Mar 24, 2011

जापान के जरिये प्रकृति का कड़ा संदेश


पहले सुनामी फिर जापान में परमाणु विकीरण के समाचार ने जापान सहित पूरी दुनिया को दहला कर रख दिया। परमाणु विकीरण के खतरे को भी प्रकृति द्वारा उत्पन्न भूकंप के खतरे से कम खतरनाक नहीं कहा जा सकता...

तनवीर जाफरी

पृथ्वी पर बसने वाली मानव जाति को समय-समय पर अपने रौद्र एवं प्रचंड रूप से आगाह कराती रहने वाली प्रकृति ने गत 11 मार्च को  जापान पर एक बार फिर अपना कहर बरपा किया। पहले तो रिएक्टर पैमाने पर 8.9 मैग्रीच्यूड तीव्रता वाले ज़बरदस्त भूकंप ने देश को झकझोर कर रख दिया।


मौसम वैज्ञानिक अब 8.9 की तीव्रता को 9 मैग्रीच्यूड की तीव्रता वाला भूकंप दर्ज किए जाने की बात कह रहे हैं। यदि इसे 9मैग्रीच्यूड की तीव्रता वाला भूकंप मान लिया गया तो यह पृथ्वी पर आए अब तक के सभी भूकंपों में पांचवें नंबर का सबसे बड़ा भूकंप होगा। अभी जापान भूकंप के इस विनाशकारी झटके को झेल ही रहा था कि कुछ ही घंटों के बाद इसी भूकंप के कारण प्रशांत महासागर के नीछे  स्थित पैसेफिक प्लेट अपनी जगह से खिसक गई जिससे भारी मात्रा में समुद्री पानी ने सुनामी लहरों का रौद्र रूप धारण कर लिया।


जापान प्रशांत महासागर क्षेत्र में ऐसी सतह पर स्थित है जहां ज्वालामुखी फटना तथा भूकंप का आना एक सामान्य सी घटना है। इन्हीं भौगोलिक परिस्थितियों के कारण जापान के लोग मानसिक तथा भौतिक रूप से ऐसी प्राकृतिक विपदाओं का  सामना करने के लिए सामान्तया हर समय तैयार रहते हैं। जापान के लोगों की जागरूकता तथा वहां की सरकार व प्रशासनिक व्यवस्था की इसी चौकसी व सावधानी का ही परिणाम था कि भूकंप तथा प्रलयकारी सुनामी आने के बावजूद आम लोगों के जान व माल की उतनी क्षति नहीं हुई जितनी कि भूकंप व सुनामी के प्रकोप की तीव्रता,भयावहता तथा आक्रामकता थी।

जहां इस  भूकंप ने जान व माल का भारी नुकसान किया वहीं मानव निर्मित विपदाओं ने भी प्राकृतिक विपदा से हाथ मिलाने का काम किया। नतीजतन चालीस वर्ष पुराना फुकुशिमा डायची परमाणु संयंत्र भूकंप के चलते कांप उठा। इस अप्रत्याशित कंपन ने फुकुशिमा परमाणु रिएक्टर की कूलिंग प्रणाली को अव्यवस्थित कर दिया जिसके कारण टोक्यो से मात्र 240 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस संयंत्र के चार रिएक्टरों में एक के बाद एक कर धमाके हुए।

इसके बाद परमाणु विकीरण के समाचार ने जापान सहित पूरी दुनिया को दहला कर रख दिया। इस समय जहां इस संयंत्र के 20 किलोमीटर क्षेत्र को विकीरण के संभावित खतरे के परिणामस्वरूप खाली करा लिया गया है वहीं दुनिया के तमाम देश जापान से आयातित होने वाली खाद्य पदार्थों की रेडिएशन के चलते गहन जांच-पड़ताल भी कर रहे हैं। यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि परमाणु विकीरण के खतरे को भी प्रकृति द्वारा उत्पन्न भूकंप के खतरे से कम बड़ा खतरा मापा नहीं जा सकता। स्वयं जापान के ही हीरोशिमा व नागासाकी जैसे शहर परमाणु विकीरण के नुकसान झेलने वाले शहरों के रूप में प्रमुख गवाह हैं।

बताया जा रहा है कि इस भयानक भूकंप के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर जापान में भू विस्थापन भी हुआ है। इस असामान्य कंपन के परिणामस्वरूप जापान की तट रेखा अपने निर्धारित स्थान से 13 फुट नीचे  की ओर खिसक गई है। इस प्रलयकारी भूकंप तथा इसके पश्चात आई सुनामी ने जापान की अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। जबकि सारे विश्व की अर्थव्यवस्था भी जापान की त्रासदी से अछूती नहीं रह सकी है। इस त्रासदी के बाद एशियाई शेयर बाज़ार नीचे गिर गए थे।

जापान के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति  प्राप्त उद्योग सोनी, टोयटा, निसान तथा होंडा में उत्पादन बंद कर दिया गया है। सुनामी के परिणामस्वरूप उठीं 30फीट ऊंची प्रलयकारी लहरों ने सेंदई शहर को पूरी तरह तबाह कर दिया। पूरा शहर या तो समुद्री लहरों के साथ बह गया या फिर शेष कूड़े-करकट व कबाड़ के ढेर में परिवर्तित हो गया। प्रकृति के इस शक्तिशाली प्रकोप ने मकान,गगनचुंबी इमारतें,जहाज़, विमान,ट्रेनें,पुल,बाज़ार फ्लाईओवर आदि सबकुछ अपनी आगोश में समा लिया। कारों तथा अन्य वाहनों की तो सुनामी की रौद्र लहरों में माचिस की डिबिया से अधिक हैसियत ही प्रतीत नहीं हो रही थी।

प्रकृति के इसी विनाशकारी प्रकोप को झेलते हुए आज जीवित बचे लगभग 5 लाख लोग स्कूलों तथा अन्य सुरक्षित इमारतों में शरण लेने पर मजबूर हैं। इन खुशहाल जापानवासियों को वहां भोजन की कमी, बढ़ती हुई ठंड तथा पीने के पानी की कि़ल्लत जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। देश के कई बंदरगाह,तमाम बिजली संयंत्र तथा तेल रि$फाईंनरी बंद कर दिए गए हैं।

एक तेल रिफाईंनरी में तो भीषण आग भी लग गई थी। ऐसे दु:खद व संकटकालीन समय में पूरी दुनिया के देश जापान की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। इनमें हमेशा की तरह अमेरिका सहायता कार्यों में सबसे आगे-आगे चलकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका व जि़ मेदारी निभा रहा है। आशा की जा रही है कि जापान के लोग अपनी सूझ-बूझ,अपनी बुद्धिमानी तथा आधुनिक तकनीक व विज्ञान का सहारा लेते हुए यथाशीघ्र इस प्रलयकारी त्रासदी से उबर पाने में सफल होंगे तथा वहां की अर्थव्यवस्था एक बार फिर सुधर जाएगी।


 जापान के  हिरोशिमा शहर में नरमुंड गिनते स्वास्थयकर्मी  

परंतु प्रकृति के इस या इस जैसे अन्य भूकंप व सुनामी जैसे प्रलयकारी तेवर को कई बार देखने,झेलने व इसे महसूस करने के बाद भी आखिर हम इन प्राकृतिक घटनाओं से अब तक क्या कोई सबक ले सके हैं? क्या भविष्य में हम इन घटनाओं से कोई सबक लेना भी चाहते हैं? आज के वैज्ञानिक युग की हमारी ज़रूरतें क्या हमें इस बात की इजाज़त देती हैं कि हम प्रकृति से छेड़छाड़ करते हुए अपनी सभी ज़रूरतों को यूं ही पूरा करते रहें?

 परमाणु शक्ति पर आधारित बिजली संयंत्र ही क्या हमारी विद्युत आपूर्ति के एक मात्र सबसे सुलभ एवं सस्ते साधन रह गए हैं? क्या परमाणु संयंत्रों की स्थापना मनुष्यों की जान की कीमत के बदले में किया जाना उचित है? या फिर इतना बड़ा खतरा मोल लेने के बजाए हमारे वैज्ञानिकों को परमाणु के अतिरिक्त किसी ऐसे साधन की भी तलाश कर लेनी चाहिए जो आम लोगों के लिए खतरे का कारण न बन सकें। या फिर परमाणु उर्जा की ही तरह किसी ऐसी उर्जा शक्ति का भी विकास किया जाना चाहिए जो परमाणु विकीरण के फैलते ही उस विकीरण को निष्प्रभावी कर दे तथा वातावरण को विकीरण मुक्त कर डाले।

जापान की भौगोलिक स्थिति पर भी पूरे विश्व को चिंता करने की ज़रूरत है। भू वैज्ञानिक इस बात को भली भांति समझ चुके हैं कि जापान पृथ्वी के भीतर मौजूद दो प्लेटों की सतह पर स्थित देश है। बताया जा रहा है कि जापान में प्रत्येक घंटे छोटे-छोटे ाूकंप आते ही रहते हैं। बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसे स्थानों से विस्थापित होने के बजाए जापान के लोग उन्हीं जगहों पर आबाद रहने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक का सहारा लेते हैं।

भूकंप रोधी मकान तथा भूकंप रोधी गगन चुंबी इमारतें बनाने के नए-नए तरी$के अपनाए जाते हैं। परंतु प्रकृति का प्रकोप है कि अपनी अथाह व असीम शक्ति के आगे मानव निर्मित किन्हीं सुरक्षा मापदंडों या उपायों को कुछ भी समझने को तैयार नहीं। इस बात की भी कोई गारंटी नहीं कि भविष्य में जापान के इन भूकंप प्रभावित इलाक़ों में पुन: ऐसी या इससे अधिक तीव्रता का भूकंप नहीं आएगा या इससे भयानक सुनामी की लहरें नहीं उठेंगी।

याद रहे कि 2004 में इंडोनेशिया में आए सुनामी की तीव्रता इससे कहीं अधिक थी। जापान में जहां 30 फीट ऊंची लहरें सुनामी द्वारा पैदा हुई थी वहीं इंडोनेशिया में 80फीट ऊंची लहरों ने कई समुद्री द्वीप पूरी तरह तबाह कर दिए थे। भारत भी उस सुनामी से का$फी प्रभावित हुआ था। चीन भी विश्व के सबसे प्रलयकारी भूकंप का सामना कर चुका है।

लिहाज़ा भू वैज्ञानिकों को विश्व के सभी देशों के साथ मिलकर भूकंप व सुनामी जैसी विनाशकारी प्राकृतिक विपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों का संपूर्ण अध्ययन करना चाहिए। ऐसे क्षेत्रों के लोगों को उसी क्षेत्र में रहकर जीने व रहने के उपाय सिखाना शायद टिकाऊ,कारगर या विश्वसनीय उपाय हरगिज़ नहीं है। यह तो ऐसी प्राकृतिक विपदाओं का सामना सीना तान कर करने जैसी इंसानी हिमाक़त मात्र है।

लिहाज़ा स्थाई उपाय के तौर पर ऐसे क्षेत्रों में बसने वाले लोगों को अन्यत्र सुरक्षित स्थानों पर बसाए जाने के उपाय करने चाहिए। हमारे वैज्ञानिकों तथा दुनिया के सभी शासकों को यह बात ब$खूबी समझनी चाहिए कि पृथ्वी के गर्भ में स्थित पृथ्वी को नियंत्रित रखने वाली प्लेटें तो अपनी जगह से हटने से रहीं। लिहाज़ा क्यों न मनुष्य स्वयं ऐसे $खतरनाक क्षेत्रों से स्वयं दूर हट जाए ताकि मानव की जान व माल को कम से कम क्षति पहुंचे। ऐसी प्राकृतिक विपदाएं मानव जाति में परस्पर पे्रम,सहयोग,सौहाद्र्र तथा एक-दूसरे के दु:ख-दर्द को समझने व महसूस करने का भी मार्ग दर्शाती हैं।

आशा की जानी चाहिए कि इस विनाशकारी भूकंप तथा सुनामी के बाद जापान के परमाणु रिएक्टर में उत्पन्न खतरे के बाद जिस प्रकार दुनिया के सभी देशों ने अपनी-अपनी परमाणु नीतियों के संबंध में पुनर्विचार करना शुरु किया है तथा जर्मनी जैसे देश ने परमाणु उर्जा उत्पादन के दो रिएक्टर प्लांट ही इस घटना के बाद बंद कर दिए हैं। उम्मीद की जा सकती है कि यह त्रासदी परमाणु रूपी मानव निर्मित त्रासदी से मनुष्य को मुक्ति दिलाने में भी बुनियाद का पत्थर साबित होगी।




लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के भूतपूर्व सदस्य और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों के प्रखर टिप्पणीकार हैं.उनसे tanveerjafari1@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.