Feb 1, 2011

जापान के सोका गक्कई की जाँच क्यों नहीं ?


करमापा के पास से बरामद चीनी मुद्रा को चीन की उस साजिश का हिस्सा माना जा रहा है,जिसके तहत चीन लद्दाख से अरुणाचल तक के सारे मठों पर करमापा के जरिये नियंत्रण करना चाहता था. कहीं  जापान भी सोका गक्कई के जरिये लोगो को बरगला कर वर्चस्व की कोई साजिश तो नहीं रच रहा ...

निशांत मिश्रा

विवादों में घिरे बौद्ध धर्म गुरु करमापा उग्येन त्रिनेल दोरजे के पास भारी मात्रा  में मिली विदेशी मुद्रा और उनके संदिग्ध आचरण ने अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं.  इन सवालों में यह भी है कि कहीं धर्म की आड़ में देश की धार्मिक अस्मिता को छिन्न-भिन्न करने की साजिश तो नहीं।

बौद्ध धर्मगुरु करमापा और उनके मठ से बरामद 25देशों के सात करोड़ रुपए की विदेशी और भारतीय मुद्रा के मामले की तह में जाने के बाद ही हकीकत का खुलासा होगा,लेकिन फ़िलहाल उनके पास से बरामद 70लाख रुपए की चीनी मुद्रा 'युआन'ने उनके तार चीन से जोड़ दिए हैं। कयास लगाया जा रहा है कि करमापा कहीं चीनी जासूस तो नहीं। यहाँ इस बात की ओर ध्यान देना जरुरी है कि बौद्ध मठों में होने वाली गतिविधियों को कभी सरकारी या प्रशासनिक स्तर पर जांचने और जानने की कोशिश नहीं की गई। इसी का परिणाम है कि बौद्ध मठों या बौद्ध धर्म के नाम पर होने वाली गतिविधियों से देश के लोग अनभिज्ञ है।


 बौद्ध धर्म की आड़ में बौद्ध मठों की सक्रियता के अलावा एक और संगठन है जो देश में "बुद्धिज्म" के नाम पर विभिन्न धर्मावलम्बियों के बीच धीरे-धीरे अपनी गहरी पैठ बनाता जा रहा है। इस संगठन का सम्बन्ध जापान से है और इसका निशाना है देश का मध्यम व गरीब तबका। यहाँ इस संगठन के कार्यकलाप और गतिविधियों का खुलासा करना जरुरी है।

महात्मा बुद्ध और उनके सिद्धांतों का  पालन करते हुए उनके कुछ अत्यंत निकट रहे लोगों ने कुछ अवधारणायें स्थापित की,जिनका अनुसरण आज देश-विदेश मैं लाखों लोग कर रहे हैं। इन्ही में से एक हैं जापानी संन्यासी (भिक्षु) निचिरेन दैशोनिन. इन्होने  तेरहवीं शताब्दी में लोटस सूत्र (कमल के फूल) की अवधारणा स्थापित की थी । इस अवधारणा को विश्व में प्रचारित व प्रसारित करने का काम जापानी संगठन सोका गक्कई इंटरनेशनल (एसजीआई)कर रहा है । भारत में इसकी शाखा को भारत सोका गक्कई के नाम से जाना जाता है। जिस तरह तिब्बतियों के तीसरे सर्वोच्च धर्म गुरु करमापा के नाम को लेकर विवाद रहा है,ठीक उसी तरह जापानी भिक्षु निचिरेन दैशोनिन द्वारा स्थापित अवधारणा भी सदैव विवादित रही।

महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों में लोटस सूत्र की अवधारणा का तात्पर्य यह है कि जिस तरह गंदगी में होने के बावजूद कमल का फूल उससे ऊपर निकल कर खिलता है,ठीक उसी प्रकार मनुष्य को इसमें सिखाया जाता है कि किस तरह समाज में व्याप्त गंदगी और बुराइयों से बचकर ऊपर निकला जा सकता है. मगर सोका गक्कई  अलग-अलग ढंग से प्रचारित करता  है और लोगों को अधूरा ज्ञान परोस कर दिग्भ्रमित किया जा रहा है. 

कमल के फूल को आठ शुभ प्रतीक में से एक माना गया है। इस अवधारणा से जुड़े लोग महात्मा बुद्ध के कमल पर बैठे या हाथ में कमल लिए हुए रूप कि कल्पना करते हैं। इस फूल को दिल की तरह माना गया है और इसमें रंगों को भी महत्व दिया गया है। जैसे सफेद: मानसिक और आध्यात्मिक पवित्रता, लाल: हृदय करुणा और प्रेम, नीला (ब्लू): बुद्धि और इंद्रियों पर नियंत्रण, गुलाबी: ऐतिहासिक बुद्ध और बैंगनी: रहस्यवाद।

लोटस सूत्र को लेकर चीन,जापान और कोरिया जहाँ सर्वाधिक बौद्ध धर्म अनुयायी हैं,भी एकमत नहीं हैं। इतिहासकारों का मानना है कि लोटस सूत्र के मूल पाठ खो गए, लेकिन भिक्षु कमारजिवा द्वारा चीनी में 406 सीई में किये गए एक अनुवाद को सही माना जा सकता है। मूल रूप से लोटस सूत्र संस्कृत सूत्र है या सद्धर्मा-पुंडारिका सूत्र। बौद्ध धर्म के कुछ स्कूलों में यह विश्वास कायम है कि यह ऐतिहासिक सूत्र बुद्ध के शब्द हैं। हालांकि,अधिकांश इतिहासकारों का मानना यह सूत्र पहली या दूसरी शताब्दी सीई में लिखा गया था। सोका गक्कई संगठन इन सबसे अलग यह मानता है कि लोटस सूत्र जापानी भिक्षु निचिरेन दैशोनिन द्वारा स्थापित अवधारणा है। संगठन द्वारा इस अवधारणा को "Human Revolution" का नाम देकर प्रचारित किया जा रहा है।

यहाँ पहले यह साफ कर देना जरुरी है कि "सोका गक्कई" क्या है? निचिरेन बुद्धिज्म पर आधारित बुद्ध महायान की एक शाखा "सोका गक्कई" वस्तुत: एक ऐसा सिद्धांत या धार्मिक आन्दोलन है जिसके जरिये एक ऐसे समुदाय का निर्माण करना है जिसकी बौद्ध धर्म में विशेष आस्था हो। विश्व के 192 देशों और राज्यों में सोका गक्कई इंटरनेशनल के करीब 12लाख सदस्य हैं। ऐसा इस संगठन का दावा है। विलुप्त हो चुके निचिरेन बुद्धिज्म पर आधारित "सोका गक्कई" को 1930 में जापानी शिक्षक त्सुनेसबुरो माकीगुची ने संस्थापित किया।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सरकार समर्थित राज्य शिन्तो के विरोध के कारण इस संगठन को दबा दिया गया और "आपराधिक सोच"के आरोपों में माकीगुची को जोसी तोडा व अन्य सोका गक्कई नेताओं सहित 1943 में गिरफ्तार कर लिया। नवम्बर 1944 में जेल में ही कुपोषण के कारण माकीगुची का 73साल की उम्र में देहांत हो गया। जापान में हुए पहले परमाणु हमले से कुछ सप्ताह पहले जुलाई 1945में तोडा को रिहा किया गया। आने वाले वर्षों में तोडा संगठन के पुनर्निर्माण में जुट गए। 1958 में अपने निधन से पहले करीब 7,50000 लोगों को उन्होंने इसका सदस्य बना लिया था।


यहाँ सवाल किसी अवधारणा या सिद्धांत के विरोध का नहीं है,बल्कि यह है कि जब यह बौद्ध धर्म को प्रचारित और संस्थापित करने का आन्दोलन है तो फिर इसे मात्र एक सिद्धांत या अवधारणा क्यों कहा जाता है? क्यों इसके जरिये लोगों को काल्पनिक उदाहरण   देकर उनका माइंड वाश किया जा रहा है?क्यों नहीं इससे जुडने वाले लोगों को स्पष्ट किया जाता कि शांति, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नाम पर यह सब विश्व व्यापी बौद्धधर्मी आन्दोलन का एक हिस्सा है? "Human Revolution" का नाम देकर जिस तरह इसको प्रचारित किया जा रहा है वह मानवीय क्रांति वास्तव में एक ऐसे समुदाय के निर्माण करने की प्रक्रिया है जिसमें बौद्ध धर्म के प्रति विशेष आस्था हो। अगर यह मात्र एक सिद्धांत या अवधारणा ही है तो क्यों जापान में जहाँ इसके सबसे ज्यादा अनुयायी हैं, वहां "सोका गक्कई"लीडर्स को जेल में डाल दिया गया और उन पर आपराधिक सोच या विचारों का आरोप लगा?
देश के अनेक हिस्सों में लोगों को दिग्भ्रमित कर कभी इस धर्म द्वारा तो  कभी उस धर्म द्वारा धर्म परिवर्तन  के मामले पहले भी उजागर हुए है। इसलिए एक सवाल यह भी उठता है कि कहीं यह कोई सोची समझी साजिश तो नहीं धर्म परिवर्तन की। क्योंकि इस अवधारणा से जुड़े लोगो को अपने घर में इस अवधारणा से सम्बंधित मंदिर जैसा स्थान बनाने के प्रेरित किया जाता है. साथ ही उनको कहा जाता है कि यह एक अवधारणा मात्र है कोई धर्म नहीं। धर्म को अवधारणा के नाम का चोला ओढाया जा रहा है? इसकी जाँच आवश्यक है।

आज हर धर्म व समाज मीडिया से नजदीकियां चाहता है तो फिर "सोका गक्कई "से जुड़े लोग क्यों मीडिया या आम लोगों से बात करने में कतराते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि इस अवधारणा में अधिकतर ऐसे लोगो को जोड़ा जाता है जो आर्थिक,मानसिक या शारीरिक रूप से से कमजोर हों। उन्हें बताया जाता है कि इस अवधारणा से जुड़ने के बाद उनकी ये सब परेशानी दूर हो जाएगी,लेकिन हकीकत कुछ और ही होती है।

करमापा के पास से बरामद चीनी मुद्रा युआन को चीन की उस साजिश का हिस्सा माना जा रहा है,जिसके तहत चीन भारत के लद्दाख से अरुणाचल तक के सारे मठों पर करमापा के जरिये नियंत्रण करना चाहता है,ठीक उसी तरह जापान भी हमारे देश में सोका गक्कई के जरिये लोगो को बरगला कर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोई साजिश रच रहा है? देश में सोका गक्कई की गतिविधियों के संचालन के लिए पैसा कहाँ से और किन लोगों के पास आ रहा है,यह भी जाँच का विषय है।



पत्रकार निशांत मिश्रा पिंकसिटी प्रेस क्लब जयपुर के पूर्व  उपाध्यक्ष हैं, उनसे  journalistnishant26@gmail.com संपर्क  किया  जा  सकता  है.






झूठी ख़बरों का नया खबरची


स्वाभिमान टाइम्स की इस प्रवृत्ति को परखने के लिए उसके विज्ञप्ति को देखा जा सकता है जिसमें लिखा है, '...बड़ी-बड़ी हस्तियों से संपर्क रखने वाले संपादकीय सहयोगियों की  जरूरत है...
 


दिल्ली से निकलने वाले अखबार स्वाभिमान टाइम्स ने 27 जनवरी  को पहले पन्ने पर वामपंथियों को अपराधी और लुटेरे बताते हुए खबर छापी। खबर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केंद्रिय मत्री प्रणव मुखर्जी के कथित बयान के हवाले से कि वामपंथी अपराधी और लुटेरे होते हैं,एक पूरी बहस करने की कोशिश की गई है। अखबार के रिपोर्टर राम प्रकाश त्रिपाठी ने कई लोगों के बयानों के साथ वामपंथियों को अपराधी और लुटेरे पुष्ट करने की कोशिश की है।

इस खबर पर आपत्ती करने और गंभीरता से इसलिए सोचने की जरुरत है कि अव्वल तो प्रणव मुखर्जी का ऐसा कोई बयान देश भर के किसी भी जनसंचार माध्यम में देखने को नहीं मिला सिवाय स्वाभिमान टाइम्स के, जो कि एक नया अखबार है और जिसका सर्कुलेशन दिल्ली और एनसीआर के बाहर कहीं नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस खबर को तथ्यों की पुष्टि न कर पाने का रिस्क उठाते हुए भी इस अखबार ने खबर को अपने पहले पन्ने पर क्यों छाप दिया।


दरअसल अब मीडिया की स्वाभाविक परिणति हो गयी है कि  वो अपने  माध्यम से सरकार और उसकी नीतियों से नत्थी करके अपने आगे के हितों  को और सुरक्षित करे। जिससे सरकारी अमले से कम रिश्वत में अपना काम निकलवा सके। यह काम बड़े  अखबार रोज-ब-रोज खूब करते हैं पर बहुत ही शातिर परिपक्वता के साथ। क्योंकि उनके रिपोर्टर इस विधा के पुराने खिलाड़ी होते हैं और अपनी इसी विधा की मेरिट पर आज वे देश के कई राष्ट्रीय  अखबारों में संपादक भी हो गए हैं।

रामप्रकाश त्रिपाठी भी इसी विधा के प्रशिक्षु लगते हैं। जिन्होंने इक्सक्लूसिव खबर बनाने के लिए एक पूरे झूठे बयान की ही कहानी ही गढ़ दी जिसे न तो किसी ने कहा था न किसी ने सुना था। दरअसल इस तरह की मानसिकता जल्दी से ज्यादा कमाई के चूहा दौड़ में शामिल पत्रकारों में तेजी से बढ़ती जा रही है. जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान पत्रकारिता ओर खबरों को हो रही है. 

स्वाभिमान टाइम्स की इस प्रवृत्ति को परखने के लिए उसके संपादक निर्मलेन्दु साहा की एक पोर्टल पर विज्ञप्ति को देखा जा सकता है जिसमें उन्होंने लिखा -‘‘नया रूप, नई सज्जा, नए तेवर और कलेवर के साथ राजधानी दिल्ली से प्रकाशित होने वाले राष्ट्रीय दैनिक समाचार-पत्र ‘स्वाभिमान टाइम्स’ को योग्य, कुशल, अनुभवी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संपर्क रखने वाले संपादकीय सहयोगियों (उप-संपादकों,वरिष्ठ उप-संपादकों,मुख्य उप-संपादकों)  के अलावा, संवाददाताओं और फोटो पत्रकारों की जरूरत है।’

इन पंक्तियों से इस रिपोर्ट की सचाई को समझा जा सकता है कि किस तरह ऊंचे संपर्क वाले रिपोर्टर ने ऊंचे संपर्क वाले संपादक के लिए खबर लिखी होगी.

जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी के  मानिटरिंग सेल द्वारा जारी।