछोरी राजनीति की गंदी हरकतों को उजागर करती है। इसमें मीडिया की भूमिका झपट्टा मारने पर उतारू बाज़ जैसी है जो 'आत्महत्या'की जाल में फंसने जा रहे किसान नत्था के पेशाब और टट्टी करने तक को सनसनीख़ेज़ 'ख़बर'बनाता है। फ़िल्म में,युगीन उपलब्धियों को जीने वाले नाट्यकर्मी हबीब तनवीर के अभिनय स्कूल का भरपूर असर दिखता है जो सिनेमाई पर्दे पर अभिनय का एक नया मुहावरा गढ़ता है। मसलन, फ़िल्म के खल पात्र जब कर्कश गालियां देते हैं तो वह तंज और नफ़रत का एक तल्ख़ इज़हार होता है लेकिन अम्मा द्वारा अपनी बहू या लड़के को दी जाने वाली गालियां दर्शकों को गुदगुदा जाती हैं।

नगीन तनवीर के गीत 'चोला माटी का....' गीत सुनहरी लोकधुन की उत्कृष्ट गायकी है। नगीन तनवीर की खनकती आवाज़ इसके जादुई असर को और महीन करती है। विभिन्न भाषाओं के लोकगीतों और धुनों पर नगीन की ग़ज़ब की, आल्हादित कर देने वाली पकड़ है। फ़िल्म में ताज़ादम ताज़गी के साथ ये गीत सूफ़ी संगीत की सी सादगी से तरंगित है। अन्य गीत 'देस मेरा रंगरेज़....'और 'मंहगाई डायन.....'आज के अंतर्द्वंद की नब्ज़ टटोलने में बेतरह कामयाब हुए हैं।

पीपली लाइव,कुलीनों द्वारा देश के हृदयस्थल पर एक के बाद एक की जा रही चोटों का हालिया हिसाबनामा है। यह नव-धनाढ्य चेतना को बेधती हुई,अर्थपूर्ण मनोरंजन की ज़रूरत से पगी फ़िल्म है। यह दर्शकों को एक ज्वलंत सवाल पर समझदार सोच के साथ सिनेमाहॉल से विदा करती फ़िल्म है।