Nov 22, 2010

कोई उस लड़की को बचाए!

रोज इस आशंका के साथ जागता हूँ कि सोनी सोरी की मौत या जेल में डाल देने की खबर आयेगी। वो रोज फोन करके बचा लेने के लिए गिड़गिड़ाती है,क्या कोई इस महान लोकतंत्र में  है जो उस आदिवासी लड़की को सत्ता और व्यापार के क्रुर पंजों  से बचा सके? 


हिमांशु  कुमार



दन्तेवाड़ा से मुझे तीन माह पहले एक आदिवासी लड़की का फोन आता है,'सर दन्तेवाड़ा का एस.एस.पी.कल्लूरी मुझे से कह रहा है कि या तो अपने भतीजे लिंगा को दिल्ली से वापिस बुलाकर हमे सौप दो नही तो तुम्हारी जिन्दगी बर्बाद कर देगे। और आज तीन माह के बाद वह लड़की मुझे बताती है कि सर आपने कुछ नहीं किया और इस बीच एस.एस.पी.कल्लुरी ने मेरे पति को जेल में डाल दिया है और मेरे खिलाफ दो एफ आई आर लिख दी है। जिसमे से एक थाने पर हमला करने और दूसरी एक राजपूत काग्रेसी नेता अवधेश गौतम के घर में नक्सलियों के साथ मिलकर हमला करने का आरोप मुझ पर लगाया हैं।

वो लड़की मुझसे रोकर कह रही हैं सर मेरे तीन बच्चे हैं मैं कैसे थाने पर और कांग्रेसी  नेता पर हमला करने जाऊँगी वह बताती है कि,मैं जाकर कल्लुरी से मिल कर रोई-गिड़गिडाई पर उसकी एक ही शर्त थी कि दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे अपने भतीजे लिंगा कोड़ोपी को लाकर हमें सौंपेगी तब मेरे पति और मुझे इस मामले से मुक्त कर दिया जायेगा।


दिल्ली में बचपन बचाओ के दफ्तर में लिंगाराम
 इस आदिवासी लड़की को मैंने आज से लगभग बारह साल पहले पहली बार देखा था। तब यह बारहवीं क्लास में पढ़ती थी। बस्तर में विनोबा भावे के शिष्य पदमश्री धर्मपाल सैनी शिक्षण संस्थायें चलाते हैं। मैं और मेरी पत्नी अक्सर इस शिक्षण संस्था में जाकर बच्चों से मिलते थे वही पर सोनी नामक यह लडकी हमें  मिली थी तब इसके चाचा नन्दा राम सोरी दन्तेवाड़ा से सी.पी.आई के नेता थे।

बारह वर्ष के अन्तराल के बाद यह लड़की पिछले साल अक्टूबर में फिर से मेरे पास आयी और बताया कि उसके भतीजे लिंगा राम कोड़ोपी को पुलिस घर से उठा कर ले गयी है और पुलिस उस पर (एस.पी.ओ.)बनने के लिये दबाव डाल रही है तथा उसे दन्तेवाड़ा थाने के शौचालय में छिपा कर रखा हुआ है और एस.एस.पी.अमरेश मिश्रा और डी आई जी कल्लूरी उसकी नित्य पिटाई करते हैं।

मैंने तुरत हाई कोर्ट में हैवियस कार्सपस दायर करने की सलाह दी, सोनी की सलाह पर लिंगा के बड़े भाई मासाराम कोड़ोपी ने बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ हाईकोर्ट में अपने भाई लिंगा को कोर्ट में पेश करने का आवेदन दिया। पुलिस ने कोर्ट में कहा कि लिंगा अपनी मर्जी से एस.पी.ओ.बना हुआ है। कोर्ट ने लिंगा को हाजिर करने का हुक्म दिया और कोर्ट में लिंगा ने कह दिया कि वह एस.पी.ओ.नहीं बनना चाहता बल्कि अपने घर जाना चाहता है। कोर्ट ने पुलिस से लिंगा को तुरन्त छोडने और घर जाने देने का आदेश दिया।

कोर्ट से घर वापिस आते समय लिंगा को अहसास था कि पुलिस उसे घर तक नहीं पहुंचने देगी क्योंकि थाने में कैद के दौरान एसपी अमरेश मिश्रा और डी आई जी कल्लूरी ने उससे और उसके परिवार वालों से कहा था कि अगर इस लड़के लिंगा को तुम लोग अदालत के सहारे हमसे छुड़ा भी लोगे तो हम इसे बाद में गोली से उड़ा देंगे और एनकाउंटर बता देगे। इस धमकी को याद रखते हुए लिंगा रास्ते में अपने गाड़ी से उतर गया और अपने एक मित्र के घर रुक गया। उधर जैसा कि आदेश था, पुलिस ने लिंगा को पकड़ने के लिये आगे नाकाबन्दी की हुई थी। लिंगा के परिवार की गाड़ी रूकवाई गई। पर लिंगा को न पाकर एसपी अमरेश मिश्रा और डी.आई. जी. कल्लूरी की हवाइयाँ उड़ गई। उन्होने लिंगा के छिपने के ठिकाने के बारे मे पूछताछ करने के लिये लिंगा के बड़े भाई मासा कोड़ोपी को रास्ते में पकड लिया।

लिंगा को इस बात का पता चला तो छिपते-छिपते मेरे पास आया हमने तुरन्त हाईकोर्ट को फैक्स द्वारा शिकायत भेजी कि हाईकोर्ट में शिकायत दायर करने वाले को ही पुलिस ने गायब कर दिया है। फैक्स मिलने पर अगले दिन हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ पुलिस से लिंगा के भाई बारे में नोटिस जारी कर जवाब पुछा तो पुलिस ने लिंगा के भाई को दो दिन बाद छोड़ दिया।

सोदी संबो: पुलिसिया ज्यादती की शिकार
लेकिन एक हफ्ते बाद पुलिस ने फिर लिंगा को मारने के लिये रात को उसके गाँव पर हमला किया। लिंगा को इस बात का अन्देशा था,इसलिये वह अपने घर में न सो कर गाँव के बाहर एक खण्डहर में सोया था। पुलिस ने गाँव के हर घर में जबरदस्ती घुस कर लिंगा को तलाश किया। लेकिन लिंगा नहीं मिला तो इस बार पुलिस उसके बूढे़ बाप और गाँव के पाँच और लोगों को पकड़ कर लिंगा के बारे में पूछताछ करने ले गयी। तब लिंगा फिर मेरे पास आया लेकिन इस बार वो बहुत गुस्से में था।

वो बार-बार बड़बड़ा रहा था कि ठीक हैं अगर सरकार ऐसा करेगी तो मैं भी बंन्दूक पकड़ कर नक्सलाईटों के साथ मिल जाता हूँ। मैंने उससे कहा कि लिंगा सरकार तो यही चाहती है कि आदिवासी लड़के बन्दूक उटायें जिससे सरकार को उन्हें  मार देने का बहाना मिल जाये। हम कानून की लड़ाई लडे़गे,गलती से भी बन्दूक मत उठाना। हम लोगों ने फिर से एक शिकायत लिख कर राष्ट्रपति,सुप्रीम कोर्ट,प्रधानमंत्री,मानवअधिकार आयोग,हाईकोर्ट,डी.जी.पी. एसपी आदि को भेजी। पुलिस ने एक हफ्ते बाद लिंगा के पिता को छोड़ दिया। बाकी के पाँच गाँव वालों को एक महीने के बाद छोड़ा गया। इस पूरे मामले में भी सोनी सोरी लगातार गाँव वालों को छुड़ाने की कोशिशों में लगी रही इस बीच पुलिस की टीमें लिंगा को लगातार गाँव में जाकर मार डालने के लिये ढंुढती रहीं। बावजूद इसके की कोर्ट से उसे संरक्षण प्राप्त था। लेकिन छत्तीसगढ़ में पुलिस और सरकार कोर्ट को पैरांे की जूती समझती है।

इस बीच एस.एस.पी.अमरेश मिश्रा और डी.आई.जी कल्लूरी से लिंगा की बुआ सोनी और उसके पति अनिल मिले। दोनांे से पुलिस अधिकारियों ने साफ-साफ कहा कि लिंगा ने कोर्ट में पुलिस की इज्जत खराब की हैं। हमारे पास उसे मार देने कि उपर से छूट हैं। उसे तो हम जिन्दा नहीं छोडेगे।

लिंगा मेरे दन्तेवाड़ा वाले आश्रम में छिपा हुआ था। उसने पूछा कि सर मुझे क्या करना चाहिए,और लिंगा बार-बार कहता था कि मैं बंदूक उठा लेता हूँ और मरना ही है तो लड़ते हुए मरुंगा। मैंने कुछ सामाजिक संस्थाओं से बातचीत की और लिंगा को गोपनीय तौर पर दिल्ली भेजवा दिया। मेरे कुछ पत्रकार मित्रों ने सलाह दी कि बस्तर से कोई आदिवासी पत्रकार नहीं है लिंगा को पत्रकार बनने में मदद की जाये और लिंगा का प्रवेश दिल्ली के एक प्रख्यात पत्रकारिता संस्थान में हो गया।

उधर छत्तीसगढ़ पुलिस को जब लिंगा के पत्रकार बनने की संभावना का पता चला तो छत्तीसगढ़ पुलिस के हाथ पाव फूल गये। क्योंकि लिंगा छत्तीसगढ़ पुलिस के अत्याचारों का गवाह था और पत्रकार बनने के बाद वह दन्तेवाड़ा में पुलिस की करतूतों  की पोल खोल सकता था। आनन फानन में डीजीपी विश्वरंजन और कल्लूरी ने एक स्टेटमेंट मीडिया के लिये जारी किया कि लिंगा कोड़ोपी एक बड़ा नक्सली नेता हैं और माओवादी पार्टी ने अपने प्रवक्ता आजाद के मरने के बाद लिंगा को उनकी जगह नियुक्त किया है। पुलिस विज्ञप्ती में आगे कहा गया कि लिंगा को नक्सलवाद की ट्रेनिंग के लिए अमेरिका भेजा गया था,( जबकि लिंगा का कोई पासपोर्ट ही नहीं है) और उसका संबध अरूंधति राय, मेधा पाटकर, हिमंाशु कुमार और नंदिनी सुन्दर से हैं।

इस प्रेस बयान के बाद स्वामी अग्निवेश ने दिल्ली में प्रेस वार्ता की तथा चुनौती दी कि लिंगा यहां है और यह एक सीधा-सादा आदिवासी युवक है जो पत्रकारिता की पढा़ई पढ़ रहा है और अगर पुलिस के पास कोई सबूत हैं तो वो सामने आये। इसके बाद पुलिस ने माफीनामा जारी किया और छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन ने वक्तव्य दिया कि लिंगा के विषय में पिछला वक्तव्य गलती से जारी हो गया था। परन्तु पुलिस भीतर ही भीतर लिंगा को दबोचने का षडयंत्र बनाने में लगी रही और उसने लिंगा की बुआ सोनी और उसके पति अनिल के विरूद्ध़ फर्जी रिपोर्ट लिखकर अनिल को तीन महीने से जेल में डाला हुआ है। सोनी सोरी के विरूद्ध वारंट जारी कर दिया है। सोनी वारंट के बावजूद एस.एस.पी. कल्लूरी से कई बार जाकर मिली। हर बार कल्लूरी ने उसके सामने एक ही शर्त रखी कि लिंगा को दिल्ली से वापिस लाकर हमें सौफ दो तो हम तुम्हें और तुम्हारे पति को छोड़ देंगे और लिंगा को गोली से उड़ा देंगे।

सोनी सोरी सरकारी स्कूल में प्रिंसीपल है,रोज स्कूल जाती है हाजिरी दर्ज करती है और इसे फरार घोषित कर दिया है। ताकि इस आदिवासी महिला को कभी भी गोली मारी जा सके।

मैं रोज इस आशंका के साथ जागता हूँ कि सोनी सोरी की मौत या जेल में डाल देने की खबर आयेगी। वो रोज मुझे फोन करके उसे बचा लेने के लिए गिड़गिडाती है। क्या कोई है जो इस महान लोकतंत्र में  आदिवासी लड़की को सत्ता और व्यापार के क्रुर पंजो से बचा सके जिसमें मनमोहन सिंह,चिदम्बरम,कांग्रेस और भाजपा सबकी हिस्सेदारी है।


लेखक दंतेवाडा में वनवासी चेतना आश्रम के प्रमुख हैं.छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर जारी अत्याचार के खिलाफ  उन्होंने  हाल ही में राज्य के डीजीपी विश्वरंजन के नाम   ... आप किसके लिए लड़ रहे हैं?, लेख लिखा था. सामाजिक कार्यकर्त्ता हिमांशु कुमार का संघर्ष बदलाव  और सुधार की गुंजाईश चाहने वालों के लिए एक मिसाल है.)