May 20, 2011

और उसका इंतज़ार भी म़र गया !

पुलिस वालों और एसपीओ ने पहले जम कर शराब पी और फिर  इनके  घरों में घुस कर इन्हें बाहर निकाला  ! इनकी पत्नियों ने जब  बचाने की कोशिश की तो उन्हें भी बन्दूक के बट से मार-मार कर लहूलुहान कर दिया गया...

हिमांशु कुमार

आज दंतेवाडा से एक फ़ोन आया कि   सोमड़ू म़र गया ! मैंने पूछा कैसे ? तो मुझे बताया गया कि  तेंदू पत्ता तोड़ते समय कल उसे सांप ने काट लिया और कुछ ही देर में वो म़र गया!  तभी  मुझे  ध्यान  आया कि अरे यह तो वही सोमड़ू है ,जिसे एक मामले में न्याय का  इंतजार  था.आइये जाने  कौन था ये सोमड़ू ?

तीन साल पहले की ये घटना है ! भैरमगढ़ से बीजापुर जाने के रास्ते में माटवाडा नाम का एक सलवा जुडूम कैंप है ! 18 मार्च 2008 को स्थानीय  अखबार में खबर छपी कि माटवाडा सलवा जुडूम कैंप में रहने वाले तीन आदिवासियों की नक्सलियों ने कैंप में घुस कर हत्या कर दी है! खबर पर विश्वास नहीं हुआ ! क्योंकि  ये एक छोटा सा कैंप है! सड़क के किनारे सारे आदिवासी अपनी झोपडी में रहते हैं !  बीच में एक पतली सी सड़क और सड़क के इस तरफ पुलिस चौकी ! आदिवासीयों की झोपड़ियों के पीछे की तरफ सीआरपीएफ़ का कैंप ! लेकिन सच्चाई कैसे पता चले ? उस क्षेत्र का जानकार  कोपा भी अचानक  गायब हो गया था ! कोपा के बिना बताये गायब होने पर मैं आश्रम  में चिंतित हो रहा था. लेकिन  दो दिन के बाद कोपा मुस्कुराते हुए  सामने आ गया !

कोपा के  साथ एक नौजवान और भी था ! मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से पूछा, -  ये कौन है? कोपा ने कहा, आप ही पूछ लीजिये ! उस लड़के ने दिल दहला देने वाली कहानी सुनायी ! उसने बताया कि  तीन आदिवासियों के नक्सलियों  के हाथों मारे जाने का जो समाचार छपा है, उनमें से एक  मेरा भाई है और इन तीनों को नक्सलियों ने नहीं पुलिस ने मारा है !

लेकिन हम लोग कभी भी बिना पूरी तहकीकात के किसी मामले में कार्यवाही नहीं करते थे ! इसलिए मैंने उस नौजवान से कहा की मारे गए तीनो लोगो की पत्नियाँ कहाँ हैं ? उसने कहा की सलवा जुडूम कैंप में ! मैंने कहा उन्हें लाना होगा ! कोपा बोला ये ज़िम्मेदारी मैं  लेता हूँ ! और अगले दिन सुबह मारे गए उन तीनों आदिवासियों की पत्नियां हमारे आश्रम में आ गयीं. साथ में कोपा उनके गाँव के सरपंच और पटेल को भी लेता आया था ! उन लोगों को मैंने अलग- अलग बैठा कर पूरी घटना का विवरण देने को कहा ! अन्य गवाहों से भी पूछा ! अब संदेह की कोई भी गुंजाइश नहीं बची थी ! सब का विवरण एक ही जैसा था ! अब सिद्ध हो गया था की ये सलवा जुडूम राहत  शिविर नहीं यातना शिविर हैं !

घटना इस प्रकार से  थी ! इस गाँव के लोगों को जबरन तीन साल पहले गाँव के आठ लोगों की हत्या करने के बाद, घरों को जला कर इस कैंप में लाया गया था ! ये लोग तब से इन कैम्पों में रह रहे थे ! सरकार ने शुरू में तो कैंप बसते समय  कहा था कि  कैंप में खाना पीना सब मिलेगा लेकिन वो सब तो जुडूम के नेता बीच में ही गटक जाते थे ! इस पर गांव वालों ने पेट भरने के लिए आस पास सरकारी सड़क बनाने के नरेगा के काम में जाना शुरू किया पर उसमे भी आधी मजदूरी नेता और पुलिस वाले मार देते थे ! तब लोगों ने गावों में जाकर महुआ बीनना और धान उगाना शुरू कर दिया !

लेकिन सब को रात होने से पहले कैंप में वापिस आकर पुलिस के सामने हाजिरी लगानी पड़ती थी! ज्यादा रात हो जाने वाले की पिटाई की जाती थी कि तुम लोग गाँव जाने के बहाने ज़रूर नक्सलियों की बैठक में गए होंगे ! एक रात  मारे  गए ये  तीनों  आदिवासी ज्यादा रात हो जाने पर पिटाई के डर से गांव में ही रुक गए ! इन्होंने  सोचा कि कल दिन में चुपचाप अपने घर में घुस जायेंगे और बोल देंगे की हम तो कल शाम को ही आ गए थे ! और इन्होंने ऐसा ही किया ! लेकिन इसकी जानकारी वहां के एसपीओ  को चल गयी ! उन्होंने वहां पुलिस चौकी के इंचार्ज एएसआई पटेल के साथ मिल कर इन चारों को अनुशासन तोड़ने की सजा देने का निर्णय किया ! सजा देने के लिए पुलिस वालों और एसपीओ ने पहले जम कर शराब पी और उसके बाद इन चारों को घरों में घुस कर खींच कर बाहर लाया गया ! इनकी पत्नियों ने जब इन्हें बचाने की कोशिश की तो उन्हें भी बन्दूक के बट से मार-मार कर लहूलुहान कर दिया गया दिया गया !

फिर इन चारों आदिवासियों के हाथ उन्ही की लुंगियां को खोल कर पीछे बांध दिए गए ! और इन्हें सड़क पर लाया गया और डंडों से चारों की पिटाई शुरू की गयी ! थोड़ी देर में चारों बेहोश हो गए! बाल्टी भर पानी मंगाया गया और उन चारों पर डाला गया ! उन्हें थोडा होश आया ! उन चारों में सोमड़ू भी एक था ! अँधेरा हो गया था ! सोमड़ू मौके का फायदा  उठाकर सरकते हुए एक झाड़ी में चला गया और हाथों में बंधी लूंगी खोल कर गिरता पड़ता कुछ दूर पहुंचा ! वहाँ गाँव वालों ने उसे पानी पिलाया ! किसी ने उसे अपने घर में बकरियों के साथ छिपा दिया ! इधर इन तीनो की पिटाई शाम से रात के आठ बजे तक चलती रही ! अंत में लगभग सब शांत हो गए थे ! फिर उनकी सज़ा पूरी करने का वक़्त आया ! चाकू से तीनो की आँखे निकाली गयीं ! और फिर माथे पर चाकू खड़ा कर के पत्थर से उसे सर में ठोक दिया गया ! इसके बाद तीनो की लाशों को पास में नदी के किनारे रेत में दबा दिया गया !

हमने इन तीनों आदिवासियों की पत्नियों को मीडिया के सामने बैठा दिया और कहा कि आप भी सच्चाई निकालने की कोशिश करिए ! इसके बाद ये मामला छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट में दायर किया गया ! इन तीनों महिलाओं को मैं अपने प्रदेश के सह्रदय साहित्यकार डीजीपी श्री विश्वरंजन  के पास ले गया ! वो बोले ठीक है मुझे अब कुछ नहीं पूछना है, लेकिन बाद में उन्होंने पत्रकारों से कहा की इन महिलाओं के पतियों को नक्सलियों ने ही मारा है, पर ये नक्सलियों के कहने से पुलिस पर झूठा इल्ज़ाम लगा रही हैं ! इस विषय में मेधा पाटकर ने भी डीजीपी साहब को एक पत्र लिखा जिसके जवाब में उन्होंने कहा की हिमांशु तो झूठ बोलता है! बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच में भी इस मामले में पुलिस की भूमिका पर संदेह व्यक्त किया गया !

अभी इस मामले में आरोपी एएसआइ  पटेल और दो एसपीओ जेल में हैं ! तीनो महिलाओं को अंतरिम राहत  के रूप में एक एक लाख रुपया अदालत के आदेश से मिला है ! सोमड़ू का एक हाथ और तीन पसलियाँ मार से टूट गयीं थीं ! और वह उसके और उसके साथियों के साथ हुए ज़ुल्म के खिलाफ फैसले के इंतज़ार में था ! लेकिन आज खबर आयी की सोमड़ू मर गया! और उसी के साथ उसका इंतज़ार भी म़र गया !

दंतेवाडा स्थित वनवासी चेतना आश्रम के प्रमुख और सामाजिक कार्यकर्त्ता हिमांशु कुमार का संघर्ष बदलाव और सुधार की गुंजाइश चाहने वालों के लिए एक मिसाल है.




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