Nov 18, 2016

प्रधानमंत्री मोदी को जो 55 करोड़ मिला, क्या वह कालाधन नहीं है?

सबूत पहुंचा जांच एजेंसियों के पास, पर सरकार समर्थित पत्रकारों ने साधा मौन, एक ही सवाल कि कौन बांधे बिल्ली की गले में घंटी

देश की प्रमुख पांच जांच एजेंसियों को स्वराज अभियान के अध्यक्ष और वकील प्रशांत भूषण ने भेजा पत्र, पर सभी जगह छायी है चुप्पी। सबूतों के आधार पर वकील का दावा कि पार्टी कोषाध्यक्ष और भाजपा मुख्यमंत्रियों को मिला है करोड़ों का कालाधन


प्रधानमंत्री मोदी जब 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपए के नोट बंद करने की देश को सूचना दे रहे थे, उससे बहुत पहले सु्प्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण देश की प्रमुख आधा दर्जन से अधिक सरकारी जांच एजेंसियों को लिखकर बता चुके थे कि न सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी ने ​बल्कि देश के अन्य तीन और मुख्यमंत्रियों ने करोड़ों का कैश उद्योगपतियों से वसूला है। प्रशांत भूषण ने जिन एजेंसियों को डाक्यूमेंट्स भेजे हैं, उनमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा कालेधन को लेकर बनाई गई दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम, निदेशक सीबीआई, निदेशक ईडी, निदेशक सीबीडीटी और निदेशक सीवीसी शामिल हैं।

मासिक अंग्रेजी पत्रिका कारवां में छपी रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार के इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की ओर से किए गए रेड के जो डाक्यूमेंट्स दिल्ली के पत्रकारों और नौकरशाहों के दायरे में घूम रहे हैं उनके मुताबिक, गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी को सुब्रत राय के सहारा इंडिया ग्रुप से जुड़े किसी 'जायसवाल जी' ने करोडों रुपए कैश में दिए।



पत्रिका को हाथ लगे डाक्यूमेंट्स से साफ है कि 30 अक्टूबर 2013 और 29 नवंबर 2013 को गुजरात सीएम, मोदी जी के नाम से 13 ट्रांजेक्शन हुए। इन ट्रांजेक्शन से पता चलता है कि 13 ट्रांजेक्शन में 55.2 करोड़ रुपए मोदी जी और गुजरात सीएम के नाम से दिए गए। हालांकि पत्रिका का यह भी मानना है कि यह बहुत साफ नहीं हो पा रहा है कि ट्रांजेक्शन 13 हुए या 9 ट्रांजेक्शन में 40.1 करोड़ रुपए जमा किए गए। 

इसके अलावा सहारा ग्रुप से जुड़े जायसवाल ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी करोड़ों के रुपए कैश में दिए। करोड़ों का कैश लेने वालों में भारतीय जनता पार्टी की कोषाध्यक्ष शायना एनसी भी शामिल हैं।

इस रिपार्ट का विस्तृत खुलासा करने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रणोंजॉय गुहा ठाकुरता का कहना है कि कारवां और इकॉ​नॉमिक एंड पॉलिटिकल ​वीकली पत्रिका ने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से मिले सबूतों के आधार पर सभी नेताओं को सफाई के लिए ईमेल किया है। पर 17 नवंबर को किए गए ईमेल का जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय जनता पार्टी कोषाध्यक्ष शायना एनसी, छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री रमन सिंह, मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित में से किसी ने अबतक नहीं दिया है।

प्रधानमंत्री से लेकर तीन—तीन मुख्यमंत्रियों द्वारा कैश में करोडों का कालाधन लेने के इस मामले का खुलासा इनकम टैक्स की डिप्टी डाइरेक्टर अंकिता पांडेय ने किया था। इन कागजातों पर उनके अलावा भारत सरकार के दूसरे अधिकारियों के भी दस्तखत हैं। इस मामले में जब पत्रिका ने 3 नवंबर को संपर्क किया तो अंकिता पांडेय का जवाब था, 'मैं लंबी छुट्टी पर हूं और मैं वह आधिकारित व्यक्ति नहीं हूं जो डाक्यूमेंट्स की सत्यता को लेकर कोई बयान दे।' फिलहाल यह डाक्यूमेंट देश के तमाम पत्रकारों और सरकार अधिकारियों के पास है।


असल में कहानी है क्या

वेबसाइट 'जनता का रिपोर्टर' का दावा है कि अक्टूबर 2013 से नवम्बर 2014 में क्रमशः सहारा और आदित्य बिड़ला के ठिकानों पर इनकम टैक्स के छापे पड़े थे ।

यहां से आयकर अधिकारियों को दो महत्वपूर्ण दस्तावेज मिले थे । जिनमें सरकारी पदों पर बैठे कई लोगों को पैसे देने का जिक्र था। इसमें प्रधानमंत्री मोदी का नाम भी शामिल था ।

बिड़ला के यहां से जब्त दस्तावेज में सीएम गुजरात के नाम के आगे 25 करोड़ रुपये लिखा गया था। इसमें 12 करोड़ दे दिया गया था । बाकी पैसे दिए जाने थे ।

इसी तरह से सहारा के ठिकानों से हासिल दस्तावेजों में लेनदारों की फेहरिस्त लम्बी थी । जिसमें सीएम एमपी, सीएम छत्तीसगढ़, सीएम दिल्ली और बीजेपी नेता सायना एनसी के अलावा मोदी जी का नाम भी शामिल था ।

मोदी जी को 30 अक्टूबर 2013 से 21 फ़रवरी 2014 के बीच 10 बार में 40.10 करोड़ रुपये की पेमेंट की गई थी । खास बात ये है कि तब तक मोदी जी बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार घोषित किए जा चुके थे ।

सहारा डायरी की पेज संख्या 89 पर लिखा गया था कि 'मोदी' जी को 'जायसवाल जी' के जरिये अहमदाबाद में 8 पेमेंट किए गए ।

डायरी की पेज संख्या 90 पर भी इसी तरह के पेमेंट के बारे में लिखा गया है । बस अंतर केवल इतना है कि वहां 'मोदी जी' की जगह 'गुजरात सीएम' लिख दिया गया है, जबकि देने वाला शख्स जायसवाल ही थे।

मामला तब एकाएक नाटकीय मोड़ ले लिया जब इसकी जांच करने वाले के बी चौधरी को अचानक सीवीसी यानी सेंट्रल विजिलेंस कमीशन का चेयरमैन बना दिया गया । प्रशांत भूषण ने उनकी नियुक्ति को अदालत में चुनौती दी ।

इस साल 25 अक्टूबर को प्रशांत भूषण ने सीवीसी समेत ब्लैक मनी की जांच करने वाली एसआईटी को सहारा मामले का अपडेट जानने के लिए पत्र लिखा । ख़ास बात यह है कि उसी के दो दिन बाद यानी 27 अक्टूबर को दैनिक जागरण में 500-1000 की करेंसी को बंद कर 2000 के नोटों के छपने की खबर आयी । बताया जाता है कि के बी चौधरी ने वित्तमंत्री अरुण जेटली को इसके बारे में अलर्ट कर दिया था।

उसके बाद सहारा ने इनकम टैक्स विभाग के सेटलमेंट कमीशन में अर्जी देकर मामले के एकमुश्त निपटान की अपील की । जानकारों का कहना है कि कोई भी शख्स इसके जरिये जीवन में एक बार अपने इनकम टैक्स के मामले को हल कर सकता है । और यहां लिए गए फैसले को अदालत में चुनौती भी नहीं दी जा सकती है । साथ ही इससे जुड़े अपने दस्तावेज भी उसे मिल जाते हैं । जिसे वह नष्ट कर सकता है । अदालत या किसी दूसरी जगह जाने पर यह लाभ नहीं मिलता । चूंकि मामला पीएम से जुड़ा था इसलिए सहारा इसको प्राथमिकता के आधार पर ले रहा था ।

बताया जाता है कि सेटलमेंट कमीशन में भी मामला आखिरी दौर में था । भूषण ने 8 नवम्बर को फिर कमीशन को एक पत्र लिखा । जिसमें उन्होंने मामले का अपडेट पूछा था ।

शायद पीएम को आने वाले खतरे की आशंका हो गई थी । जिसमें उनके ऊपर सीधे-सीधे 2 मामलों में पैसे लेने के दस्तावेजी सबूत थे । उनके बाहर आने का मतलब था पूरी साख पर बट्टा । मामले का खुलासा हो उससे पहले ही उन्होंने ऐसा कोई कदम उठाने के बारे में सोचा जिसकी आंधी में यह सब कुछ उड़ जाए । नोटबंदी का फैसला उसी का नतीजा था ।

इसे अगले साल जनवरी-फ़रवरी तक लागू किया जाना था । लेकिन उससे पहले ही कर दिया गया । यही वजह है कि सब कुछ आनन-फानन में किया गया । न कोई तैयारी हुई और न ही उसका मौका मिला । यह भले ही 6 महीने पहले कहा जा रहा हो लेकिन ऐसा लगता है उर्जित पटेल के गवर्नर बनने के बाद ही हुआ है । क्योंकि नोटों पर हस्ताक्षर उन्हीं के हैं । छपाई से लेकर उसकी गुणवत्ता में कमी पूरी जल्दबाजी की तरफ इशारा कर रही है ।