Nov 2, 2009

शांति के लिए भूख हड़ताल के दस वर्ष

शान्ति की सुगंध


इरोम शर्मिला



जब यह जीवन समाप्त हो जायेगा

तुम मेरे मृत शरीर को

ले जाना

रख देना फादर कूब्रू की धरती पर


आग की लपटों में

अपने मृत शरीर को राख किये जाने

उसे कुल्हाडी और कुदाल से नोचे जाने का ख़याल

मुझे ज़रा भी पसंद नहीं



बाहरी त्वचा का सूख जाना तय है

उसे ज़मीन के नीचे सड़ने देना

ताकि वह अगली पीढियों के किसी काम आये

ताकि वह किसी खदान की कच्ची धातु में बदल सके


वह मेरी जन्मभूमि कांगलेई से

शान्ति की सुगंध बिखेरेगी

और आने वाले युगों में

समूची दुनिया में छा जायेगी
 
                                                                                                      (अनुवाद- मंगलेश डबराल)