Jan 31, 2016

कैंपस हैं या धर्म के अखाड़े


विश्वविद्यालयों  में जाति और धर्म को और मजबूत करने से किसका फायदा हो रहा है। हैदराबाद अकेला नहीं जहां एक छात्र की आत्महत्या के बाद विवाद चरम पर है, बल्कि डीयू, जेएनयू, बीएचयू और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में भी ऐसे विवाद लगातार सामने आए हैं।   

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने विश्वविद्यालयों के बारे में कहा था, ‘अगर विश्वविद्यालय ठीक रहेंगे तो देश भी ठीक रहेगा।’ सवाल है कि क्या उच्च शिक्षा के हमारे गढ़ों में देश को ठीक बनाए रखने का पाठ पढ़ाया जा रहा है। या फिर राजनीतिक वर्चस्व के जरिए हमारी पीढि़यां धार्मिक और जातिवादी हस्तक्षेप के चक्रव्यूह में फंसती जा रही हैं। 

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजी और मानवाधिकारवादी एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘कई राज्यों में सत्ता बदलते के साथ एसपी और थानेदार बदल जाते हैं, इसलिए वह जनता की जिम्मेदारी को समझते ही नहीं। मुझे कुछ वर्षों से लगने लगा है कि सरकारें विष्वविद्यालयों को थाना और वीसी को एसपी समझने लगी हैं। अगर इसे नहीं रोका गया तो हमारी देष की मेधा राजनीतिज्ञों की फुटबाल बन जाएगी।’ 

सवाल है कि आखिर वह कौन सी लकीर होती है जिसके बाद लगने लगता है कि एक कैंपस हिंदूवादी, मुस्लिमपंथी, वामपंथी या कांग्रेसी होने लगा है और वैचारिक वैविध्यता का इंद्रधनुष किसी एक रंग का होता जा रहा है। नैनीताल विष्वविद्यालय के पूर्व षिक्षक और पद्म श्री शेखर पाठक मानते हैं, ‘एक  कैंपस में सभी विचारधाराओं के लोग होते हैं और छात्र वहां एक नया मुनश्य बनता है। लेकिन जब सीधा राजनीतिक हस्तक्षेप होने लगता है, शिक्षक से लेकर नीतियों तक में सरकार दखल देने लगती है तब वह लकीर गाढ़ी हो जाती है।’
   
गुजरात विश्वविद्यालय - आतंक का आरोपी मुख्य अतिथि 
18 जनवरी को हेमचंद्रआचार्य नाॅर्थ गुजरात यूनिवर्सिटी ने अपने कनवोकेशन में राष्ट्रीय  स्वंय सेवक संघ ‘आरएसएस’ के वरिश्ठ पदाधिकारी और 2007 अजमेर धमाकों के मुख्य आरोपी इंद्रेश कुमार को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया। गुजरात के राज्यपाल ओपी कोहली की उपस्थिति में विश्वविद्यालय ने इंद्रेश के हाथों मेधावी छात्रों को स्वर्ण पदक दिलवाए। 

नहीं रही कभी गंगा जमुनी-संस्कृति - लखनउ विश्वविद्यालय 
लखनउ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुधीर पंवार हाल में हुई मेरठ के नए वीसी एनके तनेजा के बारे में बताते हैं कि उनके चयन की प्राथमिकता यह थी कि वह संघ समर्थक हैं। इसी तरह लखनउ विश्वविद्यालय में ‘भारतीय इतिहास शोध परिषद’ की ओर से एक कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम में प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक भी उपस्थित थे। उनकी उपस्थिति में इतिहास के पूर्व प्रोफेसर एसएन मिश्र ने कहा कि भारत में कभी गंगा-जमुनी संस्कृति नहीं रही। गंगा हिंदुओं और यमुना मुसलमानों की नदी रही है। भारतीय इतिहास शोध परिशद इतिहास मामलों में संघ की सर्वोच्च संस्था है। पंवार के अनुसार, ‘एकध्रुविय संस्कृति को हावी करने में जुटा संघ सरकार बदलने के बाद से षिक्षा को मुख्य हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की भरपूर कोशिश में जुटा है। उनको पता है कि किसी चुनाव से भी ज्यादा असर षिक्षा परिसरों का होगा।’ 

संघी होना ही सबसे बड़ी योग्यता - बीएचयू 
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पिछले सत्र की शुरुआत में ही संघ के सहकार्यवाहक गोपाल जी को अंबेडकर पर बोलने के लिए बुलाया गया। यहां एक दूसरे कार्यक्रम में संघ के इंद्रेष कुमार का भी लेक्चर हुआ। बीएचयू में इतिहास की प्रोफेसर वृंदा परांजपे कहती हैं, ‘गोपाली जी के लेक्चर के बाद कैंपस के अंदर आरएसएस समर्थक संगठनों, षिक्षकों और छात्रों की जिस तरह की गतिविधियां बढ़ीं, उससे वैचारिक असहिश्णुता का माहौल बड़ा स्पश्ट दिख जाता है।’ इतिहास विभाग में प्रोफेसरों के होने के बावजूद विश्वविद्यालय नियमों को ताक पर रख तीसरी बार अरूणा सिन्हा को सिर्फ इसलिए विभागाध्यक्ष बनाया गया है कि वह संघ पदाधिकारियों की करीबी हैं। इसी कैंपस के आइआइटी प्रोफेसर आरके मंडल बताते हैं, ‘मोदी सरकार से पहले संघ की केवल एक षाखा कैंपस में लगती थी पर अब चार से पांच लगने लगीं हैं। सवाल है कि क्या इन शा खाओं के जरिए मोदी ‘मेक इन इंडिया’ करना चाहते हैं। 
हाल ही में मैग्ससे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय की बीएचयू आइआइटी से  बर्खास्तगी का मुद्दा विवादों में रहा था। संदीप को भी विश्वविद्यालय ने नक्सल समर्थक कहकर निकाल दिया। इस बारे में संदीप कहते हैं, ‘संघी हमेषा से आरक्षण का इस आधार पर विरोध करते रहे हैं कि इससे मेधा खत्म होगी। मगर इन दिनों वे काबिलियत को जेब में रख विचारधारा के आधार पर कैंपसों को पाटा जा रहा है।’ 

क्यों रहे कांग्रेस काल का विश्वविद्यालय - जयपुर 
जयपुर में हरिदेव जोषी पत्रकारिता विश्वविद्यालय को बंद किए जाने की घोषणा राज्य सरकार ने कर दी है। सरकार का कहना है कि यह कांग्रेस के समय में खोला गया था और अब इसकी कोई जरूरत नहीं है। हरिदेव पत्रकारिता विश्वविद्यालयसे जुड़े प्रोफेसर नारायण बारेठ के मुताबिक, ‘किसी एक धर्म का नहीं बल्कि समाज में सभी धर्मों का असर बढ़ा है और दूसरे विचारों को बर्दाष्त नहीं किए जाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, डिस्कोर्स पर भरोसा कम हो रहा है।’  
दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार और संघ के करीबी माने जाने वाले रामबहादुर राय नई सरकार बनने के बाद कैंपसों में बढ़ते धार्मिक असर को पूर्वाग्रही मानते हैं। वे कहते हैं, हमारे समाज में धर्म की मान्यता है और षिक्षा धर्म से विमुख नहीं हो सकती। विरोध करने वालों को महात्मा गांधी, डाॅक्टर राजेंद्र प्रसाद और शिक्षाशास़्त्री राधाकृष्णन को पढ़ना चाहिए। बड़ी बात यह है कि कैंपसों में संघ या हिंदू धर्म के बढ़ते असर के सवाल को धार्मिक नहीं, राजनीतिक लोग उठा रहे हैं। विरोध कोई नई बात नहीं है। 1951 में संघ विचारक गुरु गोलवलकर जब इलाहा बाद विश्वविद्यालय में बोलने गए थे तब भी समाजवादियों, कम्यूनिस्टों और कांग्रेसियों ने तगड़ा विरोध किया था। 

जो विरोधी है वह नक्सली है - इलाहाबाद विश्वविद्यालय
इलाहाबाद विष्वविद्यालय में एबीवीपी ने गोरखपुर के भाजपा सांसद और हिंदू चरमपंथी नेता आदित्यनाथ को 20 नवंबर को बुलाए जाने का कार्यक्रम रखा। परंतु विश्वविद्यालय की छात्र संघ अध्यक्ष रिचा ने यह कहते हुए विरोध किया कि वह एक सांप्रदायिक और विवादित नेता को कैंपस में नहीं आने देंगी। आदित्यनाथ को छात्र संघ भवन का उद्घाटन करना था। 21 जनवरी को इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ द्वारा आमंत्रित वरष्ठि पत्रकार और संपादक सिद्धार्थ वर्द्धराजन का लेक्चर एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने कैंपस में यह कहकर नहीं होने दिया कि वह देशद्रोही और नक्सल समर्थक हैं। 

मंदिर पर बहस के लिए डीयू 
10 जनवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘श्री राम जन्मभूमि: उभरता स्वरूप’ को लेकर कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम का विरोध करने वाले संगठनों में शामिल क्रांतिकारी युवा संगठन हरीश गौतम कहते हैं, ‘विरोध भाजपा से नहीं उनके मुद्दों और नेताओं से हैं। सुब्रमन्यम स्वामी, योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं को एक कैंपस कैसे सह सकता है जो दंगा-फसाद के अलावा कुछ जानते ही नहीं। इनका छात्रों के सरोकार और समस्याओं से क्या लेना-देना।’ 

सवाल वीसी के चयन का - जेएनयू 
जेएनयू में 30 दिसंबर को विश्वविद्यालय की साझेदारी में आयोजित वेदांत अंतरराश्ट्रीय कांग्रेस में योगगुरु रामदेव को मुख्य वक्ता बनना था, लेकिन वामपंथी छात्रों के विरोध के कारण रामदेव ने जाने की मनाही कर दी। दिल्ली आइआइटी प्रोफेसर एम जगदीष कुमार का 21 जनवरी को जेएनयू के नए वीसी बनाए जाने की  फैसला हुआ। माना जा रहा है कि उनके चयन में संघ से नजदीकी बड़ी वजह है। पिछले दिनों वे संघ की साझेदारी में आयोजित एक कार्यक्रम में षामिल हुए थे। 

राम के जन्मदिन की खोज - आइआइएमसी 
षिक्षक और मीडिया विषेशज्ञ दिलीप मंडल शिक्षा परिसरों के इस बदलाव को बढ़ते धार्मिक असर के रूप में नहीं लेते। उनकी राय में, ‘जेएनयू कैंपस इंडियन इंस्टिट्यूट आॅफ मास कम्यूनिकेषन में 2011 में राम की जन्मतिथि को लेकर सेमीनार हो चुका है, इसलिए सवाल बढ़ते धार्मिक असर का नहीं है। बल्कि विरोध बढ़ गया है, क्योंकि कैंपसों का कंपोजिशन बदल गया है। उच्च षिक्षा संस्थानों में 2008 से आरक्षण लागू होने के बाद छात्रों की आबादी बदल गई, लेकिन शिक्षकों में वह परिवर्तन अभी नहीं आ पाया है। कैंपसों में बढ़ती टकराहट का यह सबसे बड़ा कारण है।’ 

साथ नहीं तो बर्खास्त - हैदराबाद विश्वविद्यालय
हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या का कारण भी एक कैंपस के धर्मांध होते चले जाना ही है। एबीवीपी कार्यकर्ताओं का अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिशन ‘एएसए’ से जुड़े वेमुला और उनके साथियों से तब विवाद षुरू हुआ जब 1993 मंुबई हमलों के आरोपी याकूब मेनन को दी गयी फांसी के खिलाफ एएसए के प्रदर्षन कर रहा था। एएसए प्रदर्षन से पहले मुजफ्फरनगर दंगों पर बनी एक डाक्यूमेंट्री दिखाना चाहा, लेकिन एबीवीपी ने प्रदर्षन नहीं होने दिया। अलबत्ता एबीवीपी की षिकायत पर केंद्रीय राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रये ने केंद्रीय संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखा कि पिछले कुछ महीनों से कैंपस में राश्ट्रविरोधी, चरमपंथी, धार्मिक भावनएं भड़काने वाली गतिविधियां बढ़ गई हैं। 

रोहित ने सोश ल मीडिया पोस्टों में अवैज्ञानिक मान्यताओं का मजाक उड़ाया है। वह ड्रोन को लेकर हिंदू देवता हनुमान पर कटाक्ष करते हैं। हैदराबाद विष्वविद्यालय के वीसी द्वारा बस की पूजा करने पर लिखते हैं, ‘ऐसा लग रहा है कि रास्ते में बस के खराब होने पर गणपति का ष्लोक पढ़ने से बस अपने आप चल पड़ेगी।’ 

पूर्व आइपीएस अधिकारी और लेखक के वीएन राय कहते हैं, ‘अवैज्ञानिक मान्यताओं को लेकर कोई भी सभ्य और आधुनिक समाज मजाक उड़ा सकता है। पर इसका परिणाम किसी की आत्महत्या के रूप में आएगा, इसे कतई बर्दाष्त नहीं किया जा सकता। बर्दाष्त नहीं कर पाने की इसी स्थिति को देखते हुए बीजेपी के पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान स्पश्ट करते हैं, ‘रोहित के साथ जो हुआ है, उसको गंभीरता से लेना होगा अन्यथा हमें व्यापक विरोध और विद्रोह के लिए तैयार रहना चाहिए।’ 

हटा रहे हैं उर्दू के शब्द 
प्रसिद्ध शिक्षाविद अनिल सदगोपाल शिक्षाविद  दीनानाथ बत्रा को पाठ्य पुस्तकों में बदलाव का जिम्मा दिए जाने को मेधा की राश्ट्रीय क्षति मानते हैं। वे बताते हैं, ‘प्राथमिक षिक्षा वह नींव है जहां सर्वे भवन्तु सुखीनः सर्वे संतु निरामया का संस्कार दिया जाता है। पर बत्रा क्या कर रहे हैं? उन्होंने केंद्रीय शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी को एनसीआरटी की पाठ्य पुस्तकों से छांटकर उर्दू के शब्द हटाने की एक सूची भेजी है। यह समाज और भाशा दोनों का दरिद्र करना है।’ बत्रा इससे पहले गुजरात में पाठ्य पुस्तकों में बदलाव का जिम्मा निभा चुके हैं और अब हरियाणा सरकार में वे औपचारिक षिक्षा सलाहकार बनाए जा चुके हैं। 

संघ का असर बढ़ने की बातें तथ्यहीन - उपेंद्र कुशवाहा, केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री 
हैदराबाद विश्वविद्यालय का मसला दूसरा है, वहां कार्रवाई हो रही है। इस तरह के मामले राज्य सरकारें देखती हैं। जहां तक कैंपसों में हिंदूवादी और संघी असर बढ़ने जैसी बातें हैं, मैं इसको तथ्यहीन मानता हूं। मुझे नहीं लगता कि  इलाहाबाद, बीएचू या डीयू-जेएनयू में विवादों के एक कारण हैं। अलग-अलग जगहों के मुद्दे अलग-अलग हैं हैं। सभी मुद्दों को एक में समेट लेना ठीक नहीं है। 

ऐसे नहीं वैसे बनेगी स्मार्ट सिटी

संजय जोठे 

स्मार्ट सिटी कैसे बनाई जाए इस विषय पर हफ्ते भर तक गंभीर मन्त्रणा के लिए कई देशों के प्रतिनिधि अमेरिका में इकट्ठे हुए। भारत की तरफ से एक "जमीन से जुड़े" खांटी  देशभक्त और संस्कृतिरक्षक मन्त्री जी भारतीय दल का नेतृत्व कर रहे थे।

भारतीय प्रतिनिधियों को छोड़कर बाकी सब लोग बहुत परेशान थे। वे सब बार—बार, मोटी—मोटी किताबें और रिपोर्टें उलटते पलटते, कभी लैपटॉप पर कुछ एनालिसिस करते कभी नक़्शे बनाते कभी मॉडल्स बनाकर देखते। कभी ब्रेनस्टार्मिंग होती कभी प्रेजेन्टेशन, इस सबके बीच वे अपना खाना पीना तक भूल गए।

लेकिन भारतीय प्रतिनिधि दिन भर मजे से सुरति रगड़कर खाते, वीडियो गेम खेलते और न्यूयार्क में शॉपिंग करते डिस्को में जाकर नाचते और डटकर दावत उड़ाते।

बाकी लोग ये सब देख रहे थे वे समझे कि शायद भारतीयों ने अपनी तैयारी बहुत पहले ही पूरी कर ली है इसीलिये वे टेंशन फ्री हैं।

एक अमेरिकन ने कुछ झेंपते शरमाते हुए  भारतीय मन्त्रीजी से पूछा "भाई आप इतने मजे में हैं शायद आपका सब कुछ तैयार हो गया है।"

मन्त्रीजी बोले "हमारी तैयारी तो हजारों साल पहले ही हो चुकी है महाराज ... आप आज स्मार्ट सिटी की बात कर रहे हो हम तो सदियों से एक स्मार्ट कल्चर बनाकर बैठे हैं.... इस स्मार्ट कल्चर को थोड़ा सा इधर उधर घुमाते ही हम जिसे चाहें रातोंरात स्मार्ट या इडियट बना सकते हैं"

अमेरिकन को चक्कर आ गए, वो संभलते हुए मन्त्रीजी से बोला "ये स्मार्ट कल्चर क्या चीज है? हम तो ये पहली बार सुन रहे हैं"

मन्त्रीजी: स्मार्ट कल्चर हजार बिमारियों की एक दवा है। आप हर बीमारी का अलग अलग इलाज करते हो आप एलोपैथी वाले हो आपके पास आँख का डाक्टर अलग और पेट का डाक्टर अलग होता है ... हम आयुर्वेदिक इश्टाइल में काम करते हैं एक ही काढ़े से सर के बाल से लेकर पाँव की खाल तक का इलाज कर देते हैं, आप सौ सुनार की करते हो हम एक लोहार की करते हैं"

अमेरिकन: मैं कुछ समझ नहीं सर थोडा विस्तार से बताइये न

मन्त्रीजी: देखो भाई ... ये सनातन फार्मूला है थोड़ी कही ज्यादा समझना ... समझो कि तुम्हारी पब्लिक हल्ला मचाती है कि उसे स्मार्ट सिटी चाहिए बुलेट ट्रेन या मेट्रो ट्रेन चाहिए, या जंगल मैदान जाने की बजाय पक्के टॉयलेट चाहिए, जुग्गी झोपडी की बजाय पक्के मकान चाहिए या कहो कि उच्च शिक्षा के लिए कालेज यूनिवर्सिटी या आधुनिक हस्पताल मागती है तब आप क्या करेंगे?

अमेरिकन: इतनी सब मांगें पूरी करने के लिए हम एक कमीशन बैठाएंगे, वो रिसर्च करेगा प्लान बनयेगा, एस्टिमेट बनाएगा, अलग अलग डिपार्टमेंट्स से सुझाव मांगेगा कि क्या काम कितने समय में कितने मिलियन डॉलर्स में होगा ... फिर ...

मन्त्रीजी (टोकते हुए): उ सब छोड़िये महाराज ये बताइये पब्लिक को क्या देंगे??

अमेरिकन: देखिये हम पब्लिक को सबसे पहले पक्की और रेग्युलेटेड कालोनियां बनाकर देंगे साफ़ पानी का इंतेजाम करंगे चौड़ी सड़कें बनाकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट देंगे बड़े हस्पताल और स्कूल कालेज बनाकर देंगे। नगर निगमों को ट्रेनिंग देकर वेस्ट मैनेजमेंट वाटर रिसाइकलिंग सीवर ट्रीटमेंट सिखाएंगे। रेलवे ट्रैक सुधारकर बुलेट ट्रेन दौड़ाएंगे, शहरों में ऊँचे पिलर और सुरंगें बनाकर मेट्रो ट्रेन दौड़ाएंगे ...

मन्त्रीजी: अरे बस करो महाराज ... इस सब में इतनी बुद्धि वक्त और पैसा ठोंक दोगे तो अगला चुनाव कैसे लड़ोगे? ये सब सच में ही दे दिया तो अगले चुनावी घोषणापत्र में क्या सबको मंगल की सैर कराने का वादा करोगे?

अमेरिकन एकदम आसमान से जमीन पर गिरता है पूछता है "लेकिन ये सब न दिया तो पब्लिक आंदोलन करेगी शासन प्रशासन को उखाड़ फेंकेगी, चलिए आप ही बताइये आप कैसे डील करंगे"

मन्त्रीजी सुरति दबाये मन्द मन्द मुस्काते हुये कहते हैं "भैयाजी यहीं तो स्मार्ट कल्चर काम आता है, कुछौ बनाने की जरूरत नहीं जनता जो मांगती है उसके बारे में कहानियाँ सुनाइए और ये बताइये कि वो जो मांग रही है उससे ज्यादा उनके पास पहले से ही धरा हुआ है"

अमेरिकन: कुछ समझे नहीं, तनिक विस्तार से बताइये

मन्त्रीजी: अरे भाई, तुम भारतवर्ष के इतिहास में नहीं झांके हो कभी। हम एक ही विद्या जानते हैं, पब्लिक मैनेजमेंट, बस उसी से सब ठीक हो जाता है... समझो ...हमारी पब्लिक के हमने दो हिस्से किये हैं। पांच प्रतिशत वे लोग जो कुछ भी करके सुविधा मांगेंगे, वे कुछ बड़े शहरों में रहते हैं। बाकी पंचानबे पर्सेंट गरीब गुरबे छटे शहरों या गांव में रहते हैं। अब पंचानबे पर्सेंट गरीब पब्लिक को मैनेज करना ही स्मार्ट कल्चर का असली हुनर है।

सुनो जैसे कि ये गरीब पब्लिक बड़े अस्पताल मांगती है तो हम आयुर्वेद और योग पकड़ा देते है, इधर से खींचो उधर से छोडो और ताली बजाकर कीर्तन करो, वे आधुनिक ट्रेन मेट्रो और हवाई जहाज के लिए बिलबिलाते हैं तो हम पुष्पक विमान दिखाकर पूर्वजों के जैकारे शुरू कर देते हैं कि ये लो ये सब तो हमारे पास हजारों साल है ही, इसके आगे हवाई जहाज क्या चीज है, पब्लिक पक्के शहरों में टॉयलेट मांगती है तो कहते हैं कि भारत की आत्मा गाँव में बसती है, अब गाँव मतलब जंगल मैदान ... समझे कि नहीं?...

अगर कोई बड़े स्कूल कालेज या अंग्रेजी शिक्षा मांगे तो हम गुरुकुल परम्परा वैदिक विज्ञान अध्यात्म और संस्कृत का ढोल पीटने लगते हैं लोग अच्छे कपड़े मांगें तो थोड़ी देर केलिए हम खुद ही धोती दुशाला ओढ़कर बैढ़ जाते हैं ...  पब्लिक अच्छा खाना या पानी मांगती है तो हम गरीब और मरियल साधू खड़े कर देते हैं कि इन्हें देखो और त्याग करना सीखो स्वर्ग जाना है तो भुक्खड़ों की तरह खाने की बात न करो त्याग और तप की बात करो।

फिर आखिर में ऐसी कथाएँ रचते हैं जिनमे गरीब दरिद्र नारायण हों, अछूत हरिजन हों, विकलांग दिव्यांग हों, किसान अन्नदाता हों, स्त्रियां देवी हों... दो तीन हजार कथाकार समाज में छोड़कर ये कहानियाँ पेलते रहिये जनता खुश होकर सन्तोष में जीने लगेगी, बाकी सब भूल जायेगी। अब सन्तोषी सदा सुखी ... समझे कि नहीं?

अमेरिकन: अरे वाह ये तो चमत्कार है, हम तो इतना मगजमारी करते हैं और फिर भी पब्लिक एक के बाद एक मांग करती ही जाती है, रूकती ही नहीं ... अच्छा बस एक बात और बता दीजिये आखिर में, इस "स्मार्ट कल्चर मैनेजमेंट" से जो पैसा बचता है उसका क्या करते है?

मन्त्रीजी (सुरती थूकते हुए) : अरे, ये भी कोई पूछने की बात है, उसी बचत से हम उन शहरी पांच पर्सेंट लोगों के लिए दो चार विदेशी विमान, मेट्रो, बुलेट इत्यादि ख़रीदते हैं बाकी गरीबों को देशभक्ति पेलने के लिये इसी बचत से फाइटर प्लेन, पनडुब्बी जैसी चीजें खरीदते हैं, यही बचत फिर आखिर में राष्ट्रनिर्माण के सबसे बड़े अनुष्ठान में भी काम आती है।

अमेरिकन: राष्ट्रनिर्माण का सबसे बड़ा अनुष्ठान मतलब??

मन्त्रीजी (आँख मारते हुए) : मतलब अगला चुनाव, और क्या !!!

अगले दिन से गैर भारतीयों के सारे प्रेजेन्टेशन केंसल करके सिर्फ भारतीय ब्यूरोक्रेट्स और नेताओं के "प्रवचन" करवाये गए .... भारतीयों ने पूरी कांफेरेंस में भौकाल मचा दिया।

इस तरह आख़िरकार दुनिया ने विश्वगुरु के स्मार्ट कल्चर का लोहा मान लिया।