Aug 15, 2010

सिनामाई पर्दे पर नया मुहावरा है 'पीपली लाइव'


फिल्म में मीडिया की भूमिका झपट्टा मारने पर उतारू बाज़ जैसी है जो 'आत्महत्या'की जाल में फंसने जा रहे किसान नत्था के पेशाब और टट्टी करने तक को सनसनीख़ेज़ 'ख़बर'बनाता है।

वर्धा से अनिल मिश्र

पीपली लाइव लोकजीवन के मार्मिक चरित्रों की विडंबना को व्यंग्य की सुतली डोर से बांधती है। यह वोट लूटने की ज़हरीली राजनीति,जानलेवा 'विकास'और सौदागर मीडिया के भ्रष्ट लेकिन मज़बूत गठजोड़ की सिनेमाई दास्तान है। नत्था, बुधिया, होरी और अम्मानुमा पात्र, अपने देश भारत (इंडिया नहीं)की फटी तक़दीर पर चस्पा ऐतिहासिक नज़ीर हैं कि कैसे एक देश की कई पीढ़ियां निराशा,अवसाद और अपने ही लोगों की गु़लामी के जूतों तले दबकर धीमी मौत की सांस गिन रही हैं। हमारे 'इंडिया' को इसका भान बस यूं है कि वह इन पात्रों की ज़िंदगियों को हरेक क्षण किसी मस्त बौराये हाथी की तरह पल-प्रतिपल कुचलता चला जा रहा है।


लोक की सहज जीवन-शैली के धागों से बुनी फ़िल्म छिछोरी राजनीति की गंदी हरकतों को उजागर करती है। इसमें मीडिया की भूमिका झपट्टा मारने पर उतारू बाज़ जैसी है जो 'आत्महत्या'की जाल में फंसने जा रहे किसान नत्था के पेशाब और टट्टी करने तक को सनसनीख़ेज़ 'ख़बर'बनाता है। फ़िल्म में,युगीन उपलब्धियों को जीने वाले नाट्यकर्मी हबीब तनवीर के अभिनय स्कूल का भरपूर असर दिखता है जो सिनेमाई पर्दे पर अभिनय का एक नया मुहावरा गढ़ता है। मसलन, फ़िल्म के खल पात्र जब कर्कश गालियां देते हैं तो वह तंज और नफ़रत का एक तल्ख़ इज़हार होता है लेकिन अम्मा द्वारा अपनी बहू या लड़के को दी जाने वाली गालियां दर्शकों को गुदगुदा जाती हैं।

नगीन तनवीर के गीत 'चोला माटी का....' गीत सुनहरी लोकधुन की उत्कृष्ट गायकी है। नगीन तनवीर की खनकती आवाज़ इसके जादुई असर को और महीन करती है। विभिन्न भाषाओं के लोकगीतों और धुनों पर नगीन की ग़ज़ब की, आल्हादित कर देने वाली पकड़ है। फ़िल्म में ताज़ादम ताज़गी के साथ ये गीत सूफ़ी संगीत की सी सादगी से तरंगित है। अन्य गीत 'देस मेरा रंगरेज़....'और 'मंहगाई डायन.....'आज के अंतर्द्वंद की नब्ज़ टटोलने में बेतरह कामयाब हुए हैं।

पीपली लाइव,कुलीनों द्वारा देश के हृदयस्थल पर एक के बाद एक की जा रही चोटों का हालिया हिसाबनामा है। यह नव-धनाढ्य चेतना को बेधती हुई,अर्थपूर्ण मनोरंजन की ज़रूरत से पगी फ़िल्म है। यह दर्शकों को एक ज्वलंत सवाल पर समझदार सोच के साथ सिनेमाहॉल से विदा करती फ़िल्म है।




2 comments:

  1. पीपली लाइव की अच्छी समीक्षा है मगर अधूरी है. कोई इसे पूरा तो करे.

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  2. पीपली लाइव पर इसे भी पढ़ें- आमिर, पीपली लाइव और किसान... http://pratishrutibuxar.blogspot.com/

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